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मंगलवार, 23 सितंबर 2025

सन्त हरिदास जी ने जब पूरी इत्र की शीशी राधा जी को होली खेलने के लिए रेत में डाल दी।

 सन्त हरिदास जी ने जब पूरी इत्र की शीशी राधा जी को होली खेलने के लिए रेत में डाल दी।


एक व्यक्ति लाहौर से कीमती रूहानी इत्र लेकर आये थे। क्योंकि उन्होंने सन्त श्री हरिदास जी महाराज और बांके बिहारी के बारे में सुना हुआ था। उनके मन में आये की मैं बिहारी जी को ये इत्र भेंट करूँ। इस इत्र की खासियत ये होती है की अगर बोतल को उल्टा कर देंगे तो भी इत्र धीरे धीरे गिरेगा और इसकी खुशबु लाजवाब होती है। ये व्यक्ति वृन्दावन पहुँचा।

उस समय सन्त जी एक भाव में डूबे हुए थे। सन्त देखते है की राधा-कृष्ण दोनों होली खेल रहे हैं। जब उस व्यक्ति ने देखा की ये तो ध्यान में हैं तो उसने वह इत्र की शीशी उनके पास में रख दी और पास में बैठकर सन्त की समाधी खुलने का इंतजार करने लगा।

तभी सन्त देखते हैं की राधा जी और कृष्ण जी एक दूसरे पर रंग डाल रहे हैं। पहले कृष्ण जी ने रंग से भरी पिचकारी राधा जी के ऊपर मारी। और राधा रानी सिर से लेकर पैर तक रंग में रंग गई। अब जब राधा जी रंग डालने लगी तो उनकी कमोरी (छोटा घड़ा) खाली थी। सन्त को लगा की राधा जी तो रंग डाल ही नहीं पा रही हैं, क्योंकि उनका रंग खत्म हो गया है।


तभी सन्त ने तुरन्त वह इत्र की शीशी खोली और राधा जी की कमोरी में डाल दी और तुरन्त राधा जी ने कृष्ण जी पर रंग डाल दिया। हरिदास जी ने सांसारिक दृष्टि में वो इत्र भले ही रेत में डाला। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि में वो राधा रानी की कमोरी में डाला।


उस भक्त ने देखा की इन सन्त ने सारा इत्र जमीन पर गिरा दिया। उसने सोचा में इतने दूर से इतना महंगा इत्र लेकर आया था पर इन्होंने तो इसे बिना देखे ही सारा का सारा रेत में गिरा दिया। मैंने तो इन सन्त के बारे में बहुत कुछ सुना था। लेकिन इन्होने मेरे इतने महंगे इत्र को मिट्टी में मिला दिया। वह कुछ भी ना बोल सका। थोड़ी देर बाद सन्त ने आँखें खोली उस व्यक्ति ने सन्त को अनमने मन से प्रणाम किया। अब वो व्यक्ति जाने लगा। तभी सन्त ने कहा- ”आप अन्दर जाकर बिहारी जी के दर्शन कर आएँ।” उस व्यक्ति ने सोचा कि अब दर्शन करें या ना करें क्या लाभ। इन सन्त के बारे में जितना सुना था सब उसका उल्टा ही पाया है। फिर भी चलो चलते समय दर्शन कर लेता हूँ।


क्या पता अब कभी आना हो या ना हो। ऐसा सोचकर वह व्यक्ति बांके बिहारी जी के मन्दिर में अन्दर गया तो क्या देखता है की सारे मन्दिर में वही इत्र महक रहा है और जब उसने बिहारी जी को देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ बिहारी जी सिर से लेकर पैर तक इत्र में नहाए हुए थे। उसकी आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे और वह सारी लीला समझ गया तुरन्त बाहर आकर सन्त के चरणों मे गिर पड़ा और उन्हें बार-बार प्रणाम करने लगा। और कहता है सन्त जी मुझे माफ़ कर दीजिये। मैंने आप पर अविश्वास दिखाया। सन्त ने उसे माफ कर दिया और कहा कि भैया तुम भगवान को भी सांसारिक दृष्टि से देखते हो लेकिन मैं संसार को भी आध्यात्मिक दृष्टि से देखता हूँ।

।।जय श्री राधे।।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

नवरात्रि के नौ दिन और नौ देवी

                  🌺 नवरात्रि के नौ दिन,महत्व,रूप,भोग और नौ देवी



1️⃣ प्रथम दिन – माँ शैलपुत्री

  • रूप: पर्वतराज हिमालय की पुत्री।
  • वाहन: वृषभ (बैल)।
  • महत्व: जीवन में स्थिरता और शांति देती हैं।
  • पूजा विधि: गंगाजल से शुद्धिकरण करें, फूल और धूप अर्पित करें।
  • भोग: घी।

