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शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता के प्रथम अध्याय का 11 श्लोक सरल अर्थों में हिंदी में

 श्रीमद्भागवत गता के प्रथम अध्याय का 11वां श्लोक सरल अर्थ में

अयनेषु ------------------------------------------- सर्व एवं हि ।।११।।

अपने अपने मोर्चों पर खड़े होकर रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी पूरी सहायता दे।

 भीष्म पितामह के शोर्य की प्रशंसा करने के बाद दुर्योधन ने सोचा कि कहीं अन्य योद्धा यह ना समझें कि उन्हें कम महत्व दिया जा रहा है। अतः दुर्योधन ने अपने सहज कूटनीतिक ढंग से स्थिति संभालने के उद्देश्य से उपयुक्त शब्द कहें। उसने बलपूर्वक कहा कि भीष्मदेव निसंदेह महानतम योद्धा है, किंतु अब वृद्ध हो चुके हैं। अतः प्रत्येक सैनिकों को चाहिए कि चारों ओर से उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें ,हो सकता है कि वह किसी एक दिशा में युद्ध करने में लग जाएं और शत्रु इस व्यस्तता का लाभ उठा लें। अंत: यह आवश्यक है कि अन्य योद्धा मोर्चों पर अपनी अपनी स्थिति पर अडिग रहें और शत्रु को व्यूह न तोड़ने दे।

 दुर्योधन को पूर्ण विश्वास था कि कुरूओं की विजय भीष्म देव की उपस्थिति पर निर्भर है।उसे युद्ध में भीष्म तथा द्रोणाचार्य के पूर्ण सहयोग की आशा थी क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि इन दोनों ने उस समय एक शब्द भी नहीं कहा था, जब अर्जुन की पत्नी द्रौपदी को असहाय अवस्था में भरी सभा में नग्न किया जा रहा था और जब उसने न्याय की भीख मांगी थी। यह जानते हुए भी कि इन दोनों सेनापतियों के मन में पांडवों के लिए स्नेह था। दुर्योधन को आशा थी कि वे इस स्नेह को उसी तरह त्याग देंगे, जिस तरह उन्होंने ध्यूत- क्रीडा़ क्रीडा के अवसर पर किया था।

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय का 9 10 वां श्लोक का सरल अर्थ हिंदी में

 श्रीमद्भगवत गीता प्रथम अध्याय का 9, 10  श्लोक हिंदी में

अन्ये च बहव:--------------------------------------- सर्वे युद्धविशारदा:।।९।।

ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत है। वह विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्ध विद्या में निपुण है।

 तात्पर्य –जहां तक अन्यों का - यथा जयद्रथ, कृतवर्मा तथा शल्य का संबंध है, वह सब दुर्योधन के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहते थे। दूसरे शब्दों में,यह पूर्व निश्चित है कि वह सब पापी दुर्योधन के दल में सम्मिलित होने के कारण,कुरुक्षेत्र के युद्ध में मारे जाएंगे।निसंदेह अपने मित्रों की संयुक्त शक्ति के कारण दुर्योधन अपनी विजय के प्रति आश्वस्त था।


अपर्याप्तं ------------------------------------------- भीमाभिरक्षितम् ।।११।।

 हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भलीभांति संरक्षित है, जबकि पांडवों की शक्ति भीम द्वारा भलीभांति संरक्षित होकर भी सीमित है।

 तात्पर्य- यहां पर दुर्योधन में तुलनात्मक शक्ति का अनुमान प्रस्तुत किया है। वह सोचता है कि अत्यंत अनुभवी सेनानायक भीष्म पितामह के द्वारा विशेष रूप से संरक्षित होने के कारण उसकी सशस्त्र सेनाओं की शक्ति अपरिमेय है।दूसरी और पांडवों की सेना सीमित है क्योंकि उनकी सुरक्षा एक कम अनुभवी नायक भीम द्वारा की जा रही है। जो भीष्म की तुलना में नगण्य है। दुर्योधन सदैव ही भीम से ईर्ष्या  करता था, क्योंकि वह जानता था कि यदि उसकी मृत्यु जब भी हुई तो वह भीम के द्वारा ही होगी। किंतु साथ ही  उसे दृढ़ विश्वास था कि भीष्म की उपस्थिति में उसकी विजय निश्चित है क्योंकि भीष्म कहीं अधिक उत्कृष्ट सेनापति हैं। वह युद्ध में विजयी होगा,यह उसका दृढ़ निश्चय था।


सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता के प्रथम अध्याय के 7 और 8 श्लोक का सरल अर्थ हिंदी में

 श्रीमद्भागवत गीता के प्रथम अध्याय के 7 और 8 श्लोक हिंदी में


आस्मां तु ----------------------------------------- तान्ब्रवीमि थे ।।७।।

किंतु है ब्राह्मण श्रेष्ठ! आप की सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूंगा जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रुप से निपुण हैं।


भवान्भीष्मश्च ----------------------------------------- सौमदत्तिस्तथैव च।।८।।

 मेरी सेना में आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि है जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं।

दुर्योधन उन अद्वितीय युद्ध वीरो का उल्लेख करता है जो सदैव विजयी होते रहे हैं। विकर्ण दुर्योधन का भाई है। अश्वत्थामा   द्रोणीचार्य का पुत्र है और सोमदत्ति  या भूरिश्रवा बाह्लीको के राजा का पुत्र है। कर्ण अर्जुन का आधा भाई है क्योंकि वह कुंती के गर्भ से राजा पांडु के साथ विवाहित होने के पूर्व उत्पन्न हुआ था ।कृपाचार्य की जुड़वा बहन द्रोणाचार्य को ब्याही थी।



