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रविवार, 30 अप्रैल 2023

जाग मुसाफिर यह संसार हमेशा के लिए नही है।

    जाग मुसाफिर यह संसार हमेशा के लिए नही है।


मृत्यु कब कैसे आएगी ये किसी को नही पता लेकिन इतना पता जरूर होता है कि मृत्यु आएगी। मानव 24 घण्टे संसार में इस तरह जीवन जीता है जैसे संसार को खरीद लिया है। मानव को पता है कि मृत्यु आएगी लेकिन ये नही पता कब आएगी तब मानव ये जानने का प्रयास क्यों नही करते है कि मानव तन मिला क्यों है जब मानव तन प्राप्त कर कुछ ले जा नही सकते है तो इतना भाग-दौड़ क्यों?

मानव जीवन मिला है तो क्यों मिला है इसका मंजिल कहाँ है? बचपन से लेकर बुढापा तक मानव बस अपने तन को सजाता है धन को कमाता है और इज्जत भी लेकिन वो धन भी क्या वो तन भी क्या वो इज्जत भी क्या अगर मानव तन के उद्देश्य को न जान पाया या नही प्राप्त कर पाया?


जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना कठिन नही है।

              जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना कठिन नही है।


जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना यूं तो कठिन नहीं है, लेकिन लोभ, मोह अहंकार और ईर्ष्या जीव को उसके जीवन की सीधी और सरल राह से भटका रही है। अपनी क्षमता के अनुसार जिसके पास जितना है, उससे वह संतुष्ट नहीं। आज लखपति, कल करोड़पति, फिर अरबपति बनने की चाह में उलझकर इंसान दौड़ रहा है। अनेक लोग ऐसे हैं जिनके पास सब कुछ है।

भरा-पूरा परिवार, कोठी, बंगला, एक से एक बढ़िया कारें, क्या कुछ नहीं है। फिर भी उनमें बहुत से दुखी रहते हैं। बड़ा आदमी बनना, धनवान बनना बुरी बात नहीं, बनना चाहिए। यह हसरत सबकी रहती है। उसके लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होगी तो थकान नहीं होगी। लेकिन दूसरों के सामने खुद को बड़ा दिखाने की चाह के चलते आदमी राह से भटक रहा है और यह भटकाव ही इंसान को थका रहा है।यही परम सत्य है।


 ।।जय श्री राधे।।

रविवार, 12 मार्च 2023

शिव मानस पूजा हिंदी में भावार्थ

                      शिव मानस पूजा हिंदी में भावार्थ


आदि गुरु  शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनूठी स्तुति है। इस स्तुति में मात्र कल्पना से शिव को सामग्री अर्पित की गई है और पुराण कहते हैं कि साक्षात शिव ने इस पूजा को स्वीकार किया था। 

यह स्तुति भगवान भोलेनाथ की महान उदारता को प्रस्तुत करती है। इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा शिवशंकर को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से समस्त पंचामृत दिव्य सामग्री समर्पित की जाती है। 

हम कल्पना में ही उन्हें रत्नजडित सिहांसन पर आसीन करते हैं, दिव्य वस्त्र, भोजन तथा आभूषण आदि अर्पण करते हैं। हिन्दी अनुवाद सहित शिव मानस पूजा 

 रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।

नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम॥

जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।

दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌॥1 ॥

भावार्थ --- मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूँ कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइये। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूँ। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूँ। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूँ, आप ग्रहण कीजिए। 


सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र घृतं पायसं।

भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्‌॥

शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।

ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥2 ॥

भावार्थ --- मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें। 

छत्रं चामर योर्युगं व्यंजनकं चादर्शकं निर्मलं।

वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥

साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।

संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥3 ॥

भावार्थ--- हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रहा हूं। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपकी प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूं। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें। 

 आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।

पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥

संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।

यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्‌॥4 ॥

भावार्थ --- हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूँ, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूँ, वह आपकी आराधना ही है। 

कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्‌।

विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥5 ॥

भावार्थ--- हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो। 

इस अत्यंत सुंदर भावनात्मक स्तुति को हम बिना किसी साधन और सुविधा के कर सकते हैं। मानसिक पूजा शास्त्रों में श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है। 

