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मंगलवार, 30 जुलाई 2019

श्री राधा कृपा कटाक्ष स्रोत हिंदी में

               श्री राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत हिंदी में

  भावार्थ- मुनींद्र वृंद जिनके चरणों की वंदना करते हैं तथा जो तीनों लोकों का शौक दूर करने वाली है मुस्कान युक्त प्रफुल्लित मुख कमल वाली निकुंज भवन में विलास करने वाली, राजा वृषभानु की राजकुमारी ,श्री बृज राजकुमार की हृदयेश्वरी श्री राधिके! कब मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र बनाओगी?
 भावार्थ -अशोक की वृक्ष लताओं से बने हुए 'लता मंदिर' में विराजमान और  मूँगे अग्नि तथा नवीन लाल पल्लवों के समान अरुण कांति युक्त कोमल चरणों वाली, भक्तों को अभीष्ट वर दान देने वाली तथा अभय दान देने के लिए उत्सुक रहने वाले कर- कमलो वाली अपार ऐश्वर्या की स्वामिनी श्री राधे मुझे कब अपने कृपा कटाक्ष का अधिकारी बनाओगी।

भावार्थ -प्रेम क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में बाँकी भृकुटी करके, आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहसा कटाक्ष रूपी बाणों की वर्षा से श्री नंद नंदन को निरंतर बस में करने वाली ,हे सर्वेश्वरी अपने कृपा कटाक्ष का पात्र मुझे कब बनाओगी ?

 भावार्थ- बिजली, स्वर्ण तथा चंपा के पुष्प के समान सुनहरी कांति से देदीप्यमान गोरे अंगो वाली अपने मुखारविंद की चांदनी से करोड़ों शरद चंद्र को जीतने वाली क्षण क्षण में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर के बच्चे के सदृश विलोचनो वाली, हे जग जननी! क्या कभी मुझे अपने कृपा कटाक्ष का अधिकारी बनाओगी।

भावार्थ- अपने अत्यंत रूप यौवन के मद से मत्त रहने वाली आनंद भरा मान ही जिनका सर्वोत्तम भूषण है, प्रीतम के अनुराग से रंगी हुई, विलास की प्रवीण अनन्य भक्त गोपीकाओं से धन्य हुए निकुंज राज्य की प्रेम कौतुक विद्या की विद्वान श्री राधिके! मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र कब बनाओगी?
भावार्थ- संपूर्ण हाव भावरुपी श्रृंगारों  तथा धीरता एवं हीरे की हारों से विभूषित अंगों वाली शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान गयनंदिनी के गण्ड स्थल के समान मनोहर पयोधरो वाली प्रशंसित मंद मुस्कान से परिपूर्णानंद सिंधु के सदृश श्री राधा! क्या मुझे अपनी कृपा से कृतार्थ करोगी?

भावार्थ- जल की लहरों से हिलते हुए कमल के नवीन नाल के समान जिनकी कोमल भुजाएं हैं, पवन से जैसे लता का एक अग्र भाग नाचता है ऐसे चंचल लोचनों से नीलिमा झलकाते हुए जो अवलोकन करती हैं ।ललचाने वाले, लुभाकर पीछे पीछे फिरने वाले, मिलन में मन को हरने वाले, मुग्ध मनमोहन को आश्रय देने वाली, हे वृषभानु किशोरी! कब अपने कृपा अवलोकन द्वारा मुझे मायाजाल से छुड़ाओगी ।

भावार्थ- स्वर्ण की मालाओं से विभूषित तथा तीन रेखाओं वाले शंख की छटा सदृश सुंदर कंठ वाली तथा जिनके कंठ में मंगलमय सूत्र बंधा हुआ है जिसमें तीन रंगों के रत्नों का भूषण लटक रहा है रत्नों से देदीप्यान किरणे निकल रही हैं (यह मंगल त्रसुत्र नव वधु को गले में बनाया जा रहा है) यह बृज की प्राचीन प्रथा है, दक्षिण में अभी यह प्रथा प्रचलित है तथा दिव्य पुष्पों के गुच्छे से हुए काले घुंघराले लहराते केशों वाली हे सर्वेश्वरी श्री राधे! कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से देखकर अपने चरण कमलों के दर्शन का अधिकारी बनाओगी

 भावार्थ- कटिमण्डल में मणिमय किंकणी सुशोभित है जिसमें सोने के फूल रत्नों से जड़े हुए लटक रहे हैं तथा उसकी प्रशंसनीय झंकार अत्यंत मनोहर गजेंद्र की सूंड के समान जिनकी जंघाये अत्यंत सुंदर है। ऐसी श्री राधे महारानी मुझ पर कृपा करके सब संसार सागर से पार लगाओगी?

