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बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

भक्ति प्राप्ति के आठ सरल साधन


भक्ति प्राप्ति के आठ सरल साधन 

१. स्वभाव में सरलता। मन से कुटिलता का हटाना। दूसरे का अनिष्ट करके अपने स्वार्थ की सिद्धि मन की कुटिलता हैं। 
२.जो कुछ भगवान ने घर ,परिवार दिया हैं उसमे संतुष्ट रहना। अनुचित उपायों से संसारी वस्तु को करने  की इच्छा न करना संतुष्ट रहना। 
३.भगवान का दास कहला कर दूसरे धनी मानियों  की आशा व चापलूसी नहीं करना। 
४. अकारण किसी से वैर विग्रह न करना। 
५.सत्संग से प्रेम ,संसारी लोगो से घनिष्ठता न रखकर प्रयोजन भर का संबंध रखना। . 
६.भक्ति की श्रेष्ठता को मानना ,दुष्ट से तर्क न करना। 
७.स्वर्ग मोक्ष के सुखों की भी  इच्छा न करना। 
८.भगवत् गुणानुवाद का गान  करना। 

इन उपदेशो को श्री राम ने दिया। सभी संत भी यही कहते हैं। एक एक  बात को ध्यान में लाकर उस पर विचार करना ,फिर उस पर दृढ निश्चय करना। इसलिए थोड़ा ही सही जितना भी समय मिले मन में पूजा व लीला चिंतन अवश्य करना चाहिए। 

शनिवार, 30 जनवरी 2016

मन्त्र प्रयोग के द्वारा रोग और गृह क्लेश को दूर करने के उपाय

मंत्र प्रयोग के द्वारा रोग  व क्लेश को दूर करने के उपाय





(ब्रह्मलीन अन्नत श्री विभू षित गोवर्धन पी ठा धीश्वर जगदगुरु स्वामी श्री निरंजनदेव तीर्थ जी   महाराज )

अच्युताय नमः ,अनन्त्ताय नमः ,गोविन्दाय नमः -

इस मंत्र का निरंतर जप करने से हर प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। जब तक रोग न मिटे ,श्रद्धा पूर्वक जप करते रहे। यह अनुभूत प्रयोग हैं। 

वाराणस्यां दक्षिणे तु  कुक्कुटो नाम वै द्विजः। 
तस्य स्मरणमात्रेण दुःस्वप्नह सुखदो भवेत्।।

यदि किसी को बुरे स्वप्न आते हैं तो रात्रि में हाथ पैर धोकर शांत चित्त से पूर्वमुख आसन पर बैठकर प्रतिदिन इस मन्त्र का 108बार जप करे ,दुःस्वप्न बंद हो जायेंगे तथा उनके फल  भी अच्छे होंगे। 

या देवी सर्व भूतेषु शांति रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करने से पारिवारिक कलह की निवृत्ति होगी। 

गुरुवार, 28 जनवरी 2016

संसार में कैसे रहे




मनुष्य का प्रथम कर्तव्य हैं कि  किसी भी कार्य को करने  से पहले अच्छी तरह से विचार कर ले। बिना  सोचे विचार किसी भी काम को न करे। कर्म का फल क्या मिलेगा यह पहले ही विचार  कर  लेना चाहिए। हम जो भी कार्य या कर्म करते हैं उसका  सिंह अवलोकन करना चाहिए। सिंह का स्वभाव होता हैं कि वह कुछ दूर चलता हैं फिर पीछे घूम कर देखता हैं। इसी प्रकार अब तक इतने दिनों तक हम  जो करते  आ रहें हैं  उससे मुझे क्या लाभ मिला या क्या हानि हुई इस पर विचार कर ,जहाँ  अपने व्यवहार में विचार में त्रुटि हो उसे सुधार लेना चाहिए। अपने परिवार का पालन करने के लिए यदि हम झूठ ,पाप ,हिंसा का सहारा नहीं लेते तो ईश्वर हमारा हर समय ध्यान रखता हैं ,वो हमे कभी भी अकेला नहीं पड़ने देता। 

आज का शुभ विचार




आप अपनी सारी आशायें  
भगवान पर  छो ड़  दें ,तब किसी भी व्यक्ति से कोई  भी निराशा नही मिलेगी । 
।।जय सियाराम।।

