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गुरुवार, 11 जुलाई 2019

महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत 13 से 17

                         महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधिरूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहनमन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
Avirala-Ganndda Galan-Mada-Medura Matta-Matangga ja-Raaja-Pate
Tri-Bhuvana-Bhussanna Bhuuta-Kalaanidhi Ruupa-Payo-Nidhi Raaja-Sute |
Ayi Sudatii-Jana Laalasa-Maanasa Mohana Manmatha-Raaja-Sute
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 13 ||

कमलदलामल कोमलकान्तिकलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रमकेलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डलमौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
Kamala-Dala-[A]mala Komala-Kaanti Kalaa-Kalita-[A]mala Bhaalalate
Sakala-Vilaasa Kalaa-Nilaya-Krama Keli-Calat-Kala Hamsa-Kule |
Alikula-Sangkula Kuvalaya-Mannddala Mouli-Milad-Bakula-Ali-Kule
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 14 ||

करमुरलीरव वीजितकूजितलज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जितरञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृतकेलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
Kara-Muralii-Rava Viijita-Kuujita Lajjita-Kokila Man.ju-Mate
Milita-Pulinda Manohara-Gun.jita Ran.jita-Shaila Nikun.ja-Gate |
Nija-Ganna-Bhuuta Mahaa-Shabarii-Ganna Sad-Gunna-Sambhrta Keli-Tale
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 15 ||

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृतचन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नखचन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जितनिर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
Kattitatta-Piita Dukuula-Vicitra Mayukha-Tiraskrta Candra-Ruce
Prannata-Suraasura Mouli-Manni-Sphura d-Amshula-Sannakha Candra-Ruce
Jita-Kanaka-[A]cala Mouli-Mado[a-Uu]rjita Nirbhara-Kun.jara Kumbha-Kuce
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 16 ||

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैकसहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारकसूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधिसमाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
Vijita-Sahasra-Karaika Sahasra-Karaika Sahasra-Karaika-Nute
Krta-Sura-Taaraka Sanggara-Taaraka Sanggara-Taaraka Suunu-Sute |
Suratha-Samaadhi Samaana-Samaadhi Samaadhi-Samaadhi Sujaata-Rate |
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 17 ||

महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत 9 से 12

                             महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत


सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदरनृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकतालकुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीरमृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
Sura-Lalanaa Tatatheyi Tatheyi Krta-Abhinayo-[U]dara Nrtya-Rate

Krta Kukuthah Kukutho Gaddadaadika-Taala Kutuuhala Gaana-Rate |
Dhudhukutta Dhukkutta Dhimdhimita Dhvani Dhiira Mrdamga Ninaada-Rate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 9 ||
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुतितत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृतनूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्यसुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
Jaya Jaya Japya Jaye-Jaya-Shabda Para-Stuti Tat-Para-Vishva-Nute

Jhanna-Jhanna-Jhin.jhimi Jhingkrta Nuupura-Shin.jita-Mohita Bhuuta-Pate |
Nattita Nattaardha Nattii Natta Naayaka Naattita-Naattya Su-Gaana-Rate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 10 ||
अयि सुमनःसुमनःसुमनःसुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनीकरवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
Ayi Sumanah-Sumanah-Sumanah Sumanah-Sumanohara-Kaanti-Yute

Shrita-Rajanii Rajanii-Rajanii Rajanii-Rajanii Kara-Vaktra-Vrte |
Sunayana-Vi-Bhramara Bhramara-Bhramara Bhramara-Bhramara-[A]dhipate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 11 ||
सहितमहाहव मल्लमतल्लिकमल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिकझिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुणतल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
Sahita-Mahaahava Mallama-Tallika Malli-Tarallaka Malla-Rate

Viracita-Vallika Pallika-Mallika Jhillika-Bhillika Varga-Vrte |
Shita-Krta-Phulla Samullasita-[A]runna Tallaja-Pallava Sal-Lalite
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 12 ||

महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत 5 से 8

                     महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत



अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जरशक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृतप्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूतकृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते
Ayi Ranna-Durmada Shatru-Vadho[a-U]dita Durdhara-Nirjara Shakti-Bhrte
Catura-Vicaara Dhuriinna-Mahaashiva Duuta-Krta Pramatha-[A]dhipate |
Durita-Duriiha Duraashaya-Durmati Daanava-Duta Krtaanta-Mate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 5 ||

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभयदायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधिशिरोऽधिकृतामल शूलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृतदिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
Ayi Sharannaagata Vairi-Vadhuvara Viiravara-[A]bhaya Daaya-Kare
Tri-Bhuvana-Mastaka Shula-Virodhi Shiro-[A]dhikrta-[A]mala Shula-Kare |
Dumi-Dumi-Taamara Dhundubhi-Naadam-Aho-Mukhariikrta Dingma-Kare
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 6 ||

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृतधूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीजसमुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूतपिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
Ayi Nija-Hungkrti Maatra-Niraakrta Dhumravilocana Dhumra-Shate
Samara-Vishossita Shonnita-Biija Samudbhava-Shonnita Biija-Late |
Shiva-Shiva-Shumbha Nishumbha-Mahaahava Tarpita-Bhuta Pishaaca-Rate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 7 ||

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्गनटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्गहताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्गरटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
Dhanur-Anussangga Ranna-Kssanna-Sangga Parisphurad-Angga Nattat-Kattake
Kanaka-Pishangga Prssatka-Nissangga Rasad-Bhatta-Shrngga Hataa-Battuke |
Krta-Caturangga Bala-Kssiti-Rangga Ghattad-Bahu-Rangga Rattad-Battuke
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 8 ||


महिसासुरमर्दनि स्त्रोत १ से 4


                  महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत



अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनिविश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनिविष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनिभूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
 १ ॥

Ayi Giri-Nandini Nandita-Medini Vishva-Vinodini Nandi-Nute
Giri-Vara-Vindhya-Shiro-[A]dhi-Nivaasini Vissnnu-Vilaasini Jissnnu-Nute |
Bhagavati He Shiti-Kannttha-Kuttumbini Bhuri-Kuttumbini Bhuri-Krte
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 1 ||
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणिहर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणिकिल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणिदुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
Sura-Vara-Varssinni Durdhara-Dharssinni Durmukha-Marssinni Harssa-Rate
Tribhuvana-Possinni Shangkara-Tossinni Kilbissa-Mossinni Ghossa-Rate
Danuja-Nirossinni Diti-Suta-Rossinni Durmada-Shossinni Sindhu-Sute
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 2 ||

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनिकैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
Ayi Jagad[t]-Amba Mad-Amba Kadamba Vana-Priya-Vaasini Haasa-Rate
Shikhari Shiro-Manni Tungga-Himalaya Shrngga-Nija-[Aa]laya Madhya-Gate |
Madhu-Madhure Madhu-Kaittabha-Gan.jini Kaittabha-Bhan.jini Raasa-Rate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 3 ||

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्डवितुण्डितशुण्ड गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्डमृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्डविपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
Ayi Shata-Khanndda Vikhannddita-Runndda Vitunnddita-Shunnda Gaja-[A]dhipate
Ripu-Gaja-Ganndda Vidaaranna-Canndda Paraakrama-Shunndda Mrga-[A]dhipate |
Nija-Bhuja-Danndda Nipaatita-Khanndda Vipaatita-Munndda Bhatta-[A]dhipate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 4 ||
  शेष आगे :
महिसासुरमर्दनि स्त्रोत 5 से 8

