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शनिवार, 7 जनवरी 2023

।। राम जी का सहारा ||

                          ।। राम जी का सहारा |



   कथा उस समय की है, जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए पूरी वानर सेना सेतु निर्माण के कार्य में लगी थी| सभी वानर दूर-दूर से शिलाएँ लेकर आ रहे थे। नल-नील को मिला श्राप वरदान साबित हो रहा था। 

वे प्रभु श्रीराम का नाम ले-लेकर सभी शिलाओं को सागर में ड़ाल रहे थे। प्रभु श्रीराम के नाम के प्रताप से ड़ाली गयी सभी शिलायें सागर जल में डूबने की ज़गह तैर रही थीं। शीध्रता से सेतु निर्माण का कार्य चल रहा था। 

लक्ष्मण, विभीषण तथा सुग्रीव जहा सेतु निर्माण कार्य का निरीक्षण कर रहे थे, वही श्री रामचन्द्र जी भी समीप ही एक शिला पर बैठे इस कार्य को देख रहे थे। उनके मन में विचार आया कि सभी सेतु निर्माण में व्यस्त हैं किन्तु मैं यहाँ खाली बैठ कर देखता रहूँ, यह तो उचित नहीं है।

 वे चुपके से उठे और सबसे नजरें बचा कर एक शिला को उठाकर उन्होंने भी सागर जल में छोड़ दिया। 

किन्तु यह क्या,

जहाँ सभी शिलायें सागर जल में तैर रही थी, प्रभु श्रीराम द्वारा छोड़ी गई शिला तुरन्त जल में डूब गई। 

यह देख श्रीरामजी को बहुत आत्मग्लानि हुई और उन्होने इस क्रिया को दोहराया| दूसरी शिला भी राम जी के हाथ से छूटते ही सागर की असीम गहराई मे समा गयी|

वे बिलकुल भी नही समझ पाये कि उनकी छोड़ी शिला क्यों जल में डूब गयी। वे चुपचाप आकर वापस एक प्रस्तर शिला पर बैठ गये। शिला के डूब जाने से वे बहुत उदास थे। हनुमानजी उन्हें उदास देख उनके पास आये तथा उदासी का कारण पूछा। तब श्रीरामजी ने पूरी बात उन्हें बताई।

  श्रीरामजी की पूरी व्यथा सुनने के बाद हनुमानजी ने कहा- "प्रभु !  जिन्हें श्रीराम नाम का सहारा मिल जाये, वे इस सागर में तो क्या भवसागर में भी तैर जायेंगे, 

किन्तु इसके उलट, जिसे श्रीराम ही छोड़ दें, वे भवसागर तो क्या इस सागर में भी एक-पल नहीं तैर सकते।"

हनुमानजी के मुख से ये वचन सुन, श्रीरामजी की आँखों में प्रेम के आँसू छलक आये| उन्होंने भावविभोर हो हनुमानजी को ह्रदय से लगा लिया।                               

 !! जय सिया राम, जय जय सिया राम!!

भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने के लिए माता कैकयी का त्याग

 भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने के लिए  माता कैकयी का त्याग 


एक रात जब माता कैकेयी सोती हैं, तो उनके स्वप्न में विप्र, धेनु, सुर, संत सब एक साथ हाथ जोड़ के आते हैं और उनसे कहते हैं कि 'हे माता कैकेयी, हम सब आपकी शरण में हैं, महाराजा दशरथ की बुद्धि जड़ हो गयी है तभी वो राम को राजा का पद दे रहे हैं, अगर प्रभु राजगद्दी पर बैठ गए तब उनके अवतार लेने का मूल कारण ही नष्ट हो जायेगा। 

माता, सम्पूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ आपमें ही ये साहस है की आप राम से जुड़े अपयश का विष पी सकती हैं, कृपया प्रभु को जंगल भेज के सुलभ करिये, युगों-युगों से कई लोग उद्धार होने की प्रतीक्षा में हैं, त्रिलोक स्वामी का उद्देश्य भूलोक का राजा बनना नहीं है अगर वनवास ना हुआ तो राम इस लोक के 'प्रभु' ना हो पाएंगे माता' ये कहते-कहते देवता घुटनों पर आ गए, माता कैकेयी के आँखों से आँसू बहने लगे। 

