यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 2 मई 2023

प्रभु का स्मरण किसी भी तरह लिया जाए शुभ ही होता है।

प्रभु का स्मरण किसी भी तरह लिया जाए शुभ ही होता है।



एक बार गौ लोक धाम में कृष्णप्रिया श्री राधा रानी जी ने श्री गोविन्द से पुछा..

हे माधव !!! कंस आपका सगा मामा होते हुए भी आपके माता पिता को घोर पीड़ा देता था और  निरंतर आपका अपमान करता था l आपका संतों का उपहास करता था l 

आपको मार देने के कई बार प्रयास करता रहा l

कभी किसी को भेजता कभी किसी को, हत्या के प्रयत्न करता रहता था l

फिर भी उस महापापी के ऐसे कौन से पुण्य थे की उसे आपके हाथों मृत्यु यानि परम मोक्ष प्राप्त हुआ..... ??


य़ह सुनकर मोहन ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि राधे!!! कंस कुछ भी करता, कुछ सोचता तो मेरे ही बारे में चाहे द्वेष और क्रोध अथवा भय के कारण,,,,,, परन्तु मेरा स्मरण उसे हर पल रहता था, और जो व्यक्ति हर समय मेरा सुमिरण करेगा उसे में मोक्ष ही दूंगा चाहे वो मेरा विरोधी ही क्यों न हो।

इसलिए श्रीमद्भगवत के अंत में एक सबसे मत्वपूर्ण श्लोक आता है।,,,,,


नाम संकीर्तनं यस्य सर्व पाप प्रणाशनम् ।

प्रणामो दुःख शमनः तं नमामि हरिं परम्॥


(मैं उन 'हरि' को प्रणाम करता हूँ जिनका नाम संकीर्तन सभी पापों को समाप्त करता है और जिन्हें प्रणाम करने मात्र से सारे दुःखों का नाश हो जाता है। )


 श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी 

  हे नाथ नारायण वासुदेवा  



सोमवार, 1 मई 2023

रुद्राष्टकम : हिंदी भावार्थ के साथ

                      रुद्राष्टकम : हिंदी भावार्थ के साथ



     नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

      विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम

      निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं

      चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम


हे भगवन ईशान को मेरा प्रणाम ऐसे भगवान जो कि निर्वाण रूप हैं जो कि महान ॐ के दाता हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्मान्द में व्यापत हैं जो अपने आपको धारण किये हुए हैं जिनके सामने गुण अवगुण का कोई महत्व नहीं, जिनका कोई विकल्प नहीं, जो निष्पक्ष हैं जिनका आकार आकाश के सामान हैं जिसे मापा नहीं जा सकता, उनकी मैं उपासना करता हूँ |


      निराकारमोङ्करमूल* तुरीयं

      गिराज्ञानगोतीतमीशं* गिरीशम् ।

      करालं महाकालकालं कृपालं

     गुणागारसंसारपारं* नतोहम


जिनका कोई आकार नहीं, जो ॐ के मूल हैं, जिनका कोई राज्य नहीं, जो गिरी यानि पर्वत के वासी हैं, जो कि सभी ज्ञान, शब्द से परे हैं, जो कि कैलाश के स्वामी हैं, जिनका रूप भयावह हैं, जो कि काल के स्वामी हैं, जो उदार एवम् दयालु हैं, जो गुणों का खजाना हैं, जो पूरे संसार के परे हैं उनके सामने मैं नत्मस्तक हूँ।


      तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं

      मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।

      स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा

      लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा


जो कि बर्फ के समान शील हैं, जिनका मुख सुंदर हैं, जो गौर रंग के हैं जो गहन चिंतन में हैं, जो सभी प्राणियों के मन में हैं, जिनका वैभव अपार हैं, जिनकी देह सुंदर हैं, जिनके मस्तक पर तेज हैं जिनकी जटाओ में लहलहाती गंगा हैं, जिनके चमकते हुए मस्तक पर चाँद हैं, और जिनके कंठ पर सर्प का वास हैं |


      चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं

      प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

      मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं

     प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि


जिनके कानों में बालियाँ हैं, जिनकी सुन्दर भोहे और बड़ी-बड़ी आँखे हैं, जिनके चेहरे पर सुख का भाव हैं, जिनके कंठ में विष का वास हैं, जो दयालु हैं, जिनके वस्त्र शेर की खाल हैं, जिनके गले में मुंड की माला हैं, ऐसे प्रिय शंकर पूरे संसार के नाथ हैं उनको मैं पूजता हूँ |


      प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं

      अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।

      त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं

      भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम

जो भयंकर हैं, जो परिपक्व साहसी हैं, जो श्रेष्ठ हैं अखंड है जो अजन्मे हैं जो सहस्त्र सूर्य के सामान प्रकाशवान हैं जिनके पास त्रिशूल हैं जिनका कोई मूल नहीं हैं जिनमे किसी भी मूल का नाश करने की शक्ति हैं, ऐसे त्रिशूल धारी, माँ भगवती के पति जो प्रेम से जीते जा सकते हैं, उन्हें मैं वन्दन करता हूँ |

      कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी

      सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।

      चिदानन्दसंदोह मोहापहारी

      प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी

जो काल के बंधे नहीं हैं, जो कल्याणकारी हैं, जो विनाशक भी हैं,जो हमेशा आशीर्वाद देते है और धर्म का साथ देते हैं , जो अधर्मी का नाश करते हैं, जो चित्त का आनंद हैं, जो जूनून हैं जो मुझसे खुश रहे ऐसे भगवान जो कामदेव नाशी हैं उन्हें मेरा प्रणाम |

      न यावद्उ मानाथपादारविन्दं

      भजन्तीह लोके परे वा नराणाम।

     न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं

      प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं

जो यथावत नहीं हैं, ऐसे उमा पति के चरणों में कमल वन्दन करता हूं ऐसे भगवान को पूरे लोक के नर नारी पूजते हैं, जो सुख हैं, शांति हैं, जो सारे दुखो का नाश करते हैं जो सभी जगह वास करते हैं |

      न जानामि योगं जपं नैव पूजां

      नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।

      जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानंॐ 

      प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो

मैं कुछ नहीं जानता, ना योग , ना ध्यान,  देव के सामने मेरा मस्तक झुकता हैं, सभी संसारिक कष्टों, दुःख दर्द से मेरी रक्षा करे. मेरी बुढ़ापे के कष्टों से से रक्षा करें | मैं सदा ऐसे शिव शम्भु को प्रणाम करता हूँ |

।।ॐ नमः शिवाय ।।

दादा गुरु भक्तमाली जी को जब लड्डू गोपाल जी

                दादा गुरु भक्तमालीजी को जब लड्डू गोपाल जी ने दर्शन दिए



         पण्ड़ित श्री जगन्नाथ प्रसाद जी 'भक्तमाली' के भक्तिभाव के कारण वृंदावन के सभी संत उनसे बहुत प्रभावित थे और उनके ऊपर कृपा रखते थे। सन्तों की कौन कहे स्वयं 'श्रीकृष्ण' उनसे आकृष्ट होकर जब तब किसी न किसी छल से उनके ऊपर कृपा कर जाया करते थे।

        एक बार श्री जगन्नाथ प्रसाद जी 'भक्तमाली' अपने घर में बैठे हारमोनियम पर भजन गा रहे थे। उसी समय एक बहुत ही सुन्दर बालक आकर उनके सामने बैठ गया, और तन्मय होकर भजन सुनने लगा।

 'भक्तमाली' जी ने बालक का श्रृंगार देखकर समझा कि वह किसी रासमण्डली का बालक है जो उनके भजन से आकृष्ट होकर चला आया है। भक्तमाली जी ने भजन समाप्त करने के बाद बालक से पूछा -"बेटा तुम कहाँ रहते हो ?" 

