
इस ब्लॉग में परमात्मा को विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में एक अद्वितीय, अनन्त, और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि का कारण है और सब कुछ में निवास करता है। जीवन इस परमात्मा की अद्वितीयता का अंश माना जाता है और इसका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा के साथ मिलन है, जिसे 'मोक्ष' या 'निर्वाण' कहा जाता है। हमारे जीवन में ज्यादा से ज्यादा प्रभु भक्ति आ सके और हम सत्संग के द्वारा अपने प्रभु की कृपा को पा सके। हमारे जीवन में आ रही निराशा को दूर कर सकें।
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सोमवार, 10 फ़रवरी 2014
गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014
और क्या चाहते हैं हम भगवान् से
और क्या चाहते है भगवान से ?
अपूर्व गुप्त शक्तियाँ
-इसके साथ ही उसने हमे अनेक गुप्त शक्तियाँ दी हैं। हमारी स्मरण शक्ति ,योगशक्ति ,आत्मशक्ति ,इच्छाशक्ति ,कल्पनाशक्ति ,संकल्पशक्ति ,धारणाशक्ति आदि उसी परमपिता कि देन हैं। यही नहीं उन्होंने हमे कर्म करने के लिए दो हाथ भी दिए हैं इन हाथों के बल पर ही हम निर्माण कार्य करने में सफल होते हैं।
यह शरीर एक कल्प वृ क्ष
-कल्पवृक्ष इच्छित फल देता हैं। हम इसी शरीर में छिपी गुप्त शक्तियों से ही मन चाही सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। इसी शरीर में दुर्गा एवं शिव का तृतीय नेत्र भी हैं। आठों सिद्धियाँ और नवों निधिंयाँ हमे इसी शरीर से प्राप्त हो सकती हैं।
कितने मूल्यवान हैं हमारे अंग -
हमारे शरीर का प्रत्येक अंग इतना मूल्यवान हैं कि हमें अपार धन दोलत देकर भी इसका मूल्यांकन नहीं कर सकते। कोई हमे चाहे कितना ही धन दे दें पर हम अपने हाथ ,पैर ,आखं आदि नहीं दे सकते। अब आप ही अनुमान लगाइये कि ईश्वर ने हमे कितने अमूल्य उपहारों से विभूषित किया हैं।
इश्वर ने जब हमे इतना सब कुछ दिया हैं तो हम क्यों न इसका सदुपयोग करे। अंतिम समय में जब हमारी पेशी उसके सामने होगी तो वह हमसे प्रश्न करेगा मैंने तुम्हे दो हाथ दिए इनसे तुमने कितने उपकार का काम किया कितनो के आंसू पोछें। इतनी धन -सम्पदा दी उसका उपयोग कितना समाज के हित के लिए किया।
इश्वर किसी उद्देश्य के लिए ही हमे मानव शरीर देता हैं। हमारा भी परम कर्त्तव्य हैं कि हम निष्ठा से इस मानव शरीर को सार्थक उद्देश्यों में लगाये। यही मानव जीवन कि सार्थकता हैं और यही इश्वर के प्रति धन्यवाद हैं।
(कल्याण के सोजन्य से )
मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014
aur kya chahte hain aap bhagwaan se.
kalyan
और क्या चाहते है भगवान से ?
हमारी सनातन मान्यता है कि चौरासी लाख योनियों मैं भटकने के बाद मानव योनि प्राप्त होती है। इसी मानव शरीर से हम जीवन के चारो पुरुषार्थ -धर्म ,अर्थ,काम ,और मोक्ष करते हैं। मनुष्य अपनी बुद्धि के कारण ही पशु -पक्षियों आदि योनियो से अलग हैं। अन्य योनि तो प्रकृति पर ही पूर्ण रूप से निर्भर हैं। जिस वातावरण मैं जैसी प्रकृति होती हैं ,उसी के अनुसार उन्हें चलना और रहना होता हैं। मानव मैं बुद्धितत्व उसे अन्य योनियो से पृथक क्र देता हैं।
दीर्घ आयु -
