> परमात्मा और जीवन"ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: ईश्वर का कहना है कि मै तुम्हारे अंग- संग हूं, तुम महसूस तो करो

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सोमवार, 13 मई 2019

ईश्वर का कहना है कि मै तुम्हारे अंग- संग हूं, तुम महसूस तो करो

                         मैं तुम्हारे अंग संग हूं


 एक नई भोर के आगमन के साथ आज जब तुम उठे, तो मैंने तुम्हें देखा ,सोचा कि तुम अपने दिन की शुरुआत करने से पहले मेरा आशीर्वाद लेना जरूरी समझोगे ।भले ही तुम चुप रहोगे पर मुझे प्रणाम जरूर करोगे, पर तुम तो पहनने के लिए सही कपड़े ढूंढने में व्यस्त थे और इधर उधर भाग कर काम पर जाने के लिए तैयार हो रहे थे।
 तुम नाश्ता करने बैठे ,मुझे लगा ,अब तुम मुझसे भी दो निवाले खाने को कहोगे, पर तुम इतनी जल्दी में थे कि यह भूल ही गए कि तुम्हारे द्वारा प्यार से खिलाया गया एक निवाला ही मेरी भूख मिटा सकता है। फिर भी तुम्हें जी भर कर खाता देख ,मैं अपनी भूख भी भूल गया ।खाने के पश्चात तुम्हारे पास 15 मिनट का समय था, तुम खाली बैठे मन ही मन कुछ सोचते रहे, मैंने सोचा कि अब तुम मुझसे बात करने के लिए हिचकिचा  रहे हो कि कहीं मैं तुमसे नाराज तो नहीं, नादान समझ, मैंने तुम्हारी तरह अपना पहला कदम उठाया ब ही था कि तुम अपनी फोन की तरफ भागे ,अपने मित्र से ताजी खबर लेने के लिए। मेरी आशा एक बार फिर टूट गई। परंतु तुम्हें हंसता हुआ देख, मैं मुस्कुरा दिया। तुम घर से निकलने लगे, मेरा विश्वास था कि अब तो तुम जाने से पहले मुझे प्रणाम करना नहीं भूलोगे, पर मेरा विश्वास तब टूटा जब मैंने देखा कि तुम्हें शीशे में अपने चेहरा देखना तो याद था पर मेरी आंखों में अपने लिए  स्नेह नहीं । तुमने जरूरत तो ना समझी, पर फिर भी मैंने तुम्हें अपना आशीर्वाद दिया।
 वह आशीर्वाद जो कभी हर परीक्षा में तुम्हारे लिए अमूल्य था, पर दुनिया की भाग दौड़ ने तुम्हें इसका मूल्य भुलवा दिया है। तुम घर से निकले यह सोच कर कि तुम अकेले हो, पर तुम्हें अपने कदमों के साथ मेरे कदमों की आहट सुनाई ही नहीं दी। पूरा समय तुम अपने कार्यों में तथा मित्रों के बीच व्यस्त थे और मैं पहले की तरह ही तुम्हें एक टक देख रहा था। दोपहर हुई मैंने देखा कि भोजन करने से पहले तुम इधर उधर नजर घुमा रहे थे ,संकोच में भरी तुम्हारी आँखें क्या मुझे याद करने से रोक रही थी और संकोच किस से, मित्र जन से, दुनिया से या फिर अपने आप से। समय का पहिया यूं ही चलता रहा और मेरे इंतजार का क्षण यूं ही बीतते रहे। इसी प्रकार शाम हो गई और तुम लौट आए। एक बार फिर मैंने अपने आशा के दीपक जलाए, यह सोच कर कि अपने कार्य को समाप्त करने के बाद तुम मुझसे बात करना चाहोगे। पर यह क्या? तुम तो टीवी देखने बैठ गये। तुम उसमें कुछ देखना तो नहीं चाहते थे, पर ना जाने किस विवशता  से उसके सामने बैठकर चैनल बदलते रहे। मैं समझ चुका  था कि कोई बात तुमहें अंदर ही अंदर खा रही है और तुम्हारे  मन की मंशा को मैने तुम्हारी आंखों में पढ़ लिया था । मुझे लगा कि अब तुम मुझ से राय लेने के लिए मेरे पास आओगे। तुम्हें यह तो याद होगा कि हर मुश्किल घड़ी में मैंने तुम्हारा साथ दिया है, पर अब शायद तुम्हें मेरी सहायता की जरूरत नहीं इसलिए तुम अपने मन को मन में दबाए हुए सोने के लिए बिस्तर पर लेट गए। तुम कुछ सोचने लगे। तुम्हारी आंखों में ना तो नींद थी, ना ही चैन। तुम्हारी यह बेचैनी जब मुझसे देखी ना गई तो मैं तुम्हारी तरफ बढा़, अपना हाथ तुम्हारे सर पर रख कर मन ही मन सोचा कि अब तुम आँखो खोलोगे और यह देखोगे कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, पर तुम तो सो चुके थे और इसी के साथ मेरा इंतजार अधूरा रह गया । लेकिन आज अगर मेरी आशा का दीपक बुझ गया ,तो क्या हुआ कल यह दीप मैं फिर जला लूंगा। तुम मेरी संतान हो , मेरा ही अंश हो, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। तुम्हें पाने के लिए मेरे मन में जो चाहत  और धीरज है, उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। यह जरूरी नहीं कि तुम किसी विवशता पूर्वक मेरा ध्यान करो।
 मैं तुम्हारे मुख से अपनी  प्रशंसा नहीं, बल्कि प्यार के दो बोल सुनना चाहता हूं। मैं तुम्हारी आंखों में दुनिया से संकोच नहीं बल्कि अपने लिए स्नेह देखना चाहता हूं ,और हां मैं तुम्हारी बातों में डर और इच्छा ही नहीं, बल्कि  आदर और स्नेह देखना चाहता हूं। तुम्हारा भय, तुम्हारी इच्छाएं ,तुम्हारा दुख, सब मेरे होंगे और मैं तुम्हारा।
 कल फिर तुम नींद से उठोगे, एक नई भोर के साथ और मैं फिर तुम्हारा स्नेह पूर्वक इंतजार करूंगा। एक बार फिर अपनी आशा का दीपक जलाएं ,यह सोच कर कि कभी तो तुम्हें मेरी उपस्थिति का एहसास होगा ।
तुम्हारा साथी- भगवान। (प्रेषक- श्री एमके राय जी)

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