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शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

यह एक ऐसा कुआं है जिसमें आदमी एक बार गिरता है तो-------

यह एक ऐसा कुआं है जिसमें आदमी एक बार गिरता है तो------





 एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?* *इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया। आखिर में राजा भोज ने राज पंडित से कहा कि इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ, वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है,वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।* *छः दिन बीत चुके थे।राज पंडित को जबाव नहीं मिला था।निराश होकर वह जंगल की तरफ गया। वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई। गड़रिए ने पूछा आप तो राजपंडित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?* *यह गड़रिया मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा?सोचकर पंडित ने कुछ नहीं कहा।इसपर गडरिए ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा - पंडित जी हम भी सत्संगी हैं,हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो, अतः नि:संकोच कहिए।राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कल तक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।

 गड़रिया बोला मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे।बस,पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।

 राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी के गड़रिए का चेला बनूं ? लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया।

 गड़रिया बोला पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो। राजपंडित ने कहा कि यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी । मैं दूध नहीं पीऊंगा। तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा - गड़रिया बोला।

 राज पंडित बोला ठीक है,दूध पीने को तैयार हूं,आगे क्या करना है ? गड़रिया बोला अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।

राजपंडित ने कहा तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा ? तो जाओ, गड़रिया बोला राज पंडित बोला मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को।गड़रिया बोला वह बात गयी।अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा,उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा।तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।राजपंडित ने खूब विचार कर कहा है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं।* *गड़रिया बोला मिल गया जवाब। यही तो कुआं है लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।

 जो प्राप्त है-पर्याप्त है 

जिसका मन मस्त है

 उसके पास समस्त है!!

मंगलवार, 23 सितंबर 2025

श्री कृष्ण के जीवन में आठ अंक का महत्व

           श्री कृष्ण के जीवन में आठ अंक का महत्व


कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है। कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी। कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है। मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं… ‘भज गोविन्दं मुढ़मते।

आठ का अंक

 कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।

कृष्ण के नाम

 नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव। बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे ‍मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि।

कृष्ण के माता-पिता

 कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था। बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की प‍त्नी थीं।

कृष्ण के गुरु

 गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ‍ज्ञान की शिक्षा दी थी। माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।

कृष्ण के भाई

कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे।

कृष्ण की बहनें

कृष्ण की 3 बहनें थी : 

1.एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं)।

2.सुभद्रा : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ। वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।

3.द्रौपदी : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्‍ण इसे अपनी मानस ‍भगिनी मानते थे।

4.देवकी के गर्भ से सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।

कृष्ण की पत्नियां

 रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।

कृष्ण के पुत्र

रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, जम्बवंती से साम्ब, मित्रवंदा से वृक, सत्या से वीर, सत्यभामा से भानु, लक्ष्मणा से…, भद्रा से… और कालिंदी से…अर्थात प्रत्येक पत्नी से 10/ 10 पुत्र हुए।

कृष्ण की पुत्रियां

रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था।

कृष्ण के पौत्र

प्रद्युम्न से अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था।

कृष्ण की 8 सखियां 

 राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं-

 ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।

कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।

 इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर- ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुङ्गविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। 

कृष्ण के 8 मित्र

 श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु। 

इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे। ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है।

कृष्ण के शत्रु

कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक। कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जा था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को विष्णु का अवतार मानता था।

कृष्ण के शिष्य

कृष्ण ने किया जिनका वध : पूतना, चाणूड़, शकटासुर, कालिया, धेनुक, प्रलंब, अरिष्टासुर, बकासुर, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, यमलार्जुन, द्विविद, केशी, व्योमासुर, कंस, प्रौंड्रक और नरकासुर आदि।

कृष्ण चिन्ह

 सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री।

कृष्ण लोक

 वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक।

कृष्ण ग्रंथ : महाभारत और गीता

कृष्ण का कुल

यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे। अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं। यह अंधक-वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए। अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं।

