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गुरुवार, 3 अक्टूबर 2019

आज का शुभ विचार




यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम्।
समदृष्टेस्तदा पुंस: सर्वा: सुखमया दिश:॥

अर्थात्:-- जो मनुष्य किसी भी जीव के प्रति अमंगल भावना नही रखता, जो मनुष्य सभी की ओर सम्यक् दॄष्टीसे देखता है, ऐसे मनुष्य को सब ओर सुख ही सुख है।
।।जय श्री राधे।।

बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

परिपक्वता यानि मैच्योरिटी किसे कहते हैं?

आदि शंकराचार्य जी से प्रश्न किया गया कि "परिपक्वता" का क्या अर्थ है?

आदि शंकराचार्य जी ने उत्तर दिया –

1. परिपक्वता वह है - जब आप दूसरों को बदलने का प्रयास करना बंद कर दे, इसके बजाय स्वयं को बदलने पर ध्यान केन्द्रित करें.
2. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों को, जैसे हैं, वैसा ही स्वीकार करें.
3. परिपक्वता वह है – जब आप यह समझे कि प्रत्येक व्यक्ति उसकी सोच अनुसार सही हैं.
4. परिपक्वता वह है – जब आप "जाने दो" वाले सिद्धांत को सीख लें.
5. परिपक्वता वह है – जब आप रिश्तों से लेने की उम्मीदों को अलग कर दें और केवल देने की सोच रखे.
6. परिपक्वता वह है – जब आप यह समझ लें कि आप जो भी करते हैं, वह आपकी स्वयं की शांति के लिए है.
7. परिपक्वता वह है – जब आप संसार को यह सिद्ध करना बंद कर दें कि आप कितने अधिक बुद्धिमान है.
8. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों से उनकी स्वीकृति लेना बंद कर दे.
9. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर दें.
10. परिपक्वता वह है – जब आप स्वयं में शांत है.
11. परिपक्वता वह है – जब आप जरूरतों और चाहतों के बीच का अंतर करने में सक्षम हो जाए और अपनी चाहतो को छोड़ने को तैयार हो.
12. आप तब परिपक्वता प्राप्त करते हैं – जब आप अपनी ख़ुशी को सांसारिक वस्तुओं से जोड़ना बंद कर दें.

नवरात्र क्या है?

नवरात्र या नवरात्रि →
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है।

नवरात्र क्या है →

 पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व
सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में
साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं।

इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं,
अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल
और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की
जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।

नौ दिन या रात →
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या
पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम
चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है।

 यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है।
रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य
द्वारों वाला कहा गया है।
इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी
शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है।

इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में,
शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू
रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों
की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है।
 इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए
 नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।

शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन,
सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं
 किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता  l

शुभ वचन

                        🌹।शाश्वत वचन।🌹




 संसार का सब काम करो, परंतु मन ईश्वर पर रखो और समझो कि घर, परिवार, पुत्र सब ईश्वर के हैं। मेरा कुछ भी नहीं है। मैं केवल उनका दास हूँ। मैं मन से त्याग करने के लिये कहता हूँ। संसार छोड़ने के लिये मैं नहीं कहता। अनासक्त होकर, संसार में रह कर, अन्तर से उनकी प्राप्ति की इच्छा रखने पर, उन्हें मनुष्य पा सकता है॥
(श्रीरामकृष्णवचनामृत)
*"हरि: शरणम्"*

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

बस एक बार राधा नाम लेने की कीमत

               बस एक बार राधा नाम लेने की कीमत


एक बार एक व्यक्ति था।
वह एक संत जी के पास गया। और कहता है कि संत जी, मेरा एक बेटा है। वो न तो पूजा पाठ करता है और न ही भगवान का नाम लेता है। आप कुछ ऐसा कीजिये कि उसका मन भगवान में लग जाये।

संत जी कहते है- "ठीक है बेटा, एक दिन तू उसे मेरे पास लेकर आ जा।" अगले दिन वो व्यक्ति अपने बेटे को लेकर संत जी के पास गया। अब संत जी उसके बेटे से कहते है- "बेटा, बोल राधे राधे..."
बेटा कहता है- मैं क्यू कहूँ?