सोमवार, 13 मई 2019

देवराहा बाबा के वचनामृत

                    देवराहा बाबा के वचनामृत

 जितना सत्संग करें उससे दुगना मनन करें ।
प्रतिदिन यथा  संभव कुछ ना कुछ दान अवश्य करें इससे त्याग की प्रवृत्ति जागेगी।
 संसार सराय की तरह है, हमारा अपना स्थाई आवास तो प्रभु का धाम है।
 खूब जोर जोर से भगवान का नाम उच्चारण करें ,उच्च स्वर में भजन करने से मन संकल्प विकल्प से मुक्त हो जाता है ।
सत्य ईश्वर का स्वरूप है और असत्य के बराबर कोई पाप नहीं।
 मन को निविषय करना ध्यान है ,मन के विकारों को त्यागना  स्नान है ।
भक्ति  चरम अवस्था पर तब पहुंचती है जब भक्त के लिए भगवान व्याकुल होते हैं ।
संपत्ति पाकर भी जिन में उदारता पूर्वक दान की ,या सेवा की भावना नहीं आती है वह भाग्य हीन है।
 इस भाव का बारंबार बनाकर रखना चाहिए कि संसार हमसे प्रति दिन छूट रहा है ।
कलयुग में पाप नहीं करना ही महान पुण्य है।
 संसार में कितना कितना सुख भाग  हमें प्राप्त होगा, पहले ही ईश्वर ने सुनिश्चित कर दिया है ।
जो व्यक्ति वाणी का, मन का,तृषणा का वेग सहन कर लेता है वही महामुनि है ।
वाणी को मधुर और विवेक सम्मत बनाने के लिए क्रोध पर विजय प्राप्त करें ।
देवता, गुरु, मंत्र ,तीर्थ ,औषधि और महात्मा श्रद्धा से फल देते हैं तर्क से नहीं।
 मन का शांत रखना ही योग का लक्षण है।
 पर दोष दर्शन भगवत प्राप्ति में बड़ा विघ्न है।
 मानव जीवन का परम लक्ष्य केवल दुख सुख भोगना नहीं है ,उनके बंधन से मुक्त होना है।
 ध्यान के बिना ईश्वर की अनुभूति नहीं होती ।
स्नान करने से तन की शुद्धि, दान करने से धन की और ध्यान करने से मन की शुद्धि होती है।
 जगत के किसी भी पदार्थ से इतना स्नेह ना करो कि  प्रभु भक्ति में बाधक बन जाए ।
मानसिक पापो का परित्याग करो मन में जमी जीर्ण वासना भी दुष्कर्म कराती है।
 भूखे को रोटी देने में, दुखियों के  आंसू पोछने में जितना पुण्य लाभ होता है उतना वर्षों के जप तप से नहीं होता है ।
संसार में रहने से नहीं ,संसार में मन लगाने से पतन होता है।
संसार में रहो पर अपने में संसार को मत रखो।
 ईश्वर गुप्त है ,उसकी प्राप्ति के लिए जो साधना करो, वह गुप्त रखो।
भक्ति तीन प्रकार की होती है,पहली जो पत्थर के सामान डूब जाती है, और बाहर से गीली हो जाती है,कितु भीतर से सूखी रहती है ।दूसरी जो कपड़े के समान सब तरफ  से गीली हो जाती है फिर भी पानी से अलग रहती है। तीसरी शक्कर के समान पानी मे घुलकर  एक हो जाती है, वही भक्ति श्रेष्ठ है ।
 सच्चे भक्तों  की यही पहचान है कि वह परम विश्वास के साथ एक बार भगवान के सामने अपनी बात रख कर, चुपचाप भगवान का निर्भय भजन करता रहता है। (प्रेषक श्री ललन प्रसाद जी सिन्हा )