माता बोलीं-'आने वाले युगों में लोग कहेंगे कि मैंने भरत के लिए राम को छोड़ दिया लेकिन असल में मैं राम के लिए आज भरत का त्याग कर रही हूँ, मुझे मालूम है, इस निर्णय के बाद भरत मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा।' 

रामचरित मानस में भी कई जगहों पर इसका संकेत मिलता है। जब गुरु वशिष्ठ दुःखी भरत से कहते हैं, 

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ। 

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।। 

हे भरत सुनो भविष्य बड़ा बलवान् है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के ही हाथ में है, बीच में केवल माध्यम आते हैं। 

प्रभु इस लीला को जानते थे इसीलिए चित्रकूट में तीनों माताओं के आने पर प्रभु सबसे पहले माता कैकेयी के पास ही पहुँच कर प्रणाम करते हैं। क्यूंकि उनको पैदा करने वाली भले ही कौशल्या जी थीं लेकिन उनको 'मर्यादा पुरुषोत्तम' बनाने वाली माता कैकेयी ही थीं।

माता सीता को मुँह -दिखाई में कनक भवन देने वाली, सनातन धर्म को अपने त्याग से सिंचित करने वाली, सम्पूर्ण रामायण में आदर्श से ज्यादा वस्तुनिष्ठ रहने वाली श्रेष्ठ विदुषी, काल-खंड विजयी और युगों-युगों से अपयश का विष पी रही माता कैकेयी को  शत् शत् प्रणाम है।।

।। जय श्री राम, जय जय श्री राम ।।

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

पैर और चरण में अंतर

                   पैर और चरण में अंतर :-

रावण भगवान का शिव का बहुत बड़ा भक्त था,

हम तो यदि भगवान शिव के ऊपर एक लोटा दूध भी चढाते है,तो वो भी पानी मिला होता है।

रावण ने तो १० शीश चढा दिए,हम तो ठीक-ठीक प्रकार वेद का पाठ भी नहीं कर सकते,एक वेद को पढ़ने के लिए १२ वर्ष लगते है,यदि उम्र भी बीत जाए तब भी हम चारो वेद को ठीक प्रकार से नहीं पढ़ सकते,रावण चारो वेदों का ज्ञाता था और वेदों पर भाष्य रावण ने लिखा.

नवग्रह से लेकर समस्त देवी-देवता उसके यहाँ नौकरी करते थे,काल रावण के वश में था.ब्रह्मा जी स्वयं उसके आँगन में आकर पाठ करते थे,स्वर्ग लोक से लेकर कैलाश तक रावण की पहुँच थी.इतना सब कुछ होने पर भी रावण की कोई पूजा नहीं करता.कोई अपने बेटे का नाम रावण नहीं रखता.क्यों ?

उसका एक ही कारण था.सब कुछ होने पर भी रावण "आचरणहीन" था.जिसके जीवन में आचरण की शुद्धता नहीं वह चाहे कितना भी ऊँचा क्यों न हो,उसका जीवन शून्य है,जीवन में आचरण की शुद्धता बहुत जरुरी है.चरण उनके पूजनीय हो सकते है जिसका आचरण अच्छा हो.

पैर और चरण में बहुत बड़ा अंतर है. हम सभी के पैर होते है,और संतो के, महात्माओ के, माता-पिता के, भगवान के चरण होते है.आचरण अर्थात लोग चेहरा बाद में देखे पहले चरणों की ही पूजा करे.

जब व्यक्ति के एक-एक चरण से चरित्र टपके,उसकी अच्छाई, उसका शील,सिर से लेकर चरणों तक में आकर बैठ जाए तब उसके पैर नहीं रह जाते, चरण हो जाते है. उसे ही आ+चरण कहते है.भगवान श्रीराम का आचरण अच्छा था,उनमे तीन गुण प्रमुख थे, उन्होंने अपने "रूप से" जनकपुरी को, "बल से" लंका को,और "शील से" , अयोध्या को जीता.

"प्रातकाल उठि कै रघुनाथा,मातु पिता गुरु नावहिं माथा

आयुस मागि करहिं पुर काजा,देखि चरित हरषइ मन राजा"

अर्थात - श्री रघुनाथ जी प्रात:काल उठकर माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते है और आज्ञा लेकर नगर का काम करते है उनके चरित्र देख देखकर राजा मन में बड़े हर्षित होते है.

