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रविवार, 14 जनवरी 2024

श्रीमद् भागवत गीता के 12वीं अध्याय का सरल अर्थ

    श्रीमद् भागवत गीता के 12वें अध्याय का सरल अर्थ


भक्त भगवान का अत्यंत प्यारा होता है; क्योंकि वह शरीर इंद्रियां, मन, बुद्धि सहित अपने आप को भगवान के अर्पण कर देता है। जो परम श्रद्धा पूर्वक अपने मन को भगवान में लगाते हैं, वे भक्त सर्वश्रेष्ठ है। भगवान के पारायण हुए जो भक्त संपूर्ण कर्मों को भगवान के अर्पण करके अनन्य भाव से भगवान की उपासना करते हैं, भगवान स्वयं उनके संसार सागर से शीघ्र उद्धार करने वाले बन जाते हैं। जो अपने मन बुद्धि को भगवान में लगा देता है, वह भगवान में ही निवास करता है। जिनका प्राणी मात्र के साथ मित्रता एवं करुणा का बर्ताव है जो अहंता ममता से रहित है, जिसे कोई भी प्राणी उद्विग्न नहीं होता तथा जो स्वंय किसी प्राणी से उद्विग्न नहीं होते जो नये कर्मों के आरंभ के त्यागी हैं, जो अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर हर्षित एवं उद्विग्न नही होते, जो मान अपमान आदि में सम रहते हैं, जो जिस किसी भी परिस्थिति में निरंतर संतुष्ट रहते हैं, वे भक्त भगवान को प्यारे है। अगर मनुष्य भगवान के ही हो कर रहे, भगवान में ही अपनापन रखें, तो सभी भगवान के प्यार बन सकते हैं।

गीता प्रेस गोरखपुर की गीता दर्पण पुस्तक में से लिया गया।

काशी विश्वनाथ मंदिर के महत्व पूर्ण स्थान दर्शन के लिए

  काशी विश्वनाथ मंदिर के महत्व पूर्ण स्थान दर्शन के लिए और खरीदारी के लिए प्रसिद्ध वस्तु


5. भूतेश्वरनाथ मंदिर: यह एक प्राचीन शिव मंदिर है जो वाराणसी में स्थित है और भक्तों को आकर्षित करने वाला है।

6. काशीक्षेत्र विश्वविद्यालय:यह विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति और तथ्यवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है और यहाँ के कैम्पस में भी दर्शनीय स्थल हैं।

7. रानी लक्ष्मीबाई स्मारक (भवानी शंकर मंदिर): यह स्मारक झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित है और भवानी शंकर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।

 8.मणिकर्णिका घाट– 


वाराणसी के प्रमुख और पवित्र घाटों में से एक है। यह घाट गंगा नदी के किनारे स्थित है और हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। इसे मुक्तिदायिनी घाट भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ श्रद्धालु लोग अपने पितृगण के लिए श्राद्ध करने आते हैं और मृत्यु के बाद मुक्ति प्राप्त करने की आशा करते हैं।

मणिकर्णिका घाट पर स्थित मान्यवर्गीय मंदिर में देवी अनपूर्णा की पूजा की जाती है। यह घाट अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है और इसे गंगा आरती, पूजा, और साधु-संतों के साथ जुड़े रहने की विशेषता से याद किया जाता है।

इन स्थानों के साथ, वाराणसी में हैं अनेक और दर्शनीय स्थल जो यहाँ के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक विविधता को दिखाते हैं।

वाराणसी एक प्राचीन और रमणीय शहर है, जिसमें विभिन्न प्रकार के और अद्वितीय वस्त्र, शिल्पकला और पूजा सामग्री के लिए प्रसिद्ध बाजार हैं। 

 कुछ प्रमुख खरीदने के स्थान 

बनारस कुछ प्रमुख खरीदने के स्थान:और खाने की स्वादिष्ट चीजें

                  बनारस कुछ प्रमुख खरीदने के स्थान:और खाने की स्वादिष्ट चीजें


वाराणसी एक प्राचीन और रमणीय शहर है, जिसमें विभिन्न प्रकार के और अद्वितीय वस्त्र, शिल्पकला और पूजा सामग्री के लिए प्रसिद्ध बाजार हैं। यहाँ कुछ प्रमुख खरीदने की वस्तुएं :


1. बनारसी साड़ीयाँ: 


वाराणसी को बनारसी साड़ीयों के लिए प्रसिद्ध है, जो भारतीय स्थानीय सारी कला का प्रतीक हैं।

2. भगवान शिव की मूर्तियाँ और शिवलिंग : वाराणसी में शिवलिंग और भगवान शिव की मूर्तियाँ प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध हैं।

