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मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

वृंदावन में हर जगह राधाजी का नाम ही क्यों उच्चारण होता है?

वृंदावन में हर जगह राधाजी का नाम ही क्यों उच्चारण होता है?


वृंदावन में "राधे-राधे" का उच्चारण हर जगह सुनने का मुख्य कारण धार्मिक और आध्यात्मिक है। यह भगवान कृष्ण और राधारानी की लीलाओं से जुड़े प्रेम, भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। इसके पीछे कई कारण हैं:


1. राधा-कृष्ण की दिव्य प्रेम लीला

वृंदावन को राधा और कृष्ण की दिव्य लीलाओं की भूमि माना जाता है। राधा को श्रीकृष्ण की अनन्य आराधिका और उनकी शक्ति स्वरूपा माना जाता है। इसलिए, "राधे-राधे" का जप भक्तों के लिए उनकी भक्ति को व्यक्त करने का सर्वोत्तम माध्यम है।


2. भक्ति का सर्वोच्च मार्ग

राधा को भक्ति का सर्वोच्च रूप माना जाता है। उनके नाम का उच्चारण भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति और भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का साधन है।


3. सांस्कृतिक परंपरा

वृंदावन की संस्कृति और परंपराओं में "राधे-राधे" का अभिवादन गहरे रूप से समाहित है। यहाँ यह केवल धार्मिक उच्चारण नहीं, बल्कि सामाजिक संवाद का हिस्सा भी है। लोग इसे नमस्कार, स्वागत और शुभकामनाओं के रूप में उपयोग करते हैं।


4. आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव

ऐसा माना जाता है कि राधा नाम का उच्चारण करने से सकारात्मक ऊर्जा और शांति का अनुभव होता है। वृंदावन की भूमि पर "राधे-राधे" का जप वातावरण को आध्यात्मिक बनाता है।


5. गुरुजनों और संतों की परंपरा

वृंदावन में संतों और भक्तों ने "राधे-राधे" जप को प्रमुखता दी है। इसे भगवान कृष्ण की भक्ति में सबसे सरल और प्रभावी साधना माना गया है।

6. वृंदावन का विशेष महत्व

वृंदावन को राधारानी का निवास स्थान और उनकी कृपा भूमि माना जाता है। यहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को "राधे-राधे" कहने से एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव होता है।

निष्कर्ष:

"राधे-राधे" सिर्फ एक नाम नहीं है, बल्कि यह वृंदावन के भक्तिपूर्ण वातावरण की आत्मा है। यह कृष्ण-भक्ति का सार है और इसे बोलने से व्यक्ति भगवान की ओर एक कदम और बढ़ता है।

।।जय श्री राधे।।


गोवर्धन परिक्रमा करने से क्या होता है?/Govardhan parikrama Se Kya hota Hai?

   गोवर्धन परिक्रमा करने से क्या होता है?


संसार के सुखों से मन को हटाने से परमात्मा सुख अपने आप मिलने लग जाता है। श्री कृष्ण ने गोवर्धन के रूप में प्रकट होकर अपने को सबके लिए सुलभ  कर दिया। गोवर्धन को समझने से श्री कृष्ण तत्व समझ में आ जाता है। बड़े  भारी और अति हल्के प्रभु हैं।सब गुरुओं के गुरु गोवर्धन नाथ है। इसी से गुरु पूर्णिमा को अपार जन, देव, दानव,मानव आकर दर्शन और प्रदक्षिणा करता है।

गोवर्धन परिक्रमा का हिन्दू धर्म में विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे करने से व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ और अनुभव हो सकते हैं:

1. आध्यात्मिक शांति और पुण्य

गोवर्धन परिक्रमा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव होता है। यह भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रतीक है, जिससे व्यक्ति को पुण्य फल प्राप्त होता है।

2. कर्मों का शुद्धिकरण

ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा करने से व्यक्ति के पाप कर्मों का नाश होता है और उसे मोक्ष की ओर बढ़ने का मार्ग प्राप्त होता है।

3. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य

गोवर्धन की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है। इसे करने से शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ मानसिक शांति भी मिलती है।

4. भगवान कृष्ण की कृपा

गोवर्धन पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है। परिक्रमा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है और भक्त के जीवन में समृद्धि और सुख-शांति आती है।

5. सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव

परिक्रमा मार्ग में कई धार्मिक स्थल और प्राकृतिक सौंदर्य मौजूद हैं, जो भक्त को सकारात्मक ऊर्जा और आत्मिक संतोष का अनुभव कराते हैं।

6. सामूहिकता और समर्पण का भाव

यह एक सामूहिक धार्मिक क्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने परिवार और समाज के साथ भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है।

