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मंगलवार, 12 अगस्त 2025

भाद्रपक्ष में मुंबई की गणेश चतुर्थी – भक्ति, भव्यता और उल्लास"

भाद्रपक्ष में बॉम्बे की गणेश चतुर्थी – भक्ति और उल्लास का संगम


🌸 भूमिका

गणेश चतुर्थी भारत का एक प्रमुख उत्सव है, लेकिन मुंबई (बॉम्बे) में इसकी भव्यता देखने लायक होती है।
भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यह पर्व मनाया जाता है और 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में पूरे शहर का वातावरण गणेशमय हो जाता है।

🌺 गणेश चतुर्थी का महत्व

  • यह पर्व भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
  • गणपति को विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता माना जाता है।
  • महाराष्ट्र, विशेषकर मुंबई में, इसे सामाजिक एकता, कला और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।

🎉 मुंबई में गणेश चतुर्थी की खासियत

1. लालबागचा राजा

मुंबई का सबसे प्रसिद्ध गणपति पंडाल, जहाँ लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।

2. भव्य पंडाल सजावट

हर गली-मोहल्ले में अद्भुत थीम पर आधारित पंडाल सजाए जाते हैं — जैसे मंदिर की आकृति, ऐतिहासिक किले, या सामाजिक संदेश देने वाले डिज़ाइन।

3. सांस्कृतिक कार्यक्रम

भजन-कीर्तन, नृत्य, नाटक, और लोककला प्रदर्शन का आयोजन।


4. विसर्जन यात्रा

अनंत चतुर्दशी के दिन विशाल शोभायात्रा के साथ गणेशजी को विदाई दी जाती है।
"गणपति बप्पा मोरया" के जयकारों से सारा शहर गूंज उठता है।

🪔 गणेश चतुर्थी का संदेश

यह पर्व हमें सिखाता है कि शुरुआत हमेशा मंगलमय होनी चाहिए, और जीवन से सभी विघ्नों को दूर करने के लिए हमें भगवान गणेश का आशीर्वाद लेना चाहिए।


🌸 "वक्रतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभा…" 🌸


श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत,पूजा विधि,महत्व और विशेषताएं

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 – भगवान के अवतरण का पावन पर्व


🌸 भूमिका

जन्माष्टमी हिंदू धर्म का प्रमुख और पावन त्योहार है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और अर्धरात्रि का समय इस दिन का विशेष संयोग होता है।
इस दिन मंदिरों और घरों में झूला सजाकर, भजन-कीर्तन गाकर और व्रत-पूजा करके वातावरण को कृष्णमय बनाया जाता है।

🌺 जन्माष्टमी का महत्व

  • भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा की कारागार में हुआ।
  • उन्होंने अत्याचारी कंस का अंत कर धर्म और न्याय की स्थापना की।
  • गीता के उपदेश से उन्होंने मानवता को सत्य, धर्म और कर्म का संदेश दिया।
  • जन्माष्टमी हमें प्रेम, करुणा, निडरता और धर्मनिष्ठा की प्रेरणा देती है।

🪔 व्रत और पूजा विधि

  1. व्रत का पालन – भक्त निर्जल या फलाहार उपवास रखते हैं।
  2. मध्यरात्रि पूजन – रात 12 बजे, श्रीकृष्ण जन्म समय, विशेष पूजा की जाती है।
  3. झांकी और झूला – कृष्ण-लीला की झांकियां बनाई जाती हैं और भगवान का झूला सजाया जाता है।
  4. भोग अर्पण – माखन-मिश्री, पंजीरी और मिश्री का भोग लगाया जाता है।


🎉 जन्माष्टमी की विशेषताएं

  • दही-हांडी – महाराष्ट्र और गुजरात में मटकी फोड़ प्रतियोगिता की धूम।
  • भजन-कीर्तन – पूरे दिन और रात भक्ति गीतों का आयोजन।
  • गीता पाठ – गीता के श्लोकों का पाठ और सत्संग।


💬 जन्माष्टमी का संदेश

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते रहना चाहिए।
प्रेम, करुणा और निस्वार्थ सेवा ही सच्ची भक्ति है।