रघुनाथ जी बडो से पूछकर कार्य करते थे,जवान के पास जोश हो सकता है पर होश तो बडो के पास ही होता है इसलिए अपने जोश और बुजुर्गो के होश लेकर जो जीवन में आगे बढ़ता है उस व्यक्ति को किसी भी कार्य में असफलता नहीं मिलती.

"कोसलपुर बासी नर नारि ब्रद्ध अरू बाल

प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहूँ राम कृपाल"

अर्थात - कोसलपुर के रहने वाले स्त्री पुरुष बूढ़े और बालक सभी को कृपालु श्री रामचंद्र जी प्राणों से भी बढकर प्रिय लगते है. बच्चो से लेकर वृद्धो तक को क्यों प्रिय थे? क्योकि उनका शील स्वभाव है, आचरण शुद्ध है. इसलिए अपने आचरण को अच्छा बनाये,तभी हम सबके प्रिय होगे.

।।जय श्री राधे।।

रविवार, 4 दिसंबर 2022

क्रोध और अहंकार मिटाता है। "प्रणाम"

                     क्रोध और अहंकार मिटाता है। "प्रणाम" 

प्रणाम में बड़ी ताकत होती है।पहले लोग सुबह सुबह उठ कर घर के बड़े-बुजुर्गों को झुक कर प्रणाम करते थे, उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करते थे, विशेषकर महिलाएं। लेकिन आजकल यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है और हम बुजुर्गों के आशीर्वादों से वंचित।

वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याएं हैं उनका मूल कारण यही है कि हम घर के बड़े-बुजुर्गों का आदर नहीं करते और जाने-अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है।यदि घर के बच्चे और बहुएं प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर-परिवार में कभी कोई क्लेश ही न हो। दरअसल बड़ों के दिए हुए आशीर्वाद हमारे लिए कवच की तरह काम करते हैं और उनको दुनिया का कोई भी अस्त्र-शस्त्र नहीं भेद सकता।

एक दिन महाभारत युद्ध के दौरान दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर भीष्म पितामह घोषणा करते हैं कि वे कल पाण्डवों का वध कर देंगे।उनकी इस घोषणा का पता चलते ही पाण्डवों के शिविर में खलबली और बेचैनी बढ़ गई क्योंकि भीष्म पितामह की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था, इसीलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए।

तब श्रीकृष्ण जी ने द्रौपदी से कहा कि अभी मेरे साथ चलो और श्रीकृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए।शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि तुम अन्दर जाकर भीष्म पितामह को प्रणाम करो।द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम किया तो उन्होंने "अखण्ड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया और पूछा कि "वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहां कैसे आई हो, क्या तुमको श्रीकृष्ण लेकर आये है"?

तब द्रोपदी ने कहा कि "हाँ, पितामह और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं"।तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया।भीष्म ने कहा "मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं"।

शिविर से वापस लौटते समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि "तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है"।अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन-दुःशासन आदि की पत्नियां भी पाण्डवों को प्रणाम करती होतीं, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती।

तात्पर्य है कि सभी इस "प्रणाम" संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो, घर ही स्वर्ग बन जाय क्योंकि "प्रणाम" प्रेम है, अनुशासन है, शीतलता है।"प्रणाम" आदर सिखाता है, इससे सुविचार आते हैं, यह झुकना सिखाता है, क्रोध और अहंकार मिटाता है। "प्रणाम" हमारे आसुंओं को धो देता है और "प्रणाम" ही हमारी संस्कृति है।

शनिवार, 3 दिसंबर 2022

हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र...

              हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र...

कई लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा पढ़ने से शुरू होती है। पर क्या आप जानते हैं कि श्री *हनुमान चालीसा* में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है।

माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना मानस से पूर्व किया था। हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की।

अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं।

हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई।

हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या-क्या बदलाव ला सकते हैं….