 भावार्थ- अनेकों वेद मंत्रों की सुमधुर झंकार करने वाले स्वर्ण मय नूपुर चरणों में ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो मनोहर हंसों की पंक्ति गूंज रही है, चलते समय अंगों की छवि ऐसे लगती है मानो, स्वर्ण लता लहरा रही हो। हे जगदीश्वरी श्री राधे !क्या कभी मैं आपके चरण कमलों का दास हो सकूंगा?

 भावार्थ -अनंत कोटी वैकुंठ की स्वामिनी श्री लक्ष्मी जी, आप की पूजा करती हैं तथा  श्री पार्वती जी, इंद्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी पूजा कर वरदान पाया है। आपके चरण कमलों की एक उंगली के नख का भी ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धियां का समूह बढ़ने लगता है। हे करुणामयी !आपकब मुझको वात्सल्य रस भरी दृष्टि से देखोगी?

भावार्थ- सब प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी है संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी, स्वधा देवी की स्वामिनी, सब देवताओं की स्वामिनी , तीनों वेदों की वाणी की स्वामिनी प्रमाण शासन शास्त्र की स्वामिनी, श्री रमा देवी की स्वामिनी ,श्री क्षमा देवी के स्वामिनी और( अयोध्या के )प्रमोद वन की स्वामिनी अथार्त श्री सीता जी आप ही हैं,हे राधिके !कब मुझे कृपा कर अपनी शरण में स्वीकार कर पराभक्ति प्रदान करोगी ? हे बृजेश्वरी! हे बृज की अधिष्ठात्री श्री राधिके! आप को मेरा बारंबार प्रणाम है।

 भावार्थ- हे वृषभानु नंदिनी !मेरी इस विचित्र स्तुति को सुनकर सर्वदा के लिए मुझ दास को अपनी दया दृष्टि का अधिकारी बना लो ,बस आपकी दया ही से तो मेरे प्रारब्ध, संचित और क्रिया मान इन तीनों प्रकार के कर्मों का नाश हो जाएगा और उसी क्षण श्री कृष्ण चंद्र के नित्य मंडल दिव्य धाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा।

 भावार्थ -पूर्णिमा के दिन शुक्ल पक्ष की अष्टमी या दशमी को तथा दोनों की एकादशी और त्रयोदशी को जो शुद्ध बुद्धि वाला भक्त स्त्रोत का पाठ करेगा, वह जो भावना करेगा वही प्राप्त होगा ,अन्यथा निष्काम भावना से पाठ करने पर श्री राधा जी की दया दृष्टि से परा भक्ति प्राप्त होगी।

 भावार्थ- इस स्रोत से श्री राधा कृष्ण का साक्षात्कार होता है। उसकी विधि इस प्रकार है कि गोवर्धन पर्वत के निकट श्री राधा कुंड के जल में जंघाओ तक या नाभि पर्यंत या छाती तक या कंठ तक ,जल में खड़े होकर स्त्रोत का 100 बार पाठ करें ।इस प्रकार कुछ दिन पाठ करने पर संपूर्ण मनोवांछित पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं। ईश्वर की प्राप्ति होती है। दर्शनाथी भक्तों की इन्हीं से साक्षत श्री राधा जी का दर्शन होता है। श्री राधा जी प्रकट होकर प्रसन्नता पूर्वक महान वरदान देती हैं अथवा अपने चरणों का महावर भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं ।वरदान में केवल "अपनी प्रिय वस्तु दो" यही मांगना चाहिए। तत्काल ही श्यामसुंदर प्रकट होकर दर्शन देते हैं ,प्रसन्न होकर श्री ब्रिज राजकुमार अपने नित्य लीलाओं  में प्रवेश प्रदान करते हैं । इससे बढ़कर वैष्णव के लिए कोई भी वस्तु नहीं है ।किसी किसी को  अपने घर में ही 100 पाठ नित्य प्रति करने से कुछ ही दिनों में इसकी प्राप्ति हो जाती है। ।।जय श्री राधे।।

