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मंगलवार, 28 मई 2024

पूज्य डोंगरे जी महाराज जी की एक दिव्यांग बालक पर कृपा

पूज्य डोंगरे जी महाराज जी की एक दिव्यांग बालक पर कृपा 

पूज्य डोंगरे जी महाराज भागलपुर मध्यप्रदेश में भागवत कथा कर रहे थे सन् १९७१ में , वहाँ माता रुक्मणी बाई जी की संस्था थी जो गरीब असहाय, विधवा और पीड़ित महिलाओं को आश्रय देकर भजन कीर्तन प्रभु स्मरण में लगाती थी। पूज्य डोंगरे जी महाराज या तो स्वयं बनाकर पाते थे या कभी किसी गरीब वात्सल्यमयी माँ रूपी जन से।  वही जब एक दिवस कथा का विश्राम हुआ तो एक गरीब माँ ने आग्रह किया कि आज इस माँ के हाथ से बनाया हुआ पा लीजिए।  पूज्य डोंगरे जी महाराज किसी भी स्त्री को दृष्टि ऊपर कर के नहीं देखते थे ; हमेशा चरणों में दृष्टि रखते थे और कथा भी नीचे दृष्टि रख कर ही करते थे ।
माता का अधिक आग्रह और वात्सल्य देखकर दया कृपा भाव से पूज्य महाराज जी ने मंच से ही कहा कि अपने बालक के हाथों भेज दो यहाँ । माता का बालक दिव्यांग था । उसकी बाईं टांग  बचपन से ही पोलियो ग्रस्त थी और बालक की उम्र ११-१२ वर्ष थी और इसी लाइलाज रोग और ग़रीबी के कारण ही उसके पति ने उसे छोड़ दिया था और वे पूज्य रुक्मणी बाई जी के आश्रम में ही रह रही थी । माता ने रोते हुए कहा कि महाराज जी इसकी टाँग ख़राब है ; ये घिसट घिसट कर आयेगा तो भोजन प्रशाद गिरा देगा। पूज्य महाराज जी ने बालक को अपनी और आने का संकेत किया और उसको घिसटता देखकर पूज्य महाराज जी को दया आ गई और जैसे पूज्य डोंगरे जी महाराज एक बालकृष्ण का विग्रह सामने रखकर ही कथा करते थे उसकी और देखकर ही तो उस बालक को वही रोक कर कहा कि तेरी माता तेरी सारी सेवा करती है गोद में ले कर । अगर तू मुझे वचन दे कि तू भी अंतिम समय तक ऐसे ही सेवा करेगा तो इस बालकृष्ण के विग्रह की और देखकर शपथ कर। उस बालक ने रोते हुए कहा कि मैं अपनी माँ की हमेशा सेवा करूँगा और और जैसे ही पूज्य महाराज जी ने कहा कि अब खड़ा हो कर ये भोजन प्रशाद देने आ तो तभी उसमें चलने का सामर्थ्य आ गया और रोग हमेशा के लिए दूर हो गया और सुना ये भी जाता है कि बाद में उस आश्रम की उसी बालक ने ईमानदारी से देखभाल  की ।
ये आश्रम वही है जिसके लिये पूज्य राधा बाबा ने माता रुक्मिणी को आश्रम के निर्माण में आर्थिक सहयोग के लिय पूज्य डोंगरे जी महाराज जी की कथा कराने को कहा था और प्रथम दिवस ही दानपेटी में 24 लाख 90 या 91 हज़ार रुपये गुप्त दान के रूप  में प्राप्त हुए थे ।

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जय श्री राधे

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