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शनिवार, 27 जुलाई 2019

दालचीनी एक, लाभ अनेक

                      दालचीनी एक, लाभ अनेक

 जोड़ों के दर्द में आराम दिलाती है दालचीनी, जानें कैसे करना है  प्रयोग


अर्थराइटिस में दालचीनी के प्रयोग से जोड़ों के दर्द से जल्दी राहत मिलती है।
दालचीनी में दर्द और सूजन को खत्म करने के गुण होते हैं।

तत्काल राहत ही नहीं, दालचीनी धीरे-धीरे गठिया को ठीक कर देती है।

अर्थराइटिस या गठिया के कारण जोड़ों और हड्डियों में दर्द बना रहता है। आमतौर पर इस दर्द का असर घुटनों, कोहनी, उंगलियों और तलवों में ज्यादा होता है। कई बार दर्द के साथ-साथ जोड़ों में सूजन भी होती है। इस दर्द के कारण व्यक्ति को उठने-बैठने और चलने में भी परेशानी होने लगती है। इस तरह के दर्द में बार-बार दवाओं के प्रयोग से बेहतर है कि आप आयुर्वेद में बताए गए आसान घरेलू उपायों का प्रयोग करें। अर्थराइटिस में दालचीनी के प्रयोग से जोड़ों के दर्द से जल्दी राहत मिलती है।



दर्द से तुरंत राहत के लिए दालचीनी पेस्ट

दालचीनी पाऊडर में कुछ बूंदे पानी की मिला लें। इसका एक गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें। इस पेस्ट को जोड़ों पर लगाएं और फिर मुलायम कपड़े से ढंक दें, ताकि वो लंबे समय तक लगा रहे। दालचीनी में दर्दनिवारक और सूजनरोधी गुण होते हैं। इसलिए इसके प्रयोग से अर्थराइटिस के कारण होने वाली सूजन और दर्द दोनों में फायदा मिलता है।



दर्द से तुरंत राहत के लिए दालचीनी पेस्ट
दालचीनी पाऊडर में कुछ बूंदे पानी की मिला लें। इसका एक गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें। इस पेस्ट को जोड़ों पर लगाएं और फिर मुलायम कपड़े से ढंक दें, ताकि वो लंबे समय तक लगा रहे। दालचीनी में दर्दनिवारक और सूजनरोधी गुण होते हैं। इसलिए इसके प्रयोग से अर्थराइटिस के कारण होने वाली सूजन और दर्द दोनों में फायदा मिलता

दालचीनी और शहद

डेढ़ चम्मच दालचीनी पाऊडर और एक चम्मच शहद मिला लें। रोज़ सुबह खाली पेट एक कप गर्म पानी के साथ इसका सेवन करें। इससे गठिया के दर्द में राहत मिलती है और जोड़ों में जमा यूरिक एसिड कम होता है, जिससे अर्थराइटिस धीरे-धीरे कम होने लगता है। एक सप्ताह में इसका असर दिखना शुरू हो जाएगा।

सप्ताह में 2 बार पिएं ये स्पेशल चाय

गठिया की समस्या को धीरे-धीरे जड़ से मिटाना है, तो आपको सप्ताह में दो बार स्पेशल चाय पीनी चाहिए। इस चाय को बनाने के लिए 250 ग्राम दूध व उतने ही पानी में दो लहसुन की कलियां, एक-एक चम्मच सौंठ या हरड़ तथा एक-एक दालचीनी और हरी इलायची डालकर उसे अच्छी तरह से धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी जल जाए, तो उस दूध को पियें, गठिया रोगियों को जल्द फायदा होगा।


गठिया को कम करने के लिए जरूरी बातें
अर्थराइटिस व्यक्ति के जोड़ों, आंतरिक अंग और त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। घरेलू नुस्खे के अलावा अर्थराइटिस से राहत पाने के लिए इन बातों का भी ध्यान रखना जरूरी है।

अपना वजन कम रखें क्योंकि ज्यादा वज़न से आपके घुटने तथा कूल्हों पर दबाव पड़ता है।

सुबह गरम पानी से नहाएं।

कसरत तथा जोड़ों को हिलाने से भी धीरे-धीरे ये समस्या दूर होती है।

अगर सत्संग मिल जाए तो?