सोमवार, 29 जुलाई 2019

श्री राधा कवच

                          श्री राधा कवच हिंदी में

          


 पार्वती जी ने कहा- हे कैलाश वासिन! भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हे प्रभु । श्री राधिका जी का पवित्र कवच मुझको सुनाओ(1) हे त्रिशूल और धनुष धारण करने वाले नाथ! मैं आपकी शरण में हूं, यदि मुझ पर पूर्ण कृपा है तो दुख के भय से मेरी रक्षा कीजिए(2)
शिव उवाच
 श्री शिवजी  बोले- हे गिरिराज कुमारी सुनो! यह वह प्राचीन कवच तुमको सुना रहा हूं जो बड़ा पवित्र है। संपूर्ण पापों को हरने वाला है और सब प्रकार से रक्षा करने वाला है।(3) सुख भोग और मोक्ष का साधन एवं श्री श्याम सुंदर की भक्ति को देने वाला है । हे देवी यह कवच त्रिलोकी का आकर्षण कर सकता है और साधक को प्रभु की सन्नधि में पहुंचा देता है।(4)
 यह सभी शत्रु को डराने वाला, सर्वत्र विजय प्राप्त कराने वाला और सभी प्राणियों की मनोवृति यों को हराने वाला है। (5)इस कवच के पढ़ने से सदा ही आनंद रहता है। सालोंक्य  सृष्टि सामीप्य ,सायुज्य चारों ही प्रकार की मुक्ति प्राप्त हो जाती है एवं अनेकों राजसूय और अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।(6)
इस कवच के बिना यदि कोई केवल श्री राधा मंत्र को जपे तो उसे उसका फल नहीं मिलता, और पद- पद पर विघ्न बाधाएं उपस्थित होने लगती हैं ।(7) श्री राधा कवच का मैं( महादेव) ऋषि हूं ,अनुष्टुप छंद है, श्री राधा देवता है, रां बीज और रां ही कीलक है।(8)
धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन सब में ही इसका विनियोग किया जाता है।( कवच के मूल शब्दों का भावार्थ इस प्रकार जानना चाहिए )श्री राधा जी मेरे मस्तक और ललाट की रक्षा करें, श्रीमती दोनों नेत्रों की और गोपेंद्र नंदिनी दोनों कानों की रक्षा करें और श्री हरि प्रिया जी नासिका की और शशि शोभना जी दोनों भृकुटियों की रक्षा करें ।(10)
श्री कृपादेवि ऊपर के होठ की और गोपीका जी नीचे के होंठ की रक्षा करें, ऊपर के दांतो की श्री वृषभानु सुता और ठोड़ी की श्री गोप नंदिनी जी रक्षा करें ,कपोलो (गालों) की चंद्रावली जी रक्षा करें और श्री कृष्ण प्रिया जी जीभ की रक्षा करें ।श्री हरि प्रिया कंठ की और विजया जी हृदय की रक्षा करें।(12) चंद्र वदना दोनों भुजाओं की, सुवलस्वसा पेट की, योगान्वता कमर की और सौभद्रिका दोनों पैरों की रक्षा करें (13)चंद्रमुखी नखों की गोपा वल्लभा  टखनों की, जया घुटनों की और गोपी सभी ओर से मेरी रक्षा करें ।(14)सुभप्रदा पीठ की, कुक्षयों की, श्रीकांत वल्लभा जानू देश की ,जया और हरिणी मेरी सभी ओर से रक्षा करें।(16) वाणी, वचनों की रक्षा करें, धनेश्वरी खजाने की, कृष्ण रता पूर्व दिशा की, और कृष्ण प्राणा पश्चिमी दिशा की रक्षा करें।(16) उत्तर दिशा की हरिता ,दक्षिण दिशा के वृष भानुजा, रात्रि में चंद्रावली और क्षवेडित-मेखला  दिन में रक्षा करें ।(17) मध्यान्ह में सौभाग्यदा , सांय  में कामरुपणी, प्रातः काल में रुद्री तथा रात्रि  के अवसान होने पर गोपीनी हमारी रक्षा करें।(18) संगम में हेतु दा दिन वृद्धि के अवसर में केतु माला अपराह्न में हमें शेषा और संपूर्ण संधियों में शमिता रक्षा करें ।(19)उपभोग के समय योगिनी ,रती प्रदा रति के समय, योग के समय में रत्नावली और कामेशी एवं कोतुकी नित्य प्रति मेरी रक्षा करें।(20) कृष्ण मानसा श्री राधिका जी सदा सर्वदा सब कामों में मेरी रक्षा करें ।जिन स्थलों के नामों की चर्चा नहीं की गई है उन सब की श्री ललिता जी रक्षा करें। हे देवी! यह अद्भुत कवच हमने तुम्हें सुना दिया (21)इसका नाम है सर्व रक्षा कारक, यदि इसे कोई प्रातः मध्यान्ह और सायंकाल पढ़ता है, तो इससे बड़ी भारी रक्षा हो जाती है ।(22)श्री राधा कवच के पढ़ने से उस साधक के मन में जैसी कामना हो वैसे ही सिद्धि हो जाती है। राजद्वार, सभा संग्राम और शत्रुओं द्वारा पहुंचाए हुए संकट के समय, प्राण और धन विनिष्ट होने के समय, यदि मनुष्य यत्न से इसका पाठ करें ,तो हे देवी उनका कार्य सिद्ध हो जाता है और उसको कहीं भी भय नहीं रहता।(23,24) सचमुच उसने श्री राधिका जी की आराधना कर ली, गंगा स्नान और भगवान के नाम से जो फल प्राप्त होता है ,निसंदेह वह फल इस कवच के पढ़ने वाले को मिल जाता है। हल्दी ,गोरोचन ,चंदन से भोजपत्र पर इस कवच को लिखकर जो कोई मस्तक भुजा और कंठ में बांध ले हे देव वह हरि के समान हो जाता है।(25,26,27) ब्रह्मा जी इस कवच के प्रसाद से सृष्टि रचते हैं और विष्णु पालन करते हैं और मैं (शंकर )इसी कवच के प्रसाद से सृष्टि का संहार करता हूं ।यह कवच विशुद्ध वैष्णव को देना चाहिए जिनमें वैराग्य आदि गुण हो, जिसकी बुद्धि व्यग्र ना हो ,नहीं तो अधिकारी को देने वाला स्वयं नष्ट हो जाता है। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए।( श्री राधा कवच टीका का संपूर्ण हुई) जय श्री राधे

