सामान्य धर्म और परम धर्म में अंतर (परमार्थ के पत्र पुष्प)
गहि पद भरत मातु सब राखी। रही राम दर्शन अभिलाषी।। मानस अयोध्याकांड 239 /2
उक्त वाक्य में ध्वनि यह है कि श्री भरत जी ने माताओं को प्रणाम करके उन्हें समझाया कि पति के साथ सती होना सामान्य धर्म है। शरीर को रखकर श्री राम का दर्शन करना परम धर्म है। परम धर्म से भक्ति होती है। भक्ति करने से ,परमधर्म का आचरण करने से सामान्य धर्म के त्याग का दोष नहीं लगता है। सामान्य पालन हुआ माना जाता है, सो के नोट में 50, 20, 10, 5 आदि के नोट समाए रहते हैं। सो के नोट को प्राप्त करने में यदि पांच का नोट छूट जाए, तो हानि नहीं मानी जाएगी। पांच का नोट सामान्य धर्म है और 100 का नोट भक्ति का आचरण है। सती होने में साधारण लाभ है। राम दर्शन में परम लाभ है। अतः अब वन में चलकर राम दर्शन होगा आगे वन से वापस आने पर अधिक समय तक श्री राम के दर्शन का लाभ होगा। यह सोचकर माताएं वापस रनिवास को चली गई।
फोन कि मैं कोई स्त्री भी दुआ नहीं होती थी सती हो जाती थी विधवा स्त्री जीवित नहीं रहती थी परंतु राम दर्शनार्थ माताएं जीवित रहे इसका समर्थन उसी समूह ने किया माताओं में श्रीराम से प्रार्थना की थी कि
जो दिन गए तुमहि बिन देखे,ते विरंचि जनि पारहिं लखे।।
हे श्रीराम जो दिन तुम्हारे दर्शनों के बिना बीते, उनकी गिनती जीवन में ना हो, दर्शन युक्त जीवन ही जीवन है। भक्ति बिना जीवन जीवन नहीं है। श्री राम के जन्म से पूर्व का समय आयु में नहीं गिना गया। जन्म के बाद से जितनी आयु उस युग में होनी चाहिए, उतनी आयु माताओं ने प्राप्त की, 10000 वर्ष की आयु उन दिनों हुआ करती थी। दर्शन हीन जीवन लेखे में नहीं आया। माताएं अधिक दिन जीवित रही ,श्री राम जी के साथ परमधाम गई।
दादा गुरु भक्ति माली जी महाराज के श्री मुख से
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जय श्री राधे