यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

कथा सुनने के चार लाभ है.....

                       कथा सुनने के चार लाभ है.....



श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव ।।

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥

कथा सुनने के चार लाभ है......

भागवत की कथा अर्थात भगवान की कथा तो है ही पर भगवान की कथा बिना भक्तो की कथा के अधूरी है।

इसलिए हर शास्त्र में पुराण में भगवान की कथा के साथ साथ भक्तो की कथा भी आती है.नवधा भक्ति में सबसे पहली भक्ति श्रवण ही है।

जो हम कानो से सुनते है वही हमारे ह्रदय में प्रवेश करता है,और फिर वही हम बोलते है.यदि हम कथा सुनते है तो मुख से कथा ही निकलेगी.

"जिन्ह हरि कथा सुनी नहीं काना, श्रवण रन्ध्र अहि भवन समाना”


संतजन कथा सुनने के चार लाभ बताते है-

1. - तृष्णा रहित वृति

2. - अन्तः करण की शुद्धि

3. - अनन्य भक्ति

भक्तो से प्रीति–

1. तृष्णा रहित वृति - यदि कथा ईमानदारी से कही और सुनी जाए तो दोनों कहने और सुनने वाले को कुछ ओर पाने की अभिलाषा नहीं रह जाती।

इसलिए सुनने वह ये निश्चय करके कथा में बैठे कि कथा मनोरजन नहीं है,मनो मंथन है.कथा एक आईना है,

जिसमे हम स्वयं को देखने आये है,सामान्य आईना सिर्फ बाहरी रूप रंग दिखाता है और कथा आतंरिक भावों को दिखाती है,कि हम वास्तव में क्या है।

और सुनानेवाले अर्थात वक्ता कथा को व्यापार या रोजी रोटी का साधन न समझे.सुनने वाला तो एक ही काम कर रहा है,केवल सुन ही रहा है पर वक्ता दो काम एक साथ कर रहा है एक तो सुना रहा है साथ साथ सुन भी रहा है.जब ऐसी ईमानदारी रखेगे तो फिर तृष्णा रहित वृति हो जाती है।

2. अन्तःकरण की शुद्धि - सत्संग कथा झाड़ू है जैसे खुला मैदान है दो तीन बार झाड़ू लगा दो सब साफ़ हो जाता है,इसलिए अपने अतः करण में सत्संग की झाड़ू लगाते रहो,

जैसे यदि हम कुछ दिनों के लिए कही बाहर जाते है और लौट कर आने पर हम देखते है कि जब हम गए थे तब सब खिडकी दरवाजे बंद करके गए थे फिर भी धूल कैसे आ गई।

इसी तरह यदि कोई संत ही क्यों न हो यदि उसने सत्संग के दरवाजे बंद कर दिए तो उनके अंदर भी मैल ,धूल जमा हो जाती है।

इसलिए जैसे घर को साफ रखने के लिए बार बार झाड़ू लगाते है वैसे ही अंत करण को शुद्ध रखने के लिए कथा रूपी,सत्संग रूपी झाड़ू लगाते रहिये।

3. अनन्य भक्ति - जब किसी के बारे में सुनते रहते है जिसे हमने कभी नहीं देखा तो बार बार उसके बारे में सुनते रहने से स्वतः ही हमारे अंदर उसके लिए प्रेम जाग्रत हो जाता है।

इसी तरह जब हम बार बार कथा सुनते है तो ठाकुर जी के चरणों में हमारी स्वतः ही भक्ति जाग्रत हो जाती है.जैसे लोभी को धन कामी को स्त्री ऐसे ही हमें श्यामा श्याम प्यारे लगने लगते है।

4. भक्तो से प्रीति - भक्त तो भगवान से सदा ही प्रार्थना करता है कि हे नाथ ऐसे विषयी पुरुष जो केवल स्त्री धन पुत्र आदि में लगे हुए है उनका संग भी स्वप्न में भी न हो हमारा कोई अपराध हो तो सूली पर चढा दो ,हलाहल विष पिला दो ,हाथी के नीचे कुचलवा दो, सिंह को खिला दो,

इतना होने पर भी दुःख नहीं मिलेगा पर जो संत से विमुख है,हरि से विमुख है ,गुरु से विमुख है जो भगवान और भक्तो से प्रेम न करता हो, उनसे हमारा कोई सम्बन्ध ना हो।

श्री राधे 

सोमवार, 16 अगस्त 2021

महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं

 महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?



शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि हे देवी ! जो व्यक्ति एक बार  राम कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ। 

पार्वती जी ने एक बार शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगाते हैं?

उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग राम नाम सत्य है* कहते हुए शव को ला रहे थे। 

शिव जी ने कहा कि देखो पार्वती ! इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो राम नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य राम नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगों के मुख से राम नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ।

 राम नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे अगाध प्रेम रहता है। 

एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से भोजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थीं। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए।

 शिव जी ने कहा कि इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो। 

पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुनना चाहती हूँ। 

शिव जी ने बताया, केवल एक बार राम कह लो तुम्हें सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा। 

एक राम नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। 

पार्वती जी ने वैसा ही किया। 

पार्वत्युवाच –

केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?

पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।

ईश्वर उवाच-

श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।

सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।

यह राम नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ। 

आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।

लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।

 भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल *राम* नाम का गर्जन(जप) है। 

भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्।

तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्।

प्रयास पूर्वक स्वयम् भी *राम* नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके *राम* नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दूसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है। 

 इसीलिए हमारे देश में प्रणाम–

 'राम राम' कहकर किया जाता है। 

जय जय श्री राम

श्री हरि का नाम सुनते ही या कन्हैया का नाम सुनते ही उससे मिलने की, उसको पाने की तड़प होने लगे उसी का नाम प्रेम है।

          प्रेम के दो रुप हैं; एक प्यास और एक तृप्ति



श्री हरि का नाम सुनते ही या कन्हैया का नाम सुनते ही उससे मिलने की, उसको पाने की तड़प होने लगे उसी का नाम प्रेम है।

नन्दनन्दन, श्यामसुन्दर, मुरलीमनोहर,पीताम्बरधारी–

जिनके मुखारविन्द पर मन्द-मन्द मुस्कान है।

सिर पर मयूर-पिच्छ का मुकुट, गले में पीताम्बर, ठुमुक-ठुमुककर चलने वाला, बाँसुरी बजाने वाला जो मनमोहन प्राणप्यारा है,

उसको प्राप्त करने की इच्छा, उत्कंठा, व्याकुलता, तड़प जब अपने ह्रदय को दग्ध करने लगे, तब समझो कि प्यास जगी

और जब उसकी बात सुनकर, उसकी याद आने से, उसके लिये कोई कार्य करने से अपने ह्रदय में रस का प्राकट्य हो, अनुभव हो तब इसे तृप्ति कहते हैं।

श्रीहरि को ढूँढ़ने के लिये निकले और पानी में उतरे ही नहीं, किनारे पर ही बैठे रहे, इसका नाम प्यास नहीं है और जब प्यास ही नहीं तो तृप्ति कैसी?

कहीं हम स्वयं को ही तो मृग-मरीचिका के भ्रम में नहीं डाल रहे ! श्री हरी से प्रेम तो है पर उनको पाने की साधना में आलस है या रुचि नहीं है। मेहनत नहीं करना चाहते हैं।

आनन्द के लिये प्यास और आनन्द की प्राप्ति पर तृप्ति !

संयोग और वियोग--प्रेम इन दोनों को लेकर चलता है। ईश्वर को मानना अलग बात है और उनसे प्रेम करना अलग !

