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रविवार, 6 मार्च 2022

जानिए किस ग्रंथ में क्या है?

        जानिए किस ग्रंथ में क्या है?


अधिकतर हिंदुओं के पास अपने ही धर्मग्रंथ को पढ़ने की फुरसत नहीं है। वेद, उपनिषद पढ़ना तो दूर वे गीता तक को नहीं पढ़ते जबकि गीता को एक घंटे में पढ़ा जा सकता है। हालांकि कई जगह वे भागवत पुराण सुनने या रामायण का अखंड पाठ करने के लिए समय निकाल लेते हैं या घर में सत्यनारायण की कथा करवा लेते हैं। लेकिन आपको यह जानकारी होना चाहिए कि पुराण, रामायण और महाभारत हिन्दुओं के धर्मग्रंथ नहीं है। धर्मग्रंथ तो वेद ही है। 

शास्त्रों को दो भागों में बांटा गया है:- श्रुति और स्मृति। श्रुति के अंतर्गत धर्मग्रंथ वेद आते हैं और स्मृति के अंतर्गत इतिहास और वेदों की व्याख्‍या की पुस्तकें पुराण, महाभारत, रामायण, स्मृतियां आदि आते हैं। हिन्दुओं के धर्मग्रंथ तो वेद ही है। वेदों का सार उपनिषद है और उपनिषदों का सार गीता है। आओ जानते हैं कि उक्त ग्रंथों में क्या है।

वेदों में क्या है?

वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, संस्कार, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है। वेद चार है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।

ऋग्वेद :- ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा आदि की भी जानकारी मिलती है।

यजुर्वेद :- यजु अर्थात गतिशील आकाश एवं कर्म। यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। तत्व ज्ञान अर्थात रहस्यमयी ज्ञान। ब्रम्हांड, आत्मा, ईश्वर और पदार्थ का ज्ञान। इस वेद की दो शाखाएं हैं शुक्ल और कृष्ण।

सामवेद : साम का अर्थ रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। इसमें सविता, अग्नि और इंद्र देवताओं के बारे में जिक्र मिलता है। इसी से शास्त्रिय संगीत और नृत्य का जिक्र भी मिलता है। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें संगीत के विज्ञान और मनोविज्ञान का वर्णन भी मिलता है।

अथर्वदेव:- थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि का जिक्र है। इसमें भारतीय परंपरा और ज्योतिष का ज्ञान भी मिलता है।

उपनिषद् क्या है?

उपनिषद वेदों का सार है। सार अर्थात निचोड़ या संक्षिप्त। उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं। ईश्वर है या नहीं, आत्मा है या नहीं, ब्रह्मांड कैसा है आदि सभी गंभीर, तत्व ज्ञान, योग, ध्यान, समाधि, मोक्ष आदि की बातें उपनिषद में मिलेगी। उपनिषदों को प्रत्येक हिन्दुओं को पढ़ना चाहिए। इन्हें पढ़ने से ईश्वर, आत्मा, मोक्ष और जगत के बारे में सच्चा ज्ञान मिलता है।

वेदों के अंतिम भाग को 'वेदांत' कहते हैं। वेदांतों को ही उपनिषद कहते हैं। उपनिषद में तत्व ज्ञान की चर्चा है। उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गए हैं, जैसे- 1. ईश, 2. केन, 3. कठ, 4. प्रश्न, 5. मुण्डक, 6. माण्डूक्य, 7. तैत्तिरीय, 8. ऐतरेय, 9. छांदोग्य, 10. बृहदारण्यक, 11. कौषीतकि और 12. श्वेताश्वतर।

षड्दर्शन क्या है?

वेद से निकला षड्दर्शन : वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। इसे भारत का षड्दर्शन कहते हैं। दरअसल यह वेद के ज्ञान का श्रेणीकरण है। ये छह दर्शन हैं:- 1.न्याय, 2.वैशेषिक, 3.सांख्य, 4.योग, 5.मीमांसा और 6.वेदांत। वेदों के अनुसार सत्य या ईश्वर को किसी एक माध्यम से नहीं जाना जा सकता। इसीलिए वेदों ने कई मार्गों या माध्यमों की चर्चा की है।

गीता में क्या है?

महाभारत के 18 अध्याय में से एक भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता में भी कुल 18 अध्याय हैं। 10 अध्यायों की कुल श्लोक संख्या 700 है। वेदों के ज्ञान को नए तरीके से किसी ने व्यवस्थित किया है तो वह हैं भगवान श्रीकृष्ण। अत: वेदों का पॉकेट संस्करण है गीता जो हिन्दुओं का सर्वमान्य एकमात्र ग्रंथ है। किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह वेद या उपनिषद पढ़ें उनके लिए गीता ही सबसे उत्तम धर्मग्रंथ है। गीता को बार बार पढ़ने के बाद ही वह समझ में आने लगती है।

गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म मार्ग की चर्चा की गई है। उसमें यम-नियम और धर्म-कर्म के बारे में भी बताया गया है। गीता ही कहती है कि ब्रह्म (ईश्वर) एक ही है। गीता को बार-बार पढ़ेंगे तो आपके समक्ष इसके ज्ञान का रहस्य खुलता जाएगा। गीता के प्रत्येक शब्द पर एक अलग ग्रंथ लिखा जा सकता है।

