भगवान के ह्रदय की विशालता
एक बार नारद जी के मन में एक विचित्र सा कौतूहल पैदा हुआ।उन्हें यह जानने की धुन सवार हुई कि ब्रह्मांड में सबसे बड़ा और महान कौन है?
नारद जी ने अपनी जिज्ञासा भगवान विष्णु के सामने ही रख दी। भगवान विष्णु मुस्कुराने लगे।फिर बोले, नारद जी सब पृथ्वी पर टिका है। इसलिए पृथ्वी को बड़ा कह सकते हैं। और बोले परंतु नारद जी यहां भी एक शंका है।
नारद जी का कौतूहल शांत होने की बजाय और बढ़ गया। नारद जी ने पूछा स्वयं आप सशंकित हैं फिर तो विषय गंभीर है। कैसी शंका है प्रभु ? विष्णु जी बोले, समुद्र ने पृथ्वी को घेर रखा है। इसलिए समुद्र उससे भी बड़ा है।
अब नारद जी बोले, प्रभु आप कहते हैं तो मान लेता हूं कि समुद्र सबसे बड़ा है।यह सुनकर विष्णु जी ने एक बात और छेड़ दी, परंतु नारद जी समुद्र को अगस्त्य मुनि ने पी लिया था। इसलिए समुद्र कैसे बड़ा हो सकता है ? बड़े तो फिर अगस्त्य मुनि ही हुए।
नारद जी के माथे पर बल पड़ गया। फिर भी उन्होंने कहा, प्रभु आप कहते हैं तो अब अगस्त्य मुनि को ही बड़ा मान लेता हूं।नारद जी अभी इस बात को स्वीकारने के लिए तैयार हुए ही थे कि विष्णु ने नई बात कहकर उनके मन को चंचल कर दिया।
श्री विष्णु जी बोले, नारद जी पर ये भी तो सोचिए वह रहते कहां हैं।आकाशमंडल में एक सूई की नोक बराबर स्थान पर जुगनू की तरह दिखते हैं। फिर वह कैसे बड़े, बड़ा तो आकाश को होना चाहिए।
नारद जी बोले, हां प्रभु आप यह बात तो सही कर रहे हैं। आकाश के सामने अगस्त्य ऋषि का तो अस्तित्व ही विलीन हो जाता है।आकाश ने ही तो सारी सृष्टि को घेर आच्छादित कर रखा है। आकाश ही श्रेष्ठ और सबसे बड़ा है।
भगवान विष्णु जी ने नारद जी को थोड़ा और भ्रमित करने की सोची।श्रीहरि बोल पड़े, पर नारदजी आप एक बात भूल रहे हैं। वामन अवतार ने इस आकाश को एक ही पग में नाप लिया था फिर आकाश से विराट तो वामन हुए।
नारदजी ने श्रीहरि के चरण पकड़ लिए और बोले भगवन आप ही तो वामन अवतार में थे।फिर अपने सोलह कलाएं भी धारण कीं और वामन से बड़े स्वरूप में भी आए। इसलिए यह तो निश्चय हो गया कि सबसे बड़े आप ही हैं।
भगवान विष्णु ने कहा, नारद, मैं विराट स्वरूप धारण करने के उपरांत भी, अपने भक्तों के छोटे हृदय में विराजमान हूं।*वहीं निवास करता हूं। जहां मुझे स्थान मिल जाए वह स्थान सबसे बड़ा हुआ न।
इसलिए सर्वोपरि और सबसे महान तो मेरे वे भक्त हैं जो शुद्ध हृदय से मेरी उपासना करके मुझे अपने हृदय में धारण कर लेते हैं।*उनसे विस्तृत और कौन हो सकता है। तुम भी मेरे सच्चे भक्त हो इसलिए वास्तव में तुम सबसे बड़े और महान हो।
श्रीहरि की बात सुनकर नारद जी के नेत्र भर आए। उन्हें संसार को नचाने वाले भगवान के हृदय की विशालता को देखकर आनंद भी हुआ और अपनी बुद्धि के लिए खेद भी।
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जय श्री राधे