कल्याण
निश् चय करो. -
मुझ पर भगवान कि अनंत कृपा हैं। भगवत कृपा की अनवरत वर्षा हो रही हैं। मेरा तन मन ,मेरा रोम- रोम भगवत कृपा से भीग कर तर हो गया हैं। मैं भगवत कृपा के सुधा सागर में निमग्न हो रहा हूँ। मेरे ऊपर -नीचे ,दाहिने -बाएं ,बाहर -भीतर -सर्वत्र भगवत कृपा भरी हैं। मैं सब और से भगवत कृपा से सरोबार हो रहा हूँ।
अब यह शरीर ,मन ,इन्द्रियाँ सब कुछ भगवान के हो गए हैं। अब इनके द्वारा जो कुछ भी होगा ,सब भगवान कि प्रेरणा से ,उन्ही कि शक्ति से ,उन्ही के मंगलमय संकल्प से होगा। अब इस शरीर से मंगलमय कार्य ही होंगे ,मन से मंगल-चिंतन ही होगा और इन्द्रियो से मंगल का ग्रहण ही होगा।
जब हम यह सोचने लग जाते हैं ,यह चिंतन करने लग जाते हैं ,तो हम पर ईश्वर की कृपा की अनुभूति होने लगती है ,और हम एक विशेषता का अनुभव करने लगते हैं ।हमें यह अनुभूति होने लगती है कि हमने ईश्वर के आशीर्वाद का कवच धारण कर लिया है।
जब हम यह सोचने लग जाते हैं ,यह चिंतन करने लग जाते हैं ,तो हम पर ईश्वर की कृपा की अनुभूति होने लगती है ,और हम एक विशेषता का अनुभव करने लगते हैं ।हमें यह अनुभूति होने लगती है कि हमने ईश्वर के आशीर्वाद का कवच धारण कर लिया है।
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जय श्री राधे