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सोमवार, 14 जून 2021

जिधर देखूं उधर मेरे श्याम ही श्याम हैं।

                   जिधर देखूं उधर मेरे श्याम ही श्याम हैं।



गोपियाँ श्री कृष्ण से पूछती हैं कि कान्हा बताओ तुम जिस पर कृपा करते हो उसे क्या प्रदान करते हो.

 तो श्यामसुंदर कहते हैं कि हे मेरी प्यारी गोपियों ! मैं जिन पर सबसे ज्यादा प्रसन्न होता हूँ न उसे अपना विरह देता हूँ.गोपियों ने कहा – अच्छा – मिलन ? 

कृष्ण कहते हैं – मिलन तो सबसे छोटी वस्तु है – मिलता तो मैं रावण से भी हूँ ,

 मिलता तो मैं कुम्भकर्ण के साथ भी हूँ , मिलता तो मैं मेघनाथ के साथ , कंस के साथ , जरासंध के साथ , विदूरथ , दंतवक्र , रुक्मी , शाल्व , पौण्ड्रक , दुर्योधन , दुःशासन – इनके साथ भी मिलता हूँ.

मिलन कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है मेरे साथ – सबसे मिलता हूँ.पर मेरे प्रेम में जो रुदन करता है – हे कृष्ण – हे कृष्ण , उस विरह में जो आनंद है वह विराहानंद केवल मैं अपने रसिक भक्तों को देता हूँ ।

मिलनानंद तो मैंने सबको दिया है , सहज ही प्राप्त हूँ – सबके हृदय में हूँ , रोम रोम में हूँ , कण कण में हूँ ।

आत्मा स्वरूप में मैं ही विराजित हूँ , धड़कन में मैं ही हूँ ,

 रोम रोम में मैं ही हूँ ” रोम रोम प्रति वेद कहे ” ।

इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि मिलन की आकांक्षा बड़ी छोटी आकांक्षा है , प्रियतम मिल गए लेकिन अब प्रियतम के विरह का आनंद –

 क्योंकि जब मिलन होता है 

तो आँखों के सामने होता है – मैं तुम्हारे सामने बैठा हूँ तुम पीछे न देखोगे , जब मिलन होता है तो आँखों के सामने होता है पर जब विरह होता है तो चारो तरफ वही वही होता है – 

‘जित देखूँ तित श्याममयी है’ – 

जब श्यामसुंदर वृन्दावन में हैं तो गोपियाँ सामने सामने देख लेती हैं , किसी दिन श्याम नही आता,तो रोती हैं कि आज नहीं आया मेरे घर पर और जब श्यामसुंदर मथुरा चले जाते हैं -----

तो थोड़ी सी बिजली भी कड़कती है , थोडा मेघ भी छाता है , थोड़ा पत्ते भी खड़खड़ाते हैं तो श्याम आया , श्यामसुंदर आ गए ,

 श्यामसुंदर आ गए – मेघ में भी श्यामसुंदर , जल में भी श्यामसुंदर ,पत्तों में भी श्यामसुंदर , तुलसी में भी श्यामसुंदर , गैय्या में भी श्यामसुंदर –

 अरे हर जगह उनको श्यामसुंदर का ही दर्शन – मिलन में भी श्यामसुंदर और विरह में चारो तरफ प्रियतम ही प्रियतम ।

इसलिए ब्रज वृन्दावन की जो साधना है मिलन की नहीं विरह की है । जिन्होंने विरह का रस चखा नहीं , जिन्होंने विरहानंद प्राप्त किया नहीं – न तो वे कृष्ण के योग्य हैं न तो वे गुरु के योग्य हैं ।

इस संसार की नहीं इस ब्रह्माण्ड की श्रेष्ठ वस्तु अगर कोई है तो श्रीकृष्ण के विरह में होकर रुदन करना है –

रोओ । लोग कहते हैं हँसो – मैं कहती हूँ तुमसे – रोओ कि तुम्हारे जगत की हँसी उतनी कामयाब नहीं है – 

आज है कल गायब हो जाएगी पर श्री कृष्ण के विरह में यदि तुमको रोना आ गया, तुम्हारे प्रियतम के विरह में तुमको अगर रोना आ गया, तो तुम्हारे जीवन में चरमानंद और परमानंद की कभी आवश्यकता नहीं पड़ेगी

क्योकि इससे बड़ा परमानंद श्रीकृष्ण किसी और को मानते नहीं –‘रासो वै सः’

जो वेद पुरुष हैं , 

जो रस के घनस्वरूप हैं वो कहते हैं कि विरहानंद श्रेष्ठ है और फिर आज प्रिया और प्रियतम दोनों चले जाते हैं

