श्री राधा कवच हिंदी में
पार्वती जी ने कहा- हे कैलाश वासिन! भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हे प्रभु । श्री राधिका जी का पवित्र कवच मुझको सुनाओ(1) हे त्रिशूल और धनुष धारण करने वाले नाथ! मैं आपकी शरण में हूं, यदि मुझ पर पूर्ण कृपा है तो दुख के भय से मेरी रक्षा कीजिए(2)
शिव उवाच
श्री शिवजी बोले- हे गिरिराज कुमारी सुनो! यह वह प्राचीन कवच तुमको सुना रहा हूं जो बड़ा पवित्र है। संपूर्ण पापों को हरने वाला है और सब प्रकार से रक्षा करने वाला है।(3) सुख भोग और मोक्ष का साधन एवं श्री श्याम सुंदर की भक्ति को देने वाला है । हे देवी यह कवच त्रिलोकी का आकर्षण कर सकता है और साधक को प्रभु की सन्नधि में पहुंचा देता है।(4)
यह सभी शत्रु को डराने वाला, सर्वत्र विजय प्राप्त कराने वाला और सभी प्राणियों की मनोवृति यों को हराने वाला है। (5)इस कवच के पढ़ने से सदा ही आनंद रहता है। सालोंक्य सृष्टि सामीप्य ,सायुज्य चारों ही प्रकार की मुक्ति प्राप्त हो जाती है एवं अनेकों राजसूय और अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।(6)
इस कवच के बिना यदि कोई केवल श्री राधा मंत्र को जपे तो उसे उसका फल नहीं मिलता, और पद- पद पर विघ्न बाधाएं उपस्थित होने लगती हैं ।(7) श्री राधा कवच का मैं( महादेव) ऋषि हूं ,अनुष्टुप छंद है, श्री राधा देवता है, रां बीज और रां ही कीलक है।(8)
धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन सब में ही इसका विनियोग किया जाता है।( कवच के मूल शब्दों का भावार्थ इस प्रकार जानना चाहिए )श्री राधा जी मेरे मस्तक और ललाट की रक्षा करें, श्रीमती दोनों नेत्रों की और गोपेंद्र नंदिनी दोनों कानों की रक्षा करें और श्री हरि प्रिया जी नासिका की और शशि शोभना जी दोनों भृकुटियों की रक्षा करें ।(10)
श्री कृपादेवि ऊपर के होठ की और गोपीका जी नीचे के होंठ की रक्षा करें, ऊपर के दांतो की श्री वृषभानु सुता और ठोड़ी की श्री गोप नंदिनी जी रक्षा करें ,कपोलो (गालों) की चंद्रावली जी रक्षा करें और श्री कृष्ण प्रिया जी जीभ की रक्षा करें ।श्री हरि प्रिया कंठ की और विजया जी हृदय की रक्षा करें।(12) चंद्र वदना दोनों भुजाओं की, सुवलस्वसा पेट की, योगान्वता कमर की और सौभद्रिका दोनों पैरों की रक्षा करें (13)चंद्रमुखी नखों की गोपा वल्लभा टखनों की, जया घुटनों की और गोपी सभी ओर से मेरी रक्षा करें ।(14)सुभप्रदा पीठ की, कुक्षयों की, श्रीकांत वल्लभा जानू देश की ,जया और हरिणी मेरी सभी ओर से रक्षा करें।(16) वाणी, वचनों की रक्षा करें, धनेश्वरी खजाने की, कृष्ण रता पूर्व दिशा की, और कृष्ण प्राणा पश्चिमी दिशा की रक्षा करें।(16) उत्तर दिशा की हरिता ,दक्षिण दिशा के वृष भानुजा, रात्रि में चंद्रावली और क्षवेडित-मेखला दिन में रक्षा करें ।(17) मध्यान्ह में सौभाग्यदा , सांय में कामरुपणी, प्रातः काल में रुद्री तथा रात्रि के अवसान होने पर गोपीनी हमारी रक्षा करें।(18) संगम में हेतु दा दिन वृद्धि के अवसर में केतु माला अपराह्न में हमें शेषा और संपूर्ण संधियों में शमिता रक्षा करें ।