
इस ब्लॉग में परमात्मा को विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में एक अद्वितीय, अनन्त, और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि का कारण है और सब कुछ में निवास करता है। जीवन इस परमात्मा की अद्वितीयता का अंश माना जाता है और इसका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा के साथ मिलन है, जिसे 'मोक्ष' या 'निर्वाण' कहा जाता है। हमारे जीवन में ज्यादा से ज्यादा प्रभु भक्ति आ सके और हम सत्संग के द्वारा अपने प्रभु की कृपा को पा सके। हमारे जीवन में आ रही निराशा को दूर कर सकें।
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शुक्रवार, 8 मार्च 2019
गुरुवार, 7 मार्च 2019
उत्तम कुल कौन सा कहलाता है (विदुर नीति )
विदुर नीति के अंतर्गत उत्तम कुल का वर्णन
धृतराष्ट्र ने कहा -विदुर! धर्म और अर्थ के नित्य ज्ञाता और बहुश्रत देवता भी उत्तम कुल में उत्पन्न पुरुषों की इच्छा करते हैं। इसलिए मैं तुमसे यह प्रश्न करता हूं कि उत्तम कुल कौन सा है?
विदुर जी बोले - जिनमें तप, इंद्रिय, संयम ,वेदों का स्वाध्याय ,यज्ञ ,पवित्र विवाह, सदा अन्नदान और सदाचार- यह 7 गुण होते हैं ।उन्हें उत्तम कुल कहते हैं । जिनका सदाचार शिथिल नहीं होता है, जो अपने दोषों से माता पिता को कभी कष्ट नहीं पहुंचाते। सदा प्रसन्न चित्त से धर्म का आचरण करते हैं तथा असत्य का परित्याग कर, अपने कुल की विशेष कीर्ति चाहते हैं ,उन्हीं का कुल उत्तम है । यज्ञ ना होने से,निन्दित कुल में विवाह करने से, वेद का त्याग करने से ,धर्म का उल्लंघन करने से ,उत्तम कुल भी अधम हो जाता है। देवताओं के धन का नाश ,ब्राह्मण के धन का अपहरण और ब्राह्मण की मर्यादा का उल्लंघन करने से, उत्तम कुल भी अधम हो जाता है। गाय मनुष्य और धन से संपन्न हो कर भी जो कुल सदाचार से हीन है ,वह अच्छे कुलों की गणना में नहीं आ सकते। थोड़े धन वाले कुल भी यदि सदाचार से संपन्न है, तो वह अच्छे कुलों की गणना में आते हैं, और महान यश प्राप्त करते हैं। धन तो आता जाता रहता है सदाचार हमेशा बना रहना चाहिए।
धृतराष्ट्र ने कहा -विदुर! धर्म और अर्थ के नित्य ज्ञाता और बहुश्रत देवता भी उत्तम कुल में उत्पन्न पुरुषों की इच्छा करते हैं। इसलिए मैं तुमसे यह प्रश्न करता हूं कि उत्तम कुल कौन सा है?
विदुर जी बोले - जिनमें तप, इंद्रिय, संयम ,वेदों का स्वाध्याय ,यज्ञ ,पवित्र विवाह, सदा अन्नदान और सदाचार- यह 7 गुण होते हैं ।उन्हें उत्तम कुल कहते हैं । जिनका सदाचार शिथिल नहीं होता है, जो अपने दोषों से माता पिता को कभी कष्ट नहीं पहुंचाते। सदा प्रसन्न चित्त से धर्म का आचरण करते हैं तथा असत्य का परित्याग कर, अपने कुल की विशेष कीर्ति चाहते हैं ,उन्हीं का कुल उत्तम है । यज्ञ ना होने से,निन्दित कुल में विवाह करने से, वेद का त्याग करने से ,धर्म का उल्लंघन करने से ,उत्तम कुल भी अधम हो जाता है। देवताओं के धन का नाश ,ब्राह्मण के धन का अपहरण और ब्राह्मण की मर्यादा का उल्लंघन करने से, उत्तम कुल भी अधम हो जाता है। गाय मनुष्य और धन से संपन्न हो कर भी जो कुल सदाचार से हीन है ,वह अच्छे कुलों की गणना में नहीं आ सकते। थोड़े धन वाले कुल भी यदि सदाचार से संपन्न है, तो वह अच्छे कुलों की गणना में आते हैं, और महान यश प्राप्त करते हैं। धन तो आता जाता रहता है सदाचार हमेशा बना रहना चाहिए।
सोमवार, 4 मार्च 2019
शिव जी के १०८ नाम
शिवजी के 108 नाम
