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शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

कुंभ स्नान क्या होता है,इसका महत्व क्या है?

                       कुंभ स्नान क्या होता है,इसका महत्व क्या है?


"कुंभ" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है घड़ा या कलश। यह शब्द विभिन्न संदर्भों में उपयोग किया जाता है:

1. कुंभ मेला

कुंभ मेला भारत का एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जो चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक) पर 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है।

2. ज्योतिष में कुंभ (राशि)

कुंभ भारतीय ज्योतिष में बारह राशियों में से एक राशि है। इसे अंग्रेज़ी में "Aquarius" कहते हैं। यह राशि शनि ग्रह द्वारा शासित मानी जाती है और इसका प्रतीक एक घड़ा लिए हुए व्यक्ति होता है।

3. संस्कृति और धार्मिक संदर्भ

धार्मिक अनुष्ठानों में कुंभ (कलश) का विशेष महत्व होता है। इसे शुभता, समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-पाठ में जल से भरे कुंभ का उपयोग किया जाता है।

कुंभ स्नान कुंभ मेले के दौरान गंगा, यमुना, सरस्वती और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में किया जाने वाला धार्मिक स्नान है। इसे हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यह स्नान आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।

महत्व:

  • ऐसा माना जाता है कि कुंभ स्नान पापों से मुक्ति दिलाता है।
  • यह आत्मिक और शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है।
  • धार्मिक मान्यता के अनुसार कुंभ स्नान के समय देवता और ऋषि भी इन नदियों में स्नान करने के लिए आते हैं।

कुंभ मेला स्थान और आयोजन:

कुंभ मेला भारत के चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है:

  1. हरिद्वार: गंगा नदी
  2. प्रयागराज: त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती)
  3. उज्जैन: शिप्रा नदी
  4. नासिक: गोदावरी नदी

स्नान तिथियों का महत्व:

कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान तिथियां विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती हैं। इनमें मुख्य स्नान जैसे मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, माघी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि होते हैं।

धार्मिक कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ था। उस समय अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक) पर गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र माने गए।

प्रयागराज में महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक आयोजित हो रहा है। इस दौरान कई प्रमुख शाही स्नान तिथियां हैं, जिनमें से कुछ पहले ही संपन्न हो चुकी हैं। आगामी शाही स्नान तिथियां निम्नलिखित हैं:

  • बसंत पंचमी: 3 फरवरी 2025 (सोमवार)
  • माघ पूर्णिमा: 13 फरवरी 2025 (गुरुवार)
  • महाशिवरात्रि: 26 फरवरी 2025 (बुधवार)

महाशिवरात्रि के दिन, 26 फरवरी 2025, महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान होगा, जिसके साथ मेले का समापन भी होगा।

हाल ही में, 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के अवसर पर आयोजित शाही स्नान के दौरान अत्यधिक भीड़ के कारण एक दुखद घटना घटी।

यदि आप महाकुंभ मेले में शामिल होने की योजना बना रहे हैं, तो कृपया सुरक्षा निर्देशों का पालन करें और स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी की गई सलाह का ध्यान रखें।

144 साल से क्या तात्पर्य है?

जब समुद्र मंथन हुआ था तो वह 12 दिन तक चला था देवताओं का एक दिन हमारे 12 साल के बराबर होता है। इसलिए 12 दिन को अगर हम 12 से गुना करेंगे तो 144 आएगा। इसलिए 144 साल बाद यह वही तिथि है जब समुद्र मंथन हुआ था यह तिथि 144 साल बाद आती है।

बुधवार, 29 जनवरी 2025

कोई भी टेंशन दिमाग से नहीं निकाल पाते हैं क्या करूं?/koi bhi tension dimag se nahin nikal paata hun kya karun

     कोई भी टेंशन दिमाग से नहीं निकाल पाते क्या करूं?