ईश्वर का कहना है कि मै तुम्हारे अंग- संग हूं, तुम महसूस तो करो

                         मैं तुम्हारे अंग संग हूं


 एक नई भोर के आगमन के साथ आज जब तुम उठे, तो मैंने तुम्हें देखा ,सोचा कि तुम अपने दिन की शुरुआत करने से पहले मेरा आशीर्वाद लेना जरूरी समझोगे ।भले ही तुम चुप रहोगे पर मुझे प्रणाम जरूर करोगे, पर तुम तो पहनने के लिए सही कपड़े ढूंढने में व्यस्त थे और इधर उधर भाग कर काम पर जाने के लिए तैयार हो रहे थे।
 तुम नाश्ता करने बैठे ,मुझे लगा ,अब तुम मुझसे भी दो निवाले खाने को कहोगे, पर तुम इतनी जल्दी में थे कि यह भूल ही गए कि तुम्हारे द्वारा प्यार से खिलाया गया एक निवाला ही मेरी भूख मिटा सकता है। फिर भी तुम्हें जी भर कर खाता देख ,मैं अपनी भूख भी भूल गया ।खाने के पश्चात तुम्हारे पास 15 मिनट का समय था, तुम खाली बैठे मन ही मन कुछ सोचते रहे, मैंने सोचा कि अब तुम मुझसे बात करने के लिए हिचकिचा  रहे हो कि कहीं मैं तुमसे नाराज तो नहीं, नादान समझ, मैंने तुम्हारी तरह अपना पहला कदम उठाया ब ही था कि तुम अपनी फोन की तरफ भागे ,अपने मित्र से ताजी खबर लेने के लिए। मेरी आशा एक बार फिर टूट गई। परंतु तुम्हें हंसता हुआ देख, मैं मुस्कुरा दिया। तुम घर से निकलने लगे, मेरा विश्वास था कि अब तो तुम जाने से पहले मुझे प्रणाम करना नहीं भूलोगे, पर मेरा विश्वास तब टूटा जब मैंने देखा कि तुम्हें शीशे में अपने चेहरा देखना तो याद था पर मेरी आंखों में अपने लिए  स्नेह नहीं । तुमने जरूरत तो ना समझी, पर फिर भी मैंने तुम्हें अपना आशीर्वाद दिया।
 वह आशीर्वाद जो कभी हर परीक्षा में तुम्हारे लिए अमूल्य था, पर दुनिया की भाग दौड़ ने तुम्हें इसका मूल्य भुलवा दिया है। तुम घर से निकले यह सोच कर कि तुम अकेले हो, पर तुम्हें अपने कदमों के साथ मेरे कदमों की आहट सुनाई ही नहीं दी। पूरा समय तुम अपने कार्यों में तथा मित्रों के बीच व्यस्त थे और मैं पहले की तरह ही तुम्हें एक टक देख रहा था। दोपहर हुई मैंने देखा कि भोजन करने से पहले तुम इधर उधर नजर घुमा रहे थे ,संकोच में भरी तुम्हारी आँखें क्या मुझे याद करने से रोक रही थी और संकोच किस से, मित्र जन से, दुनिया से या फिर अपने आप से। समय का पहिया यूं ही चलता रहा और मेरे इंतजार का क्षण यूं ही बीतते रहे। इसी प्रकार शाम हो गई और तुम लौट आए। एक बार फिर मैंने अपने आशा के दीपक जलाए, यह सोच कर कि अपने कार्य को समाप्त करने के बाद तुम मुझसे बात करना चाहोगे। पर यह क्या? तुम तो टीवी देखने बैठ गये। तुम उसमें कुछ देखना तो नहीं चाहते थे, पर ना जाने किस विवशता  से उसके सामने बैठकर चैनल बदलते रहे। मैं समझ चुका  था कि कोई बात तुमहें अंदर ही अंदर खा रही है और तुम्हारे  मन की मंशा को मैने तुम्हारी आंखों में पढ़ लिया था । मुझे लगा कि अब तुम मुझ से राय लेने के लिए मेरे पास आओगे। तुम्हें यह तो याद होगा कि हर मुश्किल घड़ी में मैंने तुम्हारा साथ दिया है, पर अब शायद तुम्हें मेरी सहायता की जरूरत नहीं इसलिए तुम अपने मन को मन में दबाए हुए सोने के लिए बिस्तर पर लेट गए। तुम कुछ सोचने लगे। तुम्हारी आंखों में ना तो नींद थी, ना ही चैन। तुम्हारी यह बेचैनी जब मुझसे देखी ना गई तो मैं तुम्हारी तरफ बढा़, अपना हाथ तुम्हारे सर पर रख कर मन ही मन सोचा कि अब तुम आँखो खोलोगे और यह देखोगे कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, पर तुम तो सो चुके थे और इसी के साथ मेरा इंतजार अधूरा रह गया । लेकिन आज अगर मेरी आशा का दीपक बुझ गया ,तो क्या हुआ कल यह दीप मैं फिर जला लूंगा। तुम मेरी संतान हो , मेरा ही अंश हो, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। तुम्हें पाने के लिए मेरे मन में जो चाहत  और धीरज है, उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। यह जरूरी नहीं कि तुम किसी विवशता पूर्वक मेरा ध्यान करो।
 मैं तुम्हारे मुख से अपनी  प्रशंसा नहीं, बल्कि प्यार के दो बोल सुनना चाहता हूं। मैं तुम्हारी आंखों में दुनिया से संकोच नहीं बल्कि अपने लिए स्नेह देखना चाहता हूं ,और हां मैं तुम्हारी बातों में डर और इच्छा ही नहीं, बल्कि  आदर और स्नेह देखना चाहता हूं। तुम्हारा भय, तुम्हारी इच्छाएं ,तुम्हारा दुख, सब मेरे होंगे और मैं तुम्हारा।
 कल फिर तुम नींद से उठोगे, एक नई भोर के साथ और मैं फिर तुम्हारा स्नेह पूर्वक इंतजार करूंगा। एक बार फिर अपनी आशा का दीपक जलाएं ,यह सोच कर कि कभी तो तुम्हें मेरी उपस्थिति का एहसास होगा ।
तुम्हारा साथी- भगवान। (प्रेषक- श्री एमके राय जी)

