हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं
स्वामी रामसुखदास जी कहते हैं सभी व्यक्ति सावधान होकर भगवान के ध्यान में लग जाए क्योंकि एक भगवान का ध्यान से ही संपूर्ण विपत्तियों का नाश होता है हर समय यह कहते रहे," हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं " यह अंधकार में लालटेन का काम करता है सहारा देने वाला है इसके सिवाय संसार में कोई सहारा नहीं है भगवान के स्मरण मात्र से मनुष्य संसार बंधन से छूट जाता है- यस्य स्मरण मात्रेण जन्म संसार बंधनात् विमुच्यते।
भगवान को याद करने से सब काम ठीक हो जाते हैं इसलिए सच्चे हृदय से पुकारो हे नाथ ,हे नाथ! एक श्लोक होता है- शंभू श्वेतार्क पुष्पेंण चंद्रमा वस्त्र तंतुना।
अच्युत स्मृति मात्रेण साधव: कर सम्पुटै:
अथार्त शंभू श्वेत सफेद आक के फूल से, चंद्रमा वस्त्र के तंतु से और साधु जन हाथ जोड़ने से प्रसन्न हो जाते हैं, पर भगवान विष्णु स्मरण करने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं, ध्यान के सिवाय किसी वस्तु की, किसी उद्योग की जरूरत नहीं। कुंती माता ने भगवान से कहा कि देखो तुम्हारे भाई वन में, दुख पा रहे हैं ,तुम्हें दया नहीं आती तो भगवान ने ही उत्तर दिया कि बुआ जी मैं क्या करूं द्रोपदी का चीर खींचा गया तो उसने मेरे को याद किया और युधिष्ठिर ने सब कुछ दाव पर लगा दिया और मेरे को याद ही नहीं किया ,कम से कम मेरे को याद तो कर लेते ।तात्पर्य यह है कि भगवान को याद करने मात्र से कल्याण हो जाता है सदा के लिए दुख मिट जाता है। महान आनंद की प्राप्ति हो जाती है ,इतना सस्ता सौदा और क्या होगा।
साधन तो इतना सुगम, पर फल इतना महान। इतना सुगम काम भी हम ना कर सकें तो क्या करेंगे ।इसलिए आपसे यह कहना है कि सुबह नींद खुलने से लेकर रात्रि नींद आने तक हरदम हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं है, कहना शुरू कर दो, फिर सब काम ठीक हो जाएंगे इसमें संदेह नहीं।
परम श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी महाराज के प्रवचन मे से।
स्वामी रामसुखदास जी कहते हैं सभी व्यक्ति सावधान होकर भगवान के ध्यान में लग जाए क्योंकि एक भगवान का ध्यान से ही संपूर्ण विपत्तियों का नाश होता है हर समय यह कहते रहे," हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं " यह अंधकार में लालटेन का काम करता है सहारा देने वाला है इसके सिवाय संसार में कोई सहारा नहीं है भगवान के स्मरण मात्र से मनुष्य संसार बंधन से छूट जाता है- यस्य स्मरण मात्रेण जन्म संसार बंधनात् विमुच्यते।
भगवान को याद करने से सब काम ठीक हो जाते हैं इसलिए सच्चे हृदय से पुकारो हे नाथ ,हे नाथ! एक श्लोक होता है- शंभू श्वेतार्क पुष्पेंण चंद्रमा वस्त्र तंतुना।
अच्युत स्मृति मात्रेण साधव: कर सम्पुटै:
अथार्त शंभू श्वेत सफेद आक के फूल से, चंद्रमा वस्त्र के तंतु से और साधु जन हाथ जोड़ने से प्रसन्न हो जाते हैं, पर भगवान विष्णु स्मरण करने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं, ध्यान के सिवाय किसी वस्तु की, किसी उद्योग की जरूरत नहीं। कुंती माता ने भगवान से कहा कि देखो तुम्हारे भाई वन में, दुख पा रहे हैं ,तुम्हें दया नहीं आती तो भगवान ने ही उत्तर दिया कि बुआ जी मैं क्या करूं द्रोपदी का चीर खींचा गया तो उसने मेरे को याद किया और युधिष्ठिर ने सब कुछ दाव पर लगा दिया और मेरे को याद ही नहीं किया ,कम से कम मेरे को याद तो कर लेते ।तात्पर्य यह है कि भगवान को याद करने मात्र से कल्याण हो जाता है सदा के लिए दुख मिट जाता है। महान आनंद की प्राप्ति हो जाती है ,इतना सस्ता सौदा और क्या होगा।
साधन तो इतना सुगम, पर फल इतना महान। इतना सुगम काम भी हम ना कर सकें तो क्या करेंगे ।इसलिए आपसे यह कहना है कि सुबह नींद खुलने से लेकर रात्रि नींद आने तक हरदम हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं है, कहना शुरू कर दो, फिर सब काम ठीक हो जाएंगे इसमें संदेह नहीं।
परम श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी महाराज के प्रवचन मे से।