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मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

गीता दर्पण गीता के प्रत्येक अध्याय का सरल अर्थ

          गीता के प्रत्येक अध्याय का तात्पर्य

         गीता का पहले अध्याय का अर्थ 


        
   

                                 पहला अध्याय


जिन्होंने अपने प्रिय भक्त अर्जुन के कल्याण के लिए अत्यंत गोपनीय अपना गीता नमक हृदय प्रकट किया है तथा जिन्होंने ’मनुष्य जिस किसी परिस्थिति में स्थित रहता हुआ ही अपना कल्याण कर सकता है’ यह नहीं कला बताई है, उन भगवान श्री कृष्ण के लिए नमस्कार है।

 जो लोग अपने सिद्धांत को गीता में घटाना चाहते हैं, वे इस गीता को देखते हैं तो उन्हें अपना पक्षरूप मुख दिखाने के लिए गीता स्वयं दर्पण है, परंतु जो मनुष्य पक्षपात और आग्रह से रहित होकर गीता के मत को जानना चाहते हैं उनके लिए मैंने यह अद्भुत गीता दर्पण लिखा है।

मोह के कारण ही मनुष्य मैं क्या करूं और क्या नहीं करूं, इस दुविधा में फंसकर कर्तव्यच्युत हो जाता है अगर वह मोह के वशीभूत ना हो तो वह कर्तव्यच्युत नहीं हो सकता।

भगवान, धर्म,परलोक आदि पर श्रद्धा रखने वाले मनुष्यों के भीतर अधिकतर  इन बातों को लेकर हलचल, दुविधा रहती है कि अगर हम कर्तव्य रूप से प्राप्त कम को नहीं करेंगे तो हमारा पतन हो जाएगा। अगर हम केवल सांसारिक कार्य में ही लग जाएंगे तो हमारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होगी। व्यवहार में लगने से, परमार्थ ठीक नहीं होगा और परमार्थ में लगने से व्यवहार ठीक नहीं होगा। अगर हम कुटुंब को छोड़ देंगे तो हमें पाप लगेगा और अगर कुटुंब में बैठे रहेंगे तो हमारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होगी आदि आदि। तात्पर्य यह है कि अपना कल्याण तो चाहते हैं पर मोह, सुखासक्ति के कारण संसार छूटता नहीं है। इसी तरह की हलचल अर्जुन के मन मे भी होती है कि अगर मैं युद्ध करूंगा तो कुल का नाश होने से मेरी कल्याण में बाधा लगेगी और अगर मैं युद्ध नहीं करूंगा तो कर्तव्य से परे हो जाने के कारण  मेरे कल्याण में बाधा लगेगी।

यह गीता दर्पण से ली गई है।😊🙏


गीता दर्पण(श्रीमद् भागवत गीता का सरल रूप


गीता दर्पण(श्रीमद् भागवत गीता का सरल रूप



भगवान की दिव्य वाणी श्रीमद् भागवत गीता के भाव बहुत ही गंभीर और अनायास कल्याण करने वाले हैं। उनका मनन करने से साधक के हृदय में नए-नए विलक्षण भाव प्रकट होते हैं। समुद्र में मिलने वाले रतन का तो अंत आ सकता है, पर गीता में मिलने वाले मनो मुग्धकारी  भाव रूपी रतन का कभी अंत नहीं आता। गीता के भावों को भलीभांति समझने से गीता के वक्ता( भगवान श्रोता (अर्जुन) का, गीता का और अपने स्वरूप का ठीक ठीक बोध हो जाता है। बोध होने पर मनुष्य कृतकृत्य, ज्ञातज्ञातव्य(जो जानना चाहते हो जान जाते हो),और  प्राप्तप्राप्तव्य(जो पाना चाहते हो पा जाते हो)  हो जाता है। उसके लिए कुछ भी करना, जानना और पाना बाकी नहीं रहता। उसका मनुष्य जन्म सर्वथा सफल हो जाता है।
जैसे भक्त जिस भाव से भगवान का भजन करता है, भगवान भी उसी भाव से उसका भजन करते हैं। ऐसे ही मनुष्य जिस मान्यता को लेकर गीता को देखता है, गीता भी इस मान्यता के अनुसार उसको देखने लग जाती है। जैसे मनुष्य दर्पण के सामने जैसा मुख बनाकर जाता है उसको वैसा ही मुख दर्पण में दिखने लग जाता है। ऐसे ही भगवान की वाणी गीता इतनी विलक्षण है कि इसके सामने मनुष्य जैसा सिद्धांत बनाकर जाता है उसको वैसा ही सिद्धांत गीता में दिखने लग जाता है। इस प्रकार गीता रूपी दर्पण में कर्म योगियो को क्रम शास्त्र, ज्ञान योगियो को ज्ञान शास्त्र और भक्ति योगियो को भक्ति शास्त्र दिखता है। सभी साधकों को गीता में अपनी रुचि, श्रद्धा– विश्वास और योग्यता के अनुसार अपने कल्याण का साधन मिल जाता है परंतु जो अपने मत, सिद्धांत आदि कोई आग्रह न रखकर तथा तथस्त होकर गीता के भावों को समझना चाहते हैं उनके लिए यह गीत दर्पण नामक ग्रंथ परम उपयोगी है। इसी गीता दर्पण ग्रंथ में से मैं आपके समक्ष कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां जो मुझे मिली है आपके समक्ष रख रही हूं।
।।जय श्री राधे।।