3. इत्र (अर्क) : वाराणसी में अद्भुत इत्रों का विक्रय होता है, जो स्थानीय बाजारों में उपलब्ध हैं।

4. कछुआ शिल्पकला : वाराणसी में कछुआ शिल्पकला के आदर्श और सुंदर नमूने मिलते हैं, जो एक विशेष शैली का प्रतीक हैं।

5. बनारसी पान 


 :वाराणसी में विशेष तरीके से बने पान का आनंद लेना भी एक स्थानीय अनुभव हो सकता है।

इसके साथ साथ सुबह सुबह गली गली में स्वादिष्ट कचौड़ी, बेडमी पूरी,मसाला चाय,टमाटर चाट आदि खाने योग्य है।

आपको एक बताना तो भूल ही गई जब भी काशी जाएं तो बाबा की शयन आरती देखना बिल्कुल नही भूलना।

।।हर हर महादेव।।

ये सुझाव केवल शुरुआत हैं, वाराणसी में अनेक अन्य रूपों की कला और हस्तशिल्प भी देखने और खरीदने के लिए उपलब्ध हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में महत्व पूर्ण जानकारी

 काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में महत्व पूर्ण जानकारी


काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में स्थित है और यह हिन्दू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का स्थान माना जाता है। मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में मराठा राजा आहिल्याबाई होलकर द्वारा किया गया था। काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के सबसे प्रमुख और पवित्र मंदिरों में से एक है जिसे लाखों भक्त वाराणसी में प्रतिवर्ष यात्रा करते हैं।

मंदिर के प्रांगण में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा, यहाँ कई छोटे-बड़े मंदिर और कुंज भी हैं जो आराधकों को एक आध्यात्मिक और धार्मिक अनुभव प्रदान करते हैं। गंगा घाटों पर भी अनगिनत पूजा-स्थल हैं जो यहाँ के धार्मिक माहौल को और भी प्रशंसा करते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक ऐतिहासिकता का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह भक्तों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का स्थान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसे हिन्दू धर्म में एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता है जिसमें लोग अपने आध्यात्मिक और धार्मिक आदर्शों को साकार रूप से अनुभव करते हैं। विश्वनाथ मंदिर का सौंदर्य, ऐतिहासिक महत्व, और पूजा का माहौल इसे विशेष बनाता है। इसके आस-पास के गलियारे, बाजार, और धार्मिक स्थल भी यहाँ के अनुपम वातावरण को सजीव करते हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा वाराणसी में कई अन्य प्रमुख स्थान हैं जो दर्शनीय हैं:

1. गंगा घाट: यहाँ के अनेक घाट जैसे की दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, मणिकर्णिका घाट, और दशाश्वमेध घाट दर्शनीय हैं और आराधकों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

2. सारनाथ: इस स्थान पर भगवान बुद्ध ने अपना पहला धर्मचक्र प्रवर्तन किया था, और यह बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

3. काशी हिरण्याक्षी (अन्नपूर्णा) मंदिर: इस मंदिर में देवी अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है, और यहाँ भी आराधकों की भरपूर भीड़ आती है।

4. तुलसी मानस मंदिर: भगवान राम की प्रेम पत्री तुलसीदास ने यहाँ रामचरितमानस रचा था, इसलिए यहाँ भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल हैं।

ये स्थान वाराणसी के धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते 

हैं।

शेष स्थानो का वर्णन आगे

गुरुवार, 11 जनवरी 2024

श्रीमद् भागवत गीता संबंधी प्रश्न उत्तर

                      श्रीमद् भागवत गीता संबंधी प्रश्न उत्तर 5 से 7 

5 प्रश्न– शरीरी (जीवात्मा) अविनाशी है, इसका विनाश कोई  कर ही नहीं सकता,(2/17) यह ना मरता है और ना मारा जाता है(2/19) तो फिर मनुष्य को प्राणियों की हत्या का पाप लगना ही नहीं चाहिए?

उत्तर –पाप तो पिंड–प्राणों का वियोग करने का लगता है; क्योंकि प्रत्येक प्राणी पिंड–प्राण में रहना चाहता है, जीना चाहता है। यद्यपि महात्मा लोग जीना नहीं चाहते, फिर भी उन्हें मारने का बड़ा भारी पाप लगता है क्योंकि उनका जीवन संसार मात्र चाहता है। उनके जीने से प्राणी मात्र का परम हित होता है। प्राणी मात्र को सदा रहने वाली शांति मिलती है। जो वस्तुएं प्राणियों के लिए जितनी आवश्यक होती हैं, उनका नाश करने का उतना ही अधिक पाप लगता है।

6 प्रश्न–आत्मा नित्य है, सर्वत्र परिपूर्ण है, स्थिर स्वभाव वाला है(2/24), तो फिर इसका पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे नए शरीर में चला जाना कैसे संभव है(2/22)?