इस शिव मानस पूजा को आप अपनी सुविधानुसार कहीं भी और कभी भी कर सकते हैं। बस तन और मन की शुद्धता अनिवार्य है। मन से शिव-पार्वती के सुंदर स्वरूप की कल्पना कीजिए और समस्त सामग्री इन मंत्रों से अर्पित कीजिए, भगवान भोलेनाथ की यह पूजा चमत्कारिक रूप से भाग्य चमकाती है।

क्षमा याचिका

हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।जय हो॥

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

एक विवाह की अनोखी शर्त

                          एक विवाह की अनोखी शर्त


एक राजा की लड़की की शादी होनी थी, लड़की की शर्त ये थी कि जो भी 20 तक कि गिनती सुनाएगा उसको राजकुमारी अपना पति चुनेगी!गिनती ऐसी हो जिसमें सारा संसार समा जाए,यदी नहीं सुना सकेगा तो उसको 20 कोड़े खाने पड़ेंगे! और ये शर्त केवल राजाओं के लिए ही है!

अब एक तरफ - राजकुमारी का वरणऔर दूसरी तरफ कोड़े!एक-एक करके राजा महाराजा आए राजा ने दावत भी रखी मिठाई और सब पकवान तैयार कराए गए!पहले सब दावत का मजा ले रहे होते हैं,फिर सभा में राजकुमारी का स्वयंवर शुरू होता है!

-एक से बढ़ कर एक राजा महाराजा आते हैं!सभी गिनती सुनाते हैं जो उन्होंने पढ़ी हुई थी,लेकिन कोई भी वह गिनती नहीं सुना सका जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके!अब जो भी आता कोड़े खा कर चला जाता,कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए उनका कहना था!कि गिनती तो गिनती होती है राजकुमारी पागल हो गई है,ये केवल हम सबको पिटवा कर मजे लूट रही है!

ये सब नजारा देख कर एक हलवाई हंसने लगता है!वह कहता है अरे डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक गिनती नहीं आती!

-ये सब सुनकर सब राजा उसको दण्ड देने के लिए बोलते हैं!राजा उनसे पूछता है कि तुम क्या गिनती जानते हो यदी जानते हो तो सुनाओ!

-हलवाई कहता है, हे राजन यदी मैने गिनती सुनाई तो क्या राजकुमारी मुझसे शादी करेगीं!क्योंकि मैं आपके बराबर नहिं हूं,और ये स्वयंवर भी केवल राजाओं के लिए है!तो गिनती सुनाने से मुझे कोइ फायदा नहीं, और मैं नहीं सुना सका तो सजा भी नहीं मिलनी चाहिए!

-राजकुमारी बोलती है, ठीक है यदी तुम गिनती सुना सके तो मैं तुमसे शादी करूंगी!और यदि नहीं सुना सके तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जायेगा!, सब देख रहे थे कि आज तो हलवाई की मौत तय है!

हलवाई को गिनती बोलने के लिए कहा जाता है,राजा की आज्ञा लेकर हलवाई गिनती शुरू करता है!

🔸--एक भगवान

🔸-दो पक्ष 

🔸--तीन लोक

🔸-चार युग

🔸--पांच पांडव

🔸-छह शास्त्र

🔸--सात वार

🔸-आठ खंड

🔸-नौ ग्रह

🔸दश दिशा

🔸--ग्यारह रुद्र

🔸-बारह महिनें

🔸--तेरह रत्न

🔸-चौदह विद्या

🔸--पन्द्रह तिथि

🔸-सोलह श्राद्ध

🔸--सत्रह वनस्पति

🔸-अठारह पुराण

🔸--उन्नीसवीं 'तुम'

  --और--

🔸बीसवा 'मैं'

-सब हके बक्के रह जाते हैं,राजकुमारी हलवाई से शादी कर लेती है!इस गिनती में संसार के सारी वस्तु मौजूद हैं,यहां शिक्षित से बड़ा तजुर्बा है!

शनिवार, 7 जनवरी 2023

।। राम जी का सहारा ||

                          ।। राम जी का सहारा |



   कथा उस समय की है, जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए पूरी वानर सेना सेतु निर्माण के कार्य में लगी थी| सभी वानर दूर-दूर से शिलाएँ लेकर आ रहे थे। नल-नील को मिला श्राप वरदान साबित हो रहा था। 

वे प्रभु श्रीराम का नाम ले-लेकर सभी शिलाओं को सागर में ड़ाल रहे थे। प्रभु श्रीराम के नाम के प्रताप से ड़ाली गयी सभी शिलायें सागर जल में डूबने की ज़गह तैर रही थीं। शीध्रता से सेतु निर्माण का कार्य चल रहा था। 