देवों के द्वारा भगवान शिव के 108 नामों का जो स्मरण श्रवन और पठन करते हैं ,उन्हें तीनों ताप दैहिक, दैविक और भौतिक नहीं सताते ,तथा ना तो उन्हें कभी शौक, व्याधि और ग्रह पीड़ा ही होती है ।इसका पाठ करने वाले को श्री ,प्रज्ञा ,आरोग्य ,आयुष ,सोभाग्य, भाग्य ,उन्नति ,विद्या, धर्म मे मति और भगवान शिव में भक्ति प्राप्त होती है। इसमें संदेह नहीं है।
1. हे शंभू !आपकी जय हो। 2. हे विभो! 3. हे रूद्र! 4.हे शंभू ! 5. हे शंकर ! आपकी जय हो। 6. हे ईश्वर ! 7. हे ईशान! 8. हे सर्वज्ञ ! तथा 9. हे कामद! (कामनाओं को प्रदान करने वाले भगवान शिव) आपकी जय हो जय हो।
10. हे नीलकंठ!11. हे श्रीद (ऐश्वर्या प्रदान करने वाले) 12. हे श्रीकंठ! 13. हे धूर्जटे! 14. हे अष्टमूर्त! 15. हे अनंतमूर्ते ! 16. हे महामूरते! 17. हे अनघ! आपकी जय हो।
18. हे पापहारी! 19. अनङ्गनिसङ्ग ! 20. हे भङ्गनाशन! (बाधा और भय के नाशक) 21. हे त्रिदशाधार (देवताओ के आधार ) 22. त्रिलोकेश (तीनों लोकों के स्वामी) ! 23. हे त्रिलोचन ! आपकी जय हो।
24. हे त्रिपथाधार! (गंगा जी के आधार) 25. हे त्रिमार्ग (तीन उपासन पद्धतियों का अनुसरण करने वाले)! 26. हे त्रिभिरूर्जित ( तीनों गुणों से शक्ति सम्पन्न) ! 27. हे त्रिपुरारे ! 28. हे त्रिधामूर्ते! 29. हे एक त्रिजटात्मक (एक तथा तीन जटा धारी) ! आपकी जय हो।
हे शशिशेखर (सिर पर चंद्रमा को धारण करने वाले!31. हे शूलेश! 32. हे पशुपाल( प्राणियों के पालक)! 33. हे शिवा प्रिय (पार्वती के प्रिय) ! 34. हे शिवात्मक( शिवा के शरीर से अभिन्न )! 35. हे शिव ! 36. हे श्रीद( ऐश्वर्या देने वाले)!37. और हे सुह्रत् (स्नेहयुक्त हृदय वाले)! 38. हे श्रीशतनु (भगवान विष्णु के विग्रह)! आपकी जय हो।
39. हे सर्व( सर्वस्वरूप)! 40. हे सर्वेशे( संपूर्ण विश्व के स्वामी )!41.हे भूतेष (संपूर्ण जीवो के अधिपति)!42. है गिरीश! 43. हे गिरीश्वर! आपकी जय हो।44. हे उग्ररूप! 45. हे भीमेश ! 46. हे भव ! 47. हे भर्ग (तेज स्वरुप)! 48. प्रभु आपकी जय हो। 48. हे दक्षध्वसकारक( दक्ष के यज्ञ को ध्वंस करने वाले)!49. हे अंधकध्वंसकारक( अंधकासुर को मारने वाले)! 50. हे रुण्डमालिन्( रुण्डमाला धारी) 51. कपाली (कपाल धारण करने वाले)! 52. हे भुजङ्गजिनभूषण( आभूषण के रूप में भुजंग तथा व्याघ्र चर्म धारण करने वाले)! 53. हे अजिनभूषण ! आपकी जय हो
54. हे दिगंबर! 55. हे दिशा नाथ ! (दिशाओं के स्वामी) 56. हे व्योमकेश! 57. है चितापति (श्मशान वासी)! 58. हे आधार (सबके आश्रय ! 59. हे निराधार ! 60. हे भस्माधार ! 61. हे धराधर (शेषरूप में पृथ्वी को धारण करने वाले भगवान शिव )आपकी जय हो।62. हे देवदेव ! 63. हे महादेव ! 64. हे देवतश ! 65. हे आदिदेवत ! 66. हे वह्रिवीर्य ! 67. हे स्थाणो ! 68. है अयोनिजसंभव (अजन्मा ) ! आपकी जय हो ।69. हे भव ! 70. हे शर्व ! 71. हे महाकाल !72. हे भस्माङ्ग ( भस्म को शरीर में लगाने वाले)! 73. हैं सर्पभूषण (सर्प को आभूषण के रूप में धारण करने वाले) ! 74. हे त्रयम्बक ! 75. हे स्थपते (शिल्पी)! 76. हे वाचाम्पते ! 77. हे जगताम्पते ( संसार के स्वामी) ! आपकी जय हो। 78. हे शिपिविष्ट ( प्रकाश पुंज) ! 79. हे विरुपाक्ष ! 80. हे लिंङ्ग ! 81. हे वृषधव्ज ! 82. नीललोहित ! 83. हे पिङ्गाक्ष ! 84. हे खटवाङ्गधारी ! की जय हो । 85. कृति वास ! 86. अहीरबुर्धन्य !87. हे मृडानीश ( पार्वती पति)! 89. जटाम्बभृत्( जटा में जल धारण करने वाले)! 90. हे जगद् भ्रांतः ! 91. हे जगनमातः ९१. हे जगतात् ! ९२. हे जगद् गरो ! आपकी जय हो । ९३. हे पंचवक्त्र !९४. हे महा वक्त्र ! ९५. हे कालवक्त्र ! ९६. गजास्यभृत ( गणेश के धारण पोषण करता) ! ९७. है दशबाहो ! ९८. हे महाबाहो ! ९९. हे महावीर्य ! ९००. हे महाबल ! १०१. हे अघोरवक्त्र ! १०२. हे घोरवक्त्र ! १०३. हे सधोजात ! १०४. हे उमापते ! १०५. हे सदानन्द ! १०६. हे महानन्द ! १०७. हे नन्दमूर्ते ! १०८. हे ईश्वर ! जय हो ।