2️⃣ द्वितीय दिन – माँ ब्रह्मचारिणी

  • रूप: तपस्विनी, हाथ में जपमाला और कमंडल।
  • महत्व: तप, संयम और इच्छाशक्ति देती हैं।
  • पूजा विधि: दीपक जलाएं, मां को पुष्प और रोली अर्पित करें।
  • भोग: शक्कर और फल।

3️⃣ तृतीय दिन – माँ चंद्रघंटा

  • रूप: मस्तक पर अर्धचंद्र, सिंह पर सवार।
  • महत्व: साहस और शत्रु नाश।
  • पूजा विधि: घंटे की ध्वनि से पूजा करें, शंख बजाएं।
  • भोग: दूध और मिठाई।

4️⃣ चतुर्थ दिन – माँ कूष्मांडा

  • रूप: आठ भुजाओं वाली, सूर्य की ऊर्जा से ब्रह्मांड रचने वाली।
  • महत्व: स्वास्थ्य और ऊर्जा देती हैं।
  • पूजा विधि: दीपक, धूप और फल अर्पित करें।
  • भोग: मालपुआ।

5️⃣ पंचम दिन – माँ स्कंदमाता

  • रूप: भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता।
  • महत्व: संतान सुख और परिवार की उन्नति।
  • पूजा विधि: पुष्प और धूप अर्पित करें।
  • भोग: केले।

6️⃣ षष्ठम दिन – माँ कात्यायनी

  • रूप: सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली।
  • महत्व: विवाह और रिश्तों में सुख-शांति।
  • पूजा विधि: पीले वस्त्र पहनें, मां को पीले फूल अर्पित करें।
  • भोग: शहद।

7️⃣ सप्तम दिन – माँ कालरात्रि

  • रूप: काले वर्ण की, रौद्र रूप, शत्रु संहारिणी।
  • महत्व: भय और बुरी शक्तियों से रक्षा।
  • पूजा विधि: मां को गुड़ और सिंदूर अर्पित करें।
  • भोग: गुड़।

8️⃣ अष्टम दिन – माँ महागौरी

  • रूप: श्वेत वर्ण, बैल पर सवार।
  • महत्व: पवित्रता, शांति और मोक्ष की प्राप्ति।
  • पूजा विधि: चंदन और सफेद फूल अर्पित करें।
  • भोग: नारियल और मिठाई।

9️⃣ नवम दिन – माँ सिद्धिदात्री

  • रूप: सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली।
  • महत्व: ज्ञान, शक्ति और दिव्य सिद्धियाँ देती हैं।
  • पूजा विधि: मां को धूप, दीप और लाल फूल अर्पित करें।भोग: तिल और नारियल।

🌸 विशेष अनुष्ठान

  • अष्टमी/नवमी को कन्या पूजन करके 9 कन्याओं और 1 लांगुर (बालक) को भोजन कराया जाता है।
व्रत करने वाले इस दिन अपना उपवास तोड़ते हैं।

नवरात्रि के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी

                    नवरात्रि के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी 



🌺 नवरात्रि क्या है?

नवरात्रि का अर्थ है – नौ रातें। साल में चार नवरात्रियाँ आती हैं:

  1. चैत्र नवरात्रि (मार्च–अप्रैल)
  2. आषाढ़ नवरात्रि (जून–जुलाई) – गुप्त नवरात्रि
  3. आश्विन/शारदीय नवरात्रि (सितंबर–अक्टूबर) – सबसे प्रमुख
  4. माघ नवरात्रि (जनवरी–फरवरी) – गुप्त नवरात्रि

इनमें से चैत्र और शारदीय नवरात्रि सबसे अधिक मनाई जाती हैं।

🌼 नवरात्रि का महत्व

  • यह शक्ति की उपासना का पर्व है।
  • मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
  • माना जाता है कि इन दिनों उपासना से मन, शरीर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
  • भक्त व्रत रखते हैं और देवी का आशीर्वाद पाते हैं।

🙏 नवरात्रि के नौ स्वरूप (प्रति दिन वार पूजा)



  1. प्रथम दिन – शैलपुत्री माता 🌸
  2. द्वितीय दिन – ब्रह्मचारिणी माता
  3. तृतीय दिन – चंद्रघंटा माता
  4. चतुर्थ दिन – कूष्मांडा माता
  5. पंचम दिन – स्कंदमाता
  6. षष्ठम दिन – कात्यायनी माता
  7. सप्तम दिन – कालरात्रि माता
  8. अष्टम दिन – महागौरी माता
  9. नवम दिन – सिद्धिदात्री माता