लक्ष्मण, विभीषण तथा सुग्रीव जहा सेतु निर्माण कार्य का निरीक्षण कर रहे थे, वही श्री रामचन्द्र जी भी समीप ही एक शिला पर बैठे इस कार्य को देख रहे थे। उनके मन में विचार आया कि सभी सेतु निर्माण में व्यस्त हैं किन्तु मैं यहाँ खाली बैठ कर देखता रहूँ, यह तो उचित नहीं है।

 वे चुपके से उठे और सबसे नजरें बचा कर एक शिला को उठाकर उन्होंने भी सागर जल में छोड़ दिया। 

किन्तु यह क्या,

जहाँ सभी शिलायें सागर जल में तैर रही थी, प्रभु श्रीराम द्वारा छोड़ी गई शिला तुरन्त जल में डूब गई। 

यह देख श्रीरामजी को बहुत आत्मग्लानि हुई और उन्होने इस क्रिया को दोहराया| दूसरी शिला भी राम जी के हाथ से छूटते ही सागर की असीम गहराई मे समा गयी|

वे बिलकुल भी नही समझ पाये कि उनकी छोड़ी शिला क्यों जल में डूब गयी। वे चुपचाप आकर वापस एक प्रस्तर शिला पर बैठ गये। शिला के डूब जाने से वे बहुत उदास थे। हनुमानजी उन्हें उदास देख उनके पास आये तथा उदासी का कारण पूछा। तब श्रीरामजी ने पूरी बात उन्हें बताई।

  श्रीरामजी की पूरी व्यथा सुनने के बाद हनुमानजी ने कहा- "प्रभु !  जिन्हें श्रीराम नाम का सहारा मिल जाये, वे इस सागर में तो क्या भवसागर में भी तैर जायेंगे, 

किन्तु इसके उलट, जिसे श्रीराम ही छोड़ दें, वे भवसागर तो क्या इस सागर में भी एक-पल नहीं तैर सकते।"

हनुमानजी के मुख से ये वचन सुन, श्रीरामजी की आँखों में प्रेम के आँसू छलक आये| उन्होंने भावविभोर हो हनुमानजी को ह्रदय से लगा लिया।                               

 !! जय सिया राम, जय जय सिया राम!!

भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने के लिए माता कैकयी का त्याग

 भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने के लिए  माता कैकयी का त्याग 


एक रात जब माता कैकेयी सोती हैं, तो उनके स्वप्न में विप्र, धेनु, सुर, संत सब एक साथ हाथ जोड़ के आते हैं और उनसे कहते हैं कि 'हे माता कैकेयी, हम सब आपकी शरण में हैं, महाराजा दशरथ की बुद्धि जड़ हो गयी है तभी वो राम को राजा का पद दे रहे हैं, अगर प्रभु राजगद्दी पर बैठ गए तब उनके अवतार लेने का मूल कारण ही नष्ट हो जायेगा। 

माता, सम्पूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ आपमें ही ये साहस है की आप राम से जुड़े अपयश का विष पी सकती हैं, कृपया प्रभु को जंगल भेज के सुलभ करिये, युगों-युगों से कई लोग उद्धार होने की प्रतीक्षा में हैं, त्रिलोक स्वामी का उद्देश्य भूलोक का राजा बनना नहीं है अगर वनवास ना हुआ तो राम इस लोक के 'प्रभु' ना हो पाएंगे माता' ये कहते-कहते देवता घुटनों पर आ गए, माता कैकेयी के आँखों से आँसू बहने लगे। 

माता बोलीं-'आने वाले युगों में लोग कहेंगे कि मैंने भरत के लिए राम को छोड़ दिया लेकिन असल में मैं राम के लिए आज भरत का त्याग कर रही हूँ, मुझे मालूम है, इस निर्णय के बाद भरत मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा।' 

रामचरित मानस में भी कई जगहों पर इसका संकेत मिलता है। जब गुरु वशिष्ठ दुःखी भरत से कहते हैं, 

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ। 

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।। 

हे भरत सुनो भविष्य बड़ा बलवान् है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के ही हाथ में है, बीच में केवल माध्यम आते हैं। 

प्रभु इस लीला को जानते थे इसीलिए चित्रकूट में तीनों माताओं के आने पर प्रभु सबसे पहले माता कैकेयी के पास ही पहुँच कर प्रणाम करते हैं। क्यूंकि उनको पैदा करने वाली भले ही कौशल्या जी थीं लेकिन उनको 'मर्यादा पुरुषोत्तम' बनाने वाली माता कैकेयी ही थीं।