(19)उपभोग के समय योगिनी ,रती प्रदा रति के समय, योग के समय में रत्नावली और कामेशी एवं कोतुकी नित्य प्रति मेरी रक्षा करें।(20) कृष्ण मानसा श्री राधिका जी सदा सर्वदा सब कामों में मेरी रक्षा करें ।जिन स्थलों के नामों की चर्चा नहीं की गई है उन सब की श्री ललिता जी रक्षा करें। हे देवी! यह अद्भुत कवच हमने तुम्हें सुना दिया (21)इसका नाम है सर्व रक्षा कारक, यदि इसे कोई प्रातः मध्यान्ह और सायंकाल पढ़ता है, तो इससे बड़ी भारी रक्षा हो जाती है ।(22)श्री राधा कवच के पढ़ने से उस साधक के मन में जैसी कामना हो वैसे ही सिद्धि हो जाती है। राजद्वार, सभा संग्राम और शत्रुओं द्वारा पहुंचाए हुए संकट के समय, प्राण और धन विनिष्ट होने के समय, यदि मनुष्य यत्न से इसका पाठ करें ,तो हे देवी उनका कार्य सिद्ध हो जाता है और उसको कहीं भी भय नहीं रहता।(23,24) सचमुच उसने श्री राधिका जी की आराधना कर ली, गंगा स्नान और भगवान के नाम से जो फल प्राप्त होता है ,निसंदेह वह फल इस कवच के पढ़ने वाले को मिल जाता है। हल्दी ,गोरोचन ,चंदन से भोजपत्र पर इस कवच को लिखकर जो कोई मस्तक भुजा और कंठ में बांध ले हे देव वह हरि के समान हो जाता है।(25,26,27) ब्रह्मा जी इस कवच के प्रसाद से सृष्टि रचते हैं और विष्णु पालन करते हैं और मैं (शंकर )इसी कवच के प्रसाद से सृष्टि का संहार करता हूं ।यह कवच विशुद्ध वैष्णव को देना चाहिए जिनमें वैराग्य आदि गुण हो, जिसकी बुद्धि व्यग्र ना हो ,नहीं तो अधिकारी को देने वाला स्वयं नष्ट हो जाता है। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए।( श्री राधा कवच टीका का संपूर्ण हुई) जय श्री राधे
पार्वती जी ने कहा- हे कैलाश वासिन! भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हे प्रभु । श्री राधिका जी का पवित्र कवच मुझको सुनाओ(1) हे त्रिशूल और धनुष धारण करने वाले नाथ! मैं आपकी शरण में हूं, यदि मुझ पर पूर्ण कृपा है तो दुख के भय से मेरी रक्षा कीजिए(2)
शिव उवाच
श्री शिवजी बोले- हे गिरिराज कुमारी सुनो! यह वह प्राचीन कवच तुमको सुना रहा हूं जो बड़ा पवित्र है। संपूर्ण पापों को हरने वाला है और सब प्रकार से रक्षा करने वाला है।(3) सुख भोग और मोक्ष का साधन एवं श्री श्याम सुंदर की भक्ति को देने वाला है । हे देवी यह कवच त्रिलोकी का आकर्षण कर सकता है और साधक को प्रभु की सन्नधि में पहुंचा देता है।(4)
यह सभी शत्रु को डराने वाला, सर्वत्र विजय प्राप्त कराने वाला और सभी प्राणियों की मनोवृति यों को हराने वाला है। (5)इस कवच के पढ़ने से सदा ही आनंद रहता है। सालोंक्य सृष्टि सामीप्य ,सायुज्य चारों ही प्रकार की मुक्ति प्राप्त हो जाती है एवं अनेकों राजसूय और अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।(6)
इस कवच के बिना यदि कोई केवल श्री राधा मंत्र को जपे तो उसे उसका फल नहीं मिलता, और पद- पद पर विघ्न बाधाएं उपस्थित होने लगती हैं ।(7) श्री राधा कवच का मैं( महादेव) ऋषि हूं ,अनुष्टुप छंद है, श्री राधा देवता है, रां बीज और रां ही कीलक है।(8)
धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन सब में ही इसका विनियोग किया जाता है।( कवच के मूल शब्दों का भावार्थ इस प्रकार जानना चाहिए )श्री राधा जी मेरे मस्तक और ललाट की रक्षा करें, श्रीमती दोनों नेत्रों की और गोपेंद्र नंदिनी दोनों कानों की रक्षा करें और श्री हरि प्रिया जी नासिका की और शशि शोभना जी दोनों भृकुटियों की रक्षा करें ।(10)
श्री कृपादेवि ऊपर के होठ की और गोपीका जी नीचे के होंठ की रक्षा करें, ऊपर के दांतो की श्री वृषभानु सुता और ठोड़ी की श्री गोप नंदिनी जी रक्षा करें ,कपोलो (गालों) की चंद्रावली जी रक्षा करें और श्री कृष्ण प्रिया जी जीभ की रक्षा करें ।श्री हरि प्रिया कंठ की और विजया जी हृदय की रक्षा करें।(12) चंद्र वदना दोनों भुजाओं की, सुवलस्वसा पेट की, योगान्वता कमर की और सौभद्रिका दोनों पैरों की रक्षा करें (13)चंद्रमुखी नखों की गोपा वल्लभा टखनों की, जया घुटनों की और गोपी सभी ओर से मेरी रक्षा करें ।(14)सुभप्रदा पीठ की, कुक्षयों की, श्रीकांत वल्लभा जानू देश की ,जया और हरिणी मेरी सभी ओर से रक्षा करें।(16) वाणी, वचनों की रक्षा करें, धनेश्वरी खजाने की, कृष्ण रता पूर्व दिशा की, और कृष्ण प्राणा पश्चिमी दिशा की रक्षा करें।(16) उत्तर दिशा की हरिता ,दक्षिण दिशा के वृष भानुजा, रात्रि में चंद्रावली और क्षवेडित-मेखला दिन में रक्षा करें ।(17) मध्यान्ह में सौभाग्यदा , सांय में कामरुपणी, प्रातः काल में रुद्री तथा रात्रि के अवसान होने पर गोपीनी हमारी रक्षा करें।(18) संगम में हेतु दा दिन वृद्धि के अवसर में केतु माला अपराह्न में हमें शेषा और संपूर्ण संधियों में शमिता रक्षा करें ।(19)उपभोग के समय योगिनी ,रती प्रदा रति के समय, योग के समय में रत्नावली और कामेशी एवं कोतुकी नित्य प्रति मेरी रक्षा करें।(20) कृष्ण मानसा श्री राधिका जी सदा सर्वदा सब कामों में मेरी रक्षा करें ।जिन स्थलों के नामों की चर्चा नहीं की गई है उन सब की श्री ललिता जी रक्षा करें। हे देवी! यह अद्भुत कवच हमने तुम्हें सुना दिया (21)इसका नाम है सर्व रक्षा कारक, यदि इसे कोई प्रातः मध्यान्ह और सायंकाल पढ़ता है, तो इससे बड़ी भारी रक्षा हो जाती है ।(22)श्री राधा कवच के पढ़ने से उस साधक के मन में जैसी कामना हो वैसे ही सिद्धि हो जाती है। राजद्वार, सभा संग्राम और शत्रुओं द्वारा पहुंचाए हुए संकट के समय, प्राण और धन विनिष्ट होने के समय, यदि मनुष्य यत्न से इसका पाठ करें ,तो हे देवी उनका कार्य सिद्ध हो जाता है और उसको कहीं भी भय नहीं रहता।(23,24) सचमुच उसने श्री राधिका जी की आराधना कर ली, गंगा स्नान और भगवान के नाम से जो फल प्राप्त होता है ,निसंदेह वह फल इस कवच के पढ़ने वाले को मिल जाता है। हल्दी ,गोरोचन ,चंदन से भोजपत्र पर इस कवच को लिखकर जो कोई मस्तक भुजा और कंठ में बांध ले हे देव वह हरि के समान हो जाता है।(25,26,27) ब्रह्मा जी इस कवच के प्रसाद से सृष्टि रचते हैं और विष्णु पालन करते हैं और मैं (शंकर )इसी कवच के प्रसाद से सृष्टि का संहार करता हूं ।यह कवच विशुद्ध वैष्णव को देना चाहिए जिनमें वैराग्य आदि गुण हो, जिसकी बुद्धि व्यग्र ना हो ,नहीं तो अधिकारी को देने वाला स्वयं नष्ट हो जाता है। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए।( श्री राधा कवच टीका का संपूर्ण हुई) जय श्री राधे