🕉️ व्रत और पूजा विधि

  • प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • कलश स्थापना (घट स्थापना) की जाती है।
  • अखंड ज्योति जलाना शुभ माना जाता है।
  • मां दुर्गा को लाल फूल, चुनरी, अक्षत, और नारियल चढ़ाया जाता है।
  • व्रत में फलाहार, दूध, साबूदाना, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा लिया जाता है।
  • माँ दुर्गा की कथा वाचन और दुर्गा सप्तशती/देवी महात्म्य का पाठ किया जाता है।

🌟 विशेष परंपराएँ

  • कन्या पूजन (अष्टमी या नवमी को)
  • गरबा और डांडिया (विशेषकर गुजरात और राजस्थान में)
  • दुर्गा पूजा (पश्चिम बंगाल में भव्य आयोजन)

क्या आप चाहेंगे कि मैं हर दिन की देवी का महत्व और उनकी पूजा विधि भी नौ दिनों के अनुसार विस्तार से बताऊँ? तो please मुझे कमेंट करके लिखिए🌹

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

लघु गीता अध्याय 7

                              लघु गीता अध्याय 7


सैकंडों में कोई एक बिरला ही होता है जो सही तरह से सिद्धि प्राप्त करता है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन व बुद्धि से सब प्राणी को ईश्वर उत्पन्न करता है और फिर प्रलय हो जाती है। जल में रस, चंद्रमा में शीतलता, सूर्य में प्रकाश, पृथ्वी में सुगंध, प्राणियों में जीवन व सनातन बीज , आकाश में शब्द, अग्नि में तेज, बुद्धिमानों में बुद्धि, सब ईश्वर के रूप हैं या ईश्वर का शरीर ही है और उसी में सब कलपुर्जे कार्यरत है। सात्विक, तामसिक, राजस ईश्वर से पैदा होते है परंतु ईश्वर उसमें नहीं रहता और इन तीनों गुणों से सारा संसार मोहित है परंतु जो ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं व इस माया से परे उतर जाते है। चार प्रकार के लोग ईश्वर को याद करते हैं दुखिया, जिज्ञासु व ऐश्वर्या प्रिय व ज्ञानी परंतु एकाग्र चित्त से भजने वाला ही ईश्वर को सर्व प्रिय हैं।

              कुछ अल्प बुद्धि उन फलों का चाहना करते हुए संबंधित देवताओं की पूजा करते हैं और ईश्वर उनको दृढ़ कर देता है और फिर वही फल भी पाते है परंतु फल भोगने के पश्चात फिर वापिस योनियों में आता है और ईश्वर से मिल नहीं पाता।

।।जय श्री राधे।।

शनिवार, 13 सितंबर 2025

श्राद्ध क्या है? पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि

                               श्राद्ध क्या है? 

           पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि


श्राद्ध (श्रद्ध + अ) का अर्थ है — श्रद्धा और आस्था के साथ किया गया कर्म।

श्राद्ध एक धार्मिक कर्मकांड है जो मुख्य रूप से पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से पितृपक्ष (भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक के 16 दिन) में किया जाता है।

श्राद्ध का उद्देश्य

  1. पितरों को स्मरण और तृप्त करना – अन्न, जल और तिल अर्पित करके।
  2. पितृ ऋण से मुक्ति – हमारे ऊपर तीन ऋण बताए गए हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। श्राद्ध से पितृ ऋण की पूर्ति होती है।
  3. परिवार की उन्नति और सुख-शांति – मान्यता है कि पितर प्रसन्न होने पर परिवार को आशीर्वाद देते हैं।

श्राद्ध में क्या किया जाता है

  • आचमन, संकल्प और पूजा।
  • पितरों को जल (तर्पण), तिल और पिंड (चावल के लड्डू) अर्पण।
  • ब्राह्मणों को भोजन व दान देना।
  • गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना गया है।

श्राद्ध का महत्व

  • हिंदू धर्म में विश्वास है कि देहांत के बाद आत्मा सूक्ष्म लोक में रहती है और पिंडदान तथा तर्पण से उसे शांति और तृप्ति मिलती है।
  • श्राद्ध से पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद, समृद्धि और आयु प्रदान करते हैं।

 

मैं आपको पितृपक्ष में श्राद्ध करने की सरल विधि स्टेप-बाय-स्टेप बता देती हूँ, ताकि आप घर पर भी श्रद्धा से कर सकें:

🕉 पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि

1. तैयारी

  • सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  • पूजा स्थान को स्वच्छ करें और वहाँ कुशा (यदि उपलब्ध हो), जल का पात्र, तिल, चावल, पुष्प, धूप-दीप रखें।
  • पूर्वजों का स्मरण करें (जैसे— पिता, दादा, माता आदि)।