शुरुआत गुरु से…

हनुमान चालीसा की शुरुआत गुरु से हुई है…


श्रीगुरु चरन सरोज रज,

निज मनु मुकुरु सुधारि।

अर्थ - अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं।

गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई आगे नहीं बढ़ा सकता। गुरु ही आपको सही रास्ता दिखा सकते हैं।

इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि गुरु के चरणों की धूल से मन के दर्पण को साफ करता हूं। आज के दौर में गुरु हमारा मेंटोर भी हो सकता है, बॉस भी। माता-पिता को पहला गुरु ही कहा गया है।

समझने वाली बात ये है कि गुरु यानी अपने से बड़ों का सम्मान करना जरूरी है। अगर तरक्की की राह पर आगे बढ़ना है तो विनम्रता के साथ बड़ों का सम्मान करें।

ड्रेसअप का रखें ख्याल…

चालीसा की चौपाई है

कंचन बरन बिराज सुबेसा,

कानन कुंडल कुंचित केसा।

अर्थ - आपके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है, सुवेष यानी अच्छे वस्त्र पहने हैं, कानों में कुंडल हैं और बाल संवरे हुए हैं।

आज के दौर में आपकी तरक्की इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप रहते और दिखते कैसे हैं। फर्स्ट इंप्रेशन अच्छा होना चाहिए।

अगर आप बहुत गुणवान भी हैं लेकिन अच्छे से नहीं रहते हैं तो ये बात आपके करियर को प्रभावित कर सकती है। इसलिए, रहन-सहन और ड्रेसअप हमेशा अच्छा रखें।

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सिर्फ डिग्री काम नहीं आती

बिद्यावान गुनी अति चातुर,

राम काज करिबे को आतुर।

अर्थ- आप विद्यावान हैं, गुणों की खान हैं, चतुर भी हैं। राम के काम करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं।

आज के दौर में एक अच्छी डिग्री होना बहुत जरूरी है। लेकिन चालीसा कहती है सिर्फ डिग्री होने से आप सफल नहीं होंगे। विद्या हासिल करने के साथ आपको अपने गुणों को भी बढ़ाना पड़ेगा, बुद्धि में चतुराई भी लानी होगी। हनुमान में तीनों गुण हैं, वे सूर्य के शिष्य हैं, गुणी भी हैं और चतुर भी।

अच्छा लिसनर बनें

प्रभु चरित सुनिबे को रसिया,

राम लखन सीता मन बसिया।

अर्थ-आप राम चरित यानी राम की कथा सुनने में रसिक है, राम, लक्ष्मण और सीता तीनों ही आपके मन में वास करते हैं।

जो आपकी प्रायोरिटी है, जो आपका काम है, उसे लेकर सिर्फ बोलने में नहीं, सुनने में भी आपको रस आना चाहिए।

अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। अगर आपके पास सुनने की कला नहीं है तो आप कभी अच्छे लीडर नहीं बन सकते।

कहां, कैसे व्यवहार करना है ये ज्ञान जरूरी है

सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा।

अर्थ - आपने अशोक वाटिका में सीता को अपने छोटे रुप में दर्शन दिए। और लंका जलाते समय आपने बड़ा स्वरुप धारण किया।

कब, कहां, किस परिस्थिति में खुद का व्यवहार कैसा रखना है, ये कला हनुमानजी से सीखी जा सकती है।

सीता से जब अशोक वाटिका में मिले तो उनके सामने छोटे वानर के आकार में मिले, वहीं जब लंका जलाई तो पर्वताकार रुप धर लिया।

अक्सर लोग ये ही तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कब किसके सामने कैसा दिखना है।

अच्छे सलाहकार बनें

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेश्वर भए सब जग जाना।

अर्थ- विभीषण ने आपकी सलाह मानी, वे लंका के राजा बने ये सारी दुनिया जानती है।

हनुमान सीता की खोज में लंका गए तो वहां विभीषण से मिले। विभीषण को राम भक्त के रुप में देख कर उन्हें राम से मिलने की सलाह दे दी।

विभीषण ने भी उस सलाह को माना और रावण के मरने के बाद वे राम द्वारा लंका के राजा बनाए गए। किसको, कहां, क्या सलाह देनी चाहिए, इसकी समझ बहुत आवश्यक है। सही समय पर सही इंसान को दी गई सलाह सिर्फ उसका ही फायदा नहीं करती, आपको भी कहीं ना कहीं फायदा पहुंचाती है।

