गोस्वामी तुलसीदासजी ने एक बड़े मजे की बात कही है -
कृपया बहुत ध्यान से पढ़े एवं इन लाइनों का भावार्थ समझने की कोशिश करे-
" रवि पंचक जाके नहीं , ताहि चतुर्थी नाहिं।
तेहि सप्तक घेरे रहे , कबहुँ तृतीया नाहिं।।"
गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज कहते हैं कि जिसको रवि पंचक नहीं है , उसको चतुर्थी नहीं आयेगी। उसको सप्तक घेरकर रखेगा और उसके जीवन में तृतीया नहीं आयेगी। मतलब क्या हुआ ?
रवि -पंचक का अर्थ होता है - रवि से पाँचवाँ यानि गुरुवार ( रवि , सोम , मंगल , बुद्ध , गुरु ) अर्थात् जिनको गुरु नहीं है , तो सन्त सद्गुरु के अभाव में उसको चतुर्थी नहीं होगी।चतुर्थी यानी बुध ( रवि , सोम , मंगल, बुध ) अर्थात् सुबुद्धि नहीं आयेगी। सुबुद्धि नहीं होने के कारण वह सन्मार्ग पर चल नहीं सकता है। सन्मार्ग पर नहीं चलनेवाले का परिणाम क्या होगा ? ' तेहि सप्तक घेरे रहे ' सप्तक क्या होता है ? शनि ( रवि , सोम मंगल , बुध , बृहस्पति , शुक्र , शनि ) अर्थात् उसको शनि घेरकर रखेगा और ' कबहुँ तृतीया नाहिं।' तृतीया यानी मंगल ( रवि , सोम , मंगल )। उसके जीवन में मंगल नहीं आवेगा । इसलिए अपने जीवन में मंगल चाहते हो , तो संत सद्गुरु की शरण में जाओ ।
।।जय श्री राधे।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अगर आपको मेरी post अच्छी लगें तो comment जरूर दीजिए
जय श्री राधे