माता सीता को मुँह -दिखाई में कनक भवन देने वाली, सनातन धर्म को अपने त्याग से सिंचित करने वाली, सम्पूर्ण रामायण में आदर्श से ज्यादा वस्तुनिष्ठ रहने वाली श्रेष्ठ विदुषी, काल-खंड विजयी और युगों-युगों से अपयश का विष पी रही माता कैकेयी को  शत् शत् प्रणाम है।।

।। जय श्री राम, जय जय श्री राम ।।

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

पैर और चरण में अंतर

                   पैर और चरण में अंतर :-

रावण भगवान का शिव का बहुत बड़ा भक्त था,

हम तो यदि भगवान शिव के ऊपर एक लोटा दूध भी चढाते है,तो वो भी पानी मिला होता है।

रावण ने तो १० शीश चढा दिए,हम तो ठीक-ठीक प्रकार वेद का पाठ भी नहीं कर सकते,एक वेद को पढ़ने के लिए १२ वर्ष लगते है,यदि उम्र भी बीत जाए तब भी हम चारो वेद को ठीक प्रकार से नहीं पढ़ सकते,रावण चारो वेदों का ज्ञाता था और वेदों पर भाष्य रावण ने लिखा.

नवग्रह से लेकर समस्त देवी-देवता उसके यहाँ नौकरी करते थे,काल रावण के वश में था.ब्रह्मा जी स्वयं उसके आँगन में आकर पाठ करते थे,स्वर्ग लोक से लेकर कैलाश तक रावण की पहुँच थी.इतना सब कुछ होने पर भी रावण की कोई पूजा नहीं करता.कोई अपने बेटे का नाम रावण नहीं रखता.क्यों ?

उसका एक ही कारण था.सब कुछ होने पर भी रावण "आचरणहीन" था.जिसके जीवन में आचरण की शुद्धता नहीं वह चाहे कितना भी ऊँचा क्यों न हो,उसका जीवन शून्य है,जीवन में आचरण की शुद्धता बहुत जरुरी है.चरण उनके पूजनीय हो सकते है जिसका आचरण अच्छा हो.

पैर और चरण में बहुत बड़ा अंतर है. हम सभी के पैर होते है,और संतो के, महात्माओ के, माता-पिता के, भगवान के चरण होते है.आचरण अर्थात लोग चेहरा बाद में देखे पहले चरणों की ही पूजा करे.

जब व्यक्ति के एक-एक चरण से चरित्र टपके,उसकी अच्छाई, उसका शील,सिर से लेकर चरणों तक में आकर बैठ जाए तब उसके पैर नहीं रह जाते, चरण हो जाते है. उसे ही आ+चरण कहते है.भगवान श्रीराम का आचरण अच्छा था,उनमे तीन गुण प्रमुख थे, उन्होंने अपने "रूप से" जनकपुरी को, "बल से" लंका को,और "शील से" , अयोध्या को जीता.

"प्रातकाल उठि कै रघुनाथा,मातु पिता गुरु नावहिं माथा

आयुस मागि करहिं पुर काजा,देखि चरित हरषइ मन राजा"

अर्थात - श्री रघुनाथ जी प्रात:काल उठकर माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते है और आज्ञा लेकर नगर का काम करते है उनके चरित्र देख देखकर राजा मन में बड़े हर्षित होते है.

रघुनाथ जी बडो से पूछकर कार्य करते थे,जवान के पास जोश हो सकता है पर होश तो बडो के पास ही होता है इसलिए अपने जोश और बुजुर्गो के होश लेकर जो जीवन में आगे बढ़ता है उस व्यक्ति को किसी भी कार्य में असफलता नहीं मिलती.

"कोसलपुर बासी नर नारि ब्रद्ध अरू बाल

प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहूँ राम कृपाल"

अर्थात - कोसलपुर के रहने वाले स्त्री पुरुष बूढ़े और बालक सभी को कृपालु श्री रामचंद्र जी प्राणों से भी बढकर प्रिय लगते है. बच्चो से लेकर वृद्धो तक को क्यों प्रिय थे? क्योकि उनका शील स्वभाव है, आचरण शुद्ध है. इसलिए अपने आचरण को अच्छा बनाये,तभी हम सबके प्रिय होगे.

।।जय श्री राधे।।

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