ओम नमः शिवाय
देवों के द्वारा भगवान शिव के 108 नामों का जो स्मरण श्रवन और पठन करते हैं ,उन्हें तीनों ताप दैहिक, दैविक और भौतिक नहीं सताते ,तथा ना तो उन्हें कभी शौक, व्याधि और ग्रह पीड़ा ही होती है ।इसका पाठ करने वाले को श्री ,प्रज्ञा ,आरोग्य ,आयुष ,सोभाग्य, भाग्य ,उन्नति ,विद्या, धर्म मे मति और भगवान शिव में भक्ति प्राप्त होती है। इसमें संदेह नहीं है।
1. हे शंभू !आपकी जय हो। 2. हे विभो! 3. हे रूद्र! 4.हे शंभू ! 5. हे शंकर ! आपकी जय हो। 6. हे ईश्वर ! 7. हे ईशान! 8. हे सर्वज्ञ ! तथा 9. हे कामद! (कामनाओं को प्रदान करने वाले भगवान शिव) आपकी जय हो जय हो।
10. हे नीलकंठ!11. हे श्रीद (ऐश्वर्या प्रदान करने वाले) 12. हे श्रीकंठ! 13. हे धूर्जटे! 14. हे अष्टमूर्त! 15. हे अनंतमूर्ते ! 16. हे महामूरते! 17. हे अनघ! आपकी जय हो।
18. हे पापहारी! 19. अनङ्गनिसङ्ग ! 20. हे भङ्गनाशन! (बाधा और भय के नाशक) 21. हे त्रिदशाधार (देवताओ के आधार ) 22. त्रिलोकेश (तीनों लोकों के स्वामी) ! 23. हे त्रिलोचन ! आपकी जय हो।
24. हे त्रिपथाधार! (गंगा जी के आधार) 25. हे त्रिमार्ग (तीन उपासन पद्धतियों का अनुसरण करने वाले)! 26. हे त्रिभिरूर्जित ( तीनों गुणों से शक्ति सम्पन्न) ! 27. हे त्रिपुरारे ! 28. हे त्रिधामूर्ते! 29. हे एक त्रिजटात्मक (एक तथा तीन जटा धारी) ! आपकी जय हो।
हे शशिशेखर (सिर पर चंद्रमा को धारण करने वाले!31. हे शूलेश! 32. हे पशुपाल( प्राणियों के पालक)! 33. हे शिवा प्रिय (पार्वती के प्रिय) ! 34. हे शिवात्मक( शिवा के शरीर से अभिन्न )! 35. हे शिव ! 36. हे श्रीद( ऐश्वर्या देने वाले)!37. और हे सुह्रत् (स्नेहयुक्त हृदय वाले)! 38. हे श्रीशतनु (भगवान विष्णु के विग्रह)! आपकी जय हो।
39. हे सर्व( सर्वस्वरूप)! 40. हे सर्वेशे( संपूर्ण विश्व के स्वामी )!41.हे भूतेष (संपूर्ण जीवो के अधिपति)!42. है गिरीश! 43. हे गिरीश्वर! आपकी जय हो।44. हे उग्ररूप! 45. हे भीमेश ! 46. हे भव ! 47. हे भर्ग (तेज स्वरुप)! 48. प्रभु आपकी जय हो। 48. हे दक्षध्वसकारक( दक्ष के यज्ञ को ध्वंस करने वाले)!49. हे अंधकध्वंसकारक( अंधकासुर को मारने वाले)! 50. हे रुण्डमालिन्( रुण्डमाला धारी) 51. कपाली (कपाल धारण करने वाले)! 52. हे भुजङ्गजिनभूषण( आभूषण के रूप में भुजंग तथा व्याघ्र चर्म धारण करने वाले)! 53. हे अजिनभूषण ! आपकी जय हो
54. हे दिगंबर! 55. हे दिशा नाथ ! (दिशाओं के स्वामी) 56. हे व्योमकेश! 57. है चितापति (श्मशान वासी)! 58. हे आधार (सबके आश्रय ! 59. हे निराधार ! 60. हे भस्माधार ! 61. हे धराधर (शेषरूप में पृथ्वी को धारण करने वाले भगवान शिव )आपकी जय हो।62. हे देवदेव ! 63. हे महादेव ! 64. हे देवतश ! 65. हे आदिदेवत ! 66. हे वह्रिवीर्य ! 67. हे स्थाणो ! 68. है अयोनिजसंभव (अजन्मा ) ! आपकी जय हो ।69. हे भव ! 70. हे शर्व ! 71. हे महाकाल !72. हे भस्माङ्ग ( भस्म को शरीर में लगाने वाले)! 73. हैं सर्पभूषण (सर्प को आभूषण के रूप में धारण करने वाले) ! 74. हे त्रयम्बक ! 75. हे स्थपते (शिल्पी)! 76. हे वाचाम्पते ! 