🌹🌹    मनुष्य जन्म में सत्संग मिल जाए, गीता जैसे ग्रंथ से परिचय हो जाए ,भगवान नाम से परिचय हो जाए ,तो साधक को यह समझना चाहिए कि भगवान ने बहुत विशेषता से कृपा कर दी है, अतः अब तो हमारा उद्धार होगा ही । अब आगे हमारा जन्म- मरण नहीं होगा ,कारण कि अगर हमारा उद्धार नहीं होना होता, तो ऐसा मौका नहीं मिलता।

---ब्रह्मलीन , श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

देसी गाय के घी से इलाज

                 *रोगानुसार गाय के घी के उपयोग* :


१. गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है ।
२. गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है
३. गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है ।

४. 20-25 ग्राम गाय का घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है ।

५. गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है ।

६. नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है ।

७. गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है

८. गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है ।

९. गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है ।

१०. हाथ-पॉँव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है ।

११. हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी ।

१२. गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है ।

१३. गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है ।

१४. गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है ।

१५. अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें ।

१६. हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा ।

१७. गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है ।

१८. जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाई खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, इससे ह्रदय मज़बूत होता है ।

१९. देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है ।

२०. गाय का घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर या बूरा या देसी खाण्ड, तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें । प्रतिदिन प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है ।

२१. फफोलों पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है ।

२२. गाय के घी की छाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायता मिलती है ।

२३. सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम गाय का घी पिलायें, उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें, जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष भी कम हो जायेगा ।

२४. दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है ।

२५. सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, इससे सिरदर्द दर्द ठीक हो जायेगा ।

२६. यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है । वजन भी नही बढ़ता, बल्कि यह वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है तथा मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है ।

२७. एक चम्मच गाय के शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।

२८. गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें । इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं । यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है ।

२९. गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए । यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है ।

३०. अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को सन्तुलित करता है ।

शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

जप में रुचि नहीं हो रही क्या करें?

                      नाम जप में रुचि कैसे हो?

 नाम जप में रुचि के लिए कुछ विशेष सावधानियां रखनी जरूरी है -उनमें सबसे पहली है सत्संग ।  ज्यादा सत्संग करना चाहिए जिसमें भगवान की लीला का श्रवन करना चाहिए ,अध्ययन करना चाहिए और मनन करना चाहिए ।जब हमारी ईश्वर की लीला को सुनने में रुचि होने लगेगी तो जप भी होने लगेगा । दूसरा है भोजन यानी अन्न कहावत भी है कि जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन। इसलिए हमें सात्विक अन्न ही खाना चाहिए ,पहले अपने इश्वर को भोग लगाकर फिर प्रसाद रूप में हमें उसे स्वीकार करना चाहिए ।तो हमारी जप में रूचि बढ़ने लगेगी। तीसरा है कुसंग का त्याग। जैसा हमारा संग होगा वैसा ही हमारे विचार होंगे और हमारा मन रहेगा ।इसलिए हमें कुसंग से दूर रहना चाहिए।  हमारे ना जाने कितने जन्मों के कुसंग हमारी भीतर रहते हैं यदि हम सत्संग का आश्रय लेंगे तो कुसंग बाहर निकल जाएगा। लेकिन यदि हमने कुसंग को दोबारा अपना लिया तो हमारे अंदर का सत्संग चला जाएगा।  संत कहते हैं वैसे ही इस कलयुग में दुष्टता का बहुत प्रभाव है यदि हम दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को अपनाएंगे तो हम भी वैसे ही हो जाएंगे । तो हमें उनसे दूर रहना चाहिए और ईश्वर का चिंतन मनन करना चाहिए और हमारी  साधना पुष्ट हो जाएगी हमें संग महापुरुषों का करना चाहिए ,जिससे हमारे विचार शुद्ध और सात्विक हो जाए। अपनी दिनचर्या में हमें एक समय ऐसा निकालना चाहिए कि हम अपने प्रभु का ध्यान लगाएं शांत चित्त होकर चिंतन करें ,तो नाम जप में रुचि हो जाए ।हमारा खानपान शुद्ध, चित्त शुद्ध हो , शास्त्र अध्ययन में रुचि बढें  तो निश्चित ही  जप में रुचि बढ़ जाएगी। जिस प्रकार घड़े में कितना ही पानी भरा  हो उसमें थोड़ा सा भी छेद हो तो धीरे-धीरे सारा पानी निकल जाता है ,उसी प्रकार अगर हमारे अंदर थोड़ा कुसंग भी प्रवेश कर जाए तो हमने कितना ही जप किया हो ,कितनी साधना की हो, वह धीरे धीरे निष्फल हो कर खत्म हो जाते हैं इसलिए कुसंग से दूर रहो ,गलत खान-पान से दूर रहो ,नाम जप में तभी आनंद मिलेगा जब आप परहेज़ करोगे।
।।ऊँ।।