बालक ने कहा - "अक्रूर घाट पर भतरोड़ मन्दिर में रहता हूँ।" 

भक्तमाली जी - "तुम्हारा नाम क्या है ?" 

बालक - "लड्डू गोपाल।"

 'भक्तमाली' जी - "तो तुम लड्डू खाओगे या पेड़ा खाओगे ?" 

उस समय 'भक्तमाली' जी के पास लड्डू नहीं पेड़े ही थे। इसलिए उन्होंने प्रकार पूछा। 

बालक ने भी हँसकर कहा - "बाबा मैं तो पेड़ा खाऊँगा।" 

भक्तमाली जी ने बालक को पेडे लाकर दिये। वह बालक पेडे खाता हुआ और भक्तमाली जी की ओर हँसकर देखता हुआ चला गया। 

पर 'ठाकुर' जी बालक के रूप मे जाते-जाते अपनी जादू भरी मुस्कान और चितवन की अपूर्व छवि 'भक्तमाली' जी के ह्रदय पर अंकित कर गये।

अब उस बालक की वह छवि 'भक्तमाली' जी को सारा दिन और सारी रात व्यग्र किये रही। भक्तमाली जी के मन मे तरह तरह के विचार उठते रहे। "ऐसा सुंदर बालक तो मैंने आज तक कभी नहीं देखा। वह रासमण्डली का बालक ही था या कोई और ? 

घर मे ऐसे आकर बैठ गया जैसे यह घर उसी का हो कोई भय नहीं संकोच नहीं। छोटा सा बालक भजन तो ऐसे तन्मय होकर सुन रहा था जैसे उसे भजन मे न जाने कितना रस मिल रहा हो। नहीं-नहीं वह कोई साधारण बालक नहीं हो सकता। कहीं वह स्वयं 'भक्तवत्सल भगवान' ही तो नहीं थे जो नारद जी के प्रति कहे गये अपने इन वचनों को चरितार्थ करने आये थे :-

                                    

               नाहं तिष्ठामि  वैकुंठे  योगिनां  हृदयेषु वा। 

               तत्र तिष्ठामी नारद यत्र गायन्ति मद्भक्ताः।।

                                                       (पद्मपुराण)

         "हे नारद ! न तो मैं अपने निवास वैकुंठ में रहता हूँ, न योगियों के ह्रदय में रहता हूँ। मैं तो उस स्थान में वास करता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरे पवित्र नाम का कीर्तन करते हैं और मेरे रूप, लीलाओं और गुणों की चर्चा चलाते हैं।"                                   

जो भी हो वह बालक अपना नाम और पता तो बता ही गया है कल उसकी खोज करनी होगी।"

 'भक्तमाली' जी बालक के विषय मे तरह-तरह के विचार करते हुए सो गये।

        श्री जगन्नाथ प्रसाद जी 'भक्तमाली' दूसरे दिन प्रातः होते ही भतरोड़ में अक्रुर मन्दिर पहुँचे। 'भक्तमाली' जी ने वहाँ सेवारत पुजारी जी से पूछा - "क्या यहाँ लड्डू गोपाल नाम का कोई बालक रहता हैं ?" 

पुजारी जी ने कहा - 'लड्डू गोपाल तो हमारे मन्दिर के ठाकुर जी का नाम है। और यहाँ कोई बालक नहीं रहता।' 

यह सुनते ही भक्तमाल जी सिहर उठे, उनके नेत्र डबडबा आये। 

अपने आँसू पोंछते हुए उन्होंने पुजारी जी से कहा - "कल एक बहुत खूबसूरत बालक मेरे पास आया था। उस बालक ने अपना नाम लड्डू गोपाल बताया था और निवास-स्थान अक्रुर मन्दिर। मैंने उसे पेड़े खाने को दिये थे, पेड़े खाकर वह बहुत प्रसन्न हुआ था। पुजारी जी कहीं आपके ठाकुर जी ने ही तो यह लीला नहीं की थी ?"

