> परमात्मा और जीवन"ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: आदित्या हृदय स्त्रोत का हिंदी में अर्थ

यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 25 मई 2025

आदित्या हृदय स्त्रोत का हिंदी में अर्थ

         आदित्या हृदय स्त्रोत का हिंदी में अर्थ



यह रहा आदित्य हृदय स्तोत्र का श्लोक-दर-श्लोक सरल हिंदी अर्थ 

1.
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥

अर्थ: तब युद्ध से थके हुए और रावण को सामने खड़ा देखकर युद्ध के लिए तैयार राम, चिन्ता में डूबे हुए थे।

2.
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपगम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥

अर्थ: तब देवता युद्ध देखने के लिए आये और भगवान् अगस्त्य ऋषि राम के पास आकर बोले।

3.
राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि॥

अर्थ: हे राम! हे महाबाहो! एक गुप्त और सनातन रहस्य सुनो जिससे तुम युद्ध में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करोगे।

4.
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपेन्नित्यं अक्षय्यं परमं शिवम्॥

अर्थ: यह ‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ पुण्यदायक, सभी शत्रुओं का नाश करने वाला, विजय देने वाला और अक्षय, परम मंगलमय स्तोत्र है। इसका नित्य जप करो।

5.
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनं आयुरारोग्यमैश्वर्यम्॥

अर्थ: यह स्तोत्र सारे मंगलों में श्रेष्ठ, सभी पापों का नाश करने वाला, चिन्ता और शोक को शांत करने वाला, आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य देने वाला है।

6.
नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि मे जगतां पते॥

अर्थ: शान्त, रोगों को दूर करने वाले सूर्य देव को नमस्कार है। हे जगत्पति! मुझे आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य प्रदान कीजिए।

7.
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥

अर्थ: किरणों से युक्त, उदय होते हुए, देवताओं और असुरों द्वारा पूजित सूर्य देव – विवस्वान, भास्कर और भुवनपति की पूजा करो।

8.
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥

अर्थ: यह तेजस्वी सूर्य सभी देवताओं का आत्मस्वरूप है, और अपनी किरणों से देवता, असुर तथा समस्त लोकों की रक्षा करता है।

9.
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥

अर्थ: यही सूर्य ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, सोम (चन्द्र) और वरुण हैं।

10.
पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥

अर्थ: यह सूर्य पितर, वसु, साध्यगण, अश्विनीकुमार, मरुतगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजाएँ, प्राण, ऋतु बनाने वाले तथा प्रकाशदाता प्रभाकर हैं।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अगर आपको मेरी post अच्छी लगें तो comment जरूर दीजिए
जय श्री राधे

Featured Post

रक्षा बंधन 2025 : भाई-बहन का प्रेम व धार्मिक महत्व

रक्षा बंधन : भाई-बहन के प्रेम का पर्व और इसका आध्यात्मिक महत्व       रक्षा बंधन 2025: भाई-बहन का प्रेम व धार्मिक महत्व भाई-बहन के रिश्ते क...