77. हे जगताम्पते ( संसार के स्वामी) ! आपकी जय हो। 78. हे शिपिविष्ट ( प्रकाश पुंज) ! 79. हे विरुपाक्ष ! 80. हे लिंङ्ग ! 81. हे वृषधव्ज ! 82. नीललोहित ! 83. हे पिङ्गाक्ष ! 84. हे खटवाङ्गधारी ! की जय हो । 85. कृति वास ! 86. अहीरबुर्धन्य !87. हे मृडानीश ( पार्वती पति)! 89. जटाम्बभृत्( जटा में जल धारण करने वाले)! 90. हे जगद् भ्रांतः ! 91. हे जगनमातः ९१. हे जगतात् ! ९२. हे जगद् गरो ! आपकी जय हो । ९३. हे पंचवक्त्र !९४. हे महा वक्त्र ! ९५. हे कालवक्त्र ! ९६. गजास्यभृत ( गणेश के धारण पोषण करता) ! ९७. है दशबाहो ! ९८. हे महाबाहो ! ९९. हे महावीर्य ! ९००. हे महाबल ! १०१. हे अघोरवक्त्र ! १०२. हे घोरवक्त्र ! १०३. हे सधोजात ! १०४. हे उमापते ! १०५. हे सदानन्द ! १०६. हे महानन्द ! १०७. हे नन्दमूर्ते ! १०८. हे ईश्वर ! जय हो ।
ओम नमः शिवाय
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019
शिव तांडव स्त्रोत हिंदी अनुवाद के साथ
शिव तांडव स्त्रोत (हिंदी में)
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||
जिन्होंने जटा रूपी वन से निकलती हुई गंगा जी के गिरते हुए प्रभाव से पवित्र किए गए गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारण कर ,डमरु के डम डम शब्दों से मंडित प्रचंड तांडव किया वह शिवजी हमारा कल्याण करें।।
1।।
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२|| जिनका मस्तक जटा रूपी कड़ाह में वेग से घूमती हुई गंगा जी के चंचल तरंग लताओं से सुशोभित हो रहा है, ललाट अग्नि धक धक जल रही है, सिर पर बाल चंद्रमा विराजमान है ,उन भगवान शिव में मेरा निरंतर अनुराग बना रहे।।2।।
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||
गिरिराज किशोरी पार्वती केेेे विलासकालोपयोगी शिरो भूषण सेे समस्त दिशा को प्रकाशित होते देख, जिनका मन आनंदित हो रहा है, जिनकी निरंतर कृपा दृष्टि से कठिन आपत्ति का भी निवारण हो जाता है, ऐसे किसी दिगंबर तत्व में मेरा मन विनोद करें ।।3।।
जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||
उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं, जिनके जाटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समुहरूपकेसर के कातिं से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभुषित हैं।
कहते हैं कि देवों के देव महादेव की उपासना इंसान को जीवन-मृत्यु में के काल चक्र से मुक्ति दिला देती है. शिव की अराधना में तांडव स्तोत्र का पाठ करने से भोलेनाथ का आशीर्वाद आजीवन संकट से बचाने के लिए कवच का काम करता है.
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||
जिन्होंने जटा रूपी वन से निकलती हुई गंगा जी के गिरते हुए प्रभाव से पवित्र किए गए गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारण कर ,डमरु के डम डम शब्दों से मंडित प्रचंड तांडव किया वह शिवजी हमारा कल्याण करें।।
1।।
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२|| जिनका मस्तक जटा रूपी कड़ाह में वेग से घूमती हुई गंगा जी के चंचल तरंग लताओं से सुशोभित हो रहा है, ललाट अग्नि धक धक जल रही है, सिर पर बाल चंद्रमा विराजमान है ,उन भगवान शिव में मेरा निरंतर अनुराग बना रहे।।2।।
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||
गिरिराज किशोरी पार्वती केेेे विलासकालोपयोगी शिरो भूषण सेे समस्त दिशा को प्रकाशित होते देख, जिनका मन आनंदित हो रहा है, जिनकी निरंतर कृपा दृष्टि से कठिन आपत्ति का भी निवारण हो जाता है, ऐसे किसी दिगंबर तत्व में मेरा मन विनोद करें ।।3।।
जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||
उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं, जिनके जाटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समुहरूपकेसर के कातिं से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभुषित हैं।
सहस्रलोचनप्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ५..
जिन शिव जी का चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं), जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।
ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः.. ६..
जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभि देवों द्वारा पुज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करें।
कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … ७..
जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर है ( यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।
नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. ८..
जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभि प्रकार की सम्पनता प्रदान करें।
प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९..
जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभुषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो6 के काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।
अखर्वसर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् .
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०..
जो कल्यानमय, अविनाशि, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञविध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।
जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. ११..
अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढी हूई प्रचंण अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।
दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः .
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. १२..
कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टूकडों, शत्रू एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर सामान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।
कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३..
कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।
इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् .
हरे गुरौ सुभक्तिमा शुयातिना न्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. 14..
इस जो मनुष्य इस प्रकार से उत्तम स्रोत का नित्य पाठ स्मरण और वर्णन करता रहता है ,वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही सुर गुरु श्री शंकर जी की अच्छी भक्ति प्राप्त कर लेता है, वह विरुद्ध गति को नहीं प्राप्त होता क्योंकि शिवजी का अच्छी प्रकार का चिंतन प्राणी वर्ग के मोह का नाश करने वाला है।
शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो, सुरगुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो, सुरगुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे .
तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां
लक्ष्मीं सदैवसुमुखिं प्रददाति शंभुः .. 15..