शनिवार, 27 जुलाई 2019

सत्संग कब प्राप्त होता है?

    "बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई.........



जब व्यक्ति सच्चे मन से सत्संग की इच्छा करता है, तब कृष्ण कृपा से उस व्यक्ति को सत्संग प्राप्त होता है

1. सत्संग से व्यक्ति का अज्ञान दूर होता है।

2. अज्ञान दूर होने पर ही कृष्णा से राग उत्पन्न होने लगता है।

3. जैसे-जैसे कृष्णा से राग होता है, वैसे-वैसे ही संसार से बैराग होने लगता है।

4. जैसे-जैसे संसार से बैराग होता है, वैसे-वैसे विवेक जागृत होने लगता है।

5. जैसे-जैसे विवेक जागृत होता है वैसे-वैसे व्यक्ति कृष्णा के प्रति समर्पण होने लगता है।

6. जैसे-जैसे कृष्णा के प्रति समर्पण होता है वैसे-वैसे ज्ञान प्रकट होने लगता है।

7. जैसे-जैसे ज्ञान प्रकट होता है, वैसे-वैसे व्यक्ति सभी नये कर्म बन्धन से मुक्त होने लगता है।

8. जैसे-जैसे कर्म-बन्धन से मुक्त होता है, वैसे-वैसे कृष्णा की भक्ति प्राप्त होने लगती है

10. जैसे-जैसे भक्ति प्राप्त होती है, वैसे-वैसे व्यक्ति स्थूल-देह स्वरूप को भूलने लगता है।

11. जैसे-जैसे ही व्यक्ति स्थूल-देह स्वरूप को भूलता है, वैसे-वैसे आत्म-स्वरूप में स्थिर होने लगता है।

12. जब व्यक्ति आत्म-स्वरूप में स्थिर हो जाता है तब कृष्णा आनन्द स्वरूप में प्रकट हो जाता है।
इसी अवस्था पर संत कबीर दास जी कहते हैं.....