2. संकल्प

हाथ में जल, तिल और अक्षत (चावल) लेकर संकल्प करें:
"मैं अपने पितरों की तृप्ति के लिए यह श्राद्ध कर रहा/रही हूँ।"

3. तर्पण

  • एक पात्र में जल लें।
  • उसमें तिल और कुश डालें।
  • सूर्य की ओर मुख करके पितरों के नाम का उच्चारण करें और तीन बार जल अर्पित करें।
    (उदाहरण: "ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः")

4. पिंडदान (यदि संभव हो)

  • उबले चावल के छोटे-छोटे लड्डू (पिंड) बनाएँ।
  • तिल, पुष्प और घी मिलाकर पितरों के नाम से अर्पित करें।

5. ब्राह्मण भोजन / दान

  • परंपरा है कि ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दी जाए।
  • यदि संभव न हो तो गरीब, गौ, गाय, कौआ, कुत्ते या जरूरतमंद को भोजन दें।

6. पितरों को स्मरण

  • अंत में दीप जलाकर प्रार्थना करें:
    "हे पितृगण! आप इस अन्न-जल से तृप्त हों और हमें आशीर्वाद दें।"

👉 आसान तरीका (अगर विधि-विधान संभव न हो)

अगर सब कर्मकांड करना कठिन लगे, तो केवल तिल और जल से तर्पण और गाय, कुत्ते, कौवे को भोजन कराना भी पितरों को तृप्त करता है।


शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

लघु गीता अध्याय 6


                           लघु गीता अध्याय 6 



योग की प्राप्ति कर्म से ही हैं और जब मनुष्य विषय और वासनाओं से छूट जाता है तो योगी कहलाता है।मन को जीतना व मन के वश में होना –इस प्रकार मनुष्य अपना मित्र व शत्रु स्वयं ही है और मन जीतने वाले की आत्मा, शीत–उष्ण, दुख–सुख, मान –अपमान होने पर स्थिर रहती हैं और मिट्टी ,पत्थर, सोने को समान मानता है, मित्र और शत्रु, साधु और पापी के लिए समान दृष्टि रखता है।

योगी को किसी एकांत व नर्म व साफ स्थान पर बैठकर निरंतर ध्यान योग लगाना चाहिए और मन व इंद्रियों को एकाग्र कर,गर्दन को सीधा कर,ब्रह्मचर्य को पालन करते हुए ही ध्यान लगाना चाहिए।जो लोग अधिक उपवास या अधिक खाना या अधिक सोना व जागना करते हैं उनको योग प्राप्त नहीं होता, और जो नियम अनुसार जागते, सोते, खाते–पीते व कर्मों का सही पालन करते है वहीं योगी है,तथा परमानंद और मोक्ष प्राप्त करते है। इसके बाद कोई और बड़ा लाभ और सुख नहीं है।

        जैसा कि मन बहुत चंचल है और इसे वश में रखना बहुत कठिन है परंतु अभ्यास और उपाय ही इसे वश में कर सकते है।

    उत्तम काम करने वालो की कभी दुर्गति नहीं होती है और भले ही योग में असफल रहा हो और वह सुख भोगता हुआ पुनः किसी बुद्धिमान योगी व उत्तम व धनवान,पवित्र मनुष्य के घर जन्म लेता है और पूर्व जन्म की बुद्धि ,संस्कार, आत्मज्ञान को प्राप्त करता है।

।।जय श्री राधे।।

लघु गीता अध्याय 5

                          लघु गीता अध्याय 5


 

ईश्वर में मन को लगाते हुए – ज्ञान द्वारा–कर्म को करते हुए –उसमें लिप्त न होना ,किसी से द्वेष न होना,फल की इच्छा न करना ,मन तथा इंद्रियों को जीतने वाला , सब में अपनी जैसी आत्मा देखने वाला ही मोक्ष को सीधा प्राप्त होता है। और कर्मयोग को करते हुए,सुनते हुए,सूंघते हुए,स्पर्श करते हुए,खाते हुए,सांस लेते हुए भी अपने को निमित्त मात्र मानता है वह शीघ्र मोक्ष को प्राप्त होता है।जो प्रिय वस्तु को प्राप्त करने से प्रसन्न नहीं होते व अप्रिय वस्तु को पाकर दुखी नहीं होते वे ब्रह्म ज्ञानी है।जो ईश्वर में निष्ठा करके सदा चिंतन करते हैं और ज्ञान द्वारा जिनके सब पाप नाश हो गए है, काम व क्रोध काबू में है; इंद्रियों के भोगों से रहित है वे जीव मात्र के हितकारी है और भय से रहित है वहीं मोक्ष प्राप्त करते है।

।।श्री राधे।।


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