जो हम अभी अनुभव कर रहे हैं ,वह अतीत का फल हैं ,भविष्य में जो अनुभव करेंगे वो इस बात पर निर्भर करता हैं कि हम अभी क्या करते हैं ।

इस ब्लॉग में परमात्मा को विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में एक अद्वितीय, अनन्त, और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि का कारण है और सब कुछ में निवास करता है। जीवन इस परमात्मा की अद्वितीयता का अंश माना जाता है और इसका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा के साथ मिलन है, जिसे 'मोक्ष' या 'निर्वाण' कहा जाता है। हमारे जीवन में ज्यादा से ज्यादा प्रभु भक्ति आ सके और हम सत्संग के द्वारा अपने प्रभु की कृपा को पा सके। हमारे जीवन में आ रही निराशा को दूर कर सकें।
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शनिवार, 23 मई 2015
शुक्रवार, 22 मई 2015
जीवन में सफलता के सूत्र (भाग 1)
जीवन में सफलता के सूत्र
उद्दे श्य के बिना व्यक्ति के जीवन का कोई महत्व नहीं रखता ।मनुष्य का जीवन यूँ ही जीने के लिए नहीं हुआ हैं, यह तो कुछ करने के लिए हुआ हैं ,जिससे उसका स्मरण मरने के बाद भी लोग कर सकें ।जीवन का उद्देश्य निश्चित करके उसको पूरा करने के लिए सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए ।
2 . नित्य प्रभु -स्मरण करें -
प्रतिदिन प्रार्थना , स्तुति ,प्रभु के ध्यान के लिए कुछ समय अवश्य दें ।प्रतिदिन कार्य आरम्भ करने से पूर्व माता -पिता ,गुरु को अवश्य प्रणाम करें ;क्योंकि प्रभु की कृपा और माता -पिता के आशीर्वाद के बिना सफलता सम्भव नहीं हैं ।
3. अपने काम को श्रेष्ठ मानें -
अक्सर ऐसा होता हैं जो जिस काम में हैं , वो उस काम में खुश नहीं होता ।नौकरी वाले को व्यवसाय और व्यवसाय वाले को नौकरी में अधिक लाभ दिखाई देता हैं ।नौकरी वाले जीवन पराधीन लगता लगता हैं ।व्यापार वाले को व्यापार में हर समय घाटे
की चिंता बनी रहती हैं । किसान को खेती में मेहनत अधिक और आय कम दिखती हैं ।किन्तु यदि आप पूरे जीवन में ख़ुशी चाहते हैं तो अपने काम से प्यार करें ,अपने काम को ही श्रेष्ठ मानें ।
4 . कर्तव्य पालन जरुरी हैं -
माता -पिता के प्रति , भाई -बहन के प्रति ,पति के प्रति ,पत्नी के प्रति ,मित्र के प्रति ,बच्चो के प्रति क्या कर्तव्य हैं ?यह जानना तथा उस पर आचरण करना बुद्धिमानी हैं तथा जीवन को उन्नत बनाने के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं ।
5 . समय का सदुपयोग करें -
समय का सदुपयोग प्रत्येक कार्य को समय पर पूर्ण करके किया जा सकता हैं ।आलस्य या व्यर्थ की बातों में समय का दुरूपयोग होता हैं ।अतः समय का सदुपयोग करना चाहिए ।वर्तमान समय को इतना खूबसूरत बना लें कि इन सुनहरे दिनों को कभी भूला न सके ।
6 . अपने कार्य में व्यस्त रहें -
एकाकीपन को दूर करने का सर्वोत्तम तरीका हैं -अपने आप को कार्य में व्यस्त रखना ।सदा किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखने से खुशी मिलती हैं । जितने भी महापुरुष हुएं वह सभी अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहे हैं व् सतर्क रहे । उनकी कार्य के प्रति समर्पित भावना से ही उन्हें कठिन कार्यो में भी सफलता प्राप्त हो सकी ।
बुधवार, 20 मई 2015
मंगलवार, 19 मई 2015
जीवन में मिठास
.
मिठास
〰〰〰〰
मिठास
〰〰〰〰
चाय का कप लेकर आप
खिड़की के पास बैठे हों
और बाहर के सुंदर नज़ारे का
आनंद लेते हुए चाय की चुस्की लेते हैं
.....अरे चीनी डालना तो भूल ही गये..;
खिड़की के पास बैठे हों
और बाहर के सुंदर नज़ारे का
आनंद लेते हुए चाय की चुस्की लेते हैं
.....अरे चीनी डालना तो भूल ही गये..;
और तभी फिर से किचन मेँ जाकर
चीनी डालने का आलस आ गया....
