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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

काशी स्तुति(विनय पत्रिका)

                                 काशी स्तुति

इस कलयुग में काशी रूपी कामधेनु का प्रेम सहित जीवन भर सेवन करना चाहिए। यह शोक, संताप, पाप और रोग का नाश करने वाली तथा सब प्रकार के कल्याण की खानी है। काशी के चारों ओर की सीमा इस कामधेनु के सुंदर चरण है। स्वर्गवासी देवता इसके चरणों की सेवा करते हैं। यहां के शक्ति स्थान इसके शुभ अंग है और राष्ट्रहित अगणित शिवलिंग इसके रूप है अंतर्गत काशी का मध्य भाग इस कामधेनु का ऐन यानी के गद्दी है। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों के चार थन है। वेद शास्त्रों पर विश्वास रखने वाले आस्तिक लोग इस के बछड़े हैं। विश्वासी पुरुषों को ही इस में निवास करने से मुक्ति रूपी अमृत में दूध मिलता है। सुंदर वरुणा नदी इसकी गल कंबल के समान शोभा बढ़ा रही है और असी नामक नदी पूछ के रूप में शोभित हो रही है। दंड धारी भैरव इसके सींग है, पाप में मन रखने वाले दुष्टों को उन सींगो से यह सदा डराती रहती है। लोलार्क कुंड और त्रिलोचन( एक तीर्थ) इसके नेत्र हैं और कर्ण घंटा नामक तीर्थ इसके गले का घंटा है। मणिकर्णिका  इसका चंद्रमा के समान सुंदर मुख है। गंगा जी से मिलने वाला पाप ताप नाश रूपी सुख इसकी शोभा है। भोग और मोक्ष रूपी सुखों से परिपूर्ण पंचकोशी की परिक्रमा इसकी महिमा है। दयालु ह्रदय विश्वनाथ जी इस कामधेनु का पालन पोषण करते हैं और पार्वती सरीखी स्मनेहमयी जगजननी इस पर सदा प्यार करती रहती हैं। आठों सिद्धियां सरस्वती और इंद्राणी शची उसका पूजन करती हैं ।जगत का पालन करने वाली लक्ष्मी सरीखी इसका रुख देखती रहती हैं। 'नमः शिवाय' यह पंचाक्षरी मंत्र ही इसके पांच प्राण है ।भगवान बिंदुमाधव ही आनंद है। पंच नदी पंचगंगा तीर्थ ही इसके पंचगव्य है। यह संसार को प्रकट करने वाले राम नाम के दो अक्षर र कार और मकार इस के अधिष्ठाता ब्रह्मा और जीव हैं। यहां मरने वाले जीवो का सब सुकर्म और कुकर्म रुपी  घास यह चार जाती है। जिससे उनको वही परम पद रूपी पवित्र दूध मिलता है, जिसको संसार के विरक्त महात्मा गण चाहा करते हैं। पुराणों में लिखा है कि भगवान विष्णु ने संपूर्ण कला लगाकर अपने हाथों से इसकी रचना की है। हे तुलसीदास! यदि तू सुखी होना चाहता है तो काशी में रहकर श्री राम नाम का जप कर।।

शिव स्तुति 2(विनय पत्रिका)

                       शिव स्तुति-2

शंकर के समान दानी कहीं नहीं है। वे दीन दयालु है, देना ही उनके मन भाता है। मांगने वाले उन्हें सदा सुहाते हैं। वीरों में अग्रणी कामदेव को भस्म करके फिर बिना ही शरीर जगत में उसे रहने दिया, ऐसे प्रभु का प्रसन्न होकर कृपा करना मुझसे क्योंकर कहा जा सकता है? करोड़ों प्रकार से योग की साधना करके मुनि गण जिस परम गति को भगवान हरि से मांगते हुए सकुचाते हैं, वही परम गति त्रिपुरारी शिवजी की पुरी काशी में कीट पतंगे भी पा जाते हैं। यह वेदों से प्रकट है। ऐसे परम उदार भगवान पार्वती पति को छोड़कर जो लोग दूसरी जगह मांगते मांगने जाते हैं, उन मूर्ख मांगने वालों का पेट भलीभांति कभी नहीं भरता।।

