/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: सीमा के भीतर असीम प्रकाश

यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

सीमा के भीतर असीम प्रकाश

                                                               सीमा के भीतर असीम प्रकाश 


पंचाम्रत में सबसे पहली बात हें -हम भगवान के हैं। जेसे शरीर माता-पिता दोनों का अंश हैं ,ऐसे ही शरीर प्रकृति का अंश हैं। शरीर पर हमारा स्वतंत्र अधिकार नहीं चलता ,फिर उसे अपना मानना सिवाय मुर्खता के और क्या है?
दूसरी बात हैं -हम जंहा भी रहते हैं ,भगवान के दरबार में रहते हैं। यहाँ जिस घर को हम अपना मानते हैं ,उस घर में हम सदा के लिए रह सकेगें ?
तीसरी बात -हम जो कुछ शुभ काम करते हैं ,भगवान का ही काम करते हैं। आप जो भी काम करें ,मन से भगवान का काम समझ कर करो। फिर आप को अलग से जप ,ध्यान ,आदि करने की जरुरत नहीं। 
चोथी बात -शुद्ध सात्विक जो भी पाते हो ,भगवान का ही प्रसाद पाते हो। भगवान के प्रसाद का बहुत भरी महत्व हैं। बड़े - बड़े धनी  भी प्रसाद का कण मात्र पाने के लिए हाथ फेलाते हैं। घर में जितनी वस्तु हैं सब में तुलसी दल रख कर भगवान के अर्पण कर दो। अब भोजन बनेगा तो भगवन का प्रसाद ही बनेगा। 
पाचवी बात -भगवान के दिए प्रसाद से भगवन के जनों की ही सेवा करते हैं। दुकान आदि में काम करते हैं तो भगवान का ही काम करते हैं। और उससे जो पैसा आता हैं ,वह भगवान का ही प्रसाद हैं।  
उपर्युक्त पंचाम्रत का सेवन करने से आपका जीवन महान  पवित्र हो जाएगा।,आप संत -महात्मा हो जाएँगे ,जीवन मुक्त हो जाएँगे।जेसे मछली जल की शरण में रहती हैं ;जल के बाहर नहीं रह सकती ,मर जाती हैं ,ऐसे ही आप निरंतर भगवान की शरण में रहो। 

स्वामी रामसुखदास जी के प्रवचनों का सार -                          

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अगर आपको मेरी post अच्छी लगें तो comment जरूर दीजिए
जय श्री राधे

Featured Post

भक्ति का क्या प्रभाव होता है?

                        भक्ति का क्या प्रभाव होता है? एक गृहस्थ कुमार भक्त थे। एक संत ने उन्हें नाम दिया वे भजन करने लगे, सीधे सरल चित् में ...