🌸 "राधे राधे बोलना आसान है, पर राधा के रंग में रंग जाना कठिन…" 🌸


।।जय श्री राधे।।

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

लघु गीता अध्याय 3

                                     लघु गीता 

                        अध्याय 3

कर्मों को प्रारंभ न करने से कोई निष्काम नहीं हो सकता और कर्म त्याग से न कोई संन्यासी हैं और न कोई सिद्धि प्राप्त कर सकता है।

प्रकृति के गुण सब मनुष्यों को कुछ न कुछ कर्म करवातें है।इसलिए मन ,बुद्धि व कर्म इंद्रियों को वश में करके अपने नियमित काम को करते रहना ही करम यज्ञ है। व फल की इच्छा ना करना ही संन्यास है और इसी तरह वश में करके प्रभु चिंतन करना चाहिए और यदि मन, बुद्धि, और ज्ञान इंद्रियां चिंतन करते समय वश में ना हो और विषयों का चिंतन करता है, वह पापी, मिथ्याचारी कहलाता है।

           सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा जी ने यज्ञ सहित उत्पन्न करके कहा कि यज्ञ से ही बुद्धि,सुख और कल्याण को प्राप्त होंगे। जो स्वयं सामग्री भोग से पहले, इस का भाग, दान आदि नहीं करता है। वह पापी और देवताओं का चोर है।

       राजा जनक आदि ने भी फल की इच्छा को छोड़ कर कर्म किया और मोक्ष प्राप्त किया। श्रेष्ठ मनुष्य जिस कर्म को करते है दूसरे लोग भी उसे प्रमाणिक मान कर उसे करते है और उत्तम मानते है। कृष्ण जी कहते है कि मुझे सब वस्तुएं प्राप्त हैं और फिर भी मैं कर्म करता रहता हूं अन्यथा आलस में आकर मैं कर्म न करूं तो अन्य लोग भी काम नहीं करेंगे और वे नष्ट हो जाएंगे और इससे वर्णसंकर उत्पत्ति हो जाएगी ,जो अपने पूर्वजों को नष्ट भी करेंगे और नर्क में भेजेंगे। अज्ञानी लोगों को प्रेम पूर्वक कर्म करवातें हुए धीरे धीरे ज्ञान उत्पन्न करने की चेष्टा करें।सब कर्म प्रकृति के गुणों को समझ करके होते है –परंतु कुछ मूर्ख लोग स्वयं को ही कर्ता समझ कर अभिमान को प्राप्त होते हैं। परंतु जो गुण व कर्म के रहस्य को समझता है कि यह प्रकृति का ही खेल है वह ज्ञानी हैं। मनुष्य मात्र अपनी प्रकृति के अनुसार चलता है परंतु अन्य जीवों को स्वभाव अनुसार रहना पड़ता है। स्वयं विषयों को वश में करके रखना ही पुण्य है और विषय के वश में होना पाप है। रजोगुण ही मनुष्य का काम क्रोध उत्पन्न करता है और गलत कार्य की भावना की ओर ले जाता हैं। यह शत्रु है और कभी तृप्त नहीं होता और ज्ञान विज्ञान को नाश करता है मन व बुद्धि इसके आश्रय स्थल है– इसलिए इस काम को सर्वप्रथम इस दुर्धर शत्रु को जितना आवश्यक है।

😊🙏

रविवार, 3 अगस्त 2025

लघु गीता: श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त और सारगर्भित ज्ञान"

                       लघु गीता: श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त और सारगर्भित ज्ञान"


लघु गीता – भगवद गीता का सार हिंदी में | Geeta Saar in Hindi

श्रीमद्भगवद्गीता का सार संक्षेप में पढ़ें। लघु गीता के माध्यम से जानिए जीवन, कर्म, भक्ति और आत्मा का शाश्वत ज्ञान, सरल और सुंदर भाषा में।

लघु गीता – जीवन का सार, श्रीकृष्ण के श्रीमुख से


श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, यह जीवन का मार्गदर्शक है। इसमें अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के माध्यम से जीवन, धर्म, आत्मा और कर्म का ऐसा ज्ञान दिया गया है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है।


🌿 क्यों पढ़ें 'लघु गीता'?