आत्मविश्वास की कमी ना हो

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।

अर्थ - राम नाम की अंगुठी अपने मुख में रखकर आपने समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई अचरज नहीं है।

अगर आपमें खुद पर और अपने परमात्मा पर पूरा भरोसा है तो आप कोई भी मुश्किल से मुश्किल टॉस्क को आसानी से पूरा कर सकते हैं।

आज के युवाओं में एक कमी ये भी है कि उनका भरोसा बहुत टूट जाता है। आत्मविश्वास की कमी भी बहुत है। प्रतिस्पर्धा के दौर में आत्मविश्वास की कमी होना खतरनाक है। अपनेआप पर पूरा भरोसा रखे।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

मनुष्य के कर्म का साक्षी कौन कौन है ?

              मनुष्य के कर्म का साक्षी कौन कौन है ? 


मृत्युलोक में प्राणी अकेला ही पैदा होता है, अकेला ही मरता है। प्राणी का धन-वैभव घर में ही छूट जाता है। मित्र और स्वजन श्मशान में छूट जाते हैं। शरीर को अग्नि ले लेती है। पाप-पुण्य ही उस जीव के साथ जाते हैं। अकेले ही वह पाप-पुण्य का भोग करता है परन्तु धर्म ही उसका अनुसरण करता है।

‘शरीर और गुण (पुण्यकर्म) इन दोनों में बहुत अंतर है, क्योंकि शरीर तो थोड़े ही दिनों तक रहता है किन्तु गुण प्रलयकाल तक बने रहते हैं। जिसके गुण और धर्म जीवित हैं, वह वास्तव में जी रहा है।’

पाप और पुण्य

वेदों में जिन कर्मों का विधान है, वे धर्म (पुण्य) हैं और उनके विपरीत कर्म अधर्म (पाप) कहलाते हैं। मनुष्य एक दिन या एक क्षण में ऐसे पुण्य या पाप कर सकता है कि उसका भोग सहस्त्रों वर्षों में भी पूर्ण न हो।

मनुष्य के कर्म के चौदह साक्षी

सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, इन्द्रियां, चन्द्रमा, संध्या, रात, दिन, दिशाएं, जल, पृथ्वी, काल और धर्म–ये सब मनुष्य के कर्मों के साक्षी हैं।

सूर्य रात्रि में नहीं रहता और चन्द्रमा दिन में नहीं रहता, जलती हुई अग्नि भी हरसमय नहीं रहती; किन्तु रात-दिन और संध्या में से कोई एक तो हर समय रहता ही है। दिशाएं, आकाश, वायु, पृथ्वी, जल सदैव रहते हैं, मनुष्य इन्हें छोड़कर कहीं भाग नहीं सकता, इनसे छुप नहीं सकता। मनुष्य की इन्द्रियां, काल और धर्म भी सदैव उसके साथ रहते हैं। कोई भी कर्म किसी-न किसी इन्द्रिय द्वारा किसी-न-किसी समय (काल) होगा ही। उस कर्म का प्रभाव मनुष्य के ग्रह-नक्षत्रों व पंचमहाभूतों पर पड़ता है। जब मनुष्य कोई गलत कार्य करता है तो धर्मदेव उस गलत कर्म की सूचना देते हैं और उसका दण्ड मनुष्य को अवश्य मिलता है।

कर्म से ही देह मिलता है

पृथ्वी पर जो मनुष्य-देह है उसमें एक सीमा तक ही सुख या दु:ख भोगने की क्षमता है। जो पुण्य या पाप पृथ्वी पर किसी मनुष्य-देह के द्वारा भोगने संभव नही, उनका फल जीव स्वर्ग या नरक में भोगता है। पाप या पुण्य जब इतने रह जाते हैं कि उनका भोग पृथ्वी पर संभव हो, तब वह जीव पृथ्वी पर किसी देह में जन्म लेता है।