आज फीकी चाय को जैसे तैसे
पी गए,कप खाली कर दिया
चीनी डालने का आलस आ गया....
आज फीकी चाय को जैसे तैसे
पी गए,कप खाली कर दिया
तभी आपकी नज़र कप के तल
में पड़ी बिना घुली चीनी पर
पडती है..!!
मुख पर मुस्कुराहट लिए सोच में पड
गये...चम्मच होता तो मिला लेता
में पड़ी बिना घुली चीनी पर
पडती है..!!
मुख पर मुस्कुराहट लिए सोच में पड
गये...चम्मच होता तो मिला लेता
हमारे जीवन मे भी कुछ ऐसा ही है...
सुख ही सुख बिखरा पड़ा है
हमारे आस पास...
लेकिन,
बिन घुली उस चीनी की तरह !!
सुख ही सुख बिखरा पड़ा है
हमारे आस पास...
लेकिन,
बिन घुली उस चीनी की तरह !!
थोड़ा सा ध्यान दें-
किसी के साथ हँसते-हँसते उतने ही
हक से रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का पानी
धीरे से पोंछना आना चाहिए !
रिश्तेदारी और दोस्ती में कैसा
मान अपमान ?
बस अपनों के दिल मे रहना
आना चाहिए...!
किसी के साथ हँसते-हँसते उतने ही
हक से रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का पानी
धीरे से पोंछना आना चाहिए !
रिश्तेदारी और दोस्ती में कैसा
मान अपमान ?
बस अपनों के दिल मे रहना
आना चाहिए...!
प्यार एवं सत्संग रूपी चम्मच
से जीवन में मिठास घोलनी चाहिए!!
से जीवन में मिठास घोलनी चाहिए!!
सोमवार, 27 अप्रैल 2015
भागवत धर्म केसे अपनाये
भागवत धर्म को अपनाने के लिए क्या करे !
जहाँ -जहाँ भगवान ने भगवत प्राप्ति के लिए अपने श्री मुख से जो भी उपाय बताये हैं ,उन्ही का नाम हैं भागवत धर्म । भागवत धर्म माने भगवान की भक्ति ।ये ऐसा सरल मार्ग हैं कि इस पर कमजोर से कमजोर ,अनपढ़ से अनपढ़ आदमी आँख मुंद कर चल पड़ेगा तो गिरेगा नहीं और वो रास्ता भी नहीं भूलेगा ।वो भटकने वाला नहीं हैं ।गो स्वामीजी कहते हैं -
तुलसी सीताराम भजु दृढ़ राखहु विश्वास ।
कबहुं बिगड़त न सुने श्री रामचन्द्र के दास ।।
इसमें कुछ विशेष नहीं करना पड़ता ।जो कुछ आप करते रहे हो वो सब आप कर सकते हो ।खाना -पीना ,बाल -बच्चे ,घर ,मकान । लेकिन यह समझ करके कि यह प्रभु का काम हैं और प्रभु के लिए हैं ।मैं जो कुछ कर रहा हूँ अपने प्रभु के लिए कर रहा हूँ ।उनकी प्रसन्नता के लिए कर रहा हूँ ।
भगवान के अतिरिक्त कही भी मन इधर -उधर ले जाएगा ,भटकायेगा तो उसे भय होगा ,गिरने का डर रहेगा ।भगवान की भक्ति करने वाला ,भगवत धर्म का पालन करने वाला प्रभु के नाम ,रूप ,गुण ,लीला आदि को कानो से सुनते हैं ,वाणी से गायन करते हैं और गाते समय उन्हें किसी बात की चिंता नहीं होती कि कोई उनपर हँसेगा ।उनमे कोई बनावट नहीं होती ।ये भगवान के भक्तो के लक्षण हैं ।भक्ति करते -करते उनकी दृष्टि इतनी परिमार्जित हो जाती हैं कि जहाँ भी दृष्टि जाए सब जगह उन्हें भगवान ही भगवान नजर आते हैं ।
भक्ति करने से क्या होता हैं ?जैसे भोजन करने से क्षुधा की निवृति हो जाती हैं स्वाद से तुष्टि होती हैं ,रस से पुष्टि होती हैं ,कमजोरी दूर होती हैं ।ऐसे ही भगवान की भक्ति करने से संसार से वैराग्य होता हैं ,प्रभु के स्वरूप का बोध होता हैं ,सबके प्रति प्रेम की दृढ़ता आती हैं ।
भगवान के धर्म का पालन करने वाले कितनी तरह के भक्त होते हैं ? तब हरिजी बताते हैं भक्त तीन तरह के होते हैं -उत्तम भक्त ,मध्यम भक्त ,प्राकृत भक्त ।
उत्तम भक्त वो हैं जो सबमे भगवान की सत्ता का अनुभव करे ।जैसे श्री प्रह्लाद जी से पूछा गया की तुम्हारे भगवान कहाँ हैं ?वे बोले -
हममे ,तुममे ,खड़ग खम्भ में ,घट -घट व्यापत राम ।।
मध्यम भक्त वो होते हैं जो समस्त चेतना को चार भागो में विभक्त करदे वो मध्यम श्रेणी में आता हैं और बाकि तीसरी श्रेणी के भक्त कहलाते हैं ।उत्तम भक्त के लक्षण भी बतलाये गए हैं -शेष कल ! …। जय श्री राधे !