श्रीहरि को याद करना अलग है और उनके वियोग में, उनकी प्राप्ति के लिये व्याकुल होना अलग बात है।

भक्ति वहाँ से प्रारम्भ होती है, जहाँ से श्रीहरि के स्मरण में, श्रीहरि के भजन में, श्रीहरि की लीला-कथाओं के श्रवण में, श्रीहरि के सेवन में रस का ह्रदय में प्राकट्य होता है,

आनन्द का प्राकट्य होता है। प्रेम की उत्तरोत्तर वृद्धि के लिये संयोग और वियोग दोनों ही आवश्यक हैं।

वियोग न हुआ तो कैसे जानोगे कि क्या पाया था !

तड़प कैसे उठेगी फ़िर उसे पाने के लिये ! मूल्य तो वियोग के बाद ही मालूम हुआ ! अब फ़िर पाना है पहले से अधिक व्याकुलता, तड़प के साथ ! अब जो मिला तो आनन्द और अधिक बढ़ गया !

यही मनमोहन, सांवरे घनश्याम की प्रेम को उत्तरोत्तर बढ़ाने वाली लीला है

 जिसमें भगवान और भक्त दोनों ही एक-दूसरे के आनन्द को बढ़ाने के लिये संयोग और वियोग के झूले में झूलते रहते हैं।

अजब लीला है कि दोनों ही दृष्टा हैं और दोनों ही दृश्य !

दोनों ही परस्पर एक-दूसरे को अधिकाधिक सुख देना चाहते हैं !

दोनों ही दाता और दोनों ही भिक्षुक !

प्रेम ऐसा ही होता है।

चूँकि प्रेम ईश्वर ही है सो यह अधरामृत है ! अधरामृत ? अ+धरा+अमृत ! जो अमृत धरा का नहीं है; यह जागतिक तुच्छ वासना नहीं है,

जिसे हम सामान्य भाषा में प्रेम कह देते हैं। प्रेमी होना बड़ा दुष्कर है।

।।जय श्री राधे।।

सोमवार, 26 जुलाई 2021

जिस किसी से भी आपको कुछ भी सीखने को मिल जाए वह आपका गुरु

                                 गुरु पूर्णिमा



 भगवान वेदव्यास की जयंती गुरु पूर्णिमा है इस दिन व्यास, संत गुरु जन पूज्य है। नित्य ही पूजा होती है,पर गुरु पूर्णिमा की पूजा विशेष होनी चाहिए। इस अवसर पर गो,संत सेवा की जानी चाहिएं। गुरु तत्व से परे कोई तत्व नहीं है। नास्ति तत्वं गुरो: परम्  बताया गया है कि इश्वर तत्व ही गुरु तत्व है। विद्या, बुद्धि,आयु में श्रेष्ठ सभी गुरु हैं। जो लोग अपनी दीनता से सभी जीवो को अपने से श्रेष्ठ मानते हैं, उनके लिए गुरु तत्व सर्वव्यापक है। जिस से भी कुछ सीखने को मिल जाए वही गुरु हैं। प्रथम जिन्होंने मंत्र दीक्षा दी, फिर जिन्होंने उपदेश दिया। कर्म कर्म से सभी में गुरु भावना पुष्ट होती है।सभी जगह गुरु तत्व का बोध हो जाएगा। संसार की सभी प्राणी, वस्तुएं शिक्षाप्रद है। जो प्रभु से मिलन का मार्ग दिखलाए वही गुरु है। जिसके वचनों में श्रद्धा विश्वास है, वही गुरु है। झालीरानी को रैदास जी में गुरु तत्व दिखाई पड़ा, रानी रत्नावती ने अपनी दासी से शिक्षा ग्रहण की।

अनुकूल आचरण से तथा प्रतिकूल आचरण से दोनों से दत्तक दत्तात्रेय जी ने शिक्षा ली मधुमक्खी संग्रह से नष्ट होती है।

कृष्णम वंदे जगदगुरूम। गुरु के गुरु भगवान कृष्ण है। कृष्ण ने अर्जुन को श्रोता बनाकर गीता में, उद्धव जी को श्रोता बनाकर श्री कृष्ण जी ने श्री भागवत में सभी मनुष्य को उपदेश दिए हैं। सारे जगत का कल्याण करने वाले हैं उपदेश है।