प्रेम गली अति सांकरी, उस में दो न समाहिं।
जब मैं था तब हरि नहिं, अब हरि है मैं नाहिं॥

दालचीनी एक, लाभ अनेक

                      दालचीनी एक, लाभ अनेक

 जोड़ों के दर्द में आराम दिलाती है दालचीनी, जानें कैसे करना है  प्रयोग


अर्थराइटिस में दालचीनी के प्रयोग से जोड़ों के दर्द से जल्दी राहत मिलती है।
दालचीनी में दर्द और सूजन को खत्म करने के गुण होते हैं।

तत्काल राहत ही नहीं, दालचीनी धीरे-धीरे गठिया को ठीक कर देती है।

अर्थराइटिस या गठिया के कारण जोड़ों और हड्डियों में दर्द बना रहता है। आमतौर पर इस दर्द का असर घुटनों, कोहनी, उंगलियों और तलवों में ज्यादा होता है। कई बार दर्द के साथ-साथ जोड़ों में सूजन भी होती है। इस दर्द के कारण व्यक्ति को उठने-बैठने और चलने में भी परेशानी होने लगती है। इस तरह के दर्द में बार-बार दवाओं के प्रयोग से बेहतर है कि आप आयुर्वेद में बताए गए आसान घरेलू उपायों का प्रयोग करें। अर्थराइटिस में दालचीनी के प्रयोग से जोड़ों के दर्द से जल्दी राहत मिलती है।



दर्द से तुरंत राहत के लिए दालचीनी पेस्ट

दालचीनी पाऊडर में कुछ बूंदे पानी की मिला लें। इसका एक गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें। इस पेस्ट को जोड़ों पर लगाएं और फिर मुलायम कपड़े से ढंक दें, ताकि वो लंबे समय तक लगा रहे। दालचीनी में दर्दनिवारक और सूजनरोधी गुण होते हैं। इसलिए इसके प्रयोग से अर्थराइटिस के कारण होने वाली सूजन और दर्द दोनों में फायदा मिलता है।



दर्द से तुरंत राहत के लिए दालचीनी पेस्ट
दालचीनी पाऊडर में कुछ बूंदे पानी की मिला लें। इसका एक गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें। इस पेस्ट को जोड़ों पर लगाएं और फिर मुलायम कपड़े से ढंक दें, ताकि वो लंबे समय तक लगा रहे। दालचीनी में दर्दनिवारक और सूजनरोधी गुण होते हैं। इसलिए इसके प्रयोग से अर्थराइटिस के कारण होने वाली सूजन और दर्द दोनों में फायदा मिलता

दालचीनी और शहद

डेढ़ चम्मच दालचीनी पाऊडर और एक चम्मच शहद मिला लें। रोज़ सुबह खाली पेट एक कप गर्म पानी के साथ इसका सेवन करें। इससे गठिया के दर्द में राहत मिलती है और जोड़ों में जमा यूरिक एसिड कम होता है, जिससे अर्थराइटिस धीरे-धीरे कम होने लगता है। एक सप्ताह में इसका असर दिखना शुरू हो जाएगा।

सप्ताह में 2 बार पिएं ये स्पेशल चाय

गठिया की समस्या को धीरे-धीरे जड़ से मिटाना है, तो आपको सप्ताह में दो बार स्पेशल चाय पीनी चाहिए। इस चाय को बनाने के लिए 250 ग्राम दूध व उतने ही पानी में दो लहसुन की कलियां, एक-एक चम्मच सौंठ या हरड़ तथा एक-एक दालचीनी और हरी इलायची डालकर उसे अच्छी तरह से धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी जल जाए, तो उस दूध को पियें, गठिया रोगियों को जल्द फायदा होगा।


गठिया को कम करने के लिए जरूरी बातें
अर्थराइटिस व्यक्ति के जोड़ों, आंतरिक अंग और त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। घरेलू नुस्खे के अलावा अर्थराइटिस से राहत पाने के लिए इन बातों का भी ध्यान रखना जरूरी है।

अपना वजन कम रखें क्योंकि ज्यादा वज़न से आपके घुटने तथा कूल्हों पर दबाव पड़ता है।

सुबह गरम पानी से नहाएं।

कसरत तथा जोड़ों को हिलाने से भी धीरे-धीरे ये समस्या दूर होती है।

अगर सत्संग मिल जाए तो?








