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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

शिव स्तुति 2(विनय पत्रिका)

                       शिव स्तुति-2

शंकर के समान दानी कहीं नहीं है। वे दीन दयालु है, देना ही उनके मन भाता है। मांगने वाले उन्हें सदा सुहाते हैं। वीरों में अग्रणी कामदेव को भस्म करके फिर बिना ही शरीर जगत में उसे रहने दिया, ऐसे प्रभु का प्रसन्न होकर कृपा करना मुझसे क्योंकर कहा जा सकता है? करोड़ों प्रकार से योग की साधना करके मुनि गण जिस परम गति को भगवान हरि से मांगते हुए सकुचाते हैं, वही परम गति त्रिपुरारी शिवजी की पुरी काशी में कीट पतंगे भी पा जाते हैं। यह वेदों से प्रकट है। ऐसे परम उदार भगवान पार्वती पति को छोड़कर जो लोग दूसरी जगह मांगते मांगने जाते हैं, उन मूर्ख मांगने वालों का पेट भलीभांति कभी नहीं भरता।।

शिव स्तुति-1(विनय पत्रिका)

                            शिव स्तुति-1


भगवान शिव जी को छोड़कर और किससे याचना की जाय? आप दीनों पर दया करने वाले, भक्तों के कष्ट हरने वाले और सब प्रकार से समर्थ ईश्वर है। समुंद्र मंथन के समय जब कालकूट विष की ज्वाला से सब देवता और राक्षस जल उठे, तब आप अपने दीनों पर दया करने के प्रण की रक्षा के लिए तुरंत उसको पी गए। जब दारुण दानव त्रिपुरासुर जगत को बहुत दुख देने लगा, तब आपने उसको एक ही बाण से मार डाला। जिस परम गति को संत महात्मा, वेद और पुराण महान मुनियों के लिए भी दुर्लभ बताते हैं। हे सदाशिव! वही परम गति काशी में मरने पर आप सभी को समान भाव से देते हैं। हे पार्वती पति! हे परम सुजान! सेवा करने पर आप सहज में ही प्राप्त हो जाते हैं। आप कल्पवृक्ष के समान मुंह मांगा फल देने वाले उदार हैं। आप कामदेव के शत्रु हैं। अतः हे कृपा निधान! तुलसीदास को श्री राम के चरणों की प्रीति दीजिये।।

सूर्य स्तुति( विनय पत्रिका)

 


हे दीनदयालु भगवान सूर्य! मुनि, मनुष्य, देवता और राक्षस सभी आपकी सेवा करते हैं। आप पाले और अंधकार रूपी हाथियों को मारने वाले वनराज सिंह है। किरणों की माला पहने रहते हैं। दोष, दुख, दुराचार और रोगों को भस्म कर डालते हैं। रात के बिछड़े हुए चकवा चकवीयों को मिलाकर प्रसन्न करने वाले, कमल को खिलाने वाले तथा समस्त लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं। तेज,प्रताप, रूप और रस कि आप खानि है। आप दिव्य रथ पर चलते हैं, आपका सारथी (अरुण) लूला है। हे स्वामी! आप विष्णु, शिव और ब्रह्मा के ही रूप है। वेद पुराणों में आपकी कीर्ति जगमगा रही है। तुलसीदास आपसे श्री राम भक्ति का वर मांगता है।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

विनय पत्रिका पाठ करने से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

                  हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

 जय श्री राधे आप सभी को,

 अब मैं आप सबके लिए विनय पत्रिका का की शुरुआत कर रही हूं जो केवल हिंदी भावार्थ में ही प्रस्तुत करूंगी। गुरुदेव कहते हैं कि विनय पत्रिका का रोज अगर हम 11 पाठ करें तो  ईश्वर प्रसन्न होते हैं और हमारी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।वैसे तो हमारा मानना यह है कि किसी भी मनोकामना को लेकर नहीं करना चाहिए। ईश्वर खुश हो उसके लिए हमें नित्य, जितना हो सके, उतना पाठ हमें करना चाहिए, क्योंकि ईश्वर को पता है कि हमारी कौन सी इच्छा हमारे लिए शुभ है और कौन सी अशुभ। तो जो हमारे लिए ठीक होगा, ईश्वर वह हमें बिना मांगे ही हमें दे देंगे क्योंकि वह हमारे माता पिता है और माता पिता अपने बच्चों का भला ही सोचते हैं। कभी अशुभ नहीं सोचते।तो उनसे मांगने की जरूरत तो होनी ही नहीं चाहिए। जो हमारे लिए ठीक होगा वह बिना मांगे ही हमें दे देंगे, तो आशा करती हूं आपको विनय पत्रिका का भावार्थ पसंद आएगा। शुरू में तुलसीदास जी ने सभी ईश्वर से प्रार्थना की है कि उन्हें राम जी की भक्ति मिले ,तो शुरू में स्तुतियाँ है जो कि तुलसीदास जी ने की है, गुरुदेव का कहना यह है कि तुलसीदास जी ने यह आपके लिए विनय पत्रिका की रचना की है और यह सब प्रार्थना कि राम जी की शरण में हमें जगह मिले,क्योंकि तुलसीदास जी  को तो राम जी की कृपा प्राप्त ही है उन्होंने यह विनय पत्रिका हम जैसे जो काम, क्रोध, मद, लोभ में ग्रसित प्राणी हैं, उनके लिए लिखी है। ताकि ईश्वर हमें इन सब बुराइयों से बचा कर अपनी शरण में ले और हमें मुक्ति प्रदान करें, ताकि हमें इस जीवन में बार बार आना जाना और दुख झेलना ना पडे़। 

