आदित्य हृदय स्तोत्र के अंतिम श्लोकों (21 से 31) के सरल हिंदी अर्थ:
21.
तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।
नमस्तमभिनिघ्नाय रूचये लोकसाक्षिणे॥
अर्थ: तपे हुए सोने के समान तेज वाले, अग्निस्वरूप, सृष्टिकर्ता, अंधकार को नष्ट करने वाले, प्रकाशस्वरूप, और समस्त लोकों के साक्षी स्वरूप सूर्य को नमस्कार है।
22.
नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥
अर्थ: यह प्रभु सूर्य ही प्राणियों का नाश करते हैं, वही उन्हें फिर उत्पन्न करते हैं। यह पालन करते हैं, तपन देते हैं और किरणों से वर्षा कराते हैं।
23.
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥
अर्थ: जब सब सोते हैं, तब यह सूर्य जागते हैं। सभी प्राणियों में स्थित रहते हैं। यह अग्निहोत्र (यज्ञ) भी हैं और अग्निहोत्र करने वालों को फल देने वाले भी।
24.
वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥
अर्थ: वेद, यज्ञ, उनके फल और संसार में किए जाने योग्य समस्त कर्म – ये सब कुछ यह सूर्य देव ही हैं।
25.
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥
अर्थ: हे राघव! संकटों, विपत्तियों, वन के भय और कठिन परिस्थितियों में जो व्यक्ति इस सूर्य का स्मरण करता है, वह कभी दुखी नहीं होता।
26.
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयी भव॥
अर्थ: इस सूर्यदेव – देवताओं के देव, जगत्पति की एकाग्र होकर पूजा करो। इस स्तोत्र को तीन बार जप कर तुम युद्ध में निश्चित ही विजय प्राप्त करोगे।
27.
अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम्॥
अर्थ: हे महाबाहु राम! इस क्षण तुम रावण का वध करोगे – ऐसा कहकर अगस्त्य ऋषि वहाँ से चले गए।
28.
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतः शुचिः॥
अर्थ: यह सुनकर महान तेजस्वी राम का शोक नष्ट हो गया। वे अत्यंत प्रसन्न और शुद्ध चित्त होकर इसे ग्रहण करने लगे।
29.
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥
अर्थ: आदित्य (सूर्य) की ओर देखकर राम ने स्तोत्र का जप किया और महान हर्ष से भर गए। तीन बार आचमन करके शुद्ध होकर अपने धनुष को उठाया।
30.
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्॥
अर्थ: फिर प्रसन्न चित्त से रावण को देखकर राम युद्ध के लिए आगे बढ़े और उसे मारने के लिए पूर्ण यत्नपूर्वक दृढ़ निश्चय कर लिया।
31.
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं
मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा
सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥
अर्थ: तब सूर्यदेव राम को देखकर हर्षित हुए, अत्यंत प्रसन्न मन से देवताओं के मध्य बोले – अब निशाचरों के राजा (रावण) का अंत निश्चित है।
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