 हमें अपने दिमाग को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए। खाली दिमाग है तो गंदगी ही तो भरेगा,जितनी nagative विचार इकठ्ठा कर सकता है करेगा। अगर हम परमात्मा का चिंतन करेंगे तो सारी नकारात्मकता डिलीट हो जाएगी, अगर हमें कोई भी व्यक्ति ऐसा मिलता है जिसने कभी हमको गलत बोला हो तो, वह हमें जब भी मिलेगा तो हमें पुरानी सारी बातें फिर याद आ जाएगी। इसलिए सभी द्वेष को खत्म कर दो और भगवत चिंतन करो, आनंद पूर्वक भगवत चिंतन के बिना ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे आप अपने दिमाग की टेंशन को निकाल सको। अध्यात्म के बिना आप इन सब नेगेटिव बातों को खत्म नहीं कर सकते, कितनी भी भारी से भारी समस्याएं हो, भारी से भारी विपत्ति को हम नष्ट कर सकते है भगवान के चिंतन के द्वारा। चाहे राम जपो, कृष्ण जपों ,जो भी नाम प्रिय हो उसका जाप करो। अपने दिमाग को व्यस्त रखो, इसे खाली छोड़ोगे  तो यह हर समय टेंशन ही देगा।

बिना जाप के आपकी किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता

है। यह संसार शोक का धाम है, चारों ओर कामनाओं का जाल बिछा हुआ है। एक कामना खत्म होती हैं तो दूसरी खड़ी हो जाती है। बार-बार उसी कामनाओं व इच्छा को पूरी करते-करते हमारी आयु पूर्ण हो जाती है और हमें पता भी नहीं चलता । इसलिए समय रहते ईश्वर का जप करना शरू कर देना चाहिए,और अपने इस शरीर के जन्म को सार्थक कर लेना चाहिए।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

विनती व प्रार्थना का क्या महत्व हैं? /vinti v prarthna ka mahtav/ परमार्थ के पत्र पुष्प में से

          विनती व प्रार्थना का सबसे बड़ा महत्व है।

विनती और प्रार्थना का महत्व – व्यक्ति के भावनात्मक, मानसिक, और आध्यात्मिक जीवन में गहरी भूमिका निभाता है। इसका महत्व विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:

1. आध्यात्मिक महत्व

  • आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम होता है।
  • ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है।
  • नकारात्मक विचारों को दूर कर मन की शांति प्रदान करता है।

2. भावनात्मक और मानसिक महत्व

  • मनोबल को बढ़ाने में सहायक होती है।
  • चिंताओं और तनाव को कम करती है।
  • आत्मविश्वास और धैर्य बढ़ता है।

3. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

  • सामूहिक प्रार्थनाएं सामाजिक एकता को बढ़ावा देती हैं।
  • धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में प्रार्थना का विशेष स्थान होता है।

4. आत्मचिंतन और आत्मनियंत्रण का साधन

  • व्यक्ति को आत्मविश्लेषण करने का अवसर मिलता है।
  • मनोबल और अनुशासन को प्रोत्साहन मिलता है।

  • दादा गुरु भक्तमलीजी के श्री मुख से विनती व प्रार्थना के महत्व पर विचार 

रामायण भागवत में स्तुति प्रकरण ही अधिक है।स्तुति में भगवान के स्वरूप का दया,क्षमा,करुणा का वर्णन हैं तथा भक्त अपनी दयनीय अवस्था का वर्णन करता हैं तब भगवान और भक्त दोनों ही संतुष्ट हो जाते हैं।एक दूसरे के समीप पहुंच जाते हैं।माता कुंती ने कहा कि जीव के बिना इंद्रियां शक्तिहीन हो जाती है वैसे ही आप के बिना यादवों का और पांडवों का कोई भी अस्तित्व नहीं रह जाता है।आपके चरण स्पर्श से पृथ्वी हरी भरी हैं।लता,वृक्ष,वन,पर्वत बढ़ रहे है।आपके वियोग में सब श्रीहीन हो जाएंगे।मेरी ममता पांडवों में और यदुवंशियों में बढ़ गई है।इस पारिवारिक स्नेह बंधन को आप काट दीजिए।जैसे गंगा की अखंड धारा समुद्र से मिलती रहती है उसी तरह मेरी चित्तवृत्ति किसी दूसरी और न जाकर आप में ही निरंतर प्रेम करती रहें।आप चराचर के गुरु हैं।आपकी शक्ति अनंत हैं। गाय,विप्र,और देवताओं का दुख मिटाने के लिए आपने अवतार ग्रहण किया है।आपको बार बार सदा नमस्कार हैं।इस प्रकार भक्तों के द्वारा की गई स्तुतियों से तथा अपनी भाषा में अपने ह्रदय के भाव को अर्पण करते हुए नित्य स्तुति करनी चाहिए।

