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शनिवार, 27 जनवरी 2024

हमारे जीवन में चुनौतियां क्यों आती हैं?

                  क्या चुनौतियाँ  हम कुछ सिखाती है।


महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे। पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था।

और वह था श्रवण के पिता का श्राप।

दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था। (कालिदास ने रघुवंशम में इसका वर्णन किया है)

श्रवण के पिता ने ये श्राप दिया था कि ''जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा''

दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र प्राप्त होगा (तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा)।

यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया।

ऐसी ही एक घटना सुग्रीव के साथ भी हुई। 

वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि सुग्रीव जब माता सीता की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग - अलग दिशाओं में भेज रहे थे.. 

उसके साथ-साथ उन्हें ये भी बता रहे थे कि किस दिशा में तुम्हें कौन सा स्थान या देश मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिये।

प्रभु श्रीराम सुग्रीव का ये भगौलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे।

उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि सुग्रीव तुमको ये सब कैसे पता?

सुग्रीव ने उनसे कहा कि ''मैं बाली के भय से जब मारा-मारा फिर रहा था तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली और इस चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी और इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया।''

अब अगर सुग्रीव पर ये संकट न आया होता तो उन्हें भूगोल का ज्ञान नहीं होता और माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो जाता।

इसीलिए किसी ने बड़ा सुंदर कहा है..

"अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करें वही पुरुषार्थी है।"

ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है तो हर एक काँटा भी वरदान ही समझें।

मतलब अगर आज मिले सुख से आप खुश हो तो कभी अगर कोई दुख, विपदा,अड़चन आ जाये तो घबरायें, नहीं क्या पता वो अगले किसी सुख की तैयारी हो।

जय श्री राधे 

भगवान राम के प्रसिद्ध नाम और उनके अर्थ

          भगवान राम के प्रसिद्ध नाम और उनके अर्थ


आदिराम - नित्य, स्वयंभू, शाश्वत सनातन अनंतराम, सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सभी के सृजनकर्ता, पालनहार है

राम - मनभावन, रमणीय, सुंदर, आनंददायक

प्राणीमात्र के हृदय में 'रमण' (निवास, विहार) करते हैं, वह 'राम' हैं तथा भक्तजन जिनमें 'रमण' (ध्याननिष्ठ) होते हैं, वह 'राम' हैं