शनिवार, 18 नवंबर 2023

प्रार्थना कैसे स्वीकार होती है।

                        प्रार्थना कैसे स्वीकार होती है।



प्रार्थना, एक आत्मिक संबंध जो परमात्मा या उच्चतम शक्ति से होता है, को स्वीकार करना मानव जीवन में महत्वपूर्ण है। प्रार्थना में व्यक्ति अपने मन, शरीर, और आत्मा को दिव्यता की ओर मोड़ता है। इसके माध्यम से, वह अपनी इच्छाओं, आशाओं, और आत्मविश्वास को व्यक्त करता है और उच्चतम से आशीर्वाद मांगता है।


प्रार्थना स्वीकार करना एक आत्मिक विकास का साधन होता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन को एक उच्च स्तर पर ले जाने के लिए संजीवनी शक्ति प्राप्त करता है। यह एक आत्मा की अंतर्दृष्टि को बढ़ाता है और उसे जीवन के चुनौतीपूर्ण पहलुओं का सामना करने के लिए शक्तिशाली बनाता है। सार्वजनिक या व्यक्तिगत स्तर पर, प्रार्थना एक सकारात्मक शक्ति है जो समृद्धि, शांति, और समर्पण की भावना को संतुष्ट करने में सहारा करती है।

प्रार्थना का मतलब है भगवान या ऊँची शक्ति से बातचीत करना। इसमें हम अपनी चिंताओं, इच्छाओं और आभासों को उनसे साझा करते हैं। यह हमें आत्मिक शांति और संबल प्रदान करता है।


प्रार्थना करने से हम अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं और अधिक समझदार बन सकते हैं। यह हमें सहारा देता है जब हम किसी मुश्किल स्थिति में होते हैं।


प्रार्थना से हम आत्मा को शक्ति महसूस करते हैं और जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देख सकते हैं। यह हमें समझाता है कि हम अकेले नहीं हैं और किसी अद्भुत शक्ति के साथ जुड़े हुए हैं।

शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

अकेलेपन को कैसे दूर करें

                      अकेलेपन को कैसे दूर करें


अकेलेपन को दूर करने के लिए, आपको सकारात्मक क्रियाएं अपनानी चाहिए। शुरुआत में, आत्म-समीक्षा करें और अपने लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से देखें। साथ ही, नए लोगों से मिलें और सामाजिक गतिविधियों में भाग लें। अपनी रूचियों को पुनर्जीवित करें और नए कौशल सीखें। मेडिटेशन और योग का अभ्यास भी आत्म-समर्थन में मदद कर सकता है। समय के साथ, आप नए दृष्टिकोण बना सकते हैं और अपने आत्मविश्वास को मजबूत कर सकते हैं।


सकारात्मक क्रियाएं आपको आत्म-समर्थन में मदद कर सकती हैं। कुछ सकारात्मक क्रियाएं शामिल हैं:


1. ध्यान और मेडिटेशन:यह मानसिक शांति और सकारात्मकता को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।

2. नए लोगों से मिलना:समाज में बढ़ावा देने के लिए नए दोस्त बनाना और सोशल ग्रुप्स में शामिल होना।

3. रेगुलर एक्सर्साइज: यह ताजगी और सकारात्मक ऊर्जा देने में मदद कर सकता है।

4. कला और रुचियां: अपनी रुचियों और कला में लिपटना, सकारात्मकता को बढ़ावा देने में सहारा कर सकता है।

5. स्वयं से उत्तराधिकारी बनना:अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वयं को जिम्मेदार महसूस करना।

गुरुवार, 16 नवंबर 2023

दुखी मन को कैसे संभाले?