समय की कमी या सरलता की चाह रखने वालों के लिए लघु गीता में भगवद्गीता का सार संक्षेप में दिया जाता है, जिससे हम जीवन के मूल तत्वों को आसानी से समझ सकें।

लघु गीता (सरल रूप)

अध्याय 1
हे भगवान जो अर्जुन को ज्ञान दिया वह ज्ञान मुझे भी मिले, मैं आपकी शरण में आया हूं।जब कौरव व पांडव युद्ध करने के लिए कुरुक्षेत्र गए तब धृतराष्ट्र ने हस्तिनापुर में ही युद्ध देखने का संजय से आग्रह किया। तब श्री वेदव्यास जी की कृपा से संजय को दिव्या दृष्टि मिली, व दिव्या बुद्धि प्रदान हुई और उसी से वह युद्ध में एकत्र सेना का वृतांत सुनाने लगे। कृष्ण जी अर्जुन के साथ रथ पर युद्ध में आए और प्रतिद्वंद्वी दल में सभी सगे संबंधियों को पाया और कृष्णा जी से कहा कि स्वजनों को मार कर राज्य कमाना तो पाप है और हम कुल नाश के दोषी बनेंगे। प्राचीन धर्म नष्ट होंगे, कुल में पाप बढ़ेंगे, कुल की स्त्रियां व्यभिचार होगी, वर्णसंकर संताने होगी और वे  संताने कुल को नाश करने वाले हम पुरुषों को नर्क में पहुंचाएंगी। ऐसे कुल का नाश करके राज्य प्राप्ति करना घोर पाप है ,और इससे अत्यंत दुखी होकर अर्जुन ,भगवान श्री कृष्ण के सामने हथियार डालकर दुखी होकर बैठ गए।

अध्याय 2

जब अर्जुन ने पितामह व गुरु मोह में अपने को निर्बल पाया, कि युद्ध में अपने सगे संबंधियों पर कैसे प्रहार करू, तो कृष्ण जी ने कहा यह शरीर सब नाशवान है, परंतु आत्मा अमर है जो केवल पुराने कपड़ों की भांति चोला बदलता है और ना घटती है ना बढ़ती है, ना सूखती है न गीली होती है, ना जन्मती है न मरती है। न शस्त्र इसे काट सकत है ना आग इसे जला सकती है। इसलिए हे अर्जुन धर्म पूर्वक युद्ध करो क्योंकि ये दुष्ट है दुष्ट का साथ दे रहे हैं, और इनका नाश करना क्षत्रिय धर्म ही है और इसी में तुम्हारी बढ़ाई है। अन्यथा तुम्हारी निंदा होगी और लोग  तुम्हें  कायर कहेंगे, यश और कीर्ति खो बैठोगे ,जो जीते हुए भी मृत्यु के समान है। धर्म युद्ध करना तुम्हारा कर्म यज्ञ है। जिसमें लाभ हानि, जय पराजय, सुख-दुख को समान समझ कर परम धर्म प्राप्त करो, फल की इच्छा छोड कर कर्म करना ही ज्ञान है। निष्काम बुद्धि ही ज्ञान प्राप्त कराती है, निश्चय या स्थिर बुद्धि वही है जो प्रसन्नचित निष्काम हो दुख में दुखी न हो और सुख में डूब ना जाए। तथा प्रति, भय, क्रोध जिसके वश में  है वह महात्मा है।


शनिवार, 2 अगस्त 2025

रक्षा बंधन 2025 : भाई-बहन का प्रेम व धार्मिक महत्व

रक्षा बंधन : भाई-बहन के प्रेम का पर्व और इसका आध्यात्मिक महत्व

      रक्षा बंधन 2025: भाई-बहन का प्रेम व धार्मिक महत्व

भाई-बहन के रिश्ते का सबसे प्यारा और पवित्र पर्व है रक्षाबंधन। यह सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि स्नेह, विश्वास और सुरक्षा का वादा है, जो बहन अपने भाई की कलाई पर बांधती है। 

रक्षा बंधन 2025 का पर्व कब है, इसका पौराणिक महत्व, पूजा विधि व आध्यात्मिक संदेश – जानिए इस त्योहार का सम्पूर्ण अर्थ।

रक्षा बंधन का महत्व और इसकी आध्यात्मिक भावना
हर वर्ष श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षा बंधन भाई-बहन के प्रेम, विश्वास और रक्षा-संवेदनाओं का प्रतीक पर्व है। यह केवल एक रक्षासूत्र बांधने का आयोजन नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेश देने वाला त्यौहार है।

🪻 रक्षा बंधन 2025 में कब है?