रामलला - शिशु रुप राम

रामचंद्र - चंद्र जैसे शीतल एवं मनोहर राम

रामभद्र - मंगलकारी कल्याणमय राम

राघव - रघुवंश के संस्थापक राजा रघु के वंशज, रघुवंशी, रघुनाथ, रघुनंदन

रघुवीर - रघुकुल के सबसे वीर राजा राम

रामेश्वर - राम जिनके ईश्वर है अथवा जो राम के ईश्वर है

कौशल्या नंदन - कौशल्या को आनंद देने वाले, कौशल्या पुत्र, कौशलेय

दशरथी - दशरथ पुत्र, दशरथ नंदन

जानकीवल्लभ - जनकपुत्री सीता के प्रियतम

श्रीपति - लक्ष्मी स्वरूपा सीता के स्वामी जानकीनाथ, सीतापति

मर्यादा पुरुषोत्तम - धर्मनिष्ठ न्याय परायण पुरुषों में सर्वोत्तम 

नारायणावतार - भगवान नारायण के अवतार, विष्णु स्वरूप

जगन्नाथ - जगत के स्वामी, जगतपति

हरि - पाप, ताप को हरने वाले

जनार्दन - जो सभी जीवों का मूल निवास और रक्षक है

कमलनयन - कमल के समान नेत्रों वाले, राजीवलोचन

हनुमान ह्रदयवासी -  हनुमान के ह्रदय में वास करने वाले, हनुमानइष्ट, हनुमान आराध्य

शिव आराध्य - शिव निरंतर जिनका स्मरण करते हैं, शिवइष्ट, शिवप्रिय, शिव ह्रदयवासी

दशाननारि - दस शीश वाले रावण का वध करने वाले, रावणारि, दशग्रीव शिरोहर

असुरारि - असुरों का वध करने वाले

जगद्गुरु - अपने आदर्श चरित्र से सम्पूर्ण जगत् को शिक्षा देने वाले

सत्यव्रत - सत्य का दृढ़ता पूर्वक पालन करनेवाले

परेश - परम ईश्वर, सर्वोच्च आत्मा, सर्वोत्कृष्ट शासक

अवधेश - अवध के राजा या स्वामी

अविराज - सूर्य जैसे उज्जवल

सदाजैत्र - सदा विजयी, अजेय

जितामित्र - शत्रुओं को जीतनेवाला

महाभाग -  महान सौभाग्यशाली

कोदंड धनुर्धर - कोदंड धनुष को धारण करने वाले

पिनाक खण्डक - सीता स्वयंवर में पिनाक (शिवधनुष) को खंडित करने वाले

मायामानुषचारित्र - अपनी माया का आश्रय लेकर मनुष्यों जैसी लीलाएँ करने वाले

त्रिलोकरक्षक - तीनों लोकों की रक्षा करने वाले

धर्मरक्षक - धर्म की रक्षा करने वाले

सर्वदेवाधिदेव - सम्पूर्ण देवताओं के भी अधिदेवता

सर्वदेवस्तुत - सम्पूर्ण देवता जिनकी स्तुति करते हैं

सर्वयज्ञाधिप - सम्पूर्ण यज्ञों के स्वामी

व्रतफल - सम्पूर्ण व्रतों के प्राप्त होने योग्य फलस्वरूप

शरण्यत्राणतत्पर - शरणागतों की रक्षा में तत्पर

पुराणपुरुषोत्तम  - पुराणप्रसिद्ध क्षर-अक्षर पुरुषों से श्रेष्ठ लीलापुरुषोत्तम

सच्चिदानन्दविग्रह - सत्, चित् और आनन्द के स्वरूप का निर्देश कराने वाले

परं ज्योति -  परम प्रकाशमय,परम ज्ञानमय

परात्पर पर - इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि से भी परे परमेश्वर

पुण्यचारित्रकीर्तन - जिनकी लीलाओं का कीर्तन परम पवित्र हैं

सप्ततालप्रभेता - सात ताल वृक्षों को एक ही बाण से बींध डालनेवाले

भवबन्धैकभेषज - संसार बन्धन से मुक्त करने के लिये एकमात्र औषधरूप

।।जय सियाराम।।

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

सिय राम मय सब जग जानी ;

 श्री रामचरितमानस लिखने के दौरान तुलसीदास जी ने लिखा -


            सिय राम मय सब जग जानी ;

            करहु प्रणाम जोरी जुग पानी !


अर्थात सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम करना चाहिये !

यह लिखने के उपरांत तुलसीदास जी जब अपने गाँव की तरफ जा रहे थे 

तो किसी बच्चे ने आवाज़ दी -महात्मा जी उधर से मत जाओ 

बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखा है !

तुलसीदास जी ने विचार किया हू ,कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है !

अभी तो लिखा था कि

सबमे राम हैं ;उस बैल को प्रणाम करूगा और चला जाऊंगा !

पर जैसे ही वे आगे बढे बैल ने उन्हें मारा और वे गिर पड़े !

किसी तरह से वे वापिस वहाँ जा पहुँचे जहाँ श्री रामचरितमानस लिख रहे थे 

सीधा चौपाई पकड़ी और जैसे ही उसे फाड़ने जा रहे थे कि...

श्री हनुमान जी ने प्रगट हो कर कहा -तुलसीदास जी ये क्या कर रहे हो ?

तुलसीदास जी ने क्रोधपूर्वक कहा -यह चौपाई गलत है !

और उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया !

हनुमान जी ने मुस्करा कर कहा -

चौपाई तो एकदम सही है आपने बैल में तो भगवान को देखा पर बच्चे में क्यों नहीं ?

आखिर उसमे भी तो भगवान थे, वे तो आपको रोक रहे थे पर आप ही नहीं माने !

ऐसे ही छोटी-२ घटनाये हमें बड़ी घटनाओं का संकेत देती हैं उन पर विचार कर आगे बढ़ने वाले कभी बड़ी घटनाओं का शिकार नहीं होते..

।। जय श्री राम ।।

अच्छे लोगो के साथ ही बुरा क्यो होता है?

      अच्छे लोगो के साथ ही बुरा क्यो होता है?


सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥


भावार्थ:-मुनिनाथ ने बिलखकर (दुःखी होकर) कहा- हे भरत! सुनो, भावी (होनहार) बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के हाथ हैं॥

स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने दिया इसका उत्तर, जाने,,,,,

अच्छे लोगो के साथ ही बुरा क्यो होता है, यह सवाल कई लोगो के मन मे आता होगा। मैंने तो किसी का बुरा नही किया, फिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ। मैं तो सदैव ही धर्म और नीति के मार्ग का पालन करता हूँ, पर मेरे साथ हमेशा बुरा क्यो होता है। ऐसे कई विचार अधिकांश लोगों के मन मे आते होंगे। 

ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने दिए हैं। एक बार अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि हे वासुदेव! अच्छे और सच्चे बुरे लोगो के साथ ही बुरा क्यो होता है, इस पर भगवान श्री कृष्ण ने एक कहानी सुनाई। इस कहानी में हर मनुष्य के सवालों का जवाब वर्णित है।

श्री कृष्ण कहते हैं, कि एक नगर में दो पुरूष रहते थे। पहला व्यापारी जो बहुत ही अच्छा इंसान था, धर्म और नीति का पालन करता था, भगवान की भक्ति करता था और मन्दिर जाता था। वह सभी तरह के गलत कामो से दूर रहता था। 

वहीं दूसरा व्यक्ति जो कि दुष्ट प्रवत्ति का था, वो हमेशा ही अनीति और अधर्म के काम करता था। वो रोज़ मन्दिर से पैसे और चप्पल चुराता था, झूठ बोलता था और नशा करता था। एक दिन उस नगर में तेज बारिश हो रही थी और मन्दिर में कोई नही था, यह देखकर उस नीच व्यक्ति ने मन्दिर के सारे पैसे चुरा लिए और पुजारी की नज़रों से बचकर वहाँ से भाग निकला, थोड़ी देर बाद जब वो व्यापारी दर्शन करने के उद्देश्य से मन्दिर गया तो उस पर चोरी करने का इल्ज़ाम लग गया। 

वहाँ मौजूद सभी लोग उसे भला – बुरा कहने लगे, उसका खूब अपमान हुआ। जैसे – तैसे कर के वह व्यक्ति मन्दिर से बाहर निकला और बाहर आते ही एक गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी। वो व्यापारी बुरी तरह से चोटिल हो गया।

उसी समय उस दुष्ट को एक नोटो से भरी पोटली हाथ लगी, इतना सारा धन देखकर वह दुष्ट खुशी से पागल हो गया और बोला कि आज तो मज़ा ही आ गया। पहले मन्दिर से इतना धन मिला और फिर ये नोटों से भरी पोटली। 

दुष्ट की यह बात सुनकर वह व्यापारी दंग रह गया। उसने घर जाते ही घर मे मौजूद भगवान की सारी तस्वीरे निकाल दी और भगवान से नाराज़ होकर जीवन बिताने लगा। 

सालो बाद जब उन दोनों की मृत्यु हो गयी और दोनों यमराज के सामने गए तो उस व्यापारी ने नाराज़ स्वर में यमराज से प्रश्न किया कि मैं तो सदैव ही अच्छे कर्म करता था, जिसके बदले मुझे अपमान और दर्द मिला और इस अधर्म करने वाले दुष्ट को नोटो से भरी पोटली…आखिर क्यों? 

व्यापारी के सवाल पर यमराज बोले जिस दिन तुम्हारे साथ दुर्घटना घटी थी, वो तुम्हारी ज़िन्दगी का आखिरी दिन था, लेकिन तुम्हारे अच्छे कर्मों की वजह से तुम्हारी मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गयी। 

वही इस दुष्ट को जीवन मे राजयोग मिलने की सम्भावनाएं थी, लेकिन इसके बुरे कर्मो के चलते वो राजयोग एक छोटे से धन की पोटली में बदल गया।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि भगवान हमे किस रूप में दे रहे हैं, ये समझ पाना बेहद कठिन होता है। अगर आप अच्छे कर्म कर रहे हैं और बुरे कर्मो से दूर हैं, तो भगवान निश्चित ही अपनी कृपा आप पर बनाए रखेंगे।

जीवन मे आने वाले दुखों और परेशानियों से कभी ये न समझे कि भगवान हमारे साथ नही है, हो सकता है आपके साथ और भी बुरा होने का योग हो, लेकिन आपके कर्मों की वजह से आप उनसे बचे हुए हो।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताई इस रोचक कहानी में मनुष्यों के अधिकांश सवालों के उत्तर मौजूद हैं।