 पुजारी जी ने कहा - "भक्तमाली जी ! आप धन्य हैं। हमारे ठाकुर ने ही आप पर कृपा की, इसमें कोई सन्देह नहीं है। हमारे ठाकुर जी को पेड़े बहुत प्रिय हैं। कई दिन से मैं बाजार नहीं जा पाया था, इसलिए पेड़ों का भोग नहीं लगा सका था।"

 भक्तमाली जी ने मन्दिर के भीतर जाकर लड्डू गोपाल जी के दिव्य श्री विगृह के दर्शन किये।

 दण्डवत् प्रणाम् कर प्रार्थना की - "हे ठाकुर जी इसी प्रकार अपनी कृपा बनाये रखना, बार-बार इसी आकर दर्शन देते रहना।" 

         पता नहीं भक्तमाली जी को फिर कभी लड्डू गोपाल ने उसी रूप में उन पर कृपा की या नहीं, लेकिन एक बार भक्तमाली जी अयोध्या गये थे। देर रात्रि में अयोध्या पहुँचे थे, इसलिए स्टेशन के बाहर खुले मे सो गये। प्रातः उठते ही किसी आवश्यक कार्य के लिए कहीं जाना था, पर सबेरा हो आया था उनकी नींद नहीं खुल रहीं थी। लड्डू गोपाल जैसा ही एक सुन्दर बालक आया और उनके तलुओं में गुलगुली मचाते हुए बोला - "बाबा उठो सबेरा हो गया जाना नहीं है क्या ?" भक्तमाली जी हड़बड़ा कर उठे, उस बालक की एक ही झलक देख पाये थे कि वह बालक अदृश्य हो गया।

।।श्री राधे।।

रसखान जी कन्हैया के भक्त

                      रसखान जी कन्हैया के भक्त



एक मुसलमान था जो रोज पान की दुकान पर पान खाने जाता था। एक दिन उसकी नजर वहां लगी हुई कन्हैया की तस्वीर पर पड़ी तो उसने पान वाले से पूछा भाई ये बालक किसका है और इसका क्या नाम है। पान वाला बोला ये श्याम है । खान साहब बोले ये बालक बहुत सुंदर है घुंघराले बाल हैं हाथ में मुरली भी मनोहर लगती है मगर ये जिस जमीन पर खड़ा है वो खुरदरी है इसके पैरों में छाले पड़ जायेंगे, इसको चप्पल क्यों नहीं पहनाते हो। पान वाला बोला तुझे दया आ रही है तो तू ही पहनादे। अब ये बात खान भाई के दिल में उतर गई और दूसरे दिन कन्हैया के लिए चप्पल खरीदकर ले आया और बोला लो भाई में चप्पल ले आया बुलाओ बालक को। पान वाला बोला कि ये बालक यहां नहीं रहता है ये वृंदावन रहता है वृंदावन ही जाओ। खान साहब ने पूछा की इसका पता तो बताओ कि वृंदावन में कहां रहता है पान वाला बोला इसका नाम श्याम है और वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में रहता है। खान साहब वृंदावन के लिए चल दिए वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर में जैसे ही प्रवेश करने लगा तो मंदिर के पुजारी ने बाहर ही रोक दिया और कहा कि तुम दूसरे समाज के हो इसलिए मंदिर में तुम्हारा प्रवेश करना वर्जित है। खान भाई यह सोचकर कि मेरा श्याम कभी तो घर से बाहर आयेगा मंदिर के गेट पर ही बैठकर इंतजार करने लग गया। उसे इंतजार करते-करते पूरा दिन निकल गया रात भी निकल गई भोर का समय था तो उसके कानों में घुंघरू ओं की आवाज आई उसने खड़ा होकर चारों तरफ देखा कुछ दिखाई नहीं दिया फिर उसने अपने चरणों की तरफ देखा तो श्याम उसके चरणों में बैठा हुआ दिखता है श्याम को देखकर खान भाई की खुशी का ठिकाना नहीं रहा मगर उसे बहुत दुःख हुआ जब कन्हैया के चरणों से खून निकलता हुआ देखा। खान भाई नें कन्हैया को गोद में उठाकर प्यार से उसके चरणों से खून पूंछते हुए पूछा बेटे तेरा क्या नाम है कन्हैया बोला श्याम, खान भाई बोला तुम तो मंदिर से आये हो फिर ये खून क्यों निकल रहे हैं। कन्हैया बोला नहीं मैं मंदिर से नहीं गोकुल से पैदल चलकर आया हूं क्योंकि तुमने मेरी जैसी मूरत दिल में बसाई में उसी मूरत में तुम्हारे पास आया हूं इसलिए मुझे गोकुल से पैदल आना पड़ा है और पैरों में कांटे लग गये है। खान भाई भगवान को पहचान गया और वादा किया कि हे कन्हैया हे मेरे मालिक में तेरा हूं और तेरे गुण गाया करुंगा और तेरे ही पद लिखा करुंगा इस तरह एक मुसलमान खान भाई से रसखान बनकर भगवान का पक्का भक्त बना। 