संत जी कहते है- "बेटा बोल राधे राधे..."
वो इसी तरह से मना करता रहा और अंत तक उसने यही कहा कि- "मैं क्यू कहूँ राधे राधे..."

संत जी ने कहा- जब तुम मर जाओगे और यमराज के पास जाओगे तब यमराज तुमसे पूछगे कि कभी भगवान का नाम लिया। कोई अच्छा काम किया। तब तुम कह देना की मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। बस एक बार। इतना बताकर वह चले गए।
समय व्यतीत हुआ और एक दिन वो मर गया। यमराज के पास पहुंचा। यमराज ने पूछा- कभी कोई अच्छा काम किया है।
उसने कहा- हाँ महाराज, मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। आप उसकी महिमा बताइये।

यमराज सोचने लगा की एक बार नाम की महिमा क्या होगी? इसका तो मुझे भी नही पता है। यम बोले- चलो इंद्र के पास वो ही बतायेगे। तो वो व्यक्ति बोला मैं ऐसे नही जाऊंगा पहले पालकी लेकर आओ उसमे बैठ कर जाऊंगा।

यमराज ने सोचा ये बड़ी मुसीबत है। फिर भी पालकी मंगवाई गई और उसे बिठाया। 4 कहार (पालकी उठाने वाले) लग गए। वो बोला यमराज जी सबसे आगे वाले कहार को हटा कर उसकी जगह आप लग जाइये। यमराज जी ने ऐसा ही किया।
फिर सब मिलकर इंद के पास पहुंचे और बोले कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है?
इंद्र बोले- महिमा तो बहुत है। पर क्या है ये मुझे भी नही मालूम। बोले की चलो ब्रह्मा जी को पता होगा वो ही बतायेगे।

वो व्यक्ति बोला इंद्र जी ऐसा है दूसरे कहार को हटा कर आप यमराज जी के साथ मेरी पालकी उठाइये। अब एक ओर यमराज पालकी उठा रहे है और दूसरी तरफ इंद्र लगे हुए है। पहुंचे ब्रह्मा जी के पास।

ब्रह्मा ने सोचा कि ऐसा कौन सा प्राणी ब्रह्मलोक में आ रहा है जो स्वयं इंद्र और यमराज पालकी उठा कर ला रहे है। ब्रह्मा के पास पहुंचे। सभी ने पूछा कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है?
ब्रह्मा जी बोले- महिमा तो बहुत है पर वास्तविकता क्या है कि ये मुझे भी नही पता। लेकिन हाँ भगवान शिव जी को जरूर पता होगा।
वो व्यक्ति बोला कि तीसरे कहार को हटाइये और उसकी जगह ब्रह्मा जी आप लग जाइये। अब क्या करते महिमा तो जाननी थी। अब पालकी के एक ओर यमराज है, दूसरी तरफ इंद्र और पीछे ब्रह्मा जी है। सब मिलकर भगवान शिव जी के पास गए और भगवान शिव से पूछा कि प्रभु 'श्री राधा रानी' के नाम की महिमा क्या है? केवल एक बार नाम लेने की महिमा आप कृपा करके बताइये।

