मनुष्य का प्रथम कर्तव्य हैं कि किसी भी कार्य को करने से पहले अच्छी तरह से विचार कर ले। बिना सोचे विचार किसी भी काम को न करे। कर्म का फल क्या मिलेगा यह पहले ही विचार कर लेना चाहिए। हम जो भी कार्य या कर्म करते हैं उसका सिंह अवलोकन करना चाहिए। सिंह का स्वभाव होता हैं कि वह कुछ दूर चलता हैं फिर पीछे घूम कर देखता हैं। इसी प्रकार अब तक इतने दिनों तक हम जो करते आ रहें हैं उससे मुझे क्या लाभ मिला या क्या हानि हुई इस पर विचार कर ,जहाँ अपने व्यवहार में विचार में त्रुटि हो उसे सुधार लेना चाहिए। अपने परिवार का पालन करने के लिए यदि हम झूठ ,पाप ,हिंसा का सहारा नहीं लेते तो ईश्वर हमारा हर समय ध्यान रखता हैं ,वो हमे कभी भी अकेला नहीं पड़ने देता।

इस ब्लॉग में परमात्मा को विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में एक अद्वितीय, अनन्त, और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि का कारण है और सब कुछ में निवास करता है। जीवन इस परमात्मा की अद्वितीयता का अंश माना जाता है और इसका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा के साथ मिलन है, जिसे 'मोक्ष' या 'निर्वाण' कहा जाता है। हमारे जीवन में ज्यादा से ज्यादा प्रभु भक्ति आ सके और हम सत्संग के द्वारा अपने प्रभु की कृपा को पा सके। हमारे जीवन में आ रही निराशा को दूर कर सकें।
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गुरुवार, 28 जनवरी 2016
गुरुवार, 21 जनवरी 2016
इस कलयुग में केवल भगवान का नाम ही बचा सकता है।
इस कलयुग में भगवन्न नाम महिमा
संसार में अनेक रोग हैं ,और उनकी अलग -अलग औषधियाँ हैं ,परन्तु राम नाम तो सभी रोगों की रामबाण औषधि हैं। शोक ,मोह ,लोभ आदि सभी रोगों के लिए एक राम नाम ही महा औषधि हैं।
कलियुग में नाम स्मरण करके ही दोषो से बचा जा सकता हैं। अन्यथा समय के प्रभाव से बचना कठिन हैं।
भगवान के नाम , रूप , लीला और धाम ये चारों सच्चिंदानन्दमय हैं। एक को पकड़ने से चारों पकड़ में आ जाते हैं। सुलभ एवं शक्तिमान होने से नाम ही चारों में श्रेष्ठ हैं। नाम में लीला भरी हैं। राम में रामायण , कृष्ण नाम में भागवत पुराण स्थित हैं। नाम को पुकारने से रूप का आकर्षण होता हैं। नाम में धाम =तेज और धाम =लीला भूमि ये व्याप्त हैं। बट बीज में जैसे विशाल वृक्ष व्याप्त
उसी प्रकार नाम में सब कुछ हैं। नाम का आश्रय लेने से रूप , लीला , और धाम का आश्रय हो जाता हैं।
जन्म -जन्म के अशुभ संस्कारों को मिटाने के लिए निरन्तर नाम जप आदि साधन आवश्यक हैं। श्रेष्ठ नाम स्मरण ही हैं। दूसरे साधन के योग्य हम नहीं हैं। आवश्यक काम करने के बाद या काम करते करते भी नाम जप का अभ्यास करते रहना चाहिए।
संसार में अनेक रोग हैं ,और उनकी अलग -अलग औषधियाँ हैं ,परन्तु राम नाम तो सभी रोगों की रामबाण औषधि हैं। शोक ,मोह ,लोभ आदि सभी रोगों के लिए एक राम नाम ही महा औषधि हैं।
कलियुग में नाम स्मरण करके ही दोषो से बचा जा सकता हैं। अन्यथा समय के प्रभाव से बचना कठिन हैं।
भगवान के नाम , रूप , लीला और धाम ये चारों सच्चिंदानन्दमय हैं। एक को पकड़ने से चारों पकड़ में आ जाते हैं। सुलभ एवं शक्तिमान होने से नाम ही चारों में श्रेष्ठ हैं। नाम में लीला भरी हैं। राम में रामायण , कृष्ण नाम में भागवत पुराण स्थित हैं। नाम को पुकारने से रूप का आकर्षण होता हैं। नाम में धाम =तेज और धाम =लीला भूमि ये व्याप्त हैं। बट बीज में जैसे विशाल वृक्ष व्याप्त
उसी प्रकार नाम में सब कुछ हैं। नाम का आश्रय लेने से रूप , लीला , और धाम का आश्रय हो जाता हैं।
जन्म -जन्म के अशुभ संस्कारों को मिटाने के लिए निरन्तर नाम जप आदि साधन आवश्यक हैं। श्रेष्ठ नाम स्मरण ही हैं। दूसरे साधन के योग्य हम नहीं हैं। आवश्यक काम करने के बाद या काम करते करते भी नाम जप का अभ्यास करते रहना चाहिए।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।
बुधवार, 16 दिसंबर 2015
परमार्थ क पत्र - पुष्प भाग 1
( परमार्थ के पत्र - पुष्प) हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं।
हमारे गुरुदेव पुज्य श्री मलूक पीठाधीश्वर परम पूज्य श्री राजेन्द्र दासजी महाराज जी ने हमें एक पुस्तक दी, जिसमे हमारे दादा गुरु श्री भक्ततमाली जी द्वारा सत्संग के कुछ अंश हैं जो मैं आपके समक्ष रख रही हूँ। जिसके द्वारा हमे जीवन में कई महत्व पूर्ण सन्देश मिलेंगे।
हमारे गुरुदेव पुज्य श्री मलूक पीठाधीश्वर परम पूज्य श्री राजेन्द्र दासजी महाराज जी ने हमें एक पुस्तक दी, जिसमे हमारे दादा गुरु श्री भक्ततमाली जी द्वारा सत्संग के कुछ अंश हैं जो मैं आपके समक्ष रख रही हूँ। जिसके द्वारा हमे जीवन में कई महत्व पूर्ण सन्देश मिलेंगे।
हमारे दादा गुरु कहते हैं कि भारतीय जनता कर्म भूमि में जन्म पाकर धन्य- धन्य हो जाती हैं। हम लोग जंक्शन पर खड़े हैं। सब और को जाने वाली गाड़ियाँ खड़ी हैं (ब्रह्म लोक , विष्णु लोक, साकेत वैकुण्ठ , रमावैकुंठ , गोलोक,शिवलोक , पितृलोक , नरक भी हैं। )जहाँ जाना चाहो वहाँ का टिकट लो अथार्त उसी प्रकार के कर्म करो। कर्मो के अनुसार नरक -स्वर्ग को हम जा सकते हैं। मोक्ष यानि ब्रह्मलीन भी हो सकते हैं। जिसकी जैसी रूचि हो वह वैसा पुण्य करे या पाप करें। वेद पुराण और शास्त्र कहते हैं यदि दुसरो को दुःख दोगे तो नरक में जाना पड़ेगा। सुख दोगें तो स्वर्ग वैकुण्ठ मिलेगा। संसार के सभी प्राणी परमात्मा की संतान हैं। अतः अपने हैं। ऐसा समझ कर दया , सच्चाई के साथ व्यवहार करने से श्री सीतारामजी प्रसन्न होते हैं।
श्री सीताराम।
बुधवार, 2 सितंबर 2015
सोमवार, 31 अगस्त 2015
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