कर्मों के अवशेष भाग को भोगने के लिए मनुष्य मृत्युलोक में स्थावर-जंगम अर्थात् वृक्ष, गुल्म (झाड़ी), लता, बेल, पर्वत और तृण–आदि योनि प्राप्त करता है। ये सब दु:खों के भोग की योनियां हैं। वृक्षयोनि में दीर्घकाल तक सर्दी-गर्मी सहना, काटे जाने व अग्नि में जलाये जाने सम्बधी दु:ख भोगना पड़ता है। यदि जीव कीटयोनि प्राप्त करता है तो अपने से बलवान प्राणियों द्वारा दी गयी, पीड़ा सहता है, शीत-वायु और भूख के क्लेश सहते हुए मल-मूत्र में विचरण करना आदि दारुण दु:ख उठाता है। इसी तरह से पशुयोनि में आने पर अपने से बलवान पशु द्वारा दी गयी पीड़ा का कष्ट पाता रहता है। पक्षी की योनि में आने पर कभी वायु पीकर रहना तो कभी अपवित्र वस्तुओं को खाने का कष्ट उठाना पड़ता है। यदि भार ढोने वाले पशुओं की योनि में जीव आता है तो रस्सी से बांधे जाने, डण्डों से पीटे जाने व हल जोतने का दारुण दु:ख जीव को सहना पड़ता है।

विभिन्न पापयोनियां

इस संसार-चक्र में मनुष्य घड़ी के पेण्डुलम की भांति विभिन्न पापयोनियों में जन्म लेता और मरता है–

–माता-पिता को कष्ट पहुंचाने वाले को कछुवे की योनि में जाना पड़ता है।

–मित्र का अपमान करने वाला गधे की योनि में जन्म लेता है।

–छल-कपट कर जीवनयापन करने वाला बंदर की योनि में जाता है।

–अपने पास रखी किसी की धरोहर को हड़पने वाला मनुष्य कीड़े की योनि में जन्म लेता है।

–विश्वासघात करने से मनुष्य को मछली की योनि मिलती है।

–विवाह, यज्ञ आदि शुभ कार्यों में विघ्न डालने वाले को कृमियोनि मिलती है।

–देवता, पितर व ब्राह्मणों को भोजन न कराकर स्वयं खा लेता है वह काकयोनि (कौए) में जाता है।

दुर्लभ है मनुष्य योनि

इस प्रकार बहुत-सी योनियों में भ्रमण करके जीव किसी महान पुण्य के कारण मनुष्य योनि प्राप्त करता है। मनुष्य योनि प्राप्त करके भी यदि दरिद्र, रोगी, काना या अपाहिज जीवन मिले तो बहुत अपमान व कष्ट भोगना पड़ता है।

इसलिए दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर संसार-बंधन से मुक्त होने के लिए प्राणी को भगवान विष्णु की सेवा-आराधना करनी चाहिए क्योंकि वे ही कर्मफल के दाता व संसार-बंधन से छुड़ाने वाले मोक्षदाता हैं। भगवान विष्णु के जो-जो स्वरूप हैं, उनकी भक्ति करने से मनुष्य संसार-सागर आसानी से पार कर परमधाम को प्राप्त करता है।

श्री विष्णु ने बताया संसार-सागर से पार होने का उपाय

भगवान विष्णु ने संसार-सागर से पार होने का उपाय भगवान रुद्र को बताते हुए कहा कि ‘विष्णुसहस्त्रनाम’ स्तोत्र से मेरी नित्य स्तुति करने से मनुष्य भवसागर को सहज ही पार कर लेता है।

‘जिनका मन भगवान विष्णु की भक्ति में अनुरक्त है, उनका अहोभाग्य है, अहोभाग्य है; क्योंकि योगियों के लिए भी दुर्लभ मुक्ति उन भक्तों के हाथ में ही रहती है।’ (नारदपुराण)

भक्तों की गति

भक्त अपने आराध्य के लोक में जाते हैं। भगवान के लोक में कुछ भी बनकर रहना सालोक्य-मुक्ति है। भगवान के समान ऐश्वर्य प्राप्त करना सार्ष्टि-मुक्ति है। भगवान के समान रूप पाकर वहां रहना सारुप्य-मुक्ति है। भगवान के आभूषणादि बनकर रहना सामीप्य-मुक्ति कहलाती है। भगवान के श्रीविग्रह में मिल जाना सायुज्य-मुक्ति है।