।। जय सिया राम।।

बुधवार, 24 जनवरी 2024

भगवान राम के प्रसिद्ध नाम

                     भगवान राम के प्रसिद्ध नाम


आदिराम - नित्य, स्वयंभू, शाश्वत सनातन अनंतराम, सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सभी के सृजनकर्ता, पालनहार है

राम - मनभावन, रमणीय, सुंदर, आनंददायक

प्राणीमात्र के हृदय में 'रमण' (निवास, विहार) करते हैं, वह 'राम' हैं तथा भक्तजन जिनमें 'रमण' (ध्याननिष्ठ) होते हैं, वह 'राम' हैं

रामलला - शिशु रुप राम

रामचंद्र - चंद्र जैसे शीतल एवं मनोहर राम

रामभद्र - मंगलकारी कल्याणमय राम

राघव - रघुवंश के संस्थापक राजा रघु के वंशज, रघुवंशी, रघुनाथ, रघुनंदन

रघुवीर - रघुकुल के सबसे वीर राजा राम

रामेश्वर - राम जिनके ईश्वर है अथवा जो राम के ईश्वर है

कौशल्या नंदन - कौशल्या को आनंद देने वाले, कौशल्या पुत्र, कौशलेय

दशरथी - दशरथ पुत्र, दशरथ नंदन

जानकीवल्लभ - जनकपुत्री सीता के प्रियतम

श्रीपति - लक्ष्मी स्वरूपा सीता के स्वामी जानकीनाथ, सीतापति

मर्यादा पुरुषोत्तम - धर्मनिष्ठ न्याय परायण पुरुषों में सर्वोत्तम 

नारायणावतार - भगवान नारायण के अवतार, विष्णु स्वरूप

जगन्नाथ - जगत के स्वामी, जगतपति

हरि - पाप, ताप को हरने वाले

जनार्दन - जो सभी जीवों का मूल निवास और रक्षक है

कमलनयन - कमल के समान नेत्रों वाले, राजीवलोचन

हनुमान ह्रदयवासी -  हनुमान के ह्रदय में वास करने वाले, हनुमानइष्ट, हनुमान आराध्य

शिव आराध्य - शिव निरंतर जिनका स्मरण करते हैं, शिवइष्ट, शिवप्रिय, शिव ह्रदयवासी

दशाननारि - दस शीश वाले रावण का वध करने वाले, रावणारि, दशग्रीव शिरोहर

असुरारि - असुरों का वध करने वाले

जगद्गुरु - अपने आदर्श चरित्र से सम्पूर्ण जगत् को शिक्षा देने वाले

सत्यव्रत - सत्य का दृढ़ता पूर्वक पालन करनेवाले

परेश - परम ईश्वर, सर्वोच्च आत्मा, सर्वोत्कृष्ट शासक

अवधेश - अवध के राजा या स्वामी

अविराज - सूर्य जैसे उज्जवल

सदाजैत्र - सदा विजयी, अजेय

जितामित्र - शत्रुओं को जीतनेवाला

महाभाग -  महान सौभाग्यशाली

कोदंड धनुर्धर - कोदंड धनुष को धारण करने वाले

पिनाक खण्डक - सीता स्वयंवर में पिनाक (शिवधनुष) को खंडित करने वाले

मायामानुषचारित्र - अपनी माया का आश्रय लेकर मनुष्यों जैसी लीलाएँ करने वाले

त्रिलोकरक्षक - तीनों लोकों की रक्षा करने वाले

धर्मरक्षक - धर्म की रक्षा करने वाले

सर्वदेवाधिदेव - सम्पूर्ण देवताओं के भी अधिदेवता

सर्वदेवस्तुत - सम्पूर्ण देवता जिनकी स्तुति करते हैं

सर्वयज्ञाधिप - सम्पूर्ण यज्ञों के स्वामी

व्रतफल - सम्पूर्ण व्रतों के प्राप्त होने योग्य फलस्वरूप

शरण्यत्राणतत्पर - शरणागतों की रक्षा में तत्पर

पुराणपुरुषोत्तम  - पुराणप्रसिद्ध क्षर-अक्षर पुरुषों से श्रेष्ठ लीलापुरुषोत्तम

सच्चिदानन्दविग्रह - सत्, चित् और आनन्द के स्वरूप का निर्देश कराने वाले

परं ज्योति -  परम प्रकाशमय,परम ज्ञानमय

परात्पर पर - इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि से भी परे परमेश्वर

