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शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

राम कथा का सार...जिस घर में भाई भाई मिलकर रहते हैं––

 राम कथा का सार...जिस घर में भाई भाई मिलकर रहते हैं––


भाई-भाई "विपत्ति" बांटने के लिए होते है ...

न कि "सम्पति" का बंटवारा करने के लिए ...

राम, लखन, भरत, शत्रुघ्न भाईयो का बचपन का एक प्रसंग है ...

जब ये लोग गेंद खेलते थे । तो लक्ष्मण, राम की साइड उनके पीछे होता था , और सामने वाले पाले में भरत, शत्रुघ्न होते थे । तब लक्ष्मण हमेशा भरत को बोलते राम भैया सबसे ज्यादा मुझे प्यार करते है, तभी वो हर बार अपने पाले में अपने साथ मुझे रखते है। लेकिन भरत कहते नहीं राम भैया सबसे ज्यादा मुझे प्यार करते है तभी वो मुझे सामने वाले पाले में रखते है, ताकि हर पल उनकी नजरें मेरे ऊपर रहे, वो मुझे हर पल देख पाए , क्योंकि साथ वाले को देखने के लिए तो उनको मुड़ना पड़ेगा ।

फिर जब भरत गेंद को राम की तरफ उछालते तो राम जानबूझ कर गेंद को छोड़ देते और हार जाते , फिर पूरे नगर में उपहार और मिठाईयां बांटते खुशी मनाते । सब पूछते राम जी आप तो हार गए फिर आप इतने खुश क्यों है, राम बोलते मेरा भरत जीत गया । फिर लोग सोचते जब हारने वाला इतना कुछ बांट रहा है तो जितने वाला भाई तो पता नहीं क्या -क्या देगा .....लोग भरत जी के पास जाते है । लेकिन ये क्या भरत तो लंबे लंबे आंसू बहाते हुए रो रहे है । लोगो ने पूछा भरत जी आप तो जीत गए है फिर आप क्यों रो रहे है ? भरत बोले देखिये मेरी कैसी विडंबना है मैं जब भी अपने प्रभु के सामने होता हूँ तभी जीत जाता हूँ । मैं उनसे जीतना नहीं, मैं उनको अपना सब हारना चाहता हूं । मैं खुद को हार कर उनको जीतना चाहता हूं ... इसलिए कहते है भक्त का कल्याण भगवान को अपना सब कुछ हारने में है , सब कुछ समर्पण करके ही हम भगवान को पा सकते है ....एक भाई दूसरे भाई को जीता कर खुश है ।

दूसरा भाई अपने भाई से जीत कर दुखी है । इसलिए कहते है खुशी लेने में नही देने में है ....

जिस घर मे भाई -भाई मिल कर रहते है । भाई -भाई एक दूसरे का हक नहीं छीनते उसी घर मे राम का वास है ...जहां बड़ो की इज्जत है ।

।।जय सिया राम।।

रविवार, 29 अगस्त 2021

रोना हो तो भगवान के लिए ही रोयें......

                                  श्री हरिः शरणम् 



रोना हो तो भगवान के लिए ही रोयें......

पूज्य हरिबाबा से एक भक्त ने कहाः 

"महाराज ! यह अभागा, पापी मन रूपये पैसों के लिए तो रोता पिटता हैलेकिन भगवान अपना आत्मा हैं, फिर भी आज तक नहीं मिलि इसके लिए रोता नहीं है। 

क्या करें ?" 

पूज्य बाबा - "रोना नहीं आता तो झूठमूठ में ही रो ले।" 

"महाराज ! झूठमूठ में भी रोना नहीं आता है तो क्या करें ?" 

