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सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता पहले अध्याय का पांचवां एवं छठा श्लोक का सरल अर्थ हिंदी में

           पहले अध्याय का पांचवां एवं छठा श्लोक हिंदी मे


 धृष्टकेतुश्चेकितान: -------------------------------नरपुग्डंव: ।।५।।

इनके साथ ही धृष्टकेतु,चेकितान, पुरूजित,कुंन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी है।


युधामन्युश्च -------------------------------------------- एव महाराजा: ।।६।।


पराक्रमी युधामन्यु, अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रोपदी के पुत्र- यह सभी महारथी हैं।।६।।






शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय का चौथा श्लोक हिंदी में

 श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय का चौथा श्लोक हिंदी में


अत्र ----------------------------------- द्रुपदश्च महारथ: ।।४।।

इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं यथा महारथी युयुधान, विराट और द्रुपद।

यद्यपि युद्ध कला में द्रोणाचार्य की महान शक्ति के समक्ष ध्रृष्टधुम्न महत्वपूर्ण बाधक नहीं था, किंतु ऐसे अनेक योद्धा थे, जिनसे भय था। दुर्योधन इन्हें विजयपथ में अत्यंत बाधक बताता है क्योंकि इनमें से प्रत्येक योद्धा भीम तथा अर्जुन के सामान दुर्जेय था। उसे भीम तथा अर्जुन के बल का ज्ञान था। इसलिए वह अन्य की तुलना इन दोनों से करता है।

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय का तीसरा श्लोक हिंदी में

  श्रीमद्भागवत गीता पहले अध्याय का तीसरा श्लोक हिंदी में

            कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में सैन्य निरीक्षण


पश्यैतां --------------------- शिष्येण धीमता ।।३।।

हे आचार्य! पांडू पुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आप के बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतनी कौशल से व्यवस्थित किया है। 

रम राजनीतिज्ञ दुर्योधन महान ब्राह्मण सेनापति द्रोणाचार्य के दोषों को इंगित करना चाहता था। अर्जुन की पत्नी द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद के साथ द्रोणाचार्य का कुछ राजनीतिक झगड़ा था। झगड़े के फल स्वरुप द्रुपद ने एक महान यज्ञ संपन्न किया, जिससे उसे एक ऐसा पुत्र प्राप्त होने का वरदान मिला, जो द्रोणाचार्य का वध कर सके। द्रोणाचार्य यह भलीभांति जानता था, किंतु जब द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न युद्ध शिक्षा के लिए उस को सौंपा गया ,तो द्रोणाचार्य को उसे अपने सारे सैनिक रहस्य प्रदान करने में कोई झिझक नहीं हुई। अब वह युद्ध भूमि में पांडवों का पक्ष ले रहा था और उसने द्रोणाचार्य से जो कला सीखी थी उसी के आधार पर उसने यह व्यूहरचना की थी। दुर्योधन ने द्रोणाचार्य की दुर्बलता की ओर इंगित किया, जिससे वह युद्ध में सजग रहें और समझौता ना करें। इसके द्वारा द्रोणाचार्य को यह भी बताना चाह रहा था कि कहीं वह अपने प्रिय शिष्य पांडवों के प्रति युद्ध में उदारता ना दिखा बैठे, विशेष रूप से अर्जुन उसका अत्यंत प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था। दुर्योधन ने यह भी चेतावनी दी कि युद्ध में इस प्रकार की उदारता से हार हो सकती है।