और गोपियां दोनों हाथ उठा कर वृन्दावन की गलियों में घूम घूम कर – हा प्रिया – हा प्रियतम कब दर्शन दोगे और फिर उस रुदन में उस विरह में जो आनंद उनको मिलता है वह उनको मिलन में न था ।

 इसलिए श्रीकृष्ण की साधना सहज नहीं , श्रीकृष्ण की साधना बड़ी टेढ़ी है और यहाँ का रस एक बार जिसने चख लिया उसको फिर और कोई रस जगत का भाता नहीं –

 ये नवरस , षडरस , ये भोजन के रस , मैथुन रस , शयन रस , प्रतिष्ठा रस , ये मान रस – ये जितनें भी रस है---

 सौंदर्य रस, वीर रस , रौद्र रस ,वीभत्स रस – ये जितने भी रस हैं न वे सब रस नाली के पानी की तरह हैं , नाली के गंदले जल की तरह हैं – 

एक बार जिसने प्रिया और प्रियतम के विरहानंद का रस आस्वादन कर लिया – पर यह बिना किसी रसिक संत के सानिध्य में आए संभव नहीं ,

बिना उनकी अहैतुकी कृपा जरा ध्यान देना – वो किसी हेतु से तुम्हारे ऊपर कृपा नहीं करते ,

 तुम्हारी योग्यता कृपा करनें के लिए उनको बाध्य नहीं कर सकती , उनकी कृपा सदैव अहैतुकी होती है – बिना किसी हेतु के , बिना किसी कारण के । 

अकारणकरुणावरुणालय नाम है  परमात्मा का । जो कारण से करुणा करे वह तो संसारी है पर जो अकारण करुणा बरसाए वही तो सद्गुरु है , 

वही तो तुम्हारा साँवरा है , वही तो तुम्हारा प्रियतम है इसलिए यहां तुमारी योग्यता महत्वपूर्ण नहीं है , यहाँ तुम्हारी तपस्या महत्वपूर्ण नहीं है।यहाँ तुम्हारे विरह के आँसू तुम्हारे मन के भाव महत्वपूर्ण है।।मन की तड़प जो उनसे मिलने की है वो जरूरी है तब तो वो एक पल नही देर लगाते----

।।मेरे राधारमण।।

सोमवार, 7 जून 2021

श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित

                        श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित

              श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।

            बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।

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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।

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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥

《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।

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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥

《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।

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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥

《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।

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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥

《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।

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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥

《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।

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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥

《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।

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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥

《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।

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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥

《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।

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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥

《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।

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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥

《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।

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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥

《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।

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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥

《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।

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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥

《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।

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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥

《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।

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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥

《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।

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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥

《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।

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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥

《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।

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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥

《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।

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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥

《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।

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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥

《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।

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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥

《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।

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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥

《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।

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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥

《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।

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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥

《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।

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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥

《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।

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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥

《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।

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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥

《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।

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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥

《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।

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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥

《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।

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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥

《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।

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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।

1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।

2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।

3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।

4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।

5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।

6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।

7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।

8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।

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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥

《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।

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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥

《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।

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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥

《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।

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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥

《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।

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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥

《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।

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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥

《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।

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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥

《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।

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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥

《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।

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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥

《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।

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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★

《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।

।।श्री सीता राम।।

मंगलवार, 4 मई 2021

भए प्रगट कृपाला (हिन्दी में अर्थ)

                   भए प्रगट कृपाला (हिन्दी में अर्थ)


 भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी

 हर्षित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी

 लोचन अभिरामा तनु घनश्याम निज आयुध भुज चारी

 भूषन वनमाला नयन विशाला शोभा सिंधु खरारी।।

 दीनों पर दया करने वाले कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाले, मेघ के समान श्याम शरीर था; चारों भुजाओं में अपने खास आयुध धारण किए हुए थे दिव्या भूषण और वनमाला पहने थे। बड़े बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए ।

 कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता

 करुणा सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंताा।।

दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी हे अनन्त! में किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूं।वेद और पुराण तुमको माया, गुण और ज्ञान से परे परिमाण रहित बतलाते हैं। श्रुतियां और संत जन दया और सुख का समंदर, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं। वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरी कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं।


ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,रोम रोम प्रति बेद कहै।

मम उर सो बासी, यह उपहासी,सुनत धीर मति थिर न रहै॥

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥

वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्मांडो के समूह भरे हैं। वे (तुम) मेरे घर में रहे, (इस हंसी के बाद के) सुनने पर  विवेकी पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती है, विचलित हो जाती है। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराए। वह बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। उन्होंने पूर्व जन्म की सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का वात्सल्य प्रेम प्राप्त हो।भगवान के प्रति पुत्र भाव हो जाए।
माता पुनि बोली, सो मति डोली,तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,ते न परहिं भवकूपा॥
माता की वह बुद्धि बदल गई। तब वह फिर बोली है यह रूप छोड़कर अत्यंत प्रिय बाल लीला करो। मेरे लिए यह सुख परम अनुपम होगा। यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक के रूप को कर, रोना शुरू कर दिया।तो तुलसी दास जी कहते हैं जो इस चरित्र का गान करते हैं वे श्रीहरि का पद पाते हैं और फिर संसार रूपी कुंऐ में नहीं गिरते हैं।
बिप्र धेनु सुर संत हित,लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु,माया गुन गो पार ॥

ब्राह्मण देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया है। वह माया और उसके गुण सत ,रज और तम और बाहरी और भीतरी इंद्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर अपनी इच्छा से ही बना है।किसी कर्म बंधन से प्रवेश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं।

।।राम।।


शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

इन नामों का श्रवण करने तथा पाठ करने से सब कार्य बिना किसी रुकावट के संपन्न हो जाते हैं।

              गणेश जी के 12 नामों का जप करने से लाभ

 इन नामों का श्रवण करने तथा पाठ करने से सब कार्य बिना किसी रुकावट के संपन्न हो जाते हैं।

सुमुख, एकदंत, कपिलो, गजकर्ण, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशन, गणाधिप, धूम्रकेतु ,गणाध्यक्ष, भालचंद्र तथा गजानन।

 इन 12 नामों का जो भी विद्या, विवाह,ग्रह प्रवेश, यात्रा प्रस्थान, संग्राम या संकट के समय पाठ करता है अथवा सुनता है। उसके कार्य में कोई विघ्न उपस्थित नहीं होता है। सभी बाधाओं को शांत करने के लिए, श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, चंद्रमा के समान श्वेत आभा वाले, चार भुजाओं को धारण करने वाले तथा प्रसन्न मुख मंडल  भगवान गणेश का ध्यान करना चाहिए जो मनुष्य प्रातकाल उठकर शोच, स्नानादि से निवृत हो, पवित्र होकर समाहित चित्त, श्रद्धा भक्ति से इन 12 नामों का पाठ करता है। उस व्यक्ति को कोई भी विघ्न बाधा नहीं पहुंचती।उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं और अंत में वह मोक्ष को प्राप्त करता है। 

।।श्री गणेशा।।

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

प्रभु इच्छा पर निर्भर रहने से क्या होता है?

                                    प्रभु इच्छा



हमको प्रभु इच्छा के अधीन रहना चाहिए। यह संसार का नियम है कि जिस वस्तु से सुख प्राप्त होता है उसी से दुख भी होता है। संसारी सुख के बदले संसारी दुख मिलता है। श्री कृष्ण के मिलन से गोपियों को दिव्य सुख मिला, फिर वियोग में उन्हें दिव्य दुख मिला। कृष्ण के विरह का दुख स्वर्गादि के सुखों की अपेक्षा अनंत गुना अधिक सुखप्रद है। अतः भक्तजन विरह की कामना करते हैं।

इस संसार में अपने ही प्रारब्ध के अनुसार सुख दुख प्राप्त होते हैं। परंतु भगवान का अनन्य भक्त सुख दुख में अपने इष्ट देव की कृपा का अनुभव करता है। हानि लाभ में दूसरों को कारण मान कर उनसे राग द्वेष नहीं करता है। जिसने आत्मसमर्पण किया है उसे निश्चिंत रहना चाहिए। प्रभु जैसे रखे उसी प्रकार रहकर सर्वेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए।

भगवान की लीला सत्संग से क्या मिलता है?

                                   भक्ति में आनन्द             


  भगवान की लीला सत्संग से क्या मिलता है?