निष्कर्ष

विनती और प्रार्थना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह आत्मिक शक्ति और मानसिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यह जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक होती हैं।

जय श्री राधे।।

दादा गुरु श्री भक्तमाली जी के श्री मुख से

सोमवार, 23 दिसंबर 2024

महिषासुर मर्दिनी का दूसरा एवं तीसरे हिंदी में अर्थ

 


महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् का हर श्लोक देवी दुर्गा के अलग-अलग नामों को बताता है। इसकी गहराई से संकेत के लिए हर श्लोक का विश्लेषण किया जा सकता है। यहां "अयि गिरिनन्दिनी" के अगले कुछ श्लोकों का भावार्थ प्रस्तुत है

सुरवर वर्षिणि दुर्धर वर्षिणी दुर्मुखमर्षणि हर्षरते 

त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।

दनुजनिरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते।।

भावार्थ :

1. सुरवर वर्षिणि: हे देवी, आप देवताओं पर कृपा की वर्षा करने वाली हैं।

2. दुर्धरधर्षिणि: जो दुर्जेय शत्रुओं का दमन करता है।

3. दुर्मुखमर्षणि: दुष्टों और उनके आचरण को नष्ट करने वाली।

4. त्रिभुवनपोषिणि: त्रिलोकों की रक्षा और पोषण करने वाली।

5. शंकर तोषिणी: भगवान शिव को भी प्रसन्न करने वाली।

6. किल्बिष मोषिनि: पापों को हरने वाली।

7. दनुजनिरोषिणि: राक्षसों के प्रति क्रोध से दंड वाली।

8. दितिसुत रोषिणि: दैत्य माता दिति के पुत्रों को स्थापित करने वाली।

9. दुर्मदशोषिणि: दुष्टों का नाश करने वाली।

10. सिन्धुसुते: शुभ कार्य में आनंदित होने वाली।

इस श्लोक में बताया गया है कि देवी दुर्गा दुष्टों का नाश करके धर्म की रक्षा करती हैं और देवताओं और भक्तों पर कृपा करती हैं।

तीसरा श्लोक:


अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनी हासरते।

शिखिर शिरोमणि तुङमहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते।

मधुमधुरे मधुकैटभ गंजिनी कैटभ भंजिनी रासरतें।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते॥

भावार्थ :


1. अयि जगदंब मदम्ब: हे जगत की माता और मेरी मां!

2.कदंबवनप्रियवासिनी: आप कदंब के वनों में रहने वाली हैं।

3. हासरते: आप आनंद और हंसी-खुशी में रमने वाली हैं।

4. शिखरशिरोमणि: हिमालय पर्वत के शिखर पर।

5. मधुमधुरे: मधुर आपकी वाणी और प्रिय है।

6. मधुकैटभ गंजिनी: मधु और कैटभ राक्षसों को मारने वाली।

7. रासरते: आप आनंदमयी लीलाओं में लीन रहती हैं।

यह देवी श्लोक के प्रेममयी, आनंदमयी दुष्ट और संहारक स्वरूप के उदाहरण हैं।

भावार्थ का सार:


महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् में देवी दुर्गा के अद्भुत, अजेय और करुणामय स्वरूप के गान हैं। वे त्रिलोकी की माता, पापों का नाश करने वाली, दुष्टों का संहार करने वाली, और भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करने वाली हैं। हर श्लोक में देवी के सौंदर्य, शक्ति और करुणा का एक नया दर्शन होता है।

देवी दुर्गा की इस स्तुति का उद्देश्य यह है कि भक्त अपने जीवन से भय, कष्ट और असुरता को समाप्त कर, शक्ति, शांति और संतोष को प्राप्त कर सके।