शिव स्तुति-1(विनय पत्रिका)

                            शिव स्तुति-1


भगवान शिव जी को छोड़कर और किससे याचना की जाय? आप दीनों पर दया करने वाले, भक्तों के कष्ट हरने वाले और सब प्रकार से समर्थ ईश्वर है। समुंद्र मंथन के समय जब कालकूट विष की ज्वाला से सब देवता और राक्षस जल उठे, तब आप अपने दीनों पर दया करने के प्रण की रक्षा के लिए तुरंत उसको पी गए। जब दारुण दानव त्रिपुरासुर जगत को बहुत दुख देने लगा, तब आपने उसको एक ही बाण से मार डाला। जिस परम गति को संत महात्मा, वेद और पुराण महान मुनियों के लिए भी दुर्लभ बताते हैं। हे सदाशिव! वही परम गति काशी में मरने पर आप सभी को समान भाव से देते हैं। हे पार्वती पति! हे परम सुजान! सेवा करने पर आप सहज में ही प्राप्त हो जाते हैं। आप कल्पवृक्ष के समान मुंह मांगा फल देने वाले उदार हैं। आप कामदेव के शत्रु हैं। अतः हे कृपा निधान! तुलसीदास को श्री राम के चरणों की प्रीति दीजिये।।

सूर्य स्तुति( विनय पत्रिका)

 


हे दीनदयालु भगवान सूर्य! मुनि, मनुष्य, देवता और राक्षस सभी आपकी सेवा करते हैं। आप पाले और अंधकार रूपी हाथियों को मारने वाले वनराज सिंह है। किरणों की माला पहने रहते हैं। दोष, दुख, दुराचार और रोगों को भस्म कर डालते हैं। रात के बिछड़े हुए चकवा चकवीयों को मिलाकर प्रसन्न करने वाले, कमल को खिलाने वाले तथा समस्त लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं। तेज,प्रताप, रूप और रस कि आप खानि है। आप दिव्य रथ पर चलते हैं, आपका सारथी (अरुण) लूला है। हे स्वामी! आप विष्णु, शिव और ब्रह्मा के ही रूप है। वेद पुराणों में आपकी कीर्ति जगमगा रही है। तुलसीदास आपसे श्री राम भक्ति का वर मांगता है।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

विनय पत्रिका पाठ करने से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

                  हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

 जय श्री राधे आप सभी को,

 अब मैं आप सबके लिए विनय पत्रिका का की शुरुआत कर रही हूं जो केवल हिंदी भावार्थ में ही प्रस्तुत करूंगी। गुरुदेव कहते हैं कि विनय पत्रिका का रोज अगर हम 11 पाठ करें तो  ईश्वर प्रसन्न होते हैं और हमारी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।वैसे तो हमारा मानना यह है कि किसी भी मनोकामना को लेकर नहीं करना चाहिए। ईश्वर खुश हो उसके लिए हमें नित्य, जितना हो सके, उतना पाठ हमें करना चाहिए, क्योंकि ईश्वर को पता है कि हमारी कौन सी इच्छा हमारे लिए शुभ है और कौन सी अशुभ। तो जो हमारे लिए ठीक होगा, ईश्वर वह हमें बिना मांगे ही हमें दे देंगे क्योंकि वह हमारे माता पिता है और माता पिता अपने बच्चों का भला ही सोचते हैं। कभी अशुभ नहीं सोचते।तो उनसे मांगने की जरूरत तो होनी ही नहीं चाहिए। जो हमारे लिए ठीक होगा वह बिना मांगे ही हमें दे देंगे, तो आशा करती हूं आपको विनय पत्रिका का भावार्थ पसंद आएगा। शुरू में तुलसीदास जी ने सभी ईश्वर से प्रार्थना की है कि उन्हें राम जी की भक्ति मिले ,तो शुरू में स्तुतियाँ है जो कि तुलसीदास जी ने की है, गुरुदेव का कहना यह है कि तुलसीदास जी ने यह आपके लिए विनय पत्रिका की रचना की है और यह सब प्रार्थना कि राम जी की शरण में हमें जगह मिले,क्योंकि तुलसीदास जी  को तो राम जी की कृपा प्राप्त ही है उन्होंने यह विनय पत्रिका हम जैसे जो काम, क्रोध, मद, लोभ में ग्रसित प्राणी हैं, उनके लिए लिखी है। ताकि ईश्वर हमें इन सब बुराइयों से बचा कर अपनी शरण में ले और हमें मुक्ति प्रदान करें, ताकि हमें इस जीवन में बार बार आना जाना और दुख झेलना ना पडे़। 

