और क्या चाहते है भगवान से ?
अपूर्व गुप्त शक्तियाँ
-इसके साथ ही उसने हमे अनेक गुप्त शक्तियाँ दी हैं। हमारी स्मरण शक्ति ,योगशक्ति ,आत्मशक्ति ,इच्छाशक्ति ,कल्पनाशक्ति ,संकल्पशक्ति ,धारणाशक्ति आदि उसी परमपिता कि देन हैं। यही नहीं उन्होंने हमे कर्म करने के लिए दो हाथ भी दिए हैं इन हाथों के बल पर ही हम निर्माण कार्य करने में सफल होते हैं।
यह शरीर एक कल्प वृ क्ष
-कल्पवृक्ष इच्छित फल देता हैं। हम इसी शरीर में छिपी गुप्त शक्तियों से ही मन चाही सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। इसी शरीर में दुर्गा एवं शिव का तृतीय नेत्र भी हैं। आठों सिद्धियाँ और नवों निधिंयाँ हमे इसी शरीर से प्राप्त हो सकती हैं।
कितने मूल्यवान हैं हमारे अंग -
हमारे शरीर का प्रत्येक अंग इतना मूल्यवान हैं कि हमें अपार धन दोलत देकर भी इसका मूल्यांकन नहीं कर सकते। कोई हमे चाहे कितना ही धन दे दें पर हम अपने हाथ ,पैर ,आखं आदि नहीं दे सकते। अब आप ही अनुमान लगाइये कि ईश्वर ने हमे कितने अमूल्य उपहारों से विभूषित किया हैं।
इश्वर ने जब हमे इतना सब कुछ दिया हैं तो हम क्यों न इसका सदुपयोग करे। अंतिम समय में जब हमारी पेशी उसके सामने होगी तो वह हमसे प्रश्न करेगा मैंने तुम्हे दो हाथ दिए इनसे तुमने कितने उपकार का काम किया कितनो के आंसू पोछें। इतनी धन -सम्पदा दी उसका उपयोग कितना समाज के हित के लिए किया।
इश्वर किसी उद्देश्य के लिए ही हमे मानव शरीर देता हैं। हमारा भी परम कर्त्तव्य हैं कि हम निष्ठा से इस मानव शरीर को सार्थक उद्देश्यों में लगाये। यही मानव जीवन कि सार्थकता हैं और यही इश्वर के प्रति धन्यवाद हैं।
(कल्याण के सोजन्य से )