महिषासुर मर्दिनी का पहला अध्याय हिंदी में अर्थ


 महिषासुर मर्दिनी का हिंदी में अर्थ है "महिषासुर का वध करने वाली देवी"। यह देवी दुर्गा का एक प्रसिद्ध रूप है।

महिषासुर एक असुर (राक्षस) था, जो आधा भैंसा और आधा इंसान था। उन्हें अजेय माना जाता था, लेकिन उनके अत्याचारी भाषण में देवी दुर्गा की आराधना की बात कही गई थी। देवी दुर्गा ने महिषासुर से भीषण युद्ध करवाया और अंततः उसका वध कर दिया।

इसलिए, महिषासुर मर्दिनी देवी दुर्गा के उस रूप को कहा जाता है, जो अधर्म, अन्याय और अराजकता का अंत करता है और धर्म की स्थापना करता है।

महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् (जिसकी शुरुआत "अयि गिरीनंदिनी" से होती है) में देवी दुर्गा की विभिन्न शक्तियों और गुणों का वर्णन है। इसमें देवी को महिषासुर का संहार करने वाली के रूप में पूजा जाता है। यह स्तोत्र उनके साहस, करुणा, मित्रता और उनकी सर्वव्यापकता की स्तुति है।


" अयि गिरिनन्दिनी" श्लोक का भावार्थ (मुख्य अर्थ):


अयि गिरिन्नन्दिनी नन्दितमेदिनी विश्वविनोदिनी नन्दिनुते।

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनी विष्णुविलासिनी जिष्णुनुते।

भगवती हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनी भूरिकृते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते॥


भावार्थ :

1. अयी गिरिदिनी नंदितामेदिनी: हे पर्वतराज हिमालय की पुत्री, आप पूरी पृथ्वी को आनंदित करने वाली हैं।

2. विश्वविनोदिनी नन्दिनुते: आप संपूर्ण ब्रह्माण्ड का कष्ट बढ़ाने वाली हैं, और ऋषि नंदी भी आपकी स्तुति करते हैं।

3. गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनी: आप महान पर्वत विंध्य के शिखरों पर निवास करने वाली हैं।

4. विष्णुविलासिनी जिष्णुनुते: आप भगवान विष्णु के साथ लीला करने वाली और विजयी लोगों द्वारा पूजित हैं।

5. भगवती हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि: हे भगवती, आप भगवान शिव के परिवार की शोभा बढ़ाने वाली हैं।

6. भूरिकुटुम्बिनी भूरिकृते: आप विशाल परिवार के नायक और महान कार्य की प्रेरणा देने वाली हैं।

7. जय जय हे महिषासुरमर्दिनी: हे महिषासुर का वध करने वाली, आपको बार-बार नमस्कार और वंदन है।

8. रम्यकपर्दिनी शैलसुते: हे सुंदर जटाओं वाले शिव की संगिनी और पर्वतराज की पुत्री, आप अद्भुत हैं।

संपूर्ण श्लोक का संदेश:

यह श्लोक देवी दुर्गा की शक्ति, करुणा और सौंदर्य का वर्णन करता है। यह समय भक्त अपनी भावना और श्रद्धा के साथ देवी से विश्व के दुखों को हरने, धर्म की स्थापना करने और अपने जीवन में शक्ति और शांति प्रदान करने की प्रार्थना करता है।

यह स्तोत्र देवी की महिमा, उनके संरक्षक स्वरूप और उनके सर्वव्यापक प्रभाव का गण है।

जय माँ 

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

वृंदावन में हर जगह राधाजी का नाम ही क्यों उच्चारण होता है?

वृंदावन में हर जगह राधाजी का नाम ही क्यों उच्चारण होता है?