।।जय श्री राधे कृष्णा।।

शुभ-अशुभ शकुन विचार कौन से होते है

                       श्री तुलसी दास जी के अनुसार शुभ-अशुभ शकुन विचार -



बाबा तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में राम विवाह के समय कुछ शुभसंकेत बतायें है,

हम मनुष्यों के जीवन में नित्य ऐसी बहुत सी घटनाएँ होती है जो हम पर अपना व्यापक प्रभाव डालती है । हम सभी अपने किसी भी अच्छे कार्य के लिए निकलते समय जो शुभ-अशुभ संकेत होते हैं अथवा घटनाएँ घटती है, उससे अपने कार्य की सफलता-असफलता का पूर्व अनुमान लगा सकते है ।

यदि शुभ शकुन है तो बहुत ही अच्छा है लेकिन यदि अशुभ शकुन लगे तो उसका त्वरित आसान उपाय कर सकते है जिससे हमें निर्विवाद रूप से अपने कार्य में सफलता प्राप्त हो सके।

शकुन हमारे भविष्य में होने वाली घटना का संकेत देते हैं। प्राचीन काल से ही इनकी बहुत ही मान्यता रही है । बहुत से लोग इन शकुनों को अंधविश्वास मानते हैं लेकिन अधिकतर लोग इन शकुनों की उपेक्षा बिलकुल भी नहीं करते है । हम सभी मनुष्य कभी-कभी किसी ना किसी रूप में इन शकुनों को अवश्य ही मानते है।

शकुनों का इतिहास मनुष्य जाति जितने ही प्राचीन है । भारत में ही नहीं अपितु पुरे विश्व भर में ये शकुन प्रचलित हैं।

शकुन का उल्लेख्य हमारे वेदों, पुराणों व बहुत से धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। ज्योतिष शास्त्र में भी शकुनों पर विशेष विचार किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के संहिता विभाग में शुभाशुभ शकुनों का विस्तृत वर्णन मिलता है |


बृहत संहिता में शाकुनाध्याय में लिखा है –

 अन्य जन्मांतर कृतं कर्म पुंसां शुभाशुभं 

 यत्तस्य शकुन: पाकं निवेदयति गच्छ्ताम ||

 अर्थात मनुष्य ने अपने पूर्व जन्म में जो भी शुभाशुभ कर्म किये हैं शकुन उनके शुभाशुभ फल को दर्शाते है | यहाँ पर हम आपको कुछ शुभ – अशुभ शकुन और उनके फल बता रहे है


शुभ शकुन-

1. प्रातः काल जागते ही यदि शंख, घंटा, भक्ति संगीत आदि का स्वर सुनाई दे तो अत्यंत शुभ होता है।आपका पूरा दिन हर्षपूर्ण बीतेगा।

2. यदि जागने पर सबसे पहले दही या दूध से भरे पात्र पर निगाह पड़े तो भी शुभ समझा जाता है।