शाप के चलते सिर्फ यदु‍ओं का नाश होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया। इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए। वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा। जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था। बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुरा के मथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका।

कृष्ण पर्व

 श्री कृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत की थी। जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है।

*मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं*

मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है।

भक्तिकाल के कृष्ण भक्त:

सूरदास, ध्रुवदास, रसखान, व्यासजी, स्वामी हरिदास, मीराबाई, गदाधर भट्ट, हितहरिवंश, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, कुंभनदास, परमानंद, कृष्णदास, श्रीभट्ट, सूरदास मदनमोहन, नंददास, चैतन्य महाप्रभु आदि।

सन्त हरिदास जी ने जब पूरी इत्र की शीशी राधा जी को होली खेलने के लिए रेत में डाल दी।

 सन्त हरिदास जी ने जब पूरी इत्र की शीशी राधा जी को होली खेलने के लिए रेत में डाल दी।


एक व्यक्ति लाहौर से कीमती रूहानी इत्र लेकर आये थे। क्योंकि उन्होंने सन्त श्री हरिदास जी महाराज और बांके बिहारी के बारे में सुना हुआ था। उनके मन में आये की मैं बिहारी जी को ये इत्र भेंट करूँ। इस इत्र की खासियत ये होती है की अगर बोतल को उल्टा कर देंगे तो भी इत्र धीरे धीरे गिरेगा और इसकी खुशबु लाजवाब होती है। ये व्यक्ति वृन्दावन पहुँचा।

उस समय सन्त जी एक भाव में डूबे हुए थे। सन्त देखते है की राधा-कृष्ण दोनों होली खेल रहे हैं। जब उस व्यक्ति ने देखा की ये तो ध्यान में हैं तो उसने वह इत्र की शीशी उनके पास में रख दी और पास में बैठकर सन्त की समाधी खुलने का इंतजार करने लगा।

तभी सन्त देखते हैं की राधा जी और कृष्ण जी एक दूसरे पर रंग डाल रहे हैं। पहले कृष्ण जी ने रंग से भरी पिचकारी राधा जी के ऊपर मारी। और राधा रानी सिर से लेकर पैर तक रंग में रंग गई। अब जब राधा जी रंग डालने लगी तो उनकी कमोरी (छोटा घड़ा) खाली थी। सन्त को लगा की राधा जी तो रंग डाल ही नहीं पा रही हैं, क्योंकि उनका रंग खत्म हो गया है।


तभी सन्त ने तुरन्त वह इत्र की शीशी खोली और राधा जी की कमोरी में डाल दी और तुरन्त राधा जी ने कृष्ण जी पर रंग डाल दिया। हरिदास जी ने सांसारिक दृष्टि में वो इत्र भले ही रेत में डाला। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि में वो राधा रानी की कमोरी में डाला।


उस भक्त ने देखा की इन सन्त ने सारा इत्र जमीन पर गिरा दिया। उसने सोचा में इतने दूर से इतना महंगा इत्र लेकर आया था पर इन्होंने तो इसे बिना देखे ही सारा का सारा रेत में गिरा दिया। मैंने तो इन सन्त के बारे में बहुत कुछ सुना था। लेकिन इन्होने मेरे इतने महंगे इत्र को मिट्टी में मिला दिया। वह कुछ भी ना बोल सका। थोड़ी देर बाद सन्त ने आँखें खोली उस व्यक्ति ने सन्त को अनमने मन से प्रणाम किया। अब वो व्यक्ति जाने लगा। तभी सन्त ने कहा- ”आप अन्दर जाकर बिहारी जी के दर्शन कर आएँ।” उस व्यक्ति ने सोचा कि अब दर्शन करें या ना करें क्या लाभ। इन सन्त के बारे में जितना सुना था सब उसका उल्टा ही पाया है। फिर भी चलो चलते समय दर्शन कर लेता हूँ।