जय श्री राधे

सोमवार, 4 जनवरी 2021

रामायण क्या है?

 


                             रामायण क्या है?



‘* रा * का अर्थ है * प्रकाश *, * * मा * का अर्थ है * मेरे भीतर *, * मेरे दिल में *।

इसलिए,

* राम * का अर्थ है * मेरे भीतर का प्रकाश * ।।


* राम * का जन्म * दशरथ और कौसल्या * से हुआ था।


* दशरथ * का अर्थ है 10 * 10 रथ * * ।।

दस रथ * 5 इन्द्रिय अंगों * (* ज्ञानेंद्रिय *) और * कर्म के 5 अंगों * (* कर्मेन्द्रिय *) का प्रतीक है।


* कौसल्या * का अर्थ है Skill * कौशल * '।।


* 10 रथों के कुशल सवार राम * को जन्म दे सकते हैं।


जब 10 रथों का कुशलता से उपयोग किया जाता है,

* मूलाधार * का जन्म भीतर होता है ।।


* राम * का जन्म * अयोध्या * में हुआ था।

* अयोध्या * का अर्थ है a * एक ऐसी जगह जहाँ कोई युद्ध नहीं हो सकता * * ।।


जब हमारे मन में कोई संघर्ष नहीं है, तो द रेडिएंस कैन डॉन ..


* रामायण * केवल एक कहानी नहीं है जो बहुत पहले हुई थी।

इसमें एक * दार्शनिक *, * आध्यात्मिक महत्व * और एक * गहरा सत्य * है।


ऐसा कहा जाता है कि * रामायण हमारे अपने शरीर में हो रही है।


हमारी * आत्मा * * राम * है,

हमारा * मन * है * सीता *,

हमारी * सांस * या * जीवन-शक्ति * (* प्राण *) * हनुमान * है

हमारी * जागरूकता * * लक्ष्मण * और है

हमारा * अहंकार * है * रावण * ।।


जब * मन * (सीता), * अहंकार * (रावण) द्वारा चुराया जाता है, तो * आत्मा * (राम) को * बेचैन * हो जाता है।


अब * SOUL * (राम) अपने आप * * मन (सीता) तक नहीं पहुँच सकता।

इसमें * अवेयरनेस * (लक्ष्मण) होने से * सांस - प्राण * (हनुमान) का सहारा लेना पड़ता है


* प्राण * (हनुमान), और * जागरूकता * (लक्ष्मण) की मदद से,

* मन * (सीता) का पुनर्मिलन * आत्मा * (राम) और * अहंकार * (रावण) के साथ * मृत्यु / लुप्त * हो गया।


* वास्तव में रामायण हर समय होने वाली एक शाश्वत घटना है * .. 


चंदा मामा क्यों कहा जाता है?

  


आपको मालूम है चंदा को बहुत लोग मामा कहते हैं क्यों क्योंकि जिस समुद्र से लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ है उसी समुंदर से चंद्रमा भी प्रकट हुए है। एक ही समुंदर से उत्पन्न होने के कारण श्री लक्ष्मी जी के भाई लगते हैं चंद्रमा। लक्ष्मी जी सारे जगत की माता है और यह जगत माता के भाई होने के कारण, जगत मामा कहलाते हैं। इसलिए सब चंदा मामा कहते हैं।

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

कुसंग, (बुरा संग)

                             कुसंग, यानि बुरा संग
बचपन का सत्संग जीवन भर के लिए लाभदायक होता है। इसी तरह बचपन का कुसंग भी जीवन को बिगाड़ देता है। दिनभर सत्संग में रहो, एक क्षण भी यदि कुसंग मिल गया तो सत्संग का प्रभाव नष्ट हो जाएगा। व्यक्ति के संग का, वेशभूषा का, खानपान का, कुसंग भी हानिकारक है।
          जे राखे  रघुवीर ते उबरे तेहि काल महूँ।।
 प्रभु ही सत्संग देने वाले हैं और कुसंग से बचाने वाले हैं। अतः हरिः शरणं हरिः शरणं । मैं भगवान की शरण में हूं, मैं भगवान की शरण में हूं। बार-बार कहना चाहिए, स्मरण रखना चाहिए।(दादा गुरु श्री गणेशदास भक्त माली जी के श्री मुख से)

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