महाराज दयालु थे। उन्होंने भगवान के विरह की दो बातें कहीं। 

विरह की बात करते-करते उन्होंने बीच में ही कहा कि 

"चलो, झूठमूठ में रोओ।" 

सबने झूठमूठ में रोना चालू किया तो देखते-देखते भक्तों में सच्चा भाव जग गया। 

झूठा संसार सच्चा आकर्षण पैदा करके चौरासी के चक्कर में डाल देता है तो भगवान के लिए झूठमूठ में रोना सच्चा विरह पैदा करके हृदय में प्रेमाभक्ति भी जगा देता है। 

अनुराग इस भावना का नाम है कि भगवान हमसे बड़ा स्नेह करते हैं, 

हम पर बड़ी भारी कृपा रखते हैं। हम उनको नहीं देखते पर वे हमको देखते रहते हैं। 

हम उनको भूल जाते हैं पर वे हमको नहीं भूलते। हमने उनसे नाता- रिश्ता तोड़ लिया है पर उन्होंने हमसे अपना नाता- रिश्ता नहीं तोड़ा है।

हम उनके प्रति कृतघ्न हैं पर हमारे ऊपर उनके उपकारों की सीमा नहीं है। 

भगवान हमारी कृतघ्नता के बावजूद हमसे प्रेम करते हैं, 

हमको अपनी गोद में रखते हैं, हमको देखते रहते हैं, हमारा पालन-पोषण करते रहते हैं।' इस प्रकार की भावना ही प्रेम का मूल है।

अगर तुम यह मानते हो कि 'मैं भगवान से बहुत प्रेम करता हूँ लेकिन भगवान नहीं करते' तो तुम्हारा प्रेम खोखला है। 

अपने प्रेम की अपेक्षा प्रेमास्पद के प्रेम को अधिक मानने से ही प्रेम बढ़ता है। 

कैसे भी करके कभी प्रेम की मधुमय सरिता में गोता मारो तो कभी विरह की। 

दिल की झरोखे में झुरमुट के पीछे से जो टुकुर-टुकुर देख रहे हैं दिलबर दाता, उन्हें विरह में पुकारोः

'हे नाथ !.... हे देव !... हे रक्षक-पोषक प्रभु !..... 

टुकुर-टुकुर दिल के झरोखे से देखने वाले देव !.... 

प्रभुदेव !... ओ देव !... मेरे देव !.... 

प्यारे देव !..... 

तेरी प्रीति, तेरी भक्ति दे..... 

हम तो तुझी से माँगेंगे, क्या बाजार से लेंगे ? 

कुछ तो बोलो प्रभु !...' कैसे भी उन्हें पुकारो। 

वे बड़े दयालु हैं। वे जरूर अपनी करूणा- वरूणा का एहसास करायेंगे। 

तुलसी अपने राम को रीझ भजो या खीज। 

भूमि फैंके उगेंगे,उलटे सीधे बीज।

।।श्री राधे।।


सोमवार, 23 अगस्त 2021

रामजी के ऊपर हनुमान जी का कर्ज़ा.

                              . हनुमान जी का कर्ज़ा ...



राम जी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो कुछ दिन पश्चात राम जी ने विभीषण, जामवंत, सुग्रीव और अंगद आदि को अयोध्या से विदा कर दिया। 

तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में विदा करेंगे, लेकिन राम जी ने हनुमान जी को विदा ही नहीं किया। 

अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात है कि सब गए परन्तु अयोध्या से हनुमान जी नहीं गये।

अब दरबार में कानाफूसी शुरू हुई कि हनुमान जी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता जी की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमान जी चले जायें।

माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक-एक दिन एक-एक कल्प के समान बीत रहा था।

वो तो हनुमान जी थे, जो प्रभु मुद्रिका ले के गये, और धीरज बंधवाया कि...!

कछुक दिवस जननी धरु धीरा।

कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।

तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥

मैं तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।

अब बारी आई लखन जी की। तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था।  पूरा राम दल विलाप कर रहा था।

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।

आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।

ये तो जो खड़ा है, वो हनुमान जी का लक्ष्मण है। मैं कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमान जी अयोध्या से चले जाएं।

अब बारी आयी भरत जी की। अरे! भरत जी तो इतना रोये, कि राम जी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझ पे। हनुमान जी का, सब मिलके और लगवा दो।

और दूसरी बात ये कि...!

बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।

अधम कवन जग मोहि समाना॥

मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमान जी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।

सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥

मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमान जी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।

अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुघ्न भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुघ्न भैया बोल पड़े.. 

मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमान जी को अयोध्या से निकलने के लिए। 

जिन्होंने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो, किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।

अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार... 

माता सीता ने कहा प्रभु! आप तो तीनों लोकों के स्वामी हो, और देखती हूं आप हनुमान जी से सकुचाते हैं। और आप खुद भी कहते हो कि...!