 श्री सीताराम दादा गुरु महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प में से

समझो! कि हम किस कैटेगरी में आते हैं

                                          समझो




संसार में दो प्रकार के पेड़- पौधे होते हैं

प्रथम : अपना फल स्वयं दे देते हैं,

जैसे - आम, अमरुद, केला इत्यादि ।

द्वितीय : अपना फल छिपाकर रखते हैं,

जैसे - आलू, अदरक, प्याज इत्यादि ।

जो फल अपने आप दे देते हैं, उन वृक्षों को सभी खाद-पानी देकर सुरक्षित रखते हैं, और  ऐसे वृक्ष फिर से फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं ।

किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं, उनका वजूद ही खत्म हो जाता हैं।*

ठीक इसी प्रकार...

जो व्यक्ति अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वयं ही समाज सेवा में समाज के उत्थान में लगा देते हैं, उनका सभी ध्यान रखते हैं और वे मान-सम्मान पाते है।

वही दूसरी ओर

 जो अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वार्थवश छिपाकर रखते हैं, किसी की सहायता से मुख मोड़े रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते है, अर्थात् समय रहते ही भुला दिये जाते है।

प्रकृति कितना महत्वपूर्ण संदेश देती है, बस समझने, सोचने  की बात है।

।।जय श्री राधे।।

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

कागभुसुंडि जी कौन थे?

कागभुसुंडि जी कौन है?


 जब भोले बाबा मां गोरा को श्री रामचरितमानस की कथा सुना रहे थे तब अंत में गौरा मां ने प्रश्न किया कि मैं यह जानना चाहती हूं कि यह काग भुसुंडि जी कौन थे? जिनसे आपने कथा सुनी। हे कृपालु ! बताइए उसको इन्हीं प्रभु का यह पवित्र सुंदर चरित्र कहां पाया और हे कामदेव के शत्रु यह भी बताइए आपने इसे किस प्रकार सुना? मुझे बड़ा भारी कौतूहल हो रहा है।

 तब महादेव ने प्रसंग सुनाया। महादेव बोले हे सुमुखी! है सुलोचना ! प्रसंग सुनो, पहले तुम्हारा अवतार दक्ष के घर में हुआ था, तब तुम्हारा नाम सती था। दक्ष के यज्ञ में तुम्हारा अपमान हुआ। तब तुम ने अत्यंत विरोध करके प्राण त्याग दिए और फिर मेरे से सेवकों ने यज्ञ विध्वंस कर दिया।यह सब तुम जानती हो। तब मेरे मन में बड़ा सोच हुआ और हे प्रिय! मैं तुम्हारी वियोग से दुखी हो गया,मैं विरक्त भाव से सुंदरवन पर्वत नदी और तालाबों का दृश्य देखता फिरता था। सुमेरु पर्वत की उत्तर दिशा में और भी दूर एक बहुत ही सुंदर नील पर्वत है। उसकी सुंदर स्वर्ण में शिखर है। उनमें से चार सुंदर शिखर मेरे मन को बहुत ही अच्छे लगे। उनमें से एक बरगद, पीपल, पाकर और आम का एक एक विशाल वृक्ष है। पर्वत के ऊपर एक सुंदर तालाब शोभित है; जिसकी मणियों की सीढ़ियां देखकर मेरा मन मोहित हो जाता है। उसका जल निर्मल और मीठा है। उसमें रंग-बिरंगे कमल खिले हुए हैं। संगम मधुर स्वर से बोल रहे हैं और भौंरे सुन्दर गुंजार कर रहे हैं। उस सुंदर पर्वत पर वही पक्षी का भूसुंडी बसता है उसका नाश के कल्प के अंत में भी नहीं होता। माया रचित अनेक गुण ,दोषों मुकाम आदि  अविवेक जो सारे जगत में जा रहे हैं। उस पर्वत के पास भी नहीं फटकते।वहां बस कर जिस प्रकार वह काक हरि को  भजता है।हे उमा!उसे प्रेम से सुनो। पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करता है। पाकर के नीचे जप यज्ञ करता है, आम की छाया के नीचे मानसिक पूजा करता है। श्री हरि के भजन को छोड़करउसे कोई दूसरा काम नहीं है। बरगद के नीचे वह श्री हरि की कथाओं के प्रसंग कहता है वहां अनेकों पक्षी आते हैं और कथा सुनते हैं। वह विचित्र रामचरित्र को अनेक प्रकार से प्रेम सहित आदर पूर्वक गान करता है। सब निर्मल बुद्धि वाले हंस जो सदा उस तालाब पर बसत हैं, उसे सुनते हैं। जब मैंने वहां जाकर यह दृश्य देखा तब मेरे हृदय में विशेष आनंद उत्पन्न हुआ ।तब मैंने हंस का शरीर धारण कर कुछ समय वहां निवास किया और श्री रघुनाथ जी के गुणों का आदर सहित सुनकर फिर कैलाश को लौट आया।