रक्षा बंधन 2025 को 9 अगस्त, को मनाया जाएगा। शुभ मुहूर्त में राखी बांधने से जीवन में प्रेम, सौहार्द और सुरक्षा का भाव प्रबल होता है।

🌼 रक्षा बंधन का पौराणिक आधार

  1. श्रीकृष्ण और द्रौपदी कथा:
    जब श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लगी, द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा बांधा। कृष्ण ने उसे ‘रक्षा’ का वचन दिया। यही रक्षाबंधन का आध्यात्मिक बीज है।

  2. इन्द्राणी और इन्द्र देव:
    देवासुर संग्राम में इन्द्राणी ने इन्द्र की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा, जिससे इन्द्र की विजय हुई। यह सूचक है कि रक्षा बंधन आत्मबल और देव कृपा से रक्षा का पर्व है।

🌿 रक्षा बंधन की पूजा विधि

  • श्रावण पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नान कर पवित्र होकर पूजा करें।
  • थाली में राखी, चावल, दीपक और मिठाई रखें।
  • भाई की आरती करें, तिलक लगाएं और राखी बांधकर मिठाई खिलाएं।
  • भाई बहन को उपहार देकर रक्षा का संकल्प करता है।

🪔 आध्यात्मिक भावार्थ

‘रक्षा बंधन’ केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं है। यह हर जीव के प्रति रक्षा-संवेदना का संदेश देता है। यह अहिंसा, स्नेह और कर्तव्यबोध का पर्व है। यह रिश्तों की गरिमा को बढ़ाने का माध्यम है।

🌸 रक्षा सूत्र का मंत्र:



“ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥”

इस मंत्र के साथ बांधी गई राखी दिव्य शक्ति का आवाहन करती है।


📿 निष्कर्ष

रक्षा बंधन एक पारिवारिक पर्व है, परंतु इसका संदेश संपूर्ण समाज के लिए है – कि हम सभी एक-दूसरे की रक्षा और सम्मान में बंधे रहें। यह प्रेम, सेवा और समर्पण का सूत्र है।




रविवार, 27 जुलाई 2025

सावन में भगवान भोलेनाथ (शिवजी) की पूजा विशेष रूप से क्यों की जाती है,

 सावन में भगवान भोलेनाथ (शिवजी) की पूजा विशेष रूप से क्यों की जाती है।


 इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और प्राकृतिक तीनों दृष्टिकोणों से गहरे कारण हैं:

1. पौराणिक कारण:

  • समुद्र मंथन और विषपान: पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब "हलाहल विष" निकला तो पूरी सृष्टि संकट में पड़ गई। भगवान शिव ने करुणा दिखाते हुए वह विष पी लिया। यह घटना सावन मास में ही हुई थी। विष के प्रभाव से भगवान शिव का शरीर जलने लगा, और देवताओं ने उन्हें शांत रखने के लिए गंगाजल चढ़ाया और बिल्वपत्र अर्पित किए। तभी से सावन में शिवलिंग पर जलाभिषेक और बिल्वपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।

2. भगवान शिव और पार्वती का विवाह:

  • मान्यता है कि देवी पार्वती ने सावन मास में ही कठोर तप कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इसलिए सावन को शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। इस कारण महिलाएं शिवजी की पूजा कर अपने पति के दीर्घायु व सौभाग्य की कामना करती हैं, और कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं।

3. प्राकृतिक कारण:

  • सावन मास वर्षा ऋतु का समय है। यह समय शरीर और मन को शुद्ध करने का है। जल से शिव का अभिषेक करना प्राकृतिक रूप से भी ताजगी और शांति का अनुभव देता है। साथ ही, इस समय प्रकृति हरी-भरी होती है और शिव को प्रकृति का स्वामी माना गया है – वे कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं, जो स्वयं एक प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है।

