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शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2019

प्रतीक्षा, परीक्षा और समीक्षा।




                    प्रतीक्षा, परीक्षा और समीक्षा।

प्रतीक्षा- भक्ति के मार्ग में प्रतीक्षा बहुत आवश्यक है। प्रभु जरूर आयेंगे, कृपा करेंगे, ऐसा विश्वास रखते हुए प्रतीक्षा करें। बहुत बड़ी प्रतीक्षा के बाद शबरी की कुटिया में प्रभु आये थे।

परीक्षा- संसार की परीक्षा करते रहें। इस संसार में सब अपने कारणों से जी रहे हैं। किसी के भी महत्वाकांक्षा के मार्ग पर बाधा बनोगे वही तुम्हारा अपना, पराया हो जायेगा। संसार का तो प्रेम भी छलावा है। संसार को जितना जल्दी समझ लो तो अच्छा है ताकि प्रभु के मार्ग पर तुम जल्दी आगे बढ़ो।

समीक्षा - अपनी समीक्षा रोज करते रहो, आत्मचिन्तन करो। जीवन उत्सव कैसे बने ? प्रत्येक क्षण उल्लासमय कैसे बने? जीवन संगीत कैसे बने, यह चिन्तन जरूर करना। कुछ छोड़ना पड़े तो छोड़ने की हिम्मत करना और कुछ पकड़ना पड़े तो पकड़ने की हिम्मत रखना। अपनी समीक्षा से ही आगे के रास्ते दिखेंगे।

 ।।जय श्री कृष्ण।।

मां दुर्गा के नौ रूप

मां दुर्गा के नौ रूप







मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। नवदुर्गा के नौ स्वरूप स्त्री के जीवनचक्र को दर्शाते है। 
1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री" स्वरूप है।
 2.स्त्री का कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" का रूप है।
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह "चंद्रघंटा" समान है।
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह "कूष्मांडा" स्वरूप में है।
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री "स्कन्दमाता" हो जाती है।
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री "कात्यायनी" रूप है।
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह "कालरात्रि" जैसी है।
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से "महागौरी" हो जाती है।
9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली "सिद्धिदात्री" हो जाती है।

भजन सिमरन करने से क्या खास होता है?

            भजन सिमरन करने से क्या खास होता है?


अर्जुन श्री कृष्णजी से बोले :-"केशव, जब मृत्यु सभी की होनी है तो हम सत्संग भजन सेवा सिमरन क्यों करे, जो इंसान मौज मस्ती करता है मृत्यु तो उसकी भी होगी..!"

"श्री कृष्णजी ने अर्जुन से कहा:-"हे पार्थ, बिल्ली जब चूहे को पकड़ती है तो दांतो से पकड़कर उसे मार कर खा जाती है, लेकिन उन्ही दांतो से जब अपने बच्चे को पकड़ती है तो उसे मारती नहीं बहुत ही नाजुक तरीके से एक जगह से दूसरी जगह पंहुचा देती है..!दांत भी वही है मुह भी वही है पर परिणाम अलग अलग। ठीक उसी प्रकार मृत्यु भी सभी की होगी ,पर एक प्रभु के धाम में और दूसरा 84 के चक्कर में!
 तो यह आपको निर्णय लेना है कि प्रभु का नाम लेते हुए इस जीवन का बिताना है ,या सिर्फ मौज मस्ती करते हुए। मौज मस्ती भी करो, लेकिन प्रभु को कभी नहीं भूले।पूरे दिन में एक समय निश्चित कर लो कि दिन में एक बार अपने प्रभु को जरूर याद करना है और उस को धन्यवाद करना है कि उन्होंने आपको इतना सामर्थ्य वान बनाया कि आप मौज मस्ती कर रहे हैं ।😊
जय श्री राधे🙏🌹

साधना सफल कैसे होती है

                    साधना सफल कैसे होती ?

               
          साधनाऐं देवी-देवताओं की, मन्त्र, तंत्र की जो कर्मकांडों एवं अनुष्ठानों के साथ की जाती है, पर साधनाएँ साधक की आत्मिक स्थिति के अनुसार ही सफल होती हैं।
            श्रद्धा और विश्वास , साहस और धैर्य, एकाग्रता और स्थिरता, दृढ़ता और संकल्प ही वे तत्व हैं, जिनके आधार पर यह साधनाएँ सफल होती है।
            यदि साधक का संकल्प दुर्बल हो, श्रद्धा और विश्वास ढीलें हों, चित्त अस्थिर और अधीर रहे तो विधि-विधान सही होते हुए भी सही परिणाम नहीं मिलता।
         सच तो यह है कि आत्मा के अंतरंग प्रदेश में ही उन अदृश्य दैवी-शक्तियों का निवास होता है जो हमें कहीं बाहर रहती दिखती है।
जय श्री राधे

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2019

मुश्किलों में

मुश्किलों में



मुश्किलें बिन बुलाए मेहमान की तरह होती हैं, जो हमें बिना बताए परेशान करने चली आती हैं । और तब तक नहीं जाती हैं, जब तक कि हम उनका अपने विश्वास ,हौसला और परिश्रम से मुकाबला नहीं करते हैं ॥

लेकिन मुश्किलों की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि वो हमें पहले से ज्यादा सतर्क, पहले से ज्यादा मजबूत और पहले से ज्यादा होशियार बना देती हैं. और इनकी सबसे अच्छी बात ये होती है कि, जाते-जाते हमें कोई-न-कोई सबक जरुर सीखा देती हैं।
।।राधे राधे।।

प्रकृति के तीन कड़वें नियम



प्रकृति के तीन कड़वे नियम जो सत्य है

1-: प्रकृति  का पहला  नियम-
यदि खेत में  बीज न डालें जाएं  तो कुदरत  उसे *घास-फूस* से  भर देती हैं...!!
ठीक  उसी  तरह से  दिमाग  में *सकारात्मक* विचार  न भरे  जाएँ  तो *नकारात्मक*  विचार  अपनी  जगह  बना ही लेती है...!!

2-: प्रकृति  का दूसरा  नियम-
जिसके  पास  जो होता है...!!
  वह वही बांटता  है....!!*
सुखी *सुख* बांटता है...
दुःखी *दुःख* बांटता है..
ज्ञानी *ज्ञान* बांटता है..
भ्रमित *भ्रम* बांटता है..
भयभीत *भय* बांटता हैं......!!


 3-: प्रकृति  का तीसरा नियम-
आपको जीवन से जो कुछ भी मिलें उसे पचाना  सीखें क्योंकि भोजन* न पचने  पर रोग बढते है...!
पैसा न *पचने* पर दिखावा बढता है...!
बात  न *पचने* पर चुगली  बढती है...!
प्रशंसा  न *पचने* पर  अंहकार  बढता है....!
निंदा  न *पचने* पर  दुश्मनी  बढती है...!
राज न *पचने* पर  खतरा  बढता है...!
दुःख  न *पचने* पर  निराशा बढती है...!
और सुख न *पचने* पर  पाप बढता है...!
।।राधे राधे।।

आज का शुभ विचार




यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम्।
समदृष्टेस्तदा पुंस: सर्वा: सुखमया दिश:॥

अर्थात्:-- जो मनुष्य किसी भी जीव के प्रति अमंगल भावना नही रखता, जो मनुष्य सभी की ओर सम्यक् दॄष्टीसे देखता है, ऐसे मनुष्य को सब ओर सुख ही सुख है।
।।जय श्री राधे।।

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