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

इस कलयुग में केवल भगवान का नाम ही बचा सकता है।

                                                                                                                     इस कलयुग में भगवन्न नाम महिमा


संसार में अनेक रोग हैं ,और उनकी अलग -अलग औषधियाँ हैं ,परन्तु राम नाम तो सभी रोगों की रामबाण औषधि हैं। शोक ,मोह ,लोभ आदि सभी रोगों के लिए एक राम नाम ही महा औषधि हैं।
कलियुग में नाम स्मरण करके ही दोषो से बचा जा सकता हैं। अन्यथा समय के प्रभाव से बचना कठिन हैं।
भगवान  के नाम , रूप , लीला और धाम ये चारों सच्चिंदानन्दमय हैं। एक को पकड़ने से चारों पकड़ में आ जाते हैं। सुलभ एवं शक्तिमान होने से नाम ही चारों में श्रेष्ठ हैं। नाम में लीला भरी हैं। राम में रामायण , कृष्ण नाम में भागवत पुराण स्थित हैं। नाम को पुकारने से रूप का आकर्षण होता हैं। नाम में धाम =तेज और धाम =लीला भूमि ये व्याप्त हैं। बट बीज में जैसे विशाल वृक्ष व्याप्त
उसी प्रकार नाम में सब कुछ हैं। नाम का आश्रय लेने से रूप , लीला , और धाम का आश्रय हो जाता हैं।
जन्म -जन्म के अशुभ संस्कारों को मिटाने के लिए निरन्तर नाम जप आदि साधन आवश्यक हैं। श्रेष्ठ नाम स्मरण  ही हैं। दूसरे साधन के योग्य हम नहीं हैं। आवश्यक काम करने के बाद या काम करते करते भी नाम जप का अभ्यास करते रहना चाहिए। 
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

आज का शुभ विचार

                                                                          आज का शुभ विचार






ईश्वर के संबंध में अनुभव उन्ही को होते हैं जो लोग सत्य , दया , क्षमा , अहिंसा , आदि सदगुणो  को धारण कर के संयमित जीवन बिताते हैं।
     

परमार्थ क पत्र - पुष्प भाग 1

                                                                                                 ( परमार्थ के पत्र - पुष्प) हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं।





हमारे गुरुदेव पुज्य श्री मलूक पीठाधीश्वर  परम पूज्य श्री राजेन्द्र दासजी महाराज जी ने हमें एक पुस्तक दी, जिसमे हमारे दादा गुरु    श्री भक्ततमाली जी द्वारा  सत्संग  के कुछ   अंश  हैं जो मैं आपके समक्ष रख रही हूँ। जिसके द्वारा हमे जीवन में कई महत्व पूर्ण सन्देश मिलेंगे।

हमारे दादा गुरु कहते हैं कि भारतीय जनता कर्म भूमि में जन्म पाकर धन्य- धन्य हो जाती हैं। हम लोग जंक्शन पर खड़े  हैं। सब और को जाने वाली गाड़ियाँ खड़ी हैं (ब्रह्म लोक , विष्णु लोक, साकेत वैकुण्ठ ,  रमावैकुंठ , गोलोक,शिवलोक , पितृलोक , नरक भी हैं। )जहाँ जाना चाहो  वहाँ  का टिकट लो अथार्त उसी प्रकार के कर्म करो। कर्मो के अनुसार नरक -स्वर्ग को हम जा सकते हैं। मोक्ष यानि ब्रह्मलीन भी हो सकते हैं। जिसकी जैसी रूचि हो वह वैसा पुण्य करे या पाप करें। वेद पुराण और शास्त्र कहते हैं यदि दुसरो को दुःख दोगे  तो नरक में जाना पड़ेगा। सुख दोगें तो स्वर्ग वैकुण्ठ मिलेगा। संसार के सभी प्राणी परमात्मा की संतान हैं। अतः अपने  हैं। ऐसा समझ कर दया , सच्चाई के साथ व्यवहार करने से श्री सीतारामजी प्रसन्न होते हैं।

                                                                                 
 श्री सीताराम। 

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