प्रति उपकार करौं का तोरा।

सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥

आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु ! 

राघव जी ने कहा, देवी क़र्ज़दार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो..

सनमुख होइ न सकत मन मोरा

देवी ! हनुमान जी का कर्ज़ा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है। 

क्योंकि कर्ज़ा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो - हनुमान जी का कर्ज़ा कैसे उतारा जा सकता है।


पहले हनुमान विवाह करें,

लंकेश हरें इनकी जब नारी।

मुंदरी लै रघुनाथ चले,

निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।

आयि कहें, सुधि सोच हरें,

तन से, मन से होई जाएं उपकारी।

तब रघुनाथ चुकायि सकें,

ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।

देवी ! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्ज़ा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!

  "सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं"

मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमान जी भी कुछ मांग लें।

दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए, सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमान जी क्या मांगेंगे, और राम जी क्या देंगे।

राघव जी ने कहा ! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। 

विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद, अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?

हनुमान जी बोले ! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!

तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना

तो फिर यदि मैं दो पद मांगू तो..?

सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमान जी भी ठीक ही कह रहे हैं। 

राम जी ने कहा ! ठीक है, मांग लो।

सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमान जी का कर्ज़ा चुकता हो जायेगा।

हनुमान जी ने कहा ! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमें राजमद की शंका हो।

तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए ?

हनुमान जी ने राम जी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।

हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।

नहीं कोउ रामचरण  अनुरागी।

यह प्रेरक प्रसंग भी किसी ने भेजा है.

रामायण की कथा से .

पढ़ कर मन शांत ,प्रसन्न हो उठता हैl


ऊँ की ध्वनि का महत्व जानिये

                     ऊँ की ध्वनि का महत्व जानिये



एक घडी,आधी घडी,आधी में पुनि आध,,,,,,,

तुलसी चरचा राम की, हरै कोटि अपराध,,,,,,।

   1 घड़ी= 24मिनट

 1/2घडी़=12मिनट

 1/4घडी़=6 मिनट

क्या ऐसा हो सकता है कि 6 मि. में किसी साधन से करोडों विकार दूर हो सकते हैं।

   उत्तर है "हाँ, हो सकते हैं।

वैज्ञानिक शोध करके पता चला है कि......

 सिर्फ 6 मिनट ऊँ का उच्चारण करने से सैकडौं रोग ठीक हो जाते हैं जो दवा से भी इतनी जल्दी ठीक नहीं होते.........

 छः मिनट ऊँ का उच्चारण करने से मस्तिष्क मै विषेश वाइब्रेशन (कम्पन) होता है.... और औक्सीजन का प्रवाह पर्याप्त होने लगता है।

 कई मस्तिष्क रोग दूर होते हैं.. स्ट्रेस और टेन्शन दूर होती है,,,, मैमोरी पावर बढती है..।

लगातार सुबह शाम 6 मिनट ॐ के तीन माह तक उच्चारण से रक्त संचार संतुलित होता है और रक्त में औक्सीजन लेबल बढता है।

  रक्त चाप , हृदय रोग, कोलस्ट्रोल जैसे रोग ठीक हो जाते हैं....।

विशेष ऊर्जा का संचार होता है ......... मात्र 2 सप्ताह दोनों समय ॐ के उच्चारण से घबराहट, बेचैनी, भय, एंग्जाइटी जैसे रोग दूर होते हैं।

कंठ में विशेष कंपन होता है मांसपेशियों को शक्ति मिलती है..। थाइराइड, गले की सूजन दूर होती है और स्वर दोष दूर होने लगते हैं..।

पेट में भी विशेष वाइब्रेशन और दबाव होता है....। एक माह तक दिन में तीन बार 6 मिनट तक ॐ के उच्चारण से,पाचन तन्त्र , लीवर, आँतों को शक्ति प्राप्त होती है, और डाइजेशन सही होता है, सैकडौं उदर रोग दूर होते हैं..।

उच्च स्तर का प्राणायाम होता है, और फेफड़ों में विशेष कंपन होता है..।

फेफड़े मजबूत होते हैं, स्वसनतंत्र की शक्ति बढती है, 6 माह में  अस्थमा, राजयक्ष्मा (T.B.) जैसे रोगों में लाभ होता है।