जब हमें क्रोध आए तो क्या करें कैसे बचें?

                    जब भी क्रोध आए तो हम क्या करें?

जब भी हमें क्रोध आए तो हमें 5 सूत्रों को याद रखना चाहिए -पहला सूत्र है सोचना  - क्योंकि जब हम क्रोध में होते हैं तो हम बिना सोचे समझे कुछ  भी बोल जाते हैं और हमें बाद में ग्लानि होती है कि हमने किन शब्दों का उच्चारण किया है ?पहले हम सोचते नहीं हैं और बाद में हमें पछताना पड़ता है।
इसलिए जब हमें क्रोध आए तो हमें अपने मन और जुबां पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि जब हमे क्रोध आता है तो क्रोध आने का कारण इतना बड़ा नहीं होता है  लेकिन जो हमारे अंदर  अहंकार है  वह उसे बड़ा बना देता है  । इसलिए  हमें अपने मन और अहंकार पर नियंत्रण रखना चाहिए ।अगर हम अपने अहंकार पर नियंत्रण रखेंगे तो हम जीवन के असली उद्देश्य को समझ पाएंगे कि हम धरती पर आए किसलिए है?
 दूसरा - हमें कितना भी क्रोध आए हमें अपने विचारों को दूसरों के समक्ष शांत भाव से रखना चाहिए ।
तीसरा - हमें जब क्रोध आ रहा हो तो हमें उस जगह से चले जाना चाहिए और पैदल सैर पर निकल जाना चाहिए क्योंकि इससे हमें सोचने का और आत्ममंथन करने का समय मिल  जाता है,और चौथा और सबसे महत्वपूर्ण सूत्र है - माफ कर देना, हमें दूसरों को माफ कर देना क्योंकि किसी को  भूल के लिए माफ कर देना  , हमारे  क्रोध को निष्क्रिय कर देता है ,क्योंकि क्रोध कभी नहीं चाहेगा कि दूसरों को क्षमा किया जाए क्योंकि क्रोध तो दूसरों को झुकाना चाहता है और  माफ कर देने से क्रोध की इच्छा विफल हो जाती है। इसलिए माफ करना सीखो, गलती किसी से भी हो सकती है । लेकिन हर एक को अपनी भूल सुधारने का एक मौका जरूर मिलना चाहिए । पांचवा सूत्र है हास्य ! किसी भी ऐसी बात को याद करना जिससे तुम्हें हंसी आ जाए क्योंकि हास्य बहुत सी समस्याओं को हल कर सकता है और तुमने अगर इन पांचों सूत्रों को अपना लिया , इन्हें आत्मसात कर लिया तो क्रोध भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
।।ऊँ साँई।।

