/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: जिधर देखूं उधर मेरे श्याम ही श्याम हैं।

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सोमवार, 14 जून 2021

जिधर देखूं उधर मेरे श्याम ही श्याम हैं।

                   जिधर देखूं उधर मेरे श्याम ही श्याम हैं।



गोपियाँ श्री कृष्ण से पूछती हैं कि कान्हा बताओ तुम जिस पर कृपा करते हो उसे क्या प्रदान करते हो.

 तो श्यामसुंदर कहते हैं कि हे मेरी प्यारी गोपियों ! मैं जिन पर सबसे ज्यादा प्रसन्न होता हूँ न उसे अपना विरह देता हूँ.गोपियों ने कहा – अच्छा – मिलन ? 

कृष्ण कहते हैं – मिलन तो सबसे छोटी वस्तु है – मिलता तो मैं रावण से भी हूँ ,

 मिलता तो मैं कुम्भकर्ण के साथ भी हूँ , मिलता तो मैं मेघनाथ के साथ , कंस के साथ , जरासंध के साथ , विदूरथ , दंतवक्र , रुक्मी , शाल्व , पौण्ड्रक , दुर्योधन , दुःशासन – इनके साथ भी मिलता हूँ.

मिलन कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है मेरे साथ – सबसे मिलता हूँ.पर मेरे प्रेम में जो रुदन करता है – हे कृष्ण – हे कृष्ण , उस विरह में जो आनंद है वह विराहानंद केवल मैं अपने रसिक भक्तों को देता हूँ ।

मिलनानंद तो मैंने सबको दिया है , सहज ही प्राप्त हूँ – सबके हृदय में हूँ , रोम रोम में हूँ , कण कण में हूँ ।

आत्मा स्वरूप में मैं ही विराजित हूँ , धड़कन में मैं ही हूँ ,

 रोम रोम में मैं ही हूँ ” रोम रोम प्रति वेद कहे ” ।

इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि मिलन की आकांक्षा बड़ी छोटी आकांक्षा है , प्रियतम मिल गए लेकिन अब प्रियतम के विरह का आनंद –

 क्योंकि जब मिलन होता है 

तो आँखों के सामने होता है – मैं तुम्हारे सामने बैठा हूँ तुम पीछे न देखोगे , जब मिलन होता है तो आँखों के सामने होता है पर जब विरह होता है तो चारो तरफ वही वही होता है – 

‘जित देखूँ तित श्याममयी है’ – 

जब श्यामसुंदर वृन्दावन में हैं तो गोपियाँ सामने सामने देख लेती हैं , किसी दिन श्याम नही आता,तो रोती हैं कि आज नहीं आया मेरे घर पर और जब श्यामसुंदर मथुरा चले जाते हैं -----

तो थोड़ी सी बिजली भी कड़कती है , थोडा मेघ भी छाता है , थोड़ा पत्ते भी खड़खड़ाते हैं तो श्याम आया , श्यामसुंदर आ गए ,

 श्यामसुंदर आ गए – मेघ में भी श्यामसुंदर , जल में भी श्यामसुंदर ,पत्तों में भी श्यामसुंदर , तुलसी में भी श्यामसुंदर , गैय्या में भी श्यामसुंदर –

 अरे हर जगह उनको श्यामसुंदर का ही दर्शन – मिलन में भी श्यामसुंदर और विरह में चारो तरफ प्रियतम ही प्रियतम ।

इसलिए ब्रज वृन्दावन की जो साधना है मिलन की नहीं विरह की है । जिन्होंने विरह का रस चखा नहीं , जिन्होंने विरहानंद प्राप्त किया नहीं – न तो वे कृष्ण के योग्य हैं न तो वे गुरु के योग्य हैं ।

इस संसार की नहीं इस ब्रह्माण्ड की श्रेष्ठ वस्तु अगर कोई है तो श्रीकृष्ण के विरह में होकर रुदन करना है –

रोओ । लोग कहते हैं हँसो – मैं कहती हूँ तुमसे – रोओ कि तुम्हारे जगत की हँसी उतनी कामयाब नहीं है – 

आज है कल गायब हो जाएगी पर श्री कृष्ण के विरह में यदि तुमको रोना आ गया, तुम्हारे प्रियतम के विरह में तुमको अगर रोना आ गया, तो तुम्हारे जीवन में चरमानंद और परमानंद की कभी आवश्यकता नहीं पड़ेगी

क्योकि इससे बड़ा परमानंद श्रीकृष्ण किसी और को मानते नहीं –‘रासो वै सः’

जो वेद पुरुष हैं , 

जो रस के घनस्वरूप हैं वो कहते हैं कि विरहानंद श्रेष्ठ है और फिर आज प्रिया और प्रियतम दोनों चले जाते हैं

और गोपियां दोनों हाथ उठा कर वृन्दावन की गलियों में घूम घूम कर – हा प्रिया – हा प्रियतम कब दर्शन दोगे और फिर उस रुदन में उस विरह में जो आनंद उनको मिलता है वह उनको मिलन में न था ।

 इसलिए श्रीकृष्ण की साधना सहज नहीं , श्रीकृष्ण की साधना बड़ी टेढ़ी है और यहाँ का रस एक बार जिसने चख लिया उसको फिर और कोई रस जगत का भाता नहीं –

 ये नवरस , षडरस , ये भोजन के रस , मैथुन रस , शयन रस , प्रतिष्ठा रस , ये मान रस – ये जितनें भी रस है---

 सौंदर्य रस, वीर रस , रौद्र रस ,वीभत्स रस – ये जितने भी रस हैं न वे सब रस नाली के पानी की तरह हैं , नाली के गंदले जल की तरह हैं – 

एक बार जिसने प्रिया और प्रियतम के विरहानंद का रस आस्वादन कर लिया – पर यह बिना किसी रसिक संत के सानिध्य में आए संभव नहीं ,

बिना उनकी अहैतुकी कृपा जरा ध्यान देना – वो किसी हेतु से तुम्हारे ऊपर कृपा नहीं करते ,

 तुम्हारी योग्यता कृपा करनें के लिए उनको बाध्य नहीं कर सकती , उनकी कृपा सदैव अहैतुकी होती है – बिना किसी हेतु के , बिना किसी कारण के । 

अकारणकरुणावरुणालय नाम है  परमात्मा का । जो कारण से करुणा करे वह तो संसारी है पर जो अकारण करुणा बरसाए वही तो सद्गुरु है , 

वही तो तुम्हारा साँवरा है , वही तो तुम्हारा प्रियतम है इसलिए यहां तुमारी योग्यता महत्वपूर्ण नहीं है , यहाँ तुम्हारी तपस्या महत्वपूर्ण नहीं है।यहाँ तुम्हारे विरह के आँसू तुम्हारे मन के भाव महत्वपूर्ण है।।मन की तड़प जो उनसे मिलने की है वो जरूरी है तब तो वो एक पल नही देर लगाते----

।।मेरे राधारमण।।

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