आयु बढती है।

ये सारे रिसर्च (शोध) विश्व स्तर के वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं।

   जरूरत है छः मिनट रोज करने की....।

   नोट:- ॐ का उच्चारण लम्बे स्वर में करे।

शनिवार, 21 अगस्त 2021

कृष्णजी की कृपा मिल जायेगी अगर


कृष्णजी की कृपा मिल जायेगी           



कृष्णजी की कृपा मिल जायेगी अगर आप रोज तीन बार या कम से कम एक बार निम्नलिखित श्लोक पढे :-


गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम |

गोकुलोत्सवमिशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं | |


हे प्रभु ! हे गिरीराज धर ! गोवर्धन को अपने हाथ में धारण करने वाले हे हरि ! 

मेरी भक्ति और विश्वास को भी आप ही धारण करना | 

प्रभु आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भक्ति बनी रहेगी, आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भी विश्वास रूपी गोवर्धन मेरी रक्षा करता रहेगा | 

हे गोवर्धनधारी आपको मेरा प्रणाम है आप समर्थ होते हुए भी साधारण बालक की तरह लीला करते थे | 

गोकुल में आपके कारण सदैव उत्सव छाया रहता था । 

मेरे ह्रदय में भी हमेशा उत्सव छाया रहे । साधना में, सेवा-सुमिरन में मेरा उसाह कभी कम न हो | मै जप, साधना सेवा, करते हुए कभी थकूँ नहीं | मेरी इन्द्रियों में संसार का आकर्षण न हो, मैं आँख से आपको ही देखने कि इच्छा रखूं, कानों से आपकी वाणी सुनने की इच्छा रखूं, जीभ के द्वारा आपका नाम जपने की इच्छा रखूं ! 

हे गोविन्द ! आप गोपियों के प्यारे हो ! ऐसी कृपा करो, ऐसी सदबुद्धि दो कि मेरी इन्द्रियां आपको ही चाहे, 

संसार की चाह न हो, आपकी ही चाह हो !

रामायण मे एक घास के तिनके का रहस्य

 


रामायण मे एक घास के तिनके का भी रहस्य है,जो हर किसी को नहीं मालूम क्योंकि आज तक किसी ने हमारे ग्रंथो को समझने की कोशिश नहीं की,सिर्फ पढ़ा है, देखा है,और सुना है,आज आप के समक्ष ऐसा ही एक रहस्य बताया जा रहा हैं–

रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया, 

तब लंका मे सीता जी वट व्रक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी,

रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था 

लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी,यहाँ तक की रावण 

ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को भी 

भ्रमित करने की कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ,

रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी 

बोली आप ने तो राम का वेश धर कर गया था फिर क्या हुआ,

रावण बोला जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी !

रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका फिर रावण भी कैसे समझ पाता !

रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर –घूर कर देखने लगती हो,

क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है रावण के 

इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी,और आँख से आसुओं की धार बह पड़ी

अब इस प्रश्न का उत्तर समझो-

जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ बहुत उत्सव मनाया गया,

जैसे की एक प्रथा है कि नव वधू जब ससुराल आती है तो उस नववधू के हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है,ताकि जीवन भर घर पर मिठास बनी रहे !

इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथो से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार राजा दशरथ सहित चारो भ्राता और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे ,

माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तल सम्हाली,सीता जी देख रही थी,

ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया,माँ सीता जी ने उस तिनके को देख लिया,लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया,

माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर जो देखा, तो वो तिनका जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया,

सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा, लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी का यह चमत्कार को देख रहे थे,फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष मे चले गए और माँ सीता जी को बुलवाया !

फिर राजा दशरथ बोले मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था ,आप साक्षात जगत जननी का दूसरा रूप हैं,लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना

आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी मत देखना,

इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी,

यही है उस तिनके का रहस्य ! 

मात सीता जी चाहती तो रावण को जगह पर ही राख़ कर सकती थी लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन की 

वजह से वो शांत रही।

।।श्री सीता राम।।

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

कथा सुनने के चार लाभ है.....

                       कथा सुनने के चार लाभ है.....