जिस जीव को भगवान का धाम प्राप्त हो जाता है, वह भगवान की इच्छा से उनके साथ या अलग से संसार में दिव्य जन्म ले सकता है। वह कर्मबन्धन में नहीं बंधा होता है। संसार में भगवत्कार्य समाप्त करके वह पुन: भगवद्धाम चला जाता है।

मुक्त पुरुष

मनुष्य बिना कर्म किए रह नहीं सकता। कर्म करेगा तो पाप-पुण्य दोनों होंगे। लेकिन जो मनुष्य सबमें भगवत्दृष्टि रखकर भगवान की सेवा के लिए, उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए और भगवान की प्रसन्नता के लिए कर्म करता है तो उसके कर्म भी अकर्म बन जाते हैं और कर्म-बंधन में नहीं बांधते हैं। वह संसार में रहते हुए भी नित्यमुक्त है।

तत्त्वज्ञानी पुरुष संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं। उनके प्राण निकलकर कहीं जाते नहीं बल्कि परमात्मा में लीन हो जाते हैं। सती स्त्रियां, युद्ध में मारे गए वीर और उत्तरायण के शुक्ल-मार्ग से जाने वाले योगी मुक्त हो जाते हैं।

गीता में शुक्ल तथा कृष्ण मार्ग कहकर दो गतियों का वर्णन है–

जिनमें वासना शेष है, वे धुएं, रात्रि, कृष्णपक्ष, दक्षिणायन के देवताओं द्वारा ले जाए जाते हैं। ऊर्ध्वलोक में अपने पुण्य भोगकर वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।

जिनमें कोई वासना शेष नहीं है, वे अग्नि, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के देवताओं द्वारा ले जाये जाते हैं। वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेकर नहीं लौटते हैं।

पितृलोक

यह एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है। एक जीव को पृथ्वी पर जिस माता-पिता से जन्म लेना है, जिस भाई-बहिन व पत्नी को पाना है, जिन लोगों के द्वारा उसे सुख-दु:ख मिलना है; वे सब लोग अलग-अलग कर्म करके स्वर्ग या नरक में हैं। जब तक वे सब भी इस जीव के अनुकूल योनि में जन्म लेने की स्थिति में न आ जाएं, इस जीव को प्रतीक्षा करनी पड़ती है। पितृलोक इसलिए एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है।

प्रेतलोक

यह नियम है कि मनुष्य की अंतिम इच्छा या भावना के अनुसार ही उसे गति प्राप्त होती है। जब मनुष्य किसी प्रबल राग-द्वेष, लोभ या मोह के आकर्षण में फंसकर देह त्यागता है तो वह उस राग-द्वेष के बंधन में बंधा आस-पास ही भटकता रहता है। वह मृत पुरुष भायवीय देह पाकर बड़ी यातना भरी योनि प्राप्त करता है। 

इसीलिए कहा जाता है–

अंत मति सो गति।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

11 मुखी हनुमान जी की पूजा से मिलते हैं कई लाभ, जानें किस मूर्ति से कौन सी मनोकामना होती है पूरी।

 11 मुखी हनुमान जी की पूजा से मिलते हैं कई लाभ, जानें किस मूर्ति से कौन सी मनोकामना होती है पूरी।

1. पूर्वमुखी हुनमान जी: पूर्व की ओर मुख वाले बजरंबली को वानर रूप में पूजा जाता है। इस रूप में भगवान को बेहद शक्तिशाली और करोड़ों सूर्य के तेज के समान बताया गया है। शत्रुओं के नाश के बजरंगबली जाने जाते हैं। दुश्मन अगर आप पर हावी हो रहे हैं तो पूर्वमुखी हनुमान की पूजा शुरू कर दें।

2. पश्चिममुखी हनुमान जी: पश्चिम की ओर मुख वाले हनुमानजी को गरूड़ का रूप माना जाता है। इसी रूप को संकटमोचन का स्वरूप माना गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ अमर है उसी के समान बजरंगबली भी अमर हैं। यही कारण है कि कलयुग के जाग्रत देवताओं में बजरंगबली को माना जाता है।