श्री राम जी के द्वारा भक्तों के जन्म मरण को मिटाने वाले वचन

 श्री राम जी के द्वारा भक्तों के जन्म मरण को मिटाने वाले वचन

एक बार श्री राम जी ने अयोध्या में अपने समस्त नगरवासियों को बुलाया और उनको अपने हृदय की बात सुनाई और सब को कहा कि आप मेरी बातों को सुन लो और यह जो तुम्हें अच्छी लगे तो उसके अनुसार ही करो। वही मेरा सेवक है और वही मेरा प्रियतम है, जो मेरी आज्ञा माने।

 बड़े भाग्य से मनुष्य शरीर मिला है सब ग्रंथों में यही कहा है कि यह शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। कठिनाई से मिलता है। यह साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पा कर भी जिसने पढ़ लो ना बना लिया वह परलोक में दुख पाता है सिर पीट पीटकर पछताता है तथा अपने दोष ना समझ कर काल पर,कर्म पर और ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है। हे भाई इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषय भोग नहीं है, इस जगत के लोगों की तो बात ही क्या, स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है और अंत में दुख देने वाला है। जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषय में मन लगा देते हैं। वह मूर्ख अमृत को बदलकर विष ले लेते हैं। जो पारस मणि को खोकर बदले में घुं धनघची ले लेता है। उसको कभी कोई  बुद्धिमान नहीं कहता। यह अविनाशी जीव चार खानों और 8400000 योनियों में चक्कर लगाता रहता है। माया की प्रेरणा से काल, कर्म, स्वभाव और उन से घिरा हुआ वह सदा भटकता रहता है।बिना ही कारण स्नेह करने वाले ईश्वर कभी विरले ही दया करके मनुष्य का शरीर देते हैं। यह मनुष्य का शरीर भवसागर के लिए बड़ा जहाज है, पार करने वाला है। मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है सतगुरु इस जहाज के मजबूत कर्णधार हैं। इस प्रकार दुर्लभ साधन सुलभ हो कर भी उसे प्राप्त हो जाती है। जो मनुष्य ऐसे साधन को पाकर भी भवसागर ना करें वह कृतघ्न और मंदबुद्धि है । 

यदि परलोक में और यहां दोनों जगह सुख चाहते हो तो मेरे वचन सुनकर उन्हें हृदय में दृढ़ता से पकड़ कर रखो, यह मेरी भक्ति का मार्ग सुलभ और सुख दायक है। पुराणों और वेदों ने इसे गाया है। भक्ति स्वतंत्र और सब सुखों की खान है।परंतु संतो के संग के बिना प्राणी इसे नहीं पा सकते और पुण्य समूह के बिना संत नहीं मिलते। सत्संगति जन्म मरण के चक्र का अंत करती है। मैं सबसे हाथ जोड़कर कहता हूं कि शंकर जी के भजन के बिना मनुष्य मेरी भक्ति नहीं पाता।

Featured Post

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भावार्थ के साथ

                    गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र   भावार्थ के साथ गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में आता है। इसमें एक ...