गुरुवार, 11 जुलाई 2019

महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत 18 से 21

                         महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यतियोऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः कथं  भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो ममकिं  शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
Pada-Kamalam Karunnaa-Nilaye Varivasyati Yo-[A]nudinam Su-Shive
Ayi Kamale Kamalaa-Nilaye Kamalaa-Nilayah Sa Katham Na Bhavet |
Tava Padam-Eva Param-Padam-Ity-Anushiilayato Mama Kim Na Shive
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 18 ||

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चतितेगुणरङ्गभुवम्
भजति  किं शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणिनिवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
Kanaka-Lasat-Kala-Sindhu-Jalair-Anussin.cati Te-Gunna-Rangga-Bhuvam
Bhajati Sa Kim Na Shacii-Kuca-Kumbha-Tattii-Parirambha-Sukha-[A]nubhavam |
Tava Carannam Sharannam Kara-Vaanni Nata-Amara-Vaanni Nivaasi Shivam
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 19 ||

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौविमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपयाकिमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥
Tava Vimale[a-I]ndu-Kulam Vadane[a-I]ndu-Malam Sakalam Nanu Kuula-Yate
Kimu Puruhuuta-Purii-Indu Mukhii Sumukhiibhir-Asou Vimukhii-Kriyate |
Mama Tu Matam Shiva-Naama-Dhane Bhavatii Krpayaa Kimuta Kriyate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 20 ||

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वयाभवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासितथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्रभवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥
Ayi Mayi Diina Dayaalu-Tayaa Krpaya-Iva Tvayaa Bhavitavyam-Ume
Ayi Jagato Jananii Krpayaasi Yathaasi Tathanu-mita-Asira-Te |
Yad-Ucitam-Atra Bhavatyurarii-Kurutaa-Duru-Taapam-Apaakurute
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 21 ||

महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत 13 से 17

                         महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधिरूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहनमन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
Avirala-Ganndda Galan-Mada-Medura Matta-Matangga ja-Raaja-Pate
Tri-Bhuvana-Bhussanna Bhuuta-Kalaanidhi Ruupa-Payo-Nidhi Raaja-Sute |
Ayi Sudatii-Jana Laalasa-Maanasa Mohana Manmatha-Raaja-Sute
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 13 ||

कमलदलामल कोमलकान्तिकलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रमकेलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डलमौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
Kamala-Dala-[A]mala Komala-Kaanti Kalaa-Kalita-[A]mala Bhaalalate
Sakala-Vilaasa Kalaa-Nilaya-Krama Keli-Calat-Kala Hamsa-Kule |
Alikula-Sangkula Kuvalaya-Mannddala Mouli-Milad-Bakula-Ali-Kule
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 14 ||

करमुरलीरव वीजितकूजितलज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जितरञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृतकेलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
Kara-Muralii-Rava Viijita-Kuujita Lajjita-Kokila Man.ju-Mate
Milita-Pulinda Manohara-Gun.jita Ran.jita-Shaila Nikun.ja-Gate |
Nija-Ganna-Bhuuta Mahaa-Shabarii-Ganna Sad-Gunna-Sambhrta Keli-Tale
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 15 ||

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृतचन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नखचन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जितनिर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
Kattitatta-Piita Dukuula-Vicitra Mayukha-Tiraskrta Candra-Ruce
Prannata-Suraasura Mouli-Manni-Sphura d-Amshula-Sannakha Candra-Ruce
Jita-Kanaka-[A]cala Mouli-Mado[a-Uu]rjita Nirbhara-Kun.jara Kumbha-Kuce
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 16 ||

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैकसहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारकसूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधिसमाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनिरम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
Vijita-Sahasra-Karaika Sahasra-Karaika Sahasra-Karaika-Nute
Krta-Sura-Taaraka Sanggara-Taaraka Sanggara-Taaraka Suunu-Sute |
Suratha-Samaadhi Samaana-Samaadhi Samaadhi-Samaadhi Sujaata-Rate |
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute || 17 ||

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