वृंदावन में "राधे-राधे" का उच्चारण हर जगह सुनने का मुख्य कारण धार्मिक और आध्यात्मिक है। यह भगवान कृष्ण और राधारानी की लीलाओं से जुड़े प्रेम, भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। इसके पीछे कई कारण हैं:


1. राधा-कृष्ण की दिव्य प्रेम लीला

वृंदावन को राधा और कृष्ण की दिव्य लीलाओं की भूमि माना जाता है। राधा को श्रीकृष्ण की अनन्य आराधिका और उनकी शक्ति स्वरूपा माना जाता है। इसलिए, "राधे-राधे" का जप भक्तों के लिए उनकी भक्ति को व्यक्त करने का सर्वोत्तम माध्यम है।


2. भक्ति का सर्वोच्च मार्ग

राधा को भक्ति का सर्वोच्च रूप माना जाता है। उनके नाम का उच्चारण भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति और भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का साधन है।


3. सांस्कृतिक परंपरा

वृंदावन की संस्कृति और परंपराओं में "राधे-राधे" का अभिवादन गहरे रूप से समाहित है। यहाँ यह केवल धार्मिक उच्चारण नहीं, बल्कि सामाजिक संवाद का हिस्सा भी है। लोग इसे नमस्कार, स्वागत और शुभकामनाओं के रूप में उपयोग करते हैं।


4. आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव

ऐसा माना जाता है कि राधा नाम का उच्चारण करने से सकारात्मक ऊर्जा और शांति का अनुभव होता है। वृंदावन की भूमि पर "राधे-राधे" का जप वातावरण को आध्यात्मिक बनाता है।


5. गुरुजनों और संतों की परंपरा

वृंदावन में संतों और भक्तों ने "राधे-राधे" जप को प्रमुखता दी है। इसे भगवान कृष्ण की भक्ति में सबसे सरल और प्रभावी साधना माना गया है।

6. वृंदावन का विशेष महत्व

वृंदावन को राधारानी का निवास स्थान और उनकी कृपा भूमि माना जाता है। यहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को "राधे-राधे" कहने से एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव होता है।

निष्कर्ष:

"राधे-राधे" सिर्फ एक नाम नहीं है, बल्कि यह वृंदावन के भक्तिपूर्ण वातावरण की आत्मा है। यह कृष्ण-भक्ति का सार है और इसे बोलने से व्यक्ति भगवान की ओर एक कदम और बढ़ता है।

।।जय श्री राधे।।


गोवर्धन परिक्रमा करने से क्या होता है?/Govardhan parikrama Se Kya hota Hai?

   गोवर्धन परिक्रमा करने से क्या होता है?


संसार के सुखों से मन को हटाने से परमात्मा सुख अपने आप मिलने लग जाता है। श्री कृष्ण ने गोवर्धन के रूप में प्रकट होकर अपने को सबके लिए सुलभ  कर दिया। गोवर्धन को समझने से श्री कृष्ण तत्व समझ में आ जाता है। बड़े  भारी और अति हल्के प्रभु हैं।सब गुरुओं के गुरु गोवर्धन नाथ है। इसी से गुरु पूर्णिमा को अपार जन, देव, दानव,मानव आकर दर्शन और प्रदक्षिणा करता है।

गोवर्धन परिक्रमा का हिन्दू धर्म में विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे करने से व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ और अनुभव हो सकते हैं:

1. आध्यात्मिक शांति और पुण्य

गोवर्धन परिक्रमा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव होता है। यह भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रतीक है, जिससे व्यक्ति को पुण्य फल प्राप्त होता है।

2. कर्मों का शुद्धिकरण

ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा करने से व्यक्ति के पाप कर्मों का नाश होता है और उसे मोक्ष की ओर बढ़ने का मार्ग प्राप्त होता है।

3. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य

गोवर्धन की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है। इसे करने से शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ मानसिक शांति भी मिलती है।

4. भगवान कृष्ण की कृपा

गोवर्धन पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है। परिक्रमा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है और भक्त के जीवन में समृद्धि और सुख-शांति आती है।

5. सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव

परिक्रमा मार्ग में कई धार्मिक स्थल और प्राकृतिक सौंदर्य मौजूद हैं, जो भक्त को सकारात्मक ऊर्जा और आत्मिक संतोष का अनुभव कराते हैं।

6. सामूहिकता और समर्पण का भाव

यह एक सामूहिक धार्मिक क्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने परिवार और समाज के साथ भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है।

गोवर्धन परिक्रमा कार्तिक मास में विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। यह परिक्रमा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण है।

।।जय श्री राधे।।


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