4. श्रावण मास में सोमवार व्रत का महत्व:

  • सावन के सोमवार व्रत (श्रावण सोमवार) अत्यंत फलदायक माने जाते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस मास में सोमवार को व्रत कर शिवजी की आराधना करता है, उसकी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं

5. ज्योतिषीय कारण:

  • श्रावण मास के दौरान चंद्रमा की स्थिति शिव से जुड़ी मानी जाती है, और चंद्रमा शिवजी के मस्तक पर विराजमान हैं। इसलिए चंद्रमा और शिव की उपासना इस मास में मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभदायक मानी जाती है।

निष्कर्ष:

सावन भगवान शिव का प्रिय मास है, जिसमें उनकी पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह मास भक्ति, तपस्या और आंतरिक शुद्धिकरण का समय है, जो व्यक्ति को आत्मिक रूप से मजबूत करता है।

।।सांब सदाशिव।।

मंगलवार, 15 जुलाई 2025

शिव चालीसा

                            शिव चालीसा


(श्री शिव जी की चालीसा — श्री हनुमान चालीसा की तरह, भगवान शिव की स्तुति में रचित 40 चौपाइयों की एक भक्ति रचना)

॥दोहा॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥

॥चौपाई॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीनदयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैनाक पर्वत परम सुहावन।
ध्यान करत मुनि ध्यान लगावन॥

काल कूट विष कण्ठ सम्हारे।
सो नाथ तुम्हारे कौन उपारे॥

अंधक नायक अहि असुर संहारे।
सुरन सिद्ध सेवक तुम्हारे॥

नन्दी ब्रह्मा आदि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

जैमिनी व्यास आदि ऋषिगण।
तप करत ध्यानवत नित-नित॥

रामचन्द्र के काज सवारे।
लक्ष्मण मुर्छित प्राण उबारे॥

रावण मर्दन कीन्हा भारी।
पुत्र विभीषण राज दिलाई॥

मत्त भाल एक दानव मारा।
त्रिपुरासुर संहार सँवारा॥

भूत प्रेत पिशाच निसाचर।
सिंह सवारी करहिं तमाचर॥

भैरव आदि तुम्हारे सेवक।
सदा करें संतान के सन्दर्भ॥

तुम्हरो यश कोई नहिं गावे।
बिनु हरिचरण भवसागर पावे॥

जो यह पाठ करे शिव चालीसा।
निश्चय पाय शिवलोक का ईशा॥

अश्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
सब विधि पुरखे तुम्हें विधाता॥

एकानन चतुर्नान दस आनन।
तेहि शिव ध्यान करें मन कानन॥

धन्य शिव चरित्र अतिपावन।
शंकर नाम सुमिरत भव भंजन॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानें।
तीनों रूप अनूप बताने॥

अकथ अनादि अनन्त प्रभु सोही।
जानत एक राम जान कोही॥

शिव तत्त्व अति गूढ़ बतावा।
अद्भुत रूप अलौकिक छावा॥

शिव महिमा न जाइ बखानी।
जो शंकरमय जानै प्राणी॥

शिवजी को जो जानै भाई।
ताके मन रह न दुखाई॥

नित्य नेम करै जो कोई।
ता पर कृपा करै शंकर सोई॥

ऋणिया को ऋण दूर करै।
रोगी को रोग से उबारै॥

बांझे को पुत्र प्राप्त करावै।
नर को सम्पति से नहिं चुकावै॥

विद्या विनय शील बढ़ावै।
सदा यश कीर्ति जग में पावै॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाव्याधि निकट नहिं पावै॥

जो यह पढ़ै शिव चालीसा।
होई सिद्धि साखी गौरीशा॥

पाठ करे श्रृद्धा मन लाई।
ताके संकट रहैं न काई॥

शंकर दयाल सदा सहाय।
करै भक्त पर कृपा अपार॥

॥दोहा॥
कहत अयोध्या दास यह, पूर्ण कीजै आस।
शंकर कृपा करहु प्रभु, राखो नाज हमारी॥

ॐ नमः शिवाय 


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