प्रभु ने पशु -पक्षिओं से अधिक लम्बी आयु हमे दी हैं। अधिकांश पशु -पक्षी तो मात्र 5 से 25 वर्षो कि ही आयु पाते हैं। कुछ कीड़े -मकोड़े तो कुछ घंटो की ही आयु पाते हैं। और अपनी आयु का उपयोग किसी स्रजन में नहीं ,बल्कि क्षुधापूर्ति ,निद्रा आदि में ही बीता देते हैं कारण कि उनमे बुद्धितत्व एकदम शून्य होता हैं। हम इस प्रभु के वरदान कि महत्ता पर चिंतन करे कि उसने हमे 100 वर्ष कि दीर्घ आयु दी हैं 1 दिन में 24 घंटे होते हैं ,और एक वर्ष में लगभग 8760 घंटे होते हैं। इस प्रकार 100 वर्ष कि आयु में हमे 8 लाख 76 हज़ार घंटे का जीवन मिला हैं। इतना अनमोल शरीर और इतना लम्बा जीवन वो भी बुद्धितत्व के साथ ,अत्यंत अनमोल वरदान हैं। हमें एक -एक पल का मूल्य समझना चाहिए।
अद्भुत यन्त्रशाला -
यह शरीर एक अद्भुत यन्त्रशाला हैं। प्रभु ने मानव मस्तिष्क के रूप में एक आलौकिक कम्प्यूटर दिया हैं। उसमे आलौकिक कल्पनाए एवं सृजनशक्ति दी हैं। कान एक चमत्कारी श्रवण यंत्र हैं। आखँ ,सिर ,केश आदि दी हैं। और इन सबको चलाने के लिए कोई भी अलग से मशीन कि व्यवस्था नहीं हैं। सब कुछ स्वचलित हैं यह सब प्रभु का वरदान हैं। शेष कल -
हर समय मंगल ही मंगल होगा, अगर यह निश्चय कर लो
कल्याण
निश् चय करो. -
मुझ पर भगवान कि अनंत कृपा हैं। भगवत कृपा की अनवरत वर्षा हो रही हैं। मेरा तन मन ,मेरा रोम- रोम भगवत कृपा से भीग कर तर हो गया हैं। मैं भगवत कृपा के सुधा सागर में निमग्न हो रहा हूँ। मेरे ऊपर -नीचे ,दाहिने -बाएं ,बाहर -भीतर -सर्वत्र भगवत कृपा भरी हैं। मैं सब और से भगवत कृपा से सरोबार हो रहा हूँ।
अब यह शरीर ,मन ,इन्द्रियाँ सब कुछ भगवान के हो गए हैं। अब इनके द्वारा जो कुछ भी होगा ,सब भगवान कि प्रेरणा से ,उन्ही कि शक्ति से ,उन्ही के मंगलमय संकल्प से होगा। अब इस शरीर से मंगलमय कार्य ही होंगे ,मन से मंगल-चिंतन ही होगा और इन्द्रियो से मंगल का ग्रहण ही होगा।
जब हम यह सोचने लग जाते हैं ,यह चिंतन करने लग जाते हैं ,तो हम पर ईश्वर की कृपा की अनुभूति होने लगती है ,और हम एक विशेषता का अनुभव करने लगते हैं ।हमें यह अनुभूति होने लगती है कि हमने ईश्वर के आशीर्वाद का कवच धारण कर लिया है।
जब हम यह सोचने लग जाते हैं ,यह चिंतन करने लग जाते हैं ,तो हम पर ईश्वर की कृपा की अनुभूति होने लगती है ,और हम एक विशेषता का अनुभव करने लगते हैं ।हमें यह अनुभूति होने लगती है कि हमने ईश्वर के आशीर्वाद का कवच धारण कर लिया है।
गुरुवार, 19 सितंबर 2013
low ब्लड प्रेशर के घरेलू उपाय
ghrelu nuskhe
low b.p.
३२ किशमिश किसी चीनी के कप में २४० ग्राम पानी में भिगो दें। बारह घण्टे भीगने के बाद प्रातः एक-एक किशमिश को उठाकर खूब चबा-चबाकर (प्रत्येक किशमिश को बत्तीस बार चबाकर) खाने से निम्न रक्तचाप में बहुत लाभ होता है। पूर्ण लाभ के लिये बत्तीस दिन खायें। एक महीना लगातार लेने से फायदा होता है
या निम्न रक्तचाप या हृदय-दुर्बलता के कारण मुर्छित हो जाने पर हरे आँवलों का रस और शहद बराबर-बराबर दो-दो चम्मच मिलाकर चटाने से होश आ जाता है और ह्रदय की कमजोरी दूर हो जाती है।
subhashit vichar(shubh vichar/auspicious
स्वार्थ और अभिमान का त्याग करने से साधुता आती हैं।
kalyan
जिस काम को करने से किसी की आत्मा को दुःख पहुचे ,उस काम को कभी नहीं करना चाहिए। इसमें आपको परिश्रम करने का काम नहीं हैं। बल्कि इसमें आपके परिश्रम करने का त्याग हो जाता हैं। जिसका चित्त अशांत हैं ,सदा क्षुब्ध हैं ,वह चाहे किसी भी ऊँची-से-ऊँची स्थिति में हो ,कभी सुखी नहीं हो सकता। मरते समय अंतिम साँस तक उसका चित्त अशांत रहता हैं ,और यह अशांति तब तक नहीं मिट सकती ,जब तक मन में भोगो की -पदार्थो की कामना हैं।
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