गीता में सृष्टि उत्पत्ति, जीव विकासक्रम, हिन्दू संदेवाहक क्रम, मानव उत्पत्ति, योग, धर्म, कर्म, ईश्वर, भगवान, देवी, देवता, उपासना, प्रार्थना, यम, नियम, राजनीति, युद्ध, मोक्ष, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, वंश, कुल, नीति, अर्थ, पूर्वजन्म, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्मसिद्धांत, त्रिगुण की संकल्पना, सभी प्राणियों में मैत्रीभाव आदि सभी की जानकारी है।

श्रीमद्भगवद्गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी है। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञानरूपी प्रकाश है, जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है। गीता को अर्जुन के अलावा और संजय ने सुना और उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में श्रीकृष्ण ने- 574, अर्जुन ने- 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने-1 श्लोक कहा है।

।।जय श्री राधे।।

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता के प्रथम अध्याय का 11 श्लोक सरल अर्थों में हिंदी में

 श्रीमद्भागवत गता के प्रथम अध्याय का 11वां श्लोक सरल अर्थ में

अयनेषु ------------------------------------------- सर्व एवं हि ।।११।।

अपने अपने मोर्चों पर खड़े होकर रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी पूरी सहायता दे।

 भीष्म पितामह के शोर्य की प्रशंसा करने के बाद दुर्योधन ने सोचा कि कहीं अन्य योद्धा यह ना समझें कि उन्हें कम महत्व दिया जा रहा है। अतः दुर्योधन ने अपने सहज कूटनीतिक ढंग से स्थिति संभालने के उद्देश्य से उपयुक्त शब्द कहें। उसने बलपूर्वक कहा कि भीष्मदेव निसंदेह महानतम योद्धा है, किंतु अब वृद्ध हो चुके हैं। अतः प्रत्येक सैनिकों को चाहिए कि चारों ओर से उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें ,हो सकता है कि वह किसी एक दिशा में युद्ध करने में लग जाएं और शत्रु इस व्यस्तता का लाभ उठा लें। अंत: यह आवश्यक है कि अन्य योद्धा मोर्चों पर अपनी अपनी स्थिति पर अडिग रहें और शत्रु को व्यूह न तोड़ने दे।

 दुर्योधन को पूर्ण विश्वास था कि कुरूओं की विजय भीष्म देव की उपस्थिति पर निर्भर है।उसे युद्ध में भीष्म तथा द्रोणाचार्य के पूर्ण सहयोग की आशा थी क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि इन दोनों ने उस समय एक शब्द भी नहीं कहा था, जब अर्जुन की पत्नी द्रौपदी को असहाय अवस्था में भरी सभा में नग्न किया जा रहा था और जब उसने न्याय की भीख मांगी थी। यह जानते हुए भी कि इन दोनों सेनापतियों के मन में पांडवों के लिए स्नेह था। दुर्योधन को आशा थी कि वे इस स्नेह को उसी तरह त्याग देंगे, जिस तरह उन्होंने ध्यूत- क्रीडा़ क्रीडा के अवसर पर किया था।

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय का 9 10 वां श्लोक का सरल अर्थ हिंदी में

 श्रीमद्भगवत गीता प्रथम अध्याय का 9, 10  श्लोक हिंदी में

अन्ये च बहव:--------------------------------------- सर्वे युद्धविशारदा:।।९।।

ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत है। वह विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्ध विद्या में निपुण है।

 तात्पर्य –जहां तक अन्यों का - यथा जयद्रथ, कृतवर्मा तथा शल्य का संबंध है, वह सब दुर्योधन के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहते थे। दूसरे शब्दों में,यह पूर्व निश्चित है कि वह सब पापी दुर्योधन के दल में सम्मिलित होने के कारण,कुरुक्षेत्र के युद्ध में मारे जाएंगे।निसंदेह अपने मित्रों की संयुक्त शक्ति के कारण दुर्योधन अपनी विजय के प्रति आश्वस्त था।


अपर्याप्तं ------------------------------------------- भीमाभिरक्षितम् ।।११।।

 हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भलीभांति संरक्षित है, जबकि पांडवों की शक्ति भीम द्वारा भलीभांति संरक्षित होकर भी सीमित है।

 तात्पर्य- यहां पर दुर्योधन में तुलनात्मक शक्ति का अनुमान प्रस्तुत किया है। वह सोचता है कि अत्यंत अनुभवी सेनानायक भीष्म पितामह के द्वारा विशेष रूप से संरक्षित होने के कारण उसकी सशस्त्र सेनाओं की शक्ति अपरिमेय है।दूसरी और पांडवों की सेना सीमित है क्योंकि उनकी सुरक्षा एक कम अनुभवी नायक भीम द्वारा की जा रही है। जो भीष्म की तुलना में नगण्य है। दुर्योधन सदैव ही भीम से ईर्ष्या  करता था, क्योंकि वह जानता था कि यदि उसकी मृत्यु जब भी हुई तो वह भीम के द्वारा ही होगी। किंतु साथ ही  उसे दृढ़ विश्वास था कि भीष्म की उपस्थिति में उसकी विजय निश्चित है क्योंकि भीष्म कहीं अधिक उत्कृष्ट सेनापति हैं। वह युद्ध में विजयी होगा,यह उसका दृढ़ निश्चय था।


सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता के प्रथम अध्याय के 7 और 8 श्लोक का सरल अर्थ हिंदी में

 श्रीमद्भागवत गीता के प्रथम अध्याय के 7 और 8 श्लोक हिंदी में


आस्मां तु ----------------------------------------- तान्ब्रवीमि थे ।।७।।

किंतु है ब्राह्मण श्रेष्ठ! आप की सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूंगा जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रुप से निपुण हैं।


भवान्भीष्मश्च ----------------------------------------- सौमदत्तिस्तथैव च।।८।।

 मेरी सेना में आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि है जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं।

दुर्योधन उन अद्वितीय युद्ध वीरो का उल्लेख करता है जो सदैव विजयी होते रहे हैं। विकर्ण दुर्योधन का भाई है। अश्वत्थामा   द्रोणीचार्य का पुत्र है और सोमदत्ति  या भूरिश्रवा बाह्लीको के राजा का पुत्र है। कर्ण अर्जुन का आधा भाई है क्योंकि वह कुंती के गर्भ से राजा पांडु के साथ विवाहित होने के पूर्व उत्पन्न हुआ था ।कृपाचार्य की जुड़वा बहन द्रोणाचार्य को ब्याही थी।



श्रीमद्भागवत गीता पहले अध्याय का पांचवां एवं छठा श्लोक का सरल अर्थ हिंदी में

           पहले अध्याय का पांचवां एवं छठा श्लोक हिंदी मे


 धृष्टकेतुश्चेकितान: -------------------------------नरपुग्डंव: ।।५।।

इनके साथ ही धृष्टकेतु,चेकितान, पुरूजित,कुंन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी है।


युधामन्युश्च -------------------------------------------- एव महाराजा: ।।६।।


पराक्रमी युधामन्यु, अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रोपदी के पुत्र- यह सभी महारथी हैं।।६।।






शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय का चौथा श्लोक हिंदी में

 श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय का चौथा श्लोक हिंदी में


अत्र ----------------------------------- द्रुपदश्च महारथ: ।।४।।

इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं यथा महारथी युयुधान, विराट और द्रुपद।

यद्यपि युद्ध कला में द्रोणाचार्य की महान शक्ति के समक्ष ध्रृष्टधुम्न महत्वपूर्ण बाधक नहीं था, किंतु ऐसे अनेक योद्धा थे, जिनसे भय था। दुर्योधन इन्हें विजयपथ में अत्यंत बाधक बताता है क्योंकि इनमें से प्रत्येक योद्धा भीम तथा अर्जुन के सामान दुर्जेय था। उसे भीम तथा अर्जुन के बल का ज्ञान था। इसलिए वह अन्य की तुलना इन दोनों से करता है।

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय का तीसरा श्लोक हिंदी में

  श्रीमद्भागवत गीता पहले अध्याय का तीसरा श्लोक हिंदी में

            कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में सैन्य निरीक्षण


पश्यैतां --------------------- शिष्येण धीमता ।।३।।

हे आचार्य! पांडू पुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आप के बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतनी कौशल से व्यवस्थित किया है। 

रम राजनीतिज्ञ दुर्योधन महान ब्राह्मण सेनापति द्रोणाचार्य के दोषों को इंगित करना चाहता था। अर्जुन की पत्नी द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद के साथ द्रोणाचार्य का कुछ राजनीतिक झगड़ा था। झगड़े के फल स्वरुप द्रुपद ने एक महान यज्ञ संपन्न किया, जिससे उसे एक ऐसा पुत्र प्राप्त होने का वरदान मिला, जो द्रोणाचार्य का वध कर सके। द्रोणाचार्य यह भलीभांति जानता था, किंतु जब द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न युद्ध शिक्षा के लिए उस को सौंपा गया ,तो द्रोणाचार्य को उसे अपने सारे सैनिक रहस्य प्रदान करने में कोई झिझक नहीं हुई। अब वह युद्ध भूमि में पांडवों का पक्ष ले रहा था और उसने द्रोणाचार्य से जो कला सीखी थी उसी के आधार पर उसने यह व्यूहरचना की थी। दुर्योधन ने द्रोणाचार्य की दुर्बलता की ओर इंगित किया, जिससे वह युद्ध में सजग रहें और समझौता ना करें। इसके द्वारा द्रोणाचार्य को यह भी बताना चाह रहा था कि कहीं वह अपने प्रिय शिष्य पांडवों के प्रति युद्ध में उदारता ना दिखा बैठे, विशेष रूप से अर्जुन उसका अत्यंत प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था। दुर्योधन ने यह भी चेतावनी दी कि युद्ध में इस प्रकार की उदारता से हार हो सकती है।



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