                      दुखी मन को कैसे संभाले?






दुखी मन को संभालने के लिए कई तरीके हैं। यह समाधान ढूंढने में समय लगा सकता है, लेकिन यह आपको सहारा प्रदान कर सकते हैं:


1. अपने आत्म-समर्पण को बढ़ाएं: ध्यान, योग, और प्राणायाम के माध्यम से अपनी आत्मा के साथ संबंध स्थापित करें।


2. विचारशीलता: अपने विचारों को सकारात्मक बनाने के लिए प्रयास करें और नकारात्मकता से दूर रहें।


3. सामाजिक संबंधों का समर्थन: अपने दोस्तों और परिवार से बातचीत करें, उनसे सहायता मांगें और समर्थन प्राप्त करें।


4. स्वस्थ जीवनशैली: सही आहार, पर्याप्त नींद, और नियमित व्यायाम से अपनी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें।


5. कल्याणमय गतिविधियां: ऐसी क्रियाएं जैसे कि किताबें पढ़ना, कला, संगीत, या कोई रुचिकर गतिविधि मनोबल बढ़ा सकती हैं।


अगर आपका दुःख गंभीर है या बना रहता है, तो विशेषज्ञ सलाह लेना महत्वपूर्ण हो सकता है।

साधना कैसे करें?

                             साधना कैसे करें?




साधना करने के लिए:


1. स्थिरता बनाएं: एक स्थिर स्थान चुनें और नियमित समय पर साधना करें.


2. आसन और श्वासप्रश्वास: योगासन और ध्यानासन में स्थिर बैठें, ध्यान केंद्रित करें और शांति से श्वासप्रश्वास का ध्यान रखें.


3. मन को शांत करें:अपने विचारों को ध्यान से गुजरने दें, मन को शांत करने के लिए मन्त्र जाप भी कर सकते हैं.


4. सकारात्मक भावना: सकारात्मक भावना को अपनाएं, धन्यवाद, कृतज्ञता, और शांति के भाव को बढ़ावा दें.


5. समर्पण:साधना को समर्पित रूप से करें, उसमें निष्ठा बनाएं और नियमित रूप से अभ्यास करें.


6. गुरु की मार्गदर्शन: अगर संभावना हो, एक आदर्श गुरु से मार्गदर्शन प्राप्त करें.


साधना में धीरज रखें और नियमित रूप से अभ्यास करने का प्रयास करें।

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

प्रभु के मंगल विधान में विश्वास

                     प्रभु के मंगल–विधान में विश्वास

जो कुछ मिला, मिल रहा है जो कुछ, जो कुछ आगे होगा प्राप्त।

 सब प्रभु का मंगल विधान है, सब में कृपा नित्य परि व्याप्त।।

 जन्म मरण, निरवधि सुख, दारुण दुख, मान अति, अति अपमान।

 पूर्व रचित मंगलमय प्रभु के सब मंगल अनिवार्य विधान।।

 करूण, भयानक, सुंदर, शुभ, विभत्स, सुसर्जन, अति संहार।

 एकमात्र रसमय का सब में, सदा मधुर  लीला विस्तार।। करना नहीं गर्व सुख में, करना ना दुख में कभी विषाद।

 रहना आती संतुष्ट, समझकर सब में प्रभु का कृपा प्रसाद।।

(पद रत्नाकर)


faith in God's providence


belief in god's providence

Whatever I got, whatever I am getting, whatever will happen next

get. Everything is God's good will, blessings are always there in everything.

Pervasive..

Birth and death, everlasting happiness, excruciating sorrow, extreme respect and extreme insult.

All the auspicious and mandatory rules of the auspicious Lord written earlier.

Compassionate, terrible, beautiful, auspicious, terrible, good creation, extreme destruction.

The only sweet pleasure in all, always an extension of the sweet leela. Never be proud in happiness, never be sad in sorrow.

Stay satisfied, understanding that God's grace is in everything.

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