3. यदि सुबह सुबहघर में कोई भिखारी माँगने आ जाए तो यह समझिये कि आपका फंसा हुआ या उधार दिया हुआ धन आपको शीघ्र ही वापस मिलेगा ।

4. यदि घर से किसी कार्य से बाहर जाते हुए तो आपके सामने सुहागन स्त्री अथवा गाय आ जाए तो कार्य में पूर्ण सफलता मिले का योग बनता है ।

5. किसी कार्य से जाते हुए आपके सामने कोई व्यक्ति गुड़ ले जाता हुआ दिखे तो बहुत अधिक लाभ होता है।

6. यदि रास्ते में कोई प्राणी सुन्दर फूल या हरी घास लेकर जाता मिले या आपको किसी दुकान में यह नज़र आ जाये तो बहुत शुभ होता है ।

7. यदि जाते समय मार्ग में कोई भी स्त्री/पुरुष दूध या पानी से भरा बर्तन लेकर दिख जाये तो यह बहुत ही शुभ शकुन होता है ।

8. यात्रा में जाते समय यदि प्रभु की आरती ,भजन आदि सुनाई दे तो यह बहुत ही शुभ माना जाता है , आपकी यात्रा के सफल होने के पुरे योग है ।

9. यदि मार्ग में हसंता खेलता हुआ बालक और फल फूल बेचने वाला कोई नज़र आ जाये तो आपको निसंदेह लाभ की प्राप्ति होगी ।

10. किसी भी कार्य के लिए जाते समय जब आप कपड़े पहने और आपकी जेब से पैसे गिर जाएँ तो यह धन प्राप्ति का संकेत है। और यदि कपड़े उतारते समय भी ऐसा ही हो तो भी यह शुभ शकुन होता है।

11. यदि आपके शरीर पर चिड़िया बीट कर दे तो यह समझिये की आपकी दरिद्रता दूर होने वाली है। ये बहुत ही शुभ शकुन हैं ।

12. यदि घर से बाहर निकलते ही आप वर्षा से भीग जाएँ तो यह बहुत ही शुभ शकुन है।

13. यदि घर से बाहर किसी भी कार्य के लिए जाते समय आपको राह में साधू,सन्यासी आदि दिखाई पद जाएँ तो यह भी आपकी यात्रा के लिए अति शुभ शकुन होता है ।

14. ब्राह्मण, घोड़ा, हाथी, नेवला , बाज, मोर, दूध, दही, फल, फूल, कमल, भक्ति संगीत, अन्न, जल से भरा कलश, बंधा हुआ एक पशु, मछली, प्रज्वलित अग्नि, छाता, वैश्या, कोई भी शस्त्र, कोई भी रत्न, स्त्री, कन्या, धुले हुए वस्त्र सहित धोबी, घी, मिट्टी, सरसों, गन्ना, शव यात्रा, पालकी, ध्वजा, बकरा, अपना प्रिय मित्र, बच्चे के सहित स्त्री, गाय बछड़ा सहित, सफेद बैल, साधु, कल्पवृक्ष, शहद, शराब, या कूड़े से भरी टोकरी,सामान से लदा वाहन यदि यात्रा के वक्त यह कुछ भी राह में पड़ जाए तो निश्चय ही आपको सफलता प्राप्त होगी।

बाबा तुलसीदासजी ने भी रामचरितमानस में राम विवाह के समय कुछ शुभसंकेत बतायें हैं-

बनइ न बरनत बनी बराता।

होहिं सगुन सुंदर सुभदाता॥

चारा चाषु बाम दिसि लेई।

मनहुँ सकल मंगल कहि देई॥

भावार्थ:-बारात ऐसी बनी है कि उसका वर्णन करते नहीं बनता। सुंदर शुभदायक शकुन हो रहे हैं। नीलकंठ पक्षी बाईं ओर चारा ले रहा है, मानो सम्पूर्ण मंगलों की सूचना दे रहा हो॥।