अपने जन्म को सफल कैसे करें

                             मानव कल्याण

 मानव जीवन की सफलता भगवत प्राप्ति में है, ना कि विषय भोगों की प्राप्ति में , जो मनुष्य जीवन के असली लक्षय, भगवान को भूलकर विषय भोगो की प्राप्ति और उनके भोग में ही रचा बसा रहता है, वह अपने दुर्लभ अमूल्य जीवन को केवल व्यर्थ ही नहीं खो रहा है, बल्कि अमृत के बदले में भयानक विष ले रहा है।
बहुत जन्मों के बाद बड़े पुण्य बल तथा भगवत कृपा से जीव को मानव शरीर प्राप्त होता है, इंद्रियों के भोग तो अन्यान्य योनियों में भी मिलते हैं, पर भगवत प्राप्ति का साधन तो केवल इसी शरीर में है, इस को पा कर भी जो मनुष्य विषय भोगो में ही फंसा रहता है ,वह तो पशु से भी अधिक मूर्ख है।
 तुम मनुष्य हो , अपने मनुष्यत्व को सदा जगाए रखो। एक क्षण के लिए भी भगवान को मत भूलो, सदा याद रखो कि यहां इस शरीर में भगवान ने तुमको पशु की भांति केवल इंद्रिय भोगो को भोगने के लिए नहीं भेजा है, तुम्हें उस बहुत बड़ी सफलता को प्राप्त करना है जिससे अब तक तुम वंचित रहते आए हैं, वह सफलता है भगवत प्राप्ति। इस सफलता को लक्ष्य बनाकर जो मनुष्य निरंतर भगवान में मन रखकर जगत के कार्य करता है, उनमें कभी मन को फंसाता नहीं है, वही बुद्धिमान है। जीवननिर्वाह में जो काम आवश्यक हो ,उसे करो, पर करो भगवान को याद करते हुए ,जो भी कार्य करो वह भगवान को अर्पित करते हुए चलो। तो कोई भी आपसे जाने-अनजाने गलत कार्य नहीं होगा।
 जय सियाराम

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