श्रीमद भगवत गीता दूसरा श्लोक हिंदी में

           श्रीमद भगवत गीता दूसरा श्लोक हिंदी में

           कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में सैन्य निरीक्षण


संजय ने कहा-

 दृष्ट्वा तु -----------वचनमब्रवीत्।।२।।

धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था। दुर्भाग्यवश वह आध्यात्मिक दृष्टि से भी वंचित था। वह यह भी जानता था कि उसी के समान उसके पुत्र भी धर्म के मामले में अंधे हैं और उसे विश्वास था कि वह पांडवों के साथ कभी भी समझौता नहीं कर पाएंगे क्योंकि पांचो पांडव जन्म से ही पवित्र थे। फिर भी उसे तीर्थ स्थान के प्रभाव के विषय में संदेह था। इसलिए संजय युद्ध भूमि की स्थिति के विषय में उसके प्रश्न के मंतव्य को समझ गया। अत: वह राजा को प्रोत्साहित करना चाह रहा था। उसने उसे विश्वास दिलाया कि उसके पुत्र पवित्र स्थान के प्रभाव में आकर किसी प्रकार का समझौता करने नहीं जा रहे हैं।उसने राजा को बताया कि उसका पुत्र दुर्योधन पांडवों की सेना को देखकर तुरंत अपने सेनापति द्रोणाचार्य को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने गया। यद्यपि दुर्योधन को राजा कहकर संबोधित किया गया है तो भी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उसे सनापति के पास जाना पड़ा। अतएव दुर्योधन राजनीतिज्ञ बनने के लिए सर्वथा उपयुक्त था। किंतु जब उसने पांडवों की व्यूह रचना देखी तो उसका यह कूटनीतिक व्यवहार उसके भय को छुपा ना पाया।


मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

श्रीमद् भगवत गीता यथारूप हिंदी में पहले अध्याय का पहला श्लोक

            श्रीमद्भागवत गीता यथारूप प्रथम अध्याय–



धर्मक्षेत्र------------------------संजय।।

महाभारत में धृतराष्ट्र तथा संजय की वार्ताएं इस महान दर्शन के मूल सिद्धांत का कार्य करते हैं। धर्म क्षेत्र शब्द सार्थक है, क्योंकि कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में अर्जुन के पक्ष में श्री भगवान स्वयं उपस्थित थे। कौरवों का पिता धृतराष्ट्र अपने पुत्रों की विजय की संभावना के विषय में अत्यधिक संदिग्ध था। अतः इसी कारण उसने अपने सचिव से पूछा "उन्होंने क्या किया?" वह आश्वस्त था कि उसके पुत्र तथा उसके छोटे भाई पांडु के पुत्र कुरुक्षेत्र की युद्ध भमि में निर्णय आत्मक संग्राम के लिए एकत्र हुए हैं। फिर भी उसकी जिज्ञासा सार्थक है, वह नहीं चाहता था कि भाइयों में कोई समझौता हो, अत: वह युद्धभूमि में अपने पुत्रों की नियति के विषय में आश्वस्त होना चाह रहा था,क्योंकि इस युद्ध को कुरुक्षेत्र में लड़ा जाना था। जिसका उल्लेख वेदों में स्वर्ग के निवासियों के लिए भी तीर्थ स्थल के रूप में हुआ है। अत: धृतराष्ट्र अत्यंत भयभीत था कि इस पवित्र स्थल का युद्ध के परिणाम पर ना जाने कैसा प्रभाव पड़े। उसे भली-भांति पता था कि इसका प्रभाव अर्जुन तथा पांडु के पुत्रों पर अत्यंत अनुकूल पड़ेगा क्योंकि स्वभाव से ही वे सभी पुण्यात्मा थे।संजय श्री व्यास का शिष्य था, उनकी कृपा से संजय  धृतराष्ट्र के कक्ष में बैठे-बैठे कुरुक्षेत्र की युद्धस्थल का दर्शन कर सकता था। इसलिए धृतराष्ट्र ने उससे युद्ध की स्थिति के विषय में पूछा।

पांडु तथा धृतराष्ट्र के पुत्र दोनों ही एक वंश से संबंधित है, किंतु यहां पर  उसके मनोभाव प्रकट होते हैं। उसने जानबूझकर अपने पुत्रों को कुरु कहा और और पांडु के पुत्रों को वंश के उत्तराधिकार से अलग कर दिया। इस तरह पांडु के पुत्रों अर्थात अपने भतीजे के साथ धृतराष्ट्र के विशिष्ट मानस स्थिति समझी जा सकती है। जिस प्रकार धान के खेत से अवांछित पौधों को उखाड़ दिया जाता है। उसी प्रकार इस कथा के आरंभ से ही ऐसी आशा की जाती है कि जहां धर्म के पिता श्री कृष्ण उपस्थित हो, वहां कुरुक्षेत्र रूपी खेत में दुर्योधन आदि धृतराष्ट्र के पुत्र रूपी अवांछित पौधों को समूल नष्ट करके, युधिष्ठिर आदि नितांत धार्मिक पुरुषों की स्थापना की जाएगी। यहां धर्म क्षेत्र तथा कुरुक्षेत्र शब्दों की उनकी ऐतिहासिक तथा वैदिक महत्व के अतिरिक्त, यही सार्थकता है।


बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

विष्णु कृपा की अनुभूति

      ’हरि: शरणम’ मंत्र के जप से अलौकिक कृपा अनुभूति



प्रार्थना का बड़ा चमत्कारी प्रभाव होता है। हमने अपने जीवन में इसका बहुत बार अनुभव किया है। प्रार्थना से भीषण से भीषण रोग ठीक हो सकते हैं। कोलकाता में श्री रुड़मलजी गोयन्दक  एक प्रसिद्ध व्यवसाई हुए हैं। एक बार उनको प्लेग हुआ 104- 5 डिग्री बुखार और दोनों जांघों में बड़ी-बड़ी गिल्टियां निकल आई थी, उस समय कोलकाता में सर कैलाश चंद्र बोस बड़े प्रसिद्ध डॉक्टर थे। उन्हें बुलाया गया उन्होंने देख कर कहा बचने की आशा बिल्कुल नहीं है रात निकालना कठिन है। सावधान रहना चाहिए। यह कहकर चले गए। श्री रूड़मल जी संस्कृत के पंडित थे, भागवत पढ़ा करते थे। भागवत के महात्मय में  नारद जी ने श्री सनकादिक जी से यह कहा कि आप सदा बालक रूप में इसलिए बने रहते हैं कि आप हरि: शरणम मंत्र का जप नृत्य करते हैं श्री रोडमल जी को यह प्रसंग याद हो आया उन्होंने अपने सेवक गोविंद को बुलाया और कहा गंगाजल लाओ शरीर पहुंचेंगे गंगाजल आ गया उन्होंने अंगूठे को गंगा जल में भिगोकर सारा शरीर पुष्ट पाया और कमरा बंद करके भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति सामने रख ली और श्रीकृष्ण में मन लगाकर हरि: शरणम मंत्र का जप करने लगे, कई घंटे तक वह जप करते रहे, उन्हें याद नहीं रहा कि क्या हुआ। लगभग 4:00 बजे जब चेतना हुई तब उन्हें लगा शरीर हल्का है, बुखार नहीं है, उन्होंने टटोलकर देखा दोनों गिल्टियां भी गायब हैं। तब उन्होंने उठकर अब चल कर देखा,बिल्कुल स्वाभाविकता अनुभव हुई। उन्होंने कमरे का दरवाजा खोला और नौकर को आवाज दी। नौकर आया और सेठ जी  अपने दैनिक कार्य में लग गए।दूसरे दिन प्रातः काल डॉक्टर सर कैलाश, श्री रूड़मल जी के पड़ोस में एक रोगी को देखने आए ।डॉक्टर साहब रूड़मल जी का पता लगाने के लिए उनके घर आए आते ही, उन्होंने देखा कि श्री रूड़मल जी चांदी की चौकी पर ,चांदी के थाल में, पितांबर पहने प्रसाद पा रहे हैं। उन्हें इस प्रकार खाते देख, डॉक्टर साहब को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्हें लगा इन्होंने रात जैसे तैसे निकाल दी है और अब यह सन्निपात में खाने बैठ गए हैं। डॉक्टर साहब ने पूछा- सेठ जी किसके कहने से खा रहे हैं? सेठ जी बोले -जिसकी दवा से ठीक हुए हैं। इतना सुनने पर डॉक्टर साहब को लगा यह सन्निपात में ही बोल रहे हैं। डॉक्टर साहब घर वालों को सावधान कर के चले गए कि आप लोग ख्याल रखें, यह सन्निपात में खा रहे हैं ,पर श्री रूड़मल जी  तो पूर्ण स्वस्थ थे। उन्होंने छक्कर प्रसाद पाया और पूर्ण स्वस्थ हो गए। 

पीछे श्री रूड़मल जी हमें स्वयं ही बात बताई ,जब डॉक्टर साहब ने कह दिया कि रात्रि निकालनी कठिन है तब हमें मरने का सोच तो रहा नहीं। भागवत महात्मय के अंतर्गत श्रीनारद-सनकादिक प्रसंग स्मरण हो आया और हमने श्रीसनकादिक के प्रिय मंत्र हरि: शरणम का जप शुरू किया। ऐसा अनेकों प्रसंग देखें सुने और अनुभव किए हैं कि भगवान पर विश्वास हो तो, सच्चे हृदय से भगवान से प्रार्थना की जाए तो ,भगवान के यहां सब कुछ संभव है। (श्रीहनमान प्रसाद पोद्दार)