उत्तर –जब यह प्रकृति के अंश शरीर को अपना मान लेता है ,उसके साथ तादाम्य में कर लेता है, तब यह प्रकृति के अंश के आने जाने को,उसके जीने मरने को, अपना आना-जाना, जीना-मारना मान लेता है। इस दृष्टि से इसका अन्य शरीरों में चला जाना कहा गया है। वास्तव में तत्वों से इसका आना-जाना,जीना- मरना है ही नहीं।

7 प्रश्न– भगवान कहते हैं कि क्षत्रिय के लिए युद्ध के सिवाय कल्याण का दूसरा कोई साधन है ही नहीं तो क्या लड़ाई करने से ही क्षत्रिय का कल्याण होगा दूसरे किसी साधन से कल्याण नहीं होगा?

ऐसी बात नहीं है उसे समय युद्ध का प्रसंग था और अर्जुन युद्ध को छोड़कर भिक्षा मांगना श्रेष्ठ समझते थे। अतः भगवान ने कहा कि ऐसा स्वतःप्राप्त धर्म युद्ध शूरवीर क्षत्रिय के लिए कल्याण का बहुत बढ़िया साधन है। अगर ऐसे मौके पर शूरवीर क्षत्रिय युद्ध नहीं करता, तो उसकी अपकीर्ति होती है। यह आदरणीय पूजनीय मनुष्यों की दृष्टि में लघुता को प्राप्त हो जाता है। वैरी लोग उसको ना कहने योग्य वचन कहने लग जाते हैं। तात्पर्य यह है कि अर्जुन के सामने युद्ध का प्रसंग था इसलिए भगवान ने युद्ध को श्रेष्ठ साधन बताया। युद्ध के सिवाय दूसरे साधन से क्षत्रिय अपना कल्याण नहीं कर सकता- यह बात नहीं है ;क्योंकि पहले भी बहुत से राजा लोग चौथे आश्रम में वन में जाकर साधन भजन करते थे और उनका कल्याण भी हुआ है।

यह प्रश्न उत्तर गीता दर्पण (स्वामी रामसुखदास जी के वचन) पुस्तक से लिए गए हैं।

गीता के 11 अध्याय का सरल अर्थ

                 गीता के 11वें अध्याय का सरल अर्थ

अर्जुन ने भगवान की कृपा से जिस दिव्या विश्व रूप के दर्शन किये, उसको तो हर एक मनुष्य नहीं देख सकता, परंतु आदि- अवतार रूप से प्रकट हुए इस संसार को श्रद्धापूर्वक भगवान का रूप मानकर तो हर एक मनुष्य विश्व रूप के दर्शन कर सकता है।

अर्जुन ने विश्व रूप दिखाने के लिए भगवान से नम्रता पूर्वक प्रार्थना की तो भगवान ने दिव्य नेत्र प्रदान करके अर्जुन को अपना दिव्य विश्व रूप दिखा दिया। उसमें अर्जुन ने भगवान के अनेक मुख, नेत्र, हाथ आदि देखे ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को देखा, देवताओं, गंधर्व, सिद्धों सांपों आदि को देखा उन्होंने विश्व रूप के सौम्य, उग्र अतिउग्र आदि कई स्तर देखे। इस दिव्य विश्वरूप को हम सब नहीं देख सकते, पर नेत्रों से दिखने वाले इस संसार को भगवान का स्वरूप मानकर, अपना उद्धार तो हम कर ही सकते हैं। कारण कि यह संसार भगवान से ही प्रकट हुआ है, भगवान ही सब कुछ बने हुए हैं।

गीता के दसवें अध्याय का सरल अर्थ

           गीता के दसवें अध्याय का सरल अर्थ

मनुष्य के पास चिंतन करने की जो शक्ति है उसको भगवान  के चिंतन में ही लगाना चाहिए। संसार में जिस किसी में, जहां कहीं विलक्षणता, विशेषता, मेहत्ता, अलौकिकता, सुंदरता आदि दिखती है, उसमें वह खिंचता है,वह विलक्षणता आदि सब वास्तव में भगवान ही है। अतः वहां भगवान का ही चिंतन होना चाहिए। उस वस्तु, व्यक्ति आदि का नहीं। यही विभूतियों के वर्णन का तात्पर्य है।

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