3. उत्तरामुखी हनुमान जी: उत्तर दिशा की ओर मुख वाले हनुमान जी की पूजा शूकर के रूप में होती है। एक बात और वह यह कि उत्तर दिशा यानी ईशान कोण देवताओं की दिशा होती है। यानी शुभ और मंगलकारी। इस दिशा में स्थापित बजरंगबली की पूजा से इंसान की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। इस ओर मुख किए भगवान की पूजा आपको धन-दौलत, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, लंबी आयु के साथ ही रोग मुक्त बनाती है।

4. दक्षिणामुखी हनुमान जी: दक्षिणमुखी हनुमान जी को भगवान नृसिंह का रूप माना जाता है। दक्षिण दिशा यमराज की होती है और इस दिशा में हनुमान जी की पूजा से इंसान के डर, चिंता और कठिनाईयों से मुक्ति मिलती है। दक्षिणमुखी हनुमान जी बुरी शक्तियों से बचाते हैं।

5. ऊर्ध्वमुख: इस ओर मुख किए हनुमान जी को ऊर्ध्वमुख रूप यानी घोड़े का रूप माना गया है। इस स्वरूप की पूजा करने वालों को दुश्मनों और संकटों से मुक्ति मिलती है। इस स्वरूप को भगवान ने ब्रह्माजी के कहने पर धारण कर हयग्रीव दैत्य का संहार किया था।

6. पंचमुखी हनुमान: पंचमुखी हनुमान के पांच रूपों की पूजा की जाती है। इसमें हर मुख अलग-अलग शक्तियों का परिचायक है। रावण ने जब छल से राम लक्ष्मण को बंधक बना लिया था तो हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण कर अहिरावण से उन्हें मुक्त कराया था। पांच दीये एक साथ बुझाने पर ही श्रीराम- लक्षमण मुक्त हो सकते थे इसलिए भगवान ने पंचमुखी रूप धारण किया था। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख में वह विराजे हैं।

7. एकादशी हनुमान: ये रूप भगवान शिव का स्वरूप भी माना जाता है। एकादशी रूप रुद्र यानी शिव का 11वां अवतार है। ग्यारह मुख वाले कालकारमुख के राक्षस का वध करने के लिए भगवान ने एकादश मुख का रुप धारण किया था। चैत्र पूर्णिमा यानी हनुमान जयंती के दिन उस राक्षस का वध किया था। यही कारण है कि भक्तों को एकादशी और पंचमुखी हनुमान जी पूजा सारे ही भगवानों की उपासना समान माना जाता है।

8. वीर हनुमान: हनुमान जी के इस स्वरूप की पूजा भक्त साहस और आत्मविश्वास पाने के लिए करते हें। इस रूप के द्वारा भगवान के बल, साहस, पराक्रम को जाना जाता है अर्थात तो भगवान श्रीराम के काज को संवार सकता है वह अपने भक्तों के काज और कष्ट क्षण में दूर कर देते हैं।

9. भक्त हनुमान: भगवान का यह स्वरूप श्री रामभक्त का है। इनकी पूजा करने से आपको भगवान श्रीराम का भी आर्शीवाद मिलता है। बजरंगबली की पूजा अड़चनों को दूर करने वाली होती है। इस पूजा से भक्तों में एकाग्रता और भक्ति की भावना जागृत होती है।

10. दास हनुमान: बजरंबली का यह स्वरूप श्रीराम के प्रति उनकी अनन्य भक्ति को दिखाता है। इस स्वरूप की पूजा करने वाले भक्तों को धर्म कार्य और रिश्ते-नाते निभाने में निपुणता हासिल होती है। सेवा और समर्पण का भाव भक्त इस स्वरूप के द्वारा ही पाते हैं।

11. सूर्यमुखी हनुमान: यह स्वरूप भगवान सूर्य का माना गया है। सूर्य देव बजरंगबली के गुरु माने गए हैं। इस स्वरूप की पूजा से ज्ञान, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि और उन्नति का रास्ता खुलता है। क्योंकि श्री हनुमान के गुरु सूर्यदेव अपनी इन्हीं शक्तियों के लिए जाने जाते हैं।

ईश्वर का अस्तित्व तुम्हें साकार नजर आ जाएगा।

श्रद्धा से नतमस्तक हो आधार नजर आ जाएगा।।

।।जय जय श्री महावीर हनुमान।।


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