मंगलवार, 25 जनवरी 2022

रामायण के प्रमुख पात्र एवं उनका परिचय

                रामायण के प्रमुख पात्र एवं उनका परिचय



आप सभी से अनुरोध है कि रामायण के प्रमुख पात्रों की जानकारी अपने बच्चों को अवश्य दें, क्योंकि आज के समय में रामायण का पढ़ना पुराने समय की बात हो गई है। इसलिए बच्चे रामायण की बातें भूलते जा रहे हैं।

ये जानकारी हमने मात्र इसलिए साझा की है जिससे आप रामायण को आसानी से और अच्छे से समझ सकें।–

दशरथ– रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कोशल प्रदेश के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या।श्री राम, भरत,लक्ष्मण,और शत्रुघ्न जी के पिता।

कौशल्या – दशरथ की बङी रानी, राम की माता।

सुमित्रा - दशरथ की मझली रानी, लक्ष्मण तथा शत्रुधन की माता।

कैकयी- दशरथ की छोटी रानी, भरत की माता।

सीता– जनकपुत्री, राम की पत्नी।

उर्मिला– जनकपुत्री, लक्ष्मण की पत्नी।

मांडवी – जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, भरत की पत्नी।

श्रुतकीर्ति - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, शत्रुध्न की पत्नी।

राम– दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र, सीता के पति।

लक्ष्मण - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, उर्मिला के पति।

भरत – दशरथ तथा कैकयी के पुत्र, मांडवी के पति।

शत्रुध्न - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, श्रुतकीर्ति के पति, मथुरा के राजा लवणासुर के संहारक।

शान्ता– दशरथ की पुत्री, राम बहन।

बाली– किश्कंधा (पंपापुर) का राजा, रावण का मित्र तथा साढ़ू, साठ हजार हाथीयों का बल।

सुग्रीव – बाली का छोटा भाई, जिनकी हनुमान जी ने मित्रता करवाई।

तारा– बाली की पत्नी, अंगद की माता, पंचकन्याओं में स्थान।

रुमा– सुग्रीव की पत्नी, सुषेण वैध की बेटी।

अंगद– बाली तथा तारा का पुत्र।

रावण– ऋषि पुलस्त्य का पौत्र, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) का पुत्र।

कुंभकर्ण– रावण तथा कुंभिनसी का भाई, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) का पुत्र।

कुंभिनसी – रावण तथा कूंभकर्ण की बहन, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) की पुत्री।

विश्रवा - ऋषि पुलस्त्य का पुत्र, पुष्पोत्कटा-राका-मालिनी के पति।

विभीषण – विश्रवा तथा राका का पुत्र, राम का भक्त।

पुष्पोत्कटा (केकसी)– विश्रवा की पत्नी, रावण, कुंभकर्ण तथा कुंभिनसी की माता।

राका– विश्रवा की पत्नी, विभीषण की माता।

मालिनी - विश्रवा की तीसरी पत्नी, खर-दूषण त्रिसरा तथा शूर्पणखा की माता।

त्रिसरा– विश्रवा तथा मालिनी का पुत्र, खर-दूषण का भाई एवं सेनापति।

शूर्पणखा- विश्रवा तथा मालिनी की पुत्री, खर-दूसन एवं त्रिसरा की बहन, विंध्य क्षेत्र में निवास।

मंदोदरी– रावण की पत्नी, तारा की बहन, पंचकन्याओ मे स्थान।

मेघनाद– रावण का पुत्र इंद्रजीत, लक्ष्मण द्वारा वध।

दधिमुख– सुग्रीव के मामा।

ताड़का– राक्षसी, मिथिला के वनों में निवास, राम द्वारा वध।

मारीची – ताड़का का पुत्र, राम द्वारा वध (स्वर्ण मर्ग के रूप मे )।

सुबाहू– मारीची का साथी राक्षस, राम द्वारा वध।

सुरसा– सर्पो की माता।

त्रिजटा– अशोक वाटिका निवासिनी राक्षसी, रामभक्त, सीता से अनुराग। विभीषण की पुत्री।