जहाँ -जहाँ भगवान ने भगवत प्राप्ति के लिए अपने श्री मुख से जो भी उपाय बताये हैं ,उन्ही का नाम हैं भागवत धर्म । भागवत धर्म माने भगवान की भक्ति ।ये ऐसा सरल मार्ग हैं कि इस पर कमजोर से कमजोर ,अनपढ़ से अनपढ़ आदमी आँख मुंद कर चल पड़ेगा तो गिरेगा नहीं और वो रास्ता भी नहीं भूलेगा ।वो भटकने वाला नहीं हैं ।गो स्वामीजी कहते हैं -
तुलसी सीताराम भजु दृढ़ राखहु विश्वास ।
कबहुं बिगड़त न सुने श्री रामचन्द्र के दास ।।
इसमें कुछ विशेष नहीं करना पड़ता ।जो कुछ आप करते रहे हो वो सब आप कर सकते हो ।खाना -पीना ,बाल -बच्चे ,घर ,मकान । लेकिन यह समझ करके कि यह प्रभु का काम हैं और प्रभु के लिए हैं ।मैं जो कुछ कर रहा हूँ अपने प्रभु के लिए कर रहा हूँ ।उनकी प्रसन्नता के लिए कर रहा हूँ ।
भगवान के अतिरिक्त कही भी मन इधर -उधर ले जाएगा ,भटकायेगा तो उसे भय होगा ,गिरने का डर रहेगा ।भगवान की भक्ति करने वाला ,भगवत धर्म का पालन करने वाला प्रभु के नाम ,रूप ,गुण ,लीला आदि को कानो से सुनते हैं ,वाणी से गायन करते हैं और गाते समय उन्हें किसी बात की चिंता नहीं होती कि कोई उनपर हँसेगा ।उनमे कोई बनावट नहीं होती ।ये भगवान के भक्तो के लक्षण हैं ।भक्ति करते -करते उनकी दृष्टि इतनी परिमार्जित हो जाती हैं कि जहाँ भी दृष्टि जाए सब जगह उन्हें भगवान ही भगवान नजर आते हैं ।
भक्ति करने से क्या होता हैं ?जैसे भोजन करने से क्षुधा की निवृति हो जाती हैं स्वाद से तुष्टि होती हैं ,रस से पुष्टि होती हैं ,कमजोरी दूर होती हैं ।ऐसे ही भगवान की भक्ति करने से संसार से वैराग्य होता हैं ,प्रभु के स्वरूप का बोध होता हैं ,सबके प्रति प्रेम की दृढ़ता आती हैं ।
भगवान के धर्म का पालन करने वाले कितनी तरह के भक्त होते हैं ? तब हरिजी बताते हैं भक्त तीन तरह के होते हैं -उत्तम भक्त ,मध्यम भक्त ,प्राकृत भक्त ।
उत्तम भक्त वो हैं जो सबमे भगवान की सत्ता का अनुभव करे ।जैसे श्री प्रह्लाद जी से पूछा गया की तुम्हारे भगवान कहाँ हैं ?वे बोले -
हममे ,तुममे ,खड़ग खम्भ में ,घट -घट व्यापत राम ।।
मध्यम भक्त वो होते हैं जो समस्त चेतना को चार भागो में विभक्त करदे वो मध्यम श्रेणी में आता हैं और बाकि तीसरी श्रेणी के भक्त कहलाते हैं ।उत्तम भक्त के लक्षण भी बतलाये गए हैं -शेष कल ! …। जय श्री राधे !
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