क्या पता अब कभी आना हो या ना हो। ऐसा सोचकर वह व्यक्ति बांके बिहारी जी के मन्दिर में अन्दर गया तो क्या देखता है की सारे मन्दिर में वही इत्र महक रहा है और जब उसने बिहारी जी को देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ बिहारी जी सिर से लेकर पैर तक इत्र में नहाए हुए थे। उसकी आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे और वह सारी लीला समझ गया तुरन्त बाहर आकर सन्त के चरणों मे गिर पड़ा और उन्हें बार-बार प्रणाम करने लगा। और कहता है सन्त जी मुझे माफ़ कर दीजिये। मैंने आप पर अविश्वास दिखाया। सन्त ने उसे माफ कर दिया और कहा कि भैया तुम भगवान को भी सांसारिक दृष्टि से देखते हो लेकिन मैं संसार को भी आध्यात्मिक दृष्टि से देखता हूँ।

।।जय श्री राधे।।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

नवरात्रि के नौ दिन और नौ देवी

                  🌺 नवरात्रि के नौ दिन,महत्व,रूप,भोग और नौ देवी



1️⃣ प्रथम दिन – माँ शैलपुत्री

  • रूप: पर्वतराज हिमालय की पुत्री।
  • वाहन: वृषभ (बैल)।
  • महत्व: जीवन में स्थिरता और शांति देती हैं।
  • पूजा विधि: गंगाजल से शुद्धिकरण करें, फूल और धूप अर्पित करें।
  • भोग: घी।

2️⃣ द्वितीय दिन – माँ ब्रह्मचारिणी

  • रूप: तपस्विनी, हाथ में जपमाला और कमंडल।
  • महत्व: तप, संयम और इच्छाशक्ति देती हैं।
  • पूजा विधि: दीपक जलाएं, मां को पुष्प और रोली अर्पित करें।
  • भोग: शक्कर और फल।

3️⃣ तृतीय दिन – माँ चंद्रघंटा

  • रूप: मस्तक पर अर्धचंद्र, सिंह पर सवार।
  • महत्व: साहस और शत्रु नाश।
  • पूजा विधि: घंटे की ध्वनि से पूजा करें, शंख बजाएं।
  • भोग: दूध और मिठाई।

4️⃣ चतुर्थ दिन – माँ कूष्मांडा

  • रूप: आठ भुजाओं वाली, सूर्य की ऊर्जा से ब्रह्मांड रचने वाली।
  • महत्व: स्वास्थ्य और ऊर्जा देती हैं।
  • पूजा विधि: दीपक, धूप और फल अर्पित करें।
  • भोग: मालपुआ।

5️⃣ पंचम दिन – माँ स्कंदमाता

  • रूप: भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता।
  • महत्व: संतान सुख और परिवार की उन्नति।
  • पूजा विधि: पुष्प और धूप अर्पित करें।
  • भोग: केले।

6️⃣ षष्ठम दिन – माँ कात्यायनी

  • रूप: सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली।
  • महत्व: विवाह और रिश्तों में सुख-शांति।
  • पूजा विधि: पीले वस्त्र पहनें, मां को पीले फूल अर्पित करें।
  • भोग: शहद।

7️⃣ सप्तम दिन – माँ कालरात्रि

  • रूप: काले वर्ण की, रौद्र रूप, शत्रु संहारिणी।
  • महत्व: भय और बुरी शक्तियों से रक्षा।
  • पूजा विधि: मां को गुड़ और सिंदूर अर्पित करें।
  • भोग: गुड़।

8️⃣ अष्टम दिन – माँ महागौरी

  • रूप: श्वेत वर्ण, बैल पर सवार।
  • महत्व: पवित्रता, शांति और मोक्ष की प्राप्ति।
  • पूजा विधि: चंदन और सफेद फूल अर्पित करें।
  • भोग: नारियल और मिठाई।

9️⃣ नवम दिन – माँ सिद्धिदात्री

  • रूप: सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली।
  • महत्व: ज्ञान, शक्ति और दिव्य सिद्धियाँ देती हैं।
  • पूजा विधि: मां को धूप, दीप और लाल फूल अर्पित करें।भोग: तिल और नारियल।

🌸 विशेष अनुष्ठान

  • अष्टमी/नवमी को कन्या पूजन करके 9 कन्याओं और 1 लांगुर (बालक) को भोजन कराया जाता है।
व्रत करने वाले इस दिन अपना उपवास तोड़ते हैं।

नवरात्रि के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी

                    नवरात्रि के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी 



🌺 नवरात्रि क्या है?