भगवान के प्रेमी जनों के सत्संग में जो भगवान की लीला कथाएं सुनने को मिलती हैं उनसे उन दुर्लभ ज्ञान की प्राप्ति होती है जिससे इस संसार के दुख निवृत हो जाते हैं। मन शांत हो जाता है। हृदय शुद्ध होकर आनंद का अनुभव करने लगता है। भक्ति योग प्राप्त हो जाता है।भगवान की ऐसी रसमई कथा का चस्का लग जाने पर भला कौन ऐसा है जो कथा में प्रेम ना करें। भगवान के गुण ऐसे मधुर हैं कि ज्ञानी लोगों को भी अपनी और खींच लेते हैं। ज्ञानी यानी आत्मज्ञानी कृष्ण रूप में मगन होते हैं। अन्य विषयों का ज्ञानी कृष्ण की ओर आकर्षित नहीं हो सकता है।

जय श्री राधे

 दादा गुरु गणेशदास भक्तमाली जी महाराज के श्री मुख से, परमार्थ के पत्र पुष्प में से।

शुक्रवार, 19 मार्च 2021

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्त्रोत का अर्थ

                     श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्त्रोत(हिंदी में)



 भावार्थ= ब्रजमंडल के भूषण तथा समस्त पापों के नाश करने वाले सच्चे भक्त के चित्त में विहार कर आनंद देने वाले नंदनंदन का मै  सर्वदा भजन करता हूं। जिनके मस्तक पर मनोहर मोर पंखों के गुच्छे हैं। जिनके हाथों में सुरीली मुरली है तथा जो प्रेम तरंगों के समुंद्र हैं उन् नटनागर श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

कामदेव का गर्व नाश करने वाले बड़े-बड़े चंचल लोचनों वाले, ग्वाल बालों का शौक नष्ट करने वाले, कमल लोचन को मेरा नमस्कार है। कर कमल पर गोवर्धन पर्वत धारण करने वाले, मुस्कान युक्त सुंदर चितवन वाले, इंद्र का मान मर्दन करने वाले, गजराज के सदृश मत्त श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

कदम्ब पुष्पों के कुंडल धारण करने वाले, अत्यंत सुंदर गोल कपोलों वाले, ब्रिजांगनाओं के लिए ऐसे परम दुर्लभ श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है। ग्वाल बाल और श्री नंद राय जी के सहित मोदमयी यशोदा जी को आनंद देने वाले श्री गोप नायक को मेरा नमस्कार है।

मेरे हृदय में सदा अपने चरण कमलों को स्थापन करने वाले, सुंदर घूंघराली अलकों वाले नंदलाल को मैं नमस्कार करता हूं ।समस्त दोषों को भस्म कर देने वाले, समस्त लोकों का पालन करने वाले, समस्त गोपकुमारों के हृदय तथा श्री नंद राय जी की वात्सल्य लालसा के आधार श्री कृष्ण को मेरा नमस्कार है।

भूमि का भार उतारने वाले, भवसागर से तारने वाले, कर्णधार श्री यशोदा किशोर चित्तचोर को मेरा नमस्कार है। कमनीय कटाक्ष चलाने की कला में प्रवीण, सर्वदा दिव्य सखियों से सेवित, नित्य नए-नए प्रतीत होने वाले नंदलाल को मेरा नमस्कार है।

गुणों की खान और आनंद के निधान, कृपा करने वाले तथा कृपा पर अर्थात कृपा करने के लिए तत्पर, देवताओं के शत्रु दैत्यों का नाश करने वाले गोप नंदन को मेरा नमस्कार है। नवीन गोप सखा नटवर, नवीन खेल खेलने के लिए लालायित,घनश्याम अंग वाले, बिजली सदृश सुंदर पितांबर धारी श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

समस्त गोपों को आनंदित करने वाले, हृदय कमल को प्रफुल्लित करने वाले, निकुंज के बीच में विराजमान, प्रसन्न मन सूर्य के समान प्रकाशमान श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है। संपूर्ण अभिलाषित कामनाओं को पूर्ण करने वाले, वाणों के समान चोट करने वाली चितवन वाले, मधुर मुरली में गीत गाने वाले, निकुंज नायक को मैं नमस्कार करता हूं।

चतुर गोपीकाओं की मनोज्ञ तल्प पर शयन करने वाले, कुंज वन में बड़ी हुई बिरहा अग्नि को पान करने वाले तथा श्री वृषभानु किशोरी की अंग कांति से जिनके अंग झलक रहे हैं। जिनके नेत्रों में अंजन शोभा दे रहा है। गजराज को मोक्ष देने वाले तथा श्री जी के साथ विहार करने वाले, श्री कृष्ण चंद्र भगवान को मेरा नमस्कार है।

जहां कहीं भी जैसी परिस्थिति में मैं रहूं, सदा श्री कृष्ण चंद्र की सरस कथाओं का मेरे द्वारा सर्वदा गान होता रहे। बस ऐसी कृपा रहे। श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्त्रोत तथा श्री राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत इन दोनों सिद्ध स्त्रोतों को जो प्रातकाल उठकर, भक्ति भाव में स्थित होकर नित्य पाठ करते हैं। उनको ही साक्षात श्री कृष्ण चंद्र मिलते हैं।

।। जय श्री राधे।।

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