पुण्यचारित्रकीर्तन - जिनकी लीलाओं का कीर्तन परम पवित्र हैं

सप्ततालप्रभेता - सात ताल वृक्षों को एक ही बाण से बींध डालनेवाले

भवबन्धैकभेषज - संसार बन्धन से मुक्त करने के लिये एकमात्र औषधरूप

 जय सियाराम 

रविवार, 14 जनवरी 2024

श्रीमद् भागवत गीता के 12वीं अध्याय का सरल अर्थ

    श्रीमद् भागवत गीता के 12वें अध्याय का सरल अर्थ


भक्त भगवान का अत्यंत प्यारा होता है; क्योंकि वह शरीर इंद्रियां, मन, बुद्धि सहित अपने आप को भगवान के अर्पण कर देता है। जो परम श्रद्धा पूर्वक अपने मन को भगवान में लगाते हैं, वे भक्त सर्वश्रेष्ठ है। भगवान के पारायण हुए जो भक्त संपूर्ण कर्मों को भगवान के अर्पण करके अनन्य भाव से भगवान की उपासना करते हैं, भगवान स्वयं उनके संसार सागर से शीघ्र उद्धार करने वाले बन जाते हैं। जो अपने मन बुद्धि को भगवान में लगा देता है, वह भगवान में ही निवास करता है। जिनका प्राणी मात्र के साथ मित्रता एवं करुणा का बर्ताव है जो अहंता ममता से रहित है, जिसे कोई भी प्राणी उद्विग्न नहीं होता तथा जो स्वंय किसी प्राणी से उद्विग्न नहीं होते जो नये कर्मों के आरंभ के त्यागी हैं, जो अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर हर्षित एवं उद्विग्न नही होते, जो मान अपमान आदि में सम रहते हैं, जो जिस किसी भी परिस्थिति में निरंतर संतुष्ट रहते हैं, वे भक्त भगवान को प्यारे है। अगर मनुष्य भगवान के ही हो कर रहे, भगवान में ही अपनापन रखें, तो सभी भगवान के प्यार बन सकते हैं।

गीता प्रेस गोरखपुर की गीता दर्पण पुस्तक में से लिया गया।

काशी विश्वनाथ मंदिर के महत्व पूर्ण स्थान दर्शन के लिए

  काशी विश्वनाथ मंदिर के महत्व पूर्ण स्थान दर्शन के लिए और खरीदारी के लिए प्रसिद्ध वस्तु


5. भूतेश्वरनाथ मंदिर: यह एक प्राचीन शिव मंदिर है जो वाराणसी में स्थित है और भक्तों को आकर्षित करने वाला है।

6. काशीक्षेत्र विश्वविद्यालय:यह विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति और तथ्यवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है और यहाँ के कैम्पस में भी दर्शनीय स्थल हैं।

7. रानी लक्ष्मीबाई स्मारक (भवानी शंकर मंदिर): यह स्मारक झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित है और भवानी शंकर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।

 8.मणिकर्णिका घाट– 


वाराणसी के प्रमुख और पवित्र घाटों में से एक है। यह घाट गंगा नदी के किनारे स्थित है और हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। इसे मुक्तिदायिनी घाट भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ श्रद्धालु लोग अपने पितृगण के लिए श्राद्ध करने आते हैं और मृत्यु के बाद मुक्ति प्राप्त करने की आशा करते हैं।

मणिकर्णिका घाट पर स्थित मान्यवर्गीय मंदिर में देवी अनपूर्णा की पूजा की जाती है। यह घाट अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है और इसे गंगा आरती, पूजा, और साधु-संतों के साथ जुड़े रहने की विशेषता से याद किया जाता है।

इन स्थानों के साथ, वाराणसी में हैं अनेक और दर्शनीय स्थल जो यहाँ के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक विविधता को दिखाते हैं।

वाराणसी एक प्राचीन और रमणीय शहर है, जिसमें विभिन्न प्रकार के और अद्वितीय वस्त्र, शिल्पकला और पूजा सामग्री के लिए प्रसिद्ध बाजार हैं। 

 कुछ प्रमुख खरीदने के स्थान 

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