प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।
।। इस प्रकार श्री रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत संपूर्ण हुआ।।
बुधवार, 27 फ़रवरी 2019
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019
श्री रुद्राष्टकम (हिंदी अनुवाद)
श्री रुद्राष्टकम( हिंदी अनुवाद)
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
हे ईशान मैं मुक्ति स्वरूप ,समर्थ, सर्व व्यापक, ब्रह्म, वेद स्वरूप ,निज स्वरूप में स्थिति, निर्गुण ,निर्विकल्प ,निरीह, अनंत ज्ञानमय और आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त प्रभु को प्रणाम करता हूं।।1
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
जो निराकार हैं ,ओंकाररूप आदि कारण है ,तुरीय है, वाणी ,बुद्धि और इंद्रियों के पथ से परे हैं, कैलाश नाथ हैं, विकराल और महाकाल के भी काल, कृपाल ,गुणों के आगार और संसार से तारने वाले हैं ,उन भगवान को मैं नमस्कार करता हूं।।2
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
जो हिमालय के समान श्वेत वर्ण ,गंभीर और करोड़ों काम देवों के समान कांतिमान् शरीर वाले हैं, जिनके मस्तक पर मनोहर गंगाजी लहरा रही है, भालदेश में बाल चंद्रमा सुशोभित है और गले में सर्पों की माला शोभा देती है।।3।।
जो प्रचंड ,सर्वश्रेष्ठ ,प्रगलभ, परमेश्वर ,पूर्ण ,अजन्मा ,कोटि सूर्य के समान प्रकाशमान ,त्रिभुवन के शूल नाशक और हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले हैं उन भवानी पति का मैं भजन करता हूं।।5।।
हे प्रभु! आप कलारहित, कल्याणकारी और कल्प का अंत करने वाले हैं ,आप सर्वदा सत्पुरुषों को आनंद देते हैं और आप ने त्रिपुरासुर का नाश किया था, आप मोहनाशक और ज्ञानानन्दधन परमेश्वर हैं, कामदेव के शत्रु हैं, आप मुझ पर प्रसन्न हो ,प्रसन्न हो।।6।।
।।इस प्रकार श्री गोस्वामी तुलसीदास रचित शिव रुद्राष्टक संपूर्ण हुआ।।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
हे ईशान मैं मुक्ति स्वरूप ,समर्थ, सर्व व्यापक, ब्रह्म, वेद स्वरूप ,निज स्वरूप में स्थिति, निर्गुण ,निर्विकल्प ,निरीह, अनंत ज्ञानमय और आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त प्रभु को प्रणाम करता हूं।।1
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
जो निराकार हैं ,ओंकाररूप आदि कारण है ,तुरीय है, वाणी ,बुद्धि और इंद्रियों के पथ से परे हैं, कैलाश नाथ हैं, विकराल और महाकाल के भी काल, कृपाल ,गुणों के आगार और संसार से तारने वाले हैं ,उन भगवान को मैं नमस्कार करता हूं।।2
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
जो हिमालय के समान श्वेत वर्ण ,गंभीर और करोड़ों काम देवों के समान कांतिमान् शरीर वाले हैं, जिनके मस्तक पर मनोहर गंगाजी लहरा रही है, भालदेश में बाल चंद्रमा सुशोभित है और गले में सर्पों की माला शोभा देती है।।3।।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
जिनके कानों में कुंडल हिल रहे हैं ,जिनके नेत्र एवं भृकुटी सुंदर और विशाल है ,जिनका मुख प्रसन्न और कंठ नील है, जो बड़े ही दयालु है, जो बाघ के चर्म का वस्त्र और मुंडो की माला पहनते हैं ,उन सर्वाधिश्वर प्रियतम शिव का भजन करता हूं।।4।।प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
जो प्रचंड ,सर्वश्रेष्ठ ,प्रगलभ, परमेश्वर ,पूर्ण ,अजन्मा ,कोटि सूर्य के समान प्रकाशमान ,त्रिभुवन के शूल नाशक और हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले हैं उन भवानी पति का मैं भजन करता हूं।।5।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