नवरात्रि का अर्थ है – नौ रातें। साल में चार नवरात्रियाँ आती हैं:

  1. चैत्र नवरात्रि (मार्च–अप्रैल)
  2. आषाढ़ नवरात्रि (जून–जुलाई) – गुप्त नवरात्रि
  3. आश्विन/शारदीय नवरात्रि (सितंबर–अक्टूबर) – सबसे प्रमुख
  4. माघ नवरात्रि (जनवरी–फरवरी) – गुप्त नवरात्रि

इनमें से चैत्र और शारदीय नवरात्रि सबसे अधिक मनाई जाती हैं।

🌼 नवरात्रि का महत्व

  • यह शक्ति की उपासना का पर्व है।
  • मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
  • माना जाता है कि इन दिनों उपासना से मन, शरीर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
  • भक्त व्रत रखते हैं और देवी का आशीर्वाद पाते हैं।

🙏 नवरात्रि के नौ स्वरूप (प्रति दिन वार पूजा)



  1. प्रथम दिन – शैलपुत्री माता 🌸
  2. द्वितीय दिन – ब्रह्मचारिणी माता
  3. तृतीय दिन – चंद्रघंटा माता
  4. चतुर्थ दिन – कूष्मांडा माता
  5. पंचम दिन – स्कंदमाता
  6. षष्ठम दिन – कात्यायनी माता
  7. सप्तम दिन – कालरात्रि माता
  8. अष्टम दिन – महागौरी माता
  9. नवम दिन – सिद्धिदात्री माता

🕉️ व्रत और पूजा विधि

  • प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • कलश स्थापना (घट स्थापना) की जाती है।
  • अखंड ज्योति जलाना शुभ माना जाता है।
  • मां दुर्गा को लाल फूल, चुनरी, अक्षत, और नारियल चढ़ाया जाता है।
  • व्रत में फलाहार, दूध, साबूदाना, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा लिया जाता है।
  • माँ दुर्गा की कथा वाचन और दुर्गा सप्तशती/देवी महात्म्य का पाठ किया जाता है।

🌟 विशेष परंपराएँ

  • कन्या पूजन (अष्टमी या नवमी को)
  • गरबा और डांडिया (विशेषकर गुजरात और राजस्थान में)
  • दुर्गा पूजा (पश्चिम बंगाल में भव्य आयोजन)

क्या आप चाहेंगे कि मैं हर दिन की देवी का महत्व और उनकी पूजा विधि भी नौ दिनों के अनुसार विस्तार से बताऊँ? तो please मुझे कमेंट करके लिखिए🌹

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

लघु गीता अध्याय 7

                              लघु गीता अध्याय 7


सैकंडों में कोई एक बिरला ही होता है जो सही तरह से सिद्धि प्राप्त करता है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन व बुद्धि से सब प्राणी को ईश्वर उत्पन्न करता है और फिर प्रलय हो जाती है। जल में रस, चंद्रमा में शीतलता, सूर्य में प्रकाश, पृथ्वी में सुगंध, प्राणियों में जीवन व सनातन बीज , आकाश में शब्द, अग्नि में तेज, बुद्धिमानों में बुद्धि, सब ईश्वर के रूप हैं या ईश्वर का शरीर ही है और उसी में सब कलपुर्जे कार्यरत है। सात्विक, तामसिक, राजस ईश्वर से पैदा होते है परंतु ईश्वर उसमें नहीं रहता और इन तीनों गुणों से सारा संसार मोहित है परंतु जो ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं व इस माया से परे उतर जाते है। चार प्रकार के लोग ईश्वर को याद करते हैं दुखिया, जिज्ञासु व ऐश्वर्या प्रिय व ज्ञानी परंतु एकाग्र चित्त से भजने वाला ही ईश्वर को सर्व प्रिय हैं।

