लघु गीता: श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त और सारगर्भित ज्ञान"
लघु गीता – भगवद गीता का सार हिंदी में | Geeta Saar in Hindi
श्रीमद्भगवद्गीता का सार संक्षेप में पढ़ें। लघु गीता के माध्यम से जानिए जीवन, कर्म, भक्ति और आत्मा का शाश्वत ज्ञान, सरल और सुंदर भाषा में।
लघु गीता – जीवन का सार, श्रीकृष्ण के श्रीमुख से
श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, यह जीवन का मार्गदर्शक है। इसमें अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के माध्यम से जीवन, धर्म, आत्मा और कर्म का ऐसा ज्ञान दिया गया है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
🌿 क्यों पढ़ें 'लघु गीता'?
समय की कमी या सरलता की चाह रखने वालों के लिए लघु गीता में भगवद्गीता का सार संक्षेप में दिया जाता है, जिससे हम जीवन के मूल तत्वों को आसानी से समझ सकें।
✨ लघु गीता (सरल रूप)
अध्याय 1
हे भगवान जो अर्जुन को ज्ञान दिया वह ज्ञान मुझे भी मिले, मैं आपकी शरण में आया हूं।जब कौरव व पांडव युद्ध करने के लिए कुरुक्षेत्र गए तब धृतराष्ट्र ने हस्तिनापुर में ही युद्ध देखने का संजय से आग्रह किया। तब श्री वेदव्यास जी की कृपा से संजय को दिव्या दृष्टि मिली, व दिव्या बुद्धि प्रदान हुई और उसी से वह युद्ध में एकत्र सेना का वृतांत सुनाने लगे। कृष्ण जी अर्जुन के साथ रथ पर युद्ध में आए और प्रतिद्वंद्वी दल में सभी सगे संबंधियों को पाया और कृष्णा जी से कहा कि स्वजनों को मार कर राज्य कमाना तो पाप है और हम कुल नाश के दोषी बनेंगे। प्राचीन धर्म नष्ट होंगे, कुल में पाप बढ़ेंगे, कुल की स्त्रियां व्यभिचार होगी, वर्णसंकर संताने होगी और वे संताने कुल को नाश करने वाले हम पुरुषों को नर्क में पहुंचाएंगी। ऐसे कुल का नाश करके राज्य प्राप्ति करना घोर पाप है ,और इससे अत्यंत दुखी होकर अर्जुन ,भगवान श्री कृष्ण के सामने हथियार डालकर दुखी होकर बैठ गए।
अध्याय 2
जब अर्जुन ने पितामह व गुरु मोह में अपने को निर्बल पाया, कि युद्ध में अपने सगे संबंधियों पर कैसे प्रहार करू, तो कृष्ण जी ने कहा यह शरीर सब नाशवान है, परंतु आत्मा अमर है जो केवल पुराने कपड़ों की भांति चोला बदलता है और ना घटती है ना बढ़ती है, ना सूखती है न गीली होती है, ना जन्मती है न मरती है। न शस्त्र इसे काट सकत है ना आग इसे जला सकती है। इसलिए हे अर्जुन धर्म पूर्वक युद्ध करो क्योंकि ये दुष्ट है दुष्ट का साथ दे रहे हैं, और इनका नाश करना क्षत्रिय धर्म ही है और इसी में तुम्हारी बढ़ाई है। अन्यथा तुम्हारी निंदा होगी और लोग तुम्हें कायर कहेंगे, यश और कीर्ति खो बैठोगे ,जो जीते हुए भी मृत्यु के समान है। धर्म युद्ध करना तुम्हारा कर्म यज्ञ है। जिसमें लाभ हानि, जय पराजय, सुख-दुख को समान समझ कर परम धर्म प्राप्त करो, फल की इच्छा छोड कर कर्म करना ही ज्ञान है। निष्काम बुद्धि ही ज्ञान प्राप्त कराती है, निश्चय या स्थिर बुद्धि वही है जो प्रसन्नचित निष्काम हो दुख में दुखी न हो और सुख में डूब ना जाए। तथा प्रति, भय, क्रोध जिसके वश में है वह महात्मा है।
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जय श्री राधे