श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव ।।

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥

कथा सुनने के चार लाभ है......

भागवत की कथा अर्थात भगवान की कथा तो है ही पर भगवान की कथा बिना भक्तो की कथा के अधूरी है।

इसलिए हर शास्त्र में पुराण में भगवान की कथा के साथ साथ भक्तो की कथा भी आती है.नवधा भक्ति में सबसे पहली भक्ति श्रवण ही है।

जो हम कानो से सुनते है वही हमारे ह्रदय में प्रवेश करता है,और फिर वही हम बोलते है.यदि हम कथा सुनते है तो मुख से कथा ही निकलेगी.

"जिन्ह हरि कथा सुनी नहीं काना, श्रवण रन्ध्र अहि भवन समाना”


संतजन कथा सुनने के चार लाभ बताते है-

1. - तृष्णा रहित वृति

2. - अन्तः करण की शुद्धि

3. - अनन्य भक्ति

भक्तो से प्रीति–

1. तृष्णा रहित वृति - यदि कथा ईमानदारी से कही और सुनी जाए तो दोनों कहने और सुनने वाले को कुछ ओर पाने की अभिलाषा नहीं रह जाती।

इसलिए सुनने वह ये निश्चय करके कथा में बैठे कि कथा मनोरजन नहीं है,मनो मंथन है.कथा एक आईना है,

जिसमे हम स्वयं को देखने आये है,सामान्य आईना सिर्फ बाहरी रूप रंग दिखाता है और कथा आतंरिक भावों को दिखाती है,कि हम वास्तव में क्या है।

और सुनानेवाले अर्थात वक्ता कथा को व्यापार या रोजी रोटी का साधन न समझे.सुनने वाला तो एक ही काम कर रहा है,केवल सुन ही रहा है पर वक्ता दो काम एक साथ कर रहा है एक तो सुना रहा है साथ साथ सुन भी रहा है.जब ऐसी ईमानदारी रखेगे तो फिर तृष्णा रहित वृति हो जाती है।

2. अन्तःकरण की शुद्धि - सत्संग कथा झाड़ू है जैसे खुला मैदान है दो तीन बार झाड़ू लगा दो सब साफ़ हो जाता है,इसलिए अपने अतः करण में सत्संग की झाड़ू लगाते रहो,

जैसे यदि हम कुछ दिनों के लिए कही बाहर जाते है और लौट कर आने पर हम देखते है कि जब हम गए थे तब सब खिडकी दरवाजे बंद करके गए थे फिर भी धूल कैसे आ गई।

इसी तरह यदि कोई संत ही क्यों न हो यदि उसने सत्संग के दरवाजे बंद कर दिए तो उनके अंदर भी मैल ,धूल जमा हो जाती है।

इसलिए जैसे घर को साफ रखने के लिए बार बार झाड़ू लगाते है वैसे ही अंत करण को शुद्ध रखने के लिए कथा रूपी,सत्संग रूपी झाड़ू लगाते रहिये।

3. अनन्य भक्ति - जब किसी के बारे में सुनते रहते है जिसे हमने कभी नहीं देखा तो बार बार उसके बारे में सुनते रहने से स्वतः ही हमारे अंदर उसके लिए प्रेम जाग्रत हो जाता है।

इसी तरह जब हम बार बार कथा सुनते है तो ठाकुर जी के चरणों में हमारी स्वतः ही भक्ति जाग्रत हो जाती है.जैसे लोभी को धन कामी को स्त्री ऐसे ही हमें श्यामा श्याम प्यारे लगने लगते है।

4. भक्तो से प्रीति - भक्त तो भगवान से सदा ही प्रार्थना करता है कि हे नाथ ऐसे विषयी पुरुष जो केवल स्त्री धन पुत्र आदि में लगे हुए है उनका संग भी स्वप्न में भी न हो हमारा कोई अपराध हो तो सूली पर चढा दो ,हलाहल विष पिला दो ,हाथी के नीचे कुचलवा दो, सिंह को खिला दो,

इतना होने पर भी दुःख नहीं मिलेगा पर जो संत से विमुख है,हरि से विमुख है ,गुरु से विमुख है जो भगवान और भक्तो से प्रेम न करता हो, उनसे हमारा कोई सम्बन्ध ना हो।

श्री राधे 

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