दाहिन काग सुखेत सुहावा।

नकुल दरसु सब काहूँ पावा॥

सानुकूल बह त्रिबिध बयारी।

सघट सबाल आव बर नारी॥

भावार्थ:-दाहिनी ओर कौआ सुंदर खेत में शोभा पा रहा है। नेवले का दर्शन भी सब किसी ने पाया। तीनों प्रकार की (शीतल, मंद, सुगंधित) हवा अनुकूल दिशा में चल रही है। श्रेष्ठ (सुहागिनी) स्त्रियाँ भरे हुए घड़े और गोद में बालक लिए आ रही हैं॥

लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा।

सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा॥

मृगमाला फिरि दाहिनि आई।

मंगल गन जनु दीन्हि देखाई॥

भावार्थ:-लोमड़ी फिर-फिरकर (बार-बार) दिखाई दे जाती है। गायें सामने खड़ी बछड़ों को दूध पिलाती हैं। हरिनों की टोली (बाईं ओर से) घूमकर दाहिनी ओर को आई, मानो सभी मंगलों का समूह दिखाई दिया॥

छेमकरी कह छेम बिसेषी।

स्यामा बाम सुतरु पर देखी॥

सनमुख आयउ दधि अरु मीना।

कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना॥

भावार्थ:-क्षेमकरी (सफेद सिरवाली चील) विशेष रूप से क्षेम (कल्याण) कह रही है। श्यामा बाईं ओर सुंदर पेड़ पर दिखाई पड़ी। दही, मछली और दो विद्वान ब्राह्मण हाथ में पुस्तक लिए हुए सामने आए॥

।।जय श्री राधे।।


रविवार, 30 अप्रैल 2023

जाग मुसाफिर यह संसार हमेशा के लिए नही है।

    जाग मुसाफिर यह संसार हमेशा के लिए नही है।


मृत्यु कब कैसे आएगी ये किसी को नही पता लेकिन इतना पता जरूर होता है कि मृत्यु आएगी। मानव 24 घण्टे संसार में इस तरह जीवन जीता है जैसे संसार को खरीद लिया है। मानव को पता है कि मृत्यु आएगी लेकिन ये नही पता कब आएगी तब मानव ये जानने का प्रयास क्यों नही करते है कि मानव तन मिला क्यों है जब मानव तन प्राप्त कर कुछ ले जा नही सकते है तो इतना भाग-दौड़ क्यों?

मानव जीवन मिला है तो क्यों मिला है इसका मंजिल कहाँ है? बचपन से लेकर बुढापा तक मानव बस अपने तन को सजाता है धन को कमाता है और इज्जत भी लेकिन वो धन भी क्या वो तन भी क्या वो इज्जत भी क्या अगर मानव तन के उद्देश्य को न जान पाया या नही प्राप्त कर पाया?


जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना कठिन नही है।

              जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना कठिन नही है।


जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना यूं तो कठिन नहीं है, लेकिन लोभ, मोह अहंकार और ईर्ष्या जीव को उसके जीवन की सीधी और सरल राह से भटका रही है। अपनी क्षमता के अनुसार जिसके पास जितना है, उससे वह संतुष्ट नहीं। आज लखपति, कल करोड़पति, फिर अरबपति बनने की चाह में उलझकर इंसान दौड़ रहा है। अनेक लोग ऐसे हैं जिनके पास सब कुछ है।

भरा-पूरा परिवार, कोठी, बंगला, एक से एक बढ़िया कारें, क्या कुछ नहीं है। फिर भी उनमें बहुत से दुखी रहते हैं। बड़ा आदमी बनना, धनवान बनना बुरी बात नहीं, बनना चाहिए। यह हसरत सबकी रहती है। उसके लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होगी तो थकान नहीं होगी। लेकिन दूसरों के सामने खुद को बड़ा दिखाने की चाह के चलते आदमी राह से भटक रहा है और यह भटकाव ही इंसान को थका रहा है।यही परम सत्य है।


 ।।जय श्री राधे।।

Featured Post

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भावार्थ के साथ

                    गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र   भावार्थ के साथ गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में आता है। इसमें एक ...