जय श्री राधे

सोमवार, 4 जनवरी 2021

रामायण क्या है?

 


                             रामायण क्या है?



‘* रा * का अर्थ है * प्रकाश *, * * मा * का अर्थ है * मेरे भीतर *, * मेरे दिल में *।

इसलिए,

* राम * का अर्थ है * मेरे भीतर का प्रकाश * ।।


* राम * का जन्म * दशरथ और कौसल्या * से हुआ था।


* दशरथ * का अर्थ है 10 * 10 रथ * * ।।

दस रथ * 5 इन्द्रिय अंगों * (* ज्ञानेंद्रिय *) और * कर्म के 5 अंगों * (* कर्मेन्द्रिय *) का प्रतीक है।


* कौसल्या * का अर्थ है Skill * कौशल * '।।


* 10 रथों के कुशल सवार राम * को जन्म दे सकते हैं।


जब 10 रथों का कुशलता से उपयोग किया जाता है,

* मूलाधार * का जन्म भीतर होता है ।।


* राम * का जन्म * अयोध्या * में हुआ था।

* अयोध्या * का अर्थ है a * एक ऐसी जगह जहाँ कोई युद्ध नहीं हो सकता * * ।।


जब हमारे मन में कोई संघर्ष नहीं है, तो द रेडिएंस कैन डॉन ..


* रामायण * केवल एक कहानी नहीं है जो बहुत पहले हुई थी।

इसमें एक * दार्शनिक *, * आध्यात्मिक महत्व * और एक * गहरा सत्य * है।


ऐसा कहा जाता है कि * रामायण हमारे अपने शरीर में हो रही है।


हमारी * आत्मा * * राम * है,

हमारा * मन * है * सीता *,

हमारी * सांस * या * जीवन-शक्ति * (* प्राण *) * हनुमान * है

हमारी * जागरूकता * * लक्ष्मण * और है

हमारा * अहंकार * है * रावण * ।।


जब * मन * (सीता), * अहंकार * (रावण) द्वारा चुराया जाता है, तो * आत्मा * (राम) को * बेचैन * हो जाता है।


अब * SOUL * (राम) अपने आप * * मन (सीता) तक नहीं पहुँच सकता।

इसमें * अवेयरनेस * (लक्ष्मण) होने से * सांस - प्राण * (हनुमान) का सहारा लेना पड़ता है


* प्राण * (हनुमान), और * जागरूकता * (लक्ष्मण) की मदद से,

* मन * (सीता) का पुनर्मिलन * आत्मा * (राम) और * अहंकार * (रावण) के साथ * मृत्यु / लुप्त * हो गया।


* वास्तव में रामायण हर समय होने वाली एक शाश्वत घटना है * .. 


चंदा मामा क्यों कहा जाता है?

  


आपको मालूम है चंदा को बहुत लोग मामा कहते हैं क्यों क्योंकि जिस समुद्र से लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ है उसी समुंदर से चंद्रमा भी प्रकट हुए है। एक ही समुंदर से उत्पन्न होने के कारण श्री लक्ष्मी जी के भाई लगते हैं चंद्रमा। लक्ष्मी जी सारे जगत की माता है और यह जगत माता के भाई होने के कारण, जगत मामा कहलाते हैं। इसलिए सब चंदा मामा कहते हैं।

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