भगवान शिव बोले कि मुझे भी नही पता। लेकिन भगवान विष्णु जी को जरूर पता होगी। वो व्यक्ति शिव जी से बोला की अब आप भी पालकी उठाने में लग जाइये। इस प्रकार ब्रह्मा, शिव, यमराज और इंद्र चारों उस व्यक्ति की पालकी उठाने में लग गए और विष्णु जी के लोक पहुंचे। विष्णु से जी पूछा कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है?
विष्णु जी बोले- अरे! जिसकी पालकी को स्वयं मृत्य का राजा यमराज, स्वर्ग का राजा इंद्र, ब्रह्म लोक के राजा ब्रह्मा और साक्षात भगवान शिव उठा रहे हो इससे बड़ी महिमा क्या होगी। जब सिर्फ एक बार 'श्री राधा रानी' नाम लेने के कारण, आपने इसको पालकी में उठा ही लिया है। तो अब ये मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गया है।

भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है की जो केवल ‘रा’ बोलते है तो मैं सब काम छोड़ कर खड़ा हो जाता हूँ। और जैसे ही कोई ‘धा’ शब्द का उच्चारण करता है तो मैं उसकी ओर दौड़ लगा कर उसे अपनी गोद में भर लेता हूँ।
।। बोलो राधे राधे ।।



कृष्ण से कृष्ण को मांगिए

                       कृष्ण से कृष्ण को मांगिए


       हृदय की इच्छाएं शांत नहीं होती हैं। क्यों???

एक राजमहल के द्वार पर बड़ी भीड़ लगी थी।
किसी फकीर ने सम्राट से भिक्षा मांगी थी। सम्राट ने उससे कहा,''जो भी चाहते हो, मांग लो।''*
दिवस के प्रथम याचक की कोई भी इच्छा पूरी करने का उसका नियम था।

उस फकीर ने अपने छोटे से भिक्षापात्र को आगे बढ़ाया और कहा,''बस इसे स्वर्ण मुद्राओं से भर दें।''सम्राट ने सोचा इससे सरल बात और क्या हो सकती है! लेकिन जब उस भिक्षा पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली गई, तो ज्ञात हुआ कि उसे भरना असंभव था।

वह तो जादुई था। जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई, वह उतना ही अधिक खाली होता गया!
 सम्राट को दुखी देख वह फकीर बोला,''न भर सकें तो वैसा कह दें। मैं खाली पात्र को ही लेकर चला जाऊंगा!
ज्यादा से ज्यादा इतना ही होगा कि लोग कहेंगे कि सम्राट अपना वचन पूरा नहीं कर सके !

''सम्राट ने अपना सारा खजाना खाली कर दिया, उसके पास जो कुछ भी था, सभी उस पात्र में डाल दिया गया, लेकिन अद्भुत पात्र न भरा, सो न भरा।
तब उस सम्राट ने पूछा,''भिक्षु, तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। उसे भरना मेरी सामर्थ्य से बाहर है। क्या मैं पूछ सकता हूं कि इस अद्भुत पात्र का रहस्य क्या है?''

वह फकीर हंसने लगा और बोला,''कोई विशेष रहस्य नहीं। यह पात्र मनुष्य के हृदय से बनाया गया है।
क्या आपको ज्ञात नहीं है कि मनुष्य का हृदय कभी भी भरा नहीं जा सकता?
धन से, पद से, ज्ञान से- किसी से भी भरो, वह खाली ही रहेगा, क्योंकि इन चीजों से भरने के लिए वह बना ही नहीं है। इस सत्य को न जानने के कारण ही मनुष्य जितना पाता है, उतना ही दरिद्र होता जाता है।

हृदय की इच्छाएं कुछ भी पाकर शांत नहीं होती हैं। क्यों?
क्योंकि, हृदय तो परमात्मा को पाने के लिए बना है।''
शांति चाहिए ? संतृप्ति चाहिए ? तो अपने संकल्प को कहिए कि "भगवान श्रीकृष्ण" के सेवा के अतिरिक्त और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।

"कृष्ण से कृष्ण को ही मांगिए ।"

भगवान के नाम की महिमा

.                       जय श्री सीताराम
                        कल्याण 86/8
                     गीता प्रेस गोरखपुर