गोवर्धन परिक्रमा कार्तिक मास में विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। यह परिक्रमा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण है।

।।जय श्री राधे।।


गुरुवार, 26 सितंबर 2024

प्रवचन 3


               भाई जी के प्रवचन

भगवान की कृपा पर विश्वास है और उनके न्याय पर विश्वास है, दुनिया की कोई भी स्थिति नहीं बता सकती।

बुधवार, 25 सितंबर 2024

प्रवचन 2

             


              भाई जी के श्री मुख से 


स्नेह, प्रीति और तज्जनित त्याग जब भी भोगों के प्रतिपादन होता है, तब उसका नाम आशक्ति होता है और भगवान के प्रतिपादन होता है तो उसका नाम भक्ति होता है।


मंगलवार, 24 सितंबर 2024

भाई जी के प्रवचन

 भाई जी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के अंतिम प्रवचन मैं आपके साथ प्रतिदिन साझा करता हूं, अगर हम अपने जीवन में आग्रह करें तो निश्चित रूप से हमारे जीवन में अमूल्य परिवर्तन हो जाएगा।



                              श्री राधे 

भिक्षु भगवान में सच्चा विश्वास हो जाएगा, उसी के साथ उनका विवाह दुर्बलता दूर हो जाएगा, तुम्हारा भय भाग जाएगा और विपरीत विचारधारा वाले मन के आदर्श हो जाएंगे।


सोमवार, 2 सितंबर 2024

राम नाम की महिमा

                         राम नाम की महिमा 


‘रा=राक्षसानां मरणं यस्मात्। ’ ‘र’ का अर्थ है राक्षसगण ‘म’ का अर्थ है मकार का मरण। काम, क्रोध, मान, मद् आदि राक्षस जिससे मरते हैं वह है राम नाम। श्री कबीर के शिष्य श्री पद्मनाभ ने श्री राम नाम से कुष्ठी को निरोग किया। कबीर ने कहा कि गुरुदेव कृपा से नाम का इतना ही महत्व नहीं है, यह बंधन तो नाम के आभास से ही कट जाता है। रा का उच्चारण करने से पाप बाहर निकल जाते हैं। फिर मा का उच्चारण करने पर कपाट बंद हो जाता है। फिर मुख के बंद होने पर पाप प्रवेश नहीं कर पाते हैं अतः हरे राम महामंत्र विधि, अविधि जैसे भी जपा जाए कलयुग में विशेष फलप्रद है।

जैसे अनजाने में स्पर्श किया गया अग्नि भी जला देता है ऐसे ही हरि वह नाम है जो सभी के पाप तापों को करते हैं। 

एक व्यक्ति वृंदावनजा रहा था दूसरे ने पैसे देकर कहां मेरे लिए एक तुलसी की माला लेते आना। अभी माला आई नहीं नाम -जाप हुआ नहीं ,परंतु केवल नाम जप करने का विचार मात्र किया था इतने से ही यमराज ने कहा अरे चित्रगुप्त ! माला मंगाने वाले के खाते को खत्म कर दो। महाराज उसे तो बहुत कर्मों के फल भोगने हैं। यमराज ने कहा नहीं–नहीं, अब वह नाम जप करने के लिए उत्सुक है। उसके ऊपर कृपा हो गई है उसे जीव के कर्म बंधन समाप्त हो जाए यही नाम का आभास है।

।।जय श्री राधे।।


भगवान की प्राप्ति का उपाय

                  भगवान की प्राप्ति का उपाय





‘रामो विग्रहवान धर्मः।’श्री राम धर्म की मूर्ति हैं। 

‘श्री राम जय राम जय जय राम’ यह भगवन्न नाम हैं और वैदिक मंत्र भी है। कम से कम 22 बार जप करने वाला धन्य है। राम नाम से बढ़कर कोई नाम नहीं है।इसका जप करने वाला भक्ति मुक्ति आदि अभीष्ट पदार्थ पाता है। भगवत्त प्राप्ति का उपाय क्या है यह जीव नही जानता, भगवान अपने आप ही बताते हैं।सदा जप, तप ,अनुष्ठान में निमग्न रहकर विश्व कल्याण की मांग करनी चाहिए।

मन में नाम लेने से मुक्ति प्राप्त होती है और वाणी द्वारा उच्च स्वर से कीर्तन करने वाले को भक्ति प्राप्त होती है। उच्चस्वर से

किया गया कीर्तन अपने तथा दूसरों के भी कानों को पवित्र कर देता है। अतः भक्तजन गौरांग प्रभु आदि ने उच्च स्वर से कीर्तन करने को श्रेष्ठ बताया है।

इसलिए ऊंचे स्वर से कीर्तन करने से भगवत प्राप्ति होती है।

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