प्रहस्त– रावण का सेनापति, राम-रावण युद्ध में मृत्यु।

विराध– दंडक वन मे निवास, राम लक्ष्मण द्वारा मिलकर वध।

शंभासुर– राक्षस, इन्द्र द्वारा वध, इसी से युद्ध करते समय कैकेई ने दशरथ को बचाया था तथा दशरथ ने वरदान देने को कहा।

सिंहिका– लंका के निकट रहने वाली राक्षसी, छाया को पकड़कर खाती थी।

कबंद– दण्डक वन का दैत्य, इन्द्र के प्रहार से इसका सर धड़ में घुस गया, बाहें बहुत लम्बी थी, राम-लक्ष्मण को पकड़ा, राम- लक्ष्मण ने गङ्ढा खोद कर उसमें गाड़ दिया।

जामबंत– रीछ थे, रीछ सेना के सेनापति।

नल– सुग्रीव की सेना का वानरवीर।

नील– सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे, सेतुबंध की रचना की थी।

नल और नील– सुग्रीव सेना में इंजीनियर व राम सेतु निर्माण मे महान योगदान। (विश्व के प्रथम इंटरनेशनल हाईवे “रामसेतु” के आर्किटेक्ट इंजीनियर)

शबरी– अस्पृश्य जाती की रामभक्त, मतंग ऋषि के आश्रम में राम-लक्ष्मण-सीता का आतिथ्य सत्कार।

संपाती – जटायु का बड़ा भाई, वानरों को सीता का पता बताया।

जटायु – रामभक्त पक्षी, रावण द्वारा वध, राम द्वारा अंतिम संस्कार।

गुह– श्रंगवेरपुर के निषादों का राजा, राम का स्वागत किया था।

हनुमान – पवन के पुत्र, राम भक्त, सुग्रीव के मित्र।

सुषेण वैध– सुग्रीव के ससुर।

केवट– नाविक, राम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार करायी।

शुक्र-सारण– रावण के मंत्री जो बंदर बनकर राम की सेना का भेद जानने गये।

अगस्त्य – पहले आर्य ऋषि जिन्होंने विन्ध्याचल पर्वत पार किया था तथा दक्षिण भारत गये।

गौतम – तपस्वी ऋषि, अहल्या के पति, आश्रम मिथिला के निकट।

अहल्या - गौतम ऋषि की पत्नी, इन्द्र द्वारा छलित तथा पति द्वारा शापित, राम ने शाप मुक्त किया, पंचकन्याओं में स्थान।

ऋण्यश्रंग– ऋषि जिन्होंने दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कटाया था।

सुतीक्ष्ण– अगस्त्य ऋषि के शिष्य, एक ऋषि।

मतंग – ऋषि, पंपासुर के निकट आश्रम, यही शबरी भी रहती थी।

वसिष्ठ– अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं के गुरु।

विश्वमित्र– राजा गाधि के पुत्र, राम-लक्ष्मण को धनुर्विधा सिखायी थी।

शरभंग– एक ऋषि, चित्रकूट के पास आश्रम।

सिद्धाश्रम – विश्वमित्र के आश्रम का नाम।

भरद्वाज– बाल्मीकी के शिष्य, तमसा नदी पर क्रौच पक्षी के वध के समय वाल्मीकि के साथ थे, माँ-निषाद’ वाला श्लोक कंठाग्र कर तुरंत वाल्मीकि को सुनाया था।

सतानन्द– राम के स्वागत को जनक के साथ जाने वाले ऋषि।

युधाजित– भरत के मामा।

जनक – मिथिला के राजा।

सुमन्त्र – दशरथ के आठ मंत्रियों में से प्रधान।

मंथरा– कैकयी की मुंह लगी दासी, कुबड़ी।

देवराज– जनक के पूर्वज-जिनके पास परशुराम ने शंकर का धनुष सुनाभ (पिनाक) रख दिया था।

अयोध्या*– राजा दशरथ के कोशल प्रदेश की राजधानी, बारह योजना लंबी तथा तीन योजन चौड़ी, नगर के चारों ओर ऊँची व चौड़ी दीवारें व खाई थीं। राजमहल से आठ सड़के बराबर दूरी पर परकोटे तक जाती थी।   

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