                         नाम--महिमा
                         °°°°°°°°°°°°

          भगवान के नाम की अमित महिमा है । वह कही नहीं जा सकती। स्वयं भगवान भी अपने नाम के गुणों का पार नहीं पा सकते---

कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई।।

         भूल से लोग नाम और नामी को दो विभिन्न वस्तु तथा नाम को नामी से छोटा मानते हैं। नाम का माहात्म्य अपार है,  असीम है,  अनन्त है ।
       नाम और नामी में छोटे-बड़े की बुद्धि नहीं करनी चाहिए।  नाम के विना नामी की पहचान ही नहीं हो सकती ।हमारे मन में यह भाव घुसा हुआ है कि नाम की जो इतनी महिमा शास्त्रों और संतों ने गायी है,  उसमें तथ्य कुछ नहीं है;  हमें केवल भुलाने में डालने के लिए ही यह इन्द्रजाल रचा गया है ।
          जगज्जननी पार्वती ने एक बार शिव जी से पूछा---'महाराज! आप इतना राम-राम जपते हैं और इसका इतना माहात्म्य बतलाते हैं। संसार के लोग भी इस नाम को रटते रहते हैं; फिर क्या कारण है,  उनका उद्धार नहीं होता?' महादेव जी बोले---'उनका राम-नाम की महिमा में विश्वास नहीं है ।' परीक्षा के लिए वे दोनों काशी के एक घाट पर बैठ गये, जहाँ से लोग गंगा स्नान करके राम नाम रटते हुये लौट रहे थे। योजनानुसार महादेव जी ने वृद्ध शरीर बनाया और फिर एक कीचड़ भरे गड्ढे में गिर पड़े तथा वृद्धा के वेष में पार्वती जी ऊपर बैठी रहीं। जो भी व्यक्ति उस मार्ग से गुजरता,  पार्वती जी उससे कहतीं---'मेरे पति को गड्ढे से निकाल दो।' जो निकालने जाता, उससे कहतीं---'जो निष्पाप हो, वही निकाले; अन्यथा इन्हें छूते ही भस्म हो जायगा ।' एक पर एक कई लोग आये, पर शर्त सुनकर लौट गये। सायंकाल हो आया; पर ऐसा कोई निष्पाप व्यक्ति न मिला। अन्ततः गोधूलि की वेला में गंगा स्नान करके एक व्यक्ति आया और राम नाम रटता हुआ वहाँ पहुंचा । माँ पार्वती ने उससे भी वही बात कही।
वह निकालने के लिए बढ़ा तो पार्वती जी ने एक बार फिर दोहराया---'निष्पाप व्यक्ति होना चाहिए;  अन्यथा भस्म हो जायगा।'
        इस पर वह बोला---'गंगा स्नान कर चुका हूँ और राम नाम ले रहा हूँ,  फिर भी पाप लगा ही है?  पाप तो एक बार के नाम स्मरण से छूट जाता है । मैं सर्वथा निष्पाप हूँ ।' कहकर वह गड्ढे में कूद पड़ा और बूढ़े बाबा को निकाल लाया। गौरीशंकर अब उससे कैसे छिपे रहते? वह दर्शन पाकर कृतार्थ हो गया।
        एक हम हैं। गंगा स्नान करते हैं,  राम नाम लेते हैं; परंतु अपने को सर्वथा निष्पाप नहीं मानते। नाम में और गंगा में हमारा पूर्ण विश्वास नहीं है । जितनी शक्ति नाम में पाप नाश की है,  उतनी शक्ति महापापी में भी पाप करने की नहीं है ।
        हम तो निरंतर भगवान के नामों को बेचते हैं; परंतु नाम की महिमा इतनी अधिक है कि उसका संस्कार मिट नहीं सकता। भगवान का नाम भगवान की ही भांति चेतन है और उसकी शक्ति भी अपरम्पार है ।
स्वामी रामसुखदास जी के श्रीमुख से
            ---हरिः शरणम्---

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