              कुछ अल्प बुद्धि उन फलों का चाहना करते हुए संबंधित देवताओं की पूजा करते हैं और ईश्वर उनको दृढ़ कर देता है और फिर वही फल भी पाते है परंतु फल भोगने के पश्चात फिर वापिस योनियों में आता है और ईश्वर से मिल नहीं पाता।

।।जय श्री राधे।।

शनिवार, 13 सितंबर 2025

श्राद्ध क्या है? पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि

                               श्राद्ध क्या है? 

           पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि


श्राद्ध (श्रद्ध + अ) का अर्थ है — श्रद्धा और आस्था के साथ किया गया कर्म।

श्राद्ध एक धार्मिक कर्मकांड है जो मुख्य रूप से पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से पितृपक्ष (भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक के 16 दिन) में किया जाता है।

श्राद्ध का उद्देश्य

  1. पितरों को स्मरण और तृप्त करना – अन्न, जल और तिल अर्पित करके।
  2. पितृ ऋण से मुक्ति – हमारे ऊपर तीन ऋण बताए गए हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। श्राद्ध से पितृ ऋण की पूर्ति होती है।
  3. परिवार की उन्नति और सुख-शांति – मान्यता है कि पितर प्रसन्न होने पर परिवार को आशीर्वाद देते हैं।

श्राद्ध में क्या किया जाता है

  • आचमन, संकल्प और पूजा।
  • पितरों को जल (तर्पण), तिल और पिंड (चावल के लड्डू) अर्पण।
  • ब्राह्मणों को भोजन व दान देना।
  • गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना गया है।

श्राद्ध का महत्व

  • हिंदू धर्म में विश्वास है कि देहांत के बाद आत्मा सूक्ष्म लोक में रहती है और पिंडदान तथा तर्पण से उसे शांति और तृप्ति मिलती है।
  • श्राद्ध से पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद, समृद्धि और आयु प्रदान करते हैं।

 

मैं आपको पितृपक्ष में श्राद्ध करने की सरल विधि स्टेप-बाय-स्टेप बता देती हूँ, ताकि आप घर पर भी श्रद्धा से कर सकें:

🕉 पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि

1. तैयारी

  • सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  • पूजा स्थान को स्वच्छ करें और वहाँ कुशा (यदि उपलब्ध हो), जल का पात्र, तिल, चावल, पुष्प, धूप-दीप रखें।
  • पूर्वजों का स्मरण करें (जैसे— पिता, दादा, माता आदि)।

2. संकल्प

हाथ में जल, तिल और अक्षत (चावल) लेकर संकल्प करें:
"मैं अपने पितरों की तृप्ति के लिए यह श्राद्ध कर रहा/रही हूँ।"

3. तर्पण

  • एक पात्र में जल लें।
  • उसमें तिल और कुश डालें।
  • सूर्य की ओर मुख करके पितरों के नाम का उच्चारण करें और तीन बार जल अर्पित करें।
    (उदाहरण: "ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः")

4. पिंडदान (यदि संभव हो)

  • उबले चावल के छोटे-छोटे लड्डू (पिंड) बनाएँ।
  • तिल, पुष्प और घी मिलाकर पितरों के नाम से अर्पित करें।

5. ब्राह्मण भोजन / दान

  • परंपरा है कि ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दी जाए।
  • यदि संभव न हो तो गरीब, गौ, गाय, कौआ, कुत्ते या जरूरतमंद को भोजन दें।

6. पितरों को स्मरण

  • अंत में दीप जलाकर प्रार्थना करें:
    "हे पितृगण! आप इस अन्न-जल से तृप्त हों और हमें आशीर्वाद दें।"

👉 आसान तरीका (अगर विधि-विधान संभव न हो)

अगर सब कर्मकांड करना कठिन लगे, तो केवल तिल और जल से तर्पण और गाय, कुत्ते, कौवे को भोजन कराना भी पितरों को तृप्त करता है।


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