हे प्रभु! आप कलारहित, कल्याणकारी और कल्प का अंत करने वाले हैं ,आप सर्वदा सत्पुरुषों को आनंद देते हैं और आप ने त्रिपुरासुर का नाश किया था, आप मोहनाशक और ज्ञानानन्दधन परमेश्वर हैं, कामदेव के शत्रु हैं, आप मुझ पर प्रसन्न हो ,प्रसन्न हो।।6।।
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
मनुष्य जब तक उमाकांत महादेव जी के चरणारविंदुओं का भजन नहीं करते, उन्हें इस लोक या परलोक में कभी भी सुख शांति की प्राप्ति नहीं होती और ना उनका संताप ही दूर होता है ,हे समस्त भूतों के निवास स्थान भगवान शिव ,आप मुझ पर प्रसन्न हो।।7।।न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
हे प्रभु ,हे शंभू है, हे ईशान, मै योग, जप और पूजा कुछ भी नहीं जानता ,हे शंभू मै सदा सर्वदा आपको नमस्कार करता हूं। जरा ,जन्म और दुख समूह से संतप्त होते हुए ,मुझ दुखी की दुख से आप रक्षा कीजिए ।।8।रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
जो मनुष्य भगवान शंकर की तुष्टि के लिए ब्राह्मण द्वारा कहे हुए इस रुद्राष्टक का भक्ति पूर्वक पाठ करते हैं, उन पर शंकर जी प्रसन्न होते हैं ।।।इस प्रकार श्री गोस्वामी तुलसीदास रचित शिव रुद्राष्टक संपूर्ण हुआ।।
शिव स्त्रोत
भगवान शिव को नमस्कार है
नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।--------रूद्राय नमो अस्तु।
हिन्दी में भावार्थ -
कल्याण एवं सुख के मूल स्त्रोत भगवान शिव को नमस्कार है। कल्याण के विस्तार करने वाले तथा सुख के विस्तार करने वाले भगवान शिव को नमस्कार है। मंगल स्वरूप और मंगलमयता की सीमा भगवान शिव को नमस्कार है।
जो संपूर्ण विद्याओं के ईश्वर, समस्त भूतों के अधीश्वर, ब्रह्म वेद के अधिपति ,ब्रह्मा -बल-वीर्य के प्रतिपालक तथा साक्षात ब्रह्मा एवं परमात्मा है, वह सच्चिदानंदमय शिव मेरे लिए नित्य कल्याण स्वरूप बने रहे।
परमेश्वर रूप अंतर्यामी पुरुष को हम जाने ,उन महादेव का चिंतन करें ,वह भगवान रूद्र हमें संद्धर्म के लिए प्रेरित करें।
जो अघोर हैं घोर हैं घोर से भी घोरतर है और जो सर्व संहारो रूद्र रूप है, आपके उन सभी स्वरूपों को मेरा नमस्कार है।
प्रभु आप ही वामदेव, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, रुद्र, काल, कलविकरण, बलविकरण ,बल, बलप्रमथन, सर्वभूतदमन तथा मनोन्मन आदि नामों से प्रतिपादित होते हैं इन सभी नाम रूपों में आपके लिए मेरा बारंबार नमस्कार है ।
हे रूद्र आपको सांय- काल, प्रातः काल, रात्रि और दिन में भी नमस्कार है। मैं भवदेव तथा रूद्रदेव दोनों को नमस्कार करता हूं।
वेद जिनके निःश्वास हैं, जिन्होंने वेदों से सारी सृष्टि की रचना की है और जो विद्याओं के तीर्थ हैं, ऐसे शिव कि मैं वंदना करता हूं ।
तीन नेत्रों वाले, सुगंधयुक्त एवं पुष्टि के वर्धक शंकर का हम पूजन करते हैं। वह शंकर हमको दुखों से ऐसे छुड़ाएं जैसे खरबूजा पककर बंधन से अपने आप छूट जाता है। किंतु वह शंकर हमें मोक्ष से ना छुड़ाएं ।
जो रूद्र उमापति हैं वही सब शरीरों में जीव रूप से प्रविष्ट है, उनके निमित्त हमारा प्रणाम हो। प्रसिद्ध एक अद्वितीय रूद्र ही पुरुष है, वह ब्रह्मलोक में ब्रह्म रूप से हैं, प्रजापतिलोक में प्रजापति रूप से ,सूर्य मंडल में विराट रूप से हैं, तथा देह में जीवरूप से स्थित हुए हैं ;उस महान सचिदानन्दस्वरुप रूद्र को बारंबार प्रणाम है ।समस्त चराचर जगत जो विद्यमान है, हो गया है, तथा होगा, वह सब प्रपञ्च रुद्र की सत्ता से भिन्न नहीं हो सकता, यह सब कुछ रूद्र ही है,इस रूद्र के प्रति प्रणाम है।
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