> परमात्मा और जीवन"ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्रम् – हिंदी अर्थ सहित

यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्रम् – हिंदी अर्थ सहित

          कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्रम् – हिंदी अर्थ सहित


"कृष्ण कृपा कटाक्ष" का अर्थ है –
भगवान श्रीकृष्ण का अनुग्रहपूर्ण दृष्टि-पात (कृपापूर्ण नज़र डालना)।

यह वाक्यांश भक्ति-साहित्य में बहुत मिलता है। इसका भाव है –
जब भगवान कृष्ण अपनी कृपादृष्टि (कटाक्ष) भक्त पर डालते हैं, तो उसके जीवन के कष्ट मिट जाते हैं, मन में शांति आ जाती है और भक्ति का मार्ग सरल हो जाता है।

कभी इसे प्रार्थना के रूप में भी प्रयोग किया जाता है –
"हे नंदलाल! मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि डालो।"
इसका अर्थ है –
"हे कृष्ण! अपनी दयालु नज़र से मेरी ओर देखो और मेरे जीवन के अंधकार को दूर करो।"

श्लोक १
वन्दे नन्द व्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णशः।
यासां हरिकथोद्गीतं पुणाति भुवनत्रयम्॥
अर्थ:
मैं नन्दगाँव की गोपियों के चरणों की धूल को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
जिनके मुख से निकली श्रीकृष्ण लीला की कथाएँ तीनों लोकों को पवित्र कर देती हैं।

श्लोक २
कृष्ण कृपा कटाक्षेण भूरिभाग्यं प्रसिद्ध्यति।
तत्प्रसादात्सदा साम्यं स्वपदं प्राप्यते नरः॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि मात्र से ही जीव अत्यंत भाग्यशाली हो जाता है।
उनकी कृपा से मनुष्य अंत में श्रीकृष्ण के परम धाम को प्राप्त कर लेता है।

श्लोक ३
कृष्णेति नाम यः प्रोक्तं नारदेन पुरा हरेः।
तस्य सङ्कीर्तनादेव सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
अर्थ:
जिस "कृष्ण" नाम का उच्चारण स्वयं नारद मुनि ने किया था,
उस नाम का कीर्तन करने से मनुष्य सारे पापों से मुक्त हो जाता है।

श्लोक ४
दुःखदारिद्र्यविषमं हर्षमायुर्यशः श्रियः।
प्रददातु सदानन्दः कृष्णः कृपाकटाक्षतः॥
अर्थ:
हे सदानन्द कृष्ण! आपकी कृपा दृष्टि से
हमारा दुःख, दरिद्रता और विषम परिस्थिति दूर हो जाए,
हमें सुख, दीर्घायु, यश और लक्ष्मी प्राप्त हो।

श्लोक ५
सर्वे विष्णुमया देवा वसुन्ध्रा विष्णुमायिनी।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन विष्णुमेव समाश्रयेत्॥
अर्थ:
समस्त देवता विष्णु के ही रूप हैं, यह पृथ्वी भी विष्णु की शक्ति से चल रही है।
इसलिए हमें सम्पूर्ण प्रयत्न से केवल भगवान विष्णु (कृष्ण) का ही आश्रय लेना चाहिए।

श्लोक ६
कृष्णस्य दर्शनं पुण्यं जन्मकोटि सुखावहम्।
तस्य स्मरणमात्रेण मनुष्याणां विघ्ननाशनम्॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण का दर्शन जन्म-जन्मांतर के पुण्य से मिलता है,
और उनके स्मरण मात्र से ही मनुष्य के सारे विघ्न दूर हो जाते हैं।

श्लोक ७
कृष्णस्य नाम सङ्कीर्त्य पापं नश्यति तत्क्षणात्।
गङ्गास्नानसहस्राणि फलं प्राप्नोति मानवः॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण का नाम जपते ही पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं।
मनुष्य को सहस्रों गंगास्नान के समान पुण्य प्राप्त हो जाता है।

श्लोक ८
य इदं पठते स्तोत्रं भक्त्या श्रद्धासमन्वितः।
कृष्णकृपाकटाक्षेण लभते मोक्षमुत्तमम्॥
अर्थ:
जो व्यक्ति इस स्तोत्र को श्रद्धा और भक्ति से पढ़ता है,
वह श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि से उत्तम मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

यह अर्थ समझकर यदि आप प्रतिदिन इसे प्रेम से पढ़ेंगे, तो न केवल मन को शांति मिलेगी बल्कि जीवन में सकारात्मकता और भक्ति भी बढ़ेगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अगर आपको मेरी post अच्छी लगें तो comment जरूर दीजिए
जय श्री राधे

Featured Post

माँ दुर्गा के 108 नाम (संस्कृत + सरल अर्थ)

      माँ दुर्गा के 108 नाम (संस्कृत + सरल अर्थ) १. दुर्गा – कठिनाइयों को दूर करने वाली २. देवी – सबकी आराध्या शक्ति ३. त्र्यंबका – तीन न...