श्रीमद्भागवत गीता पहले अध्याय का पांचवां एवं छठा श्लोक का सरल अर्थ हिंदी में

           पहले अध्याय का पांचवां एवं छठा श्लोक हिंदी मे


 धृष्टकेतुश्चेकितान: -------------------------------नरपुग्डंव: ।।५।।

इनके साथ ही धृष्टकेतु,चेकितान, पुरूजित,कुंन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी है।


युधामन्युश्च -------------------------------------------- एव महाराजा: ।।६।।


पराक्रमी युधामन्यु, अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रोपदी के पुत्र- यह सभी महारथी हैं।।६।।






शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय का चौथा श्लोक हिंदी में

 श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय का चौथा श्लोक हिंदी में


अत्र ----------------------------------- द्रुपदश्च महारथ: ।।४।।

इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं यथा महारथी युयुधान, विराट और द्रुपद।

यद्यपि युद्ध कला में द्रोणाचार्य की महान शक्ति के समक्ष ध्रृष्टधुम्न महत्वपूर्ण बाधक नहीं था, किंतु ऐसे अनेक योद्धा थे, जिनसे भय था। दुर्योधन इन्हें विजयपथ में अत्यंत बाधक बताता है क्योंकि इनमें से प्रत्येक योद्धा भीम तथा अर्जुन के सामान दुर्जेय था। उसे भीम तथा अर्जुन के बल का ज्ञान था। इसलिए वह अन्य की तुलना इन दोनों से करता है।

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय का तीसरा श्लोक हिंदी में

  श्रीमद्भागवत गीता पहले अध्याय का तीसरा श्लोक हिंदी में

            कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में सैन्य निरीक्षण


पश्यैतां --------------------- शिष्येण धीमता ।।३।।

हे आचार्य! पांडू पुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आप के बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतनी कौशल से व्यवस्थित किया है। 

रम राजनीतिज्ञ दुर्योधन महान ब्राह्मण सेनापति द्रोणाचार्य के दोषों को इंगित करना चाहता था। अर्जुन की पत्नी द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद के साथ द्रोणाचार्य का कुछ राजनीतिक झगड़ा था। झगड़े के फल स्वरुप द्रुपद ने एक महान यज्ञ संपन्न किया, जिससे उसे एक ऐसा पुत्र प्राप्त होने का वरदान मिला, जो द्रोणाचार्य का वध कर सके। द्रोणाचार्य यह भलीभांति जानता था, किंतु जब द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न युद्ध शिक्षा के लिए उस को सौंपा गया ,तो द्रोणाचार्य को उसे अपने सारे सैनिक रहस्य प्रदान करने में कोई झिझक नहीं हुई। अब वह युद्ध भूमि में पांडवों का पक्ष ले रहा था और उसने द्रोणाचार्य से जो कला सीखी थी उसी के आधार पर उसने यह व्यूहरचना की थी। दुर्योधन ने द्रोणाचार्य की दुर्बलता की ओर इंगित किया, जिससे वह युद्ध में सजग रहें और समझौता ना करें। इसके द्वारा द्रोणाचार्य को यह भी बताना चाह रहा था कि कहीं वह अपने प्रिय शिष्य पांडवों के प्रति युद्ध में उदारता ना दिखा बैठे, विशेष रूप से अर्जुन उसका अत्यंत प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था। दुर्योधन ने यह भी चेतावनी दी कि युद्ध में इस प्रकार की उदारता से हार हो सकती है।



श्रीमद भगवत गीता दूसरा श्लोक हिंदी में

           श्रीमद भगवत गीता दूसरा श्लोक हिंदी में

           कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में सैन्य निरीक्षण


संजय ने कहा-

 दृष्ट्वा तु -----------वचनमब्रवीत्।।२।।

धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था। दुर्भाग्यवश वह आध्यात्मिक दृष्टि से भी वंचित था। वह यह भी जानता था कि उसी के समान उसके पुत्र भी धर्म के मामले में अंधे हैं और उसे विश्वास था कि वह पांडवों के साथ कभी भी समझौता नहीं कर पाएंगे क्योंकि पांचो पांडव जन्म से ही पवित्र थे। फिर भी उसे तीर्थ स्थान के प्रभाव के विषय में संदेह था। इसलिए संजय युद्ध भूमि की स्थिति के विषय में उसके प्रश्न के मंतव्य को समझ गया। अत: वह राजा को प्रोत्साहित करना चाह रहा था। उसने उसे विश्वास दिलाया कि उसके पुत्र पवित्र स्थान के प्रभाव में आकर किसी प्रकार का समझौता करने नहीं जा रहे हैं।उसने राजा को बताया कि उसका पुत्र दुर्योधन पांडवों की सेना को देखकर तुरंत अपने सेनापति द्रोणाचार्य को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने गया। यद्यपि दुर्योधन को राजा कहकर संबोधित किया गया है तो भी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उसे सनापति के पास जाना पड़ा। अतएव दुर्योधन राजनीतिज्ञ बनने के लिए सर्वथा उपयुक्त था। किंतु जब उसने पांडवों की व्यूह रचना देखी तो उसका यह कूटनीतिक व्यवहार उसके भय को छुपा ना पाया।


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