🌹🌹    मनुष्य जन्म में सत्संग मिल जाए, गीता जैसे ग्रंथ से परिचय हो जाए ,भगवान नाम से परिचय हो जाए ,तो साधक को यह समझना चाहिए कि भगवान ने बहुत विशेषता से कृपा कर दी है, अतः अब तो हमारा उद्धार होगा ही । अब आगे हमारा जन्म- मरण नहीं होगा ,कारण कि अगर हमारा उद्धार नहीं होना होता, तो ऐसा मौका नहीं मिलता।

---ब्रह्मलीन , श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

देसी गाय के घी से इलाज

                 *रोगानुसार गाय के घी के उपयोग* :


१. गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है ।
२. गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है
३. गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है ।

४. 20-25 ग्राम गाय का घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है ।

५. गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है ।

६. नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है ।

७. गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है

८. गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है ।

९. गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है ।

१०. हाथ-पॉँव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है ।

११. हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी ।

१२. गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है ।

१३. गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है ।

१४. गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है ।

१५. अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें ।

१६. हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा ।

१७. गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है ।

१८. जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाई खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, इससे ह्रदय मज़बूत होता है ।

१९. देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है ।

२०. गाय का घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर या बूरा या देसी खाण्ड, तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें । प्रतिदिन प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है ।

२१. फफोलों पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है ।

२२. गाय के घी की छाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायता मिलती है ।

२३. सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम गाय का घी पिलायें, उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें, जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष भी कम हो जायेगा ।

२४. दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है ।

२५. सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, इससे सिरदर्द दर्द ठीक हो जायेगा ।

२६. यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है । वजन भी नही बढ़ता, बल्कि यह वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है तथा मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है ।

२७. एक चम्मच गाय के शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।

२८. गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें । इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं । यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है ।

२९. गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए । यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है ।

३०. अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को सन्तुलित करता है ।

शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

जप में रुचि नहीं हो रही क्या करें?

                      नाम जप में रुचि कैसे हो?

 नाम जप में रुचि के लिए कुछ विशेष सावधानियां रखनी जरूरी है -उनमें सबसे पहली है सत्संग ।  ज्यादा सत्संग करना चाहिए जिसमें भगवान की लीला का श्रवन करना चाहिए ,अध्ययन करना चाहिए और मनन करना चाहिए ।जब हमारी ईश्वर की लीला को सुनने में रुचि होने लगेगी तो जप भी होने लगेगा । दूसरा है भोजन यानी अन्न कहावत भी है कि जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन। इसलिए हमें सात्विक अन्न ही खाना चाहिए ,पहले अपने इश्वर को भोग लगाकर फिर प्रसाद रूप में हमें उसे स्वीकार करना चाहिए ।तो हमारी जप में रूचि बढ़ने लगेगी। तीसरा है कुसंग का त्याग। जैसा हमारा संग होगा वैसा ही हमारे विचार होंगे और हमारा मन रहेगा ।इसलिए हमें कुसंग से दूर रहना चाहिए।  हमारे ना जाने कितने जन्मों के कुसंग हमारी भीतर रहते हैं यदि हम सत्संग का आश्रय लेंगे तो कुसंग बाहर निकल जाएगा। लेकिन यदि हमने कुसंग को दोबारा अपना लिया तो हमारे अंदर का सत्संग चला जाएगा।  संत कहते हैं वैसे ही इस कलयुग में दुष्टता का बहुत प्रभाव है यदि हम दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को अपनाएंगे तो हम भी वैसे ही हो जाएंगे । तो हमें उनसे दूर रहना चाहिए और ईश्वर का चिंतन मनन करना चाहिए और हमारी  साधना पुष्ट हो जाएगी हमें संग महापुरुषों का करना चाहिए ,जिससे हमारे विचार शुद्ध और सात्विक हो जाए। अपनी दिनचर्या में हमें एक समय ऐसा निकालना चाहिए कि हम अपने प्रभु का ध्यान लगाएं शांत चित्त होकर चिंतन करें ,तो नाम जप में रुचि हो जाए ।हमारा खानपान शुद्ध, चित्त शुद्ध हो , शास्त्र अध्ययन में रुचि बढें  तो निश्चित ही  जप में रुचि बढ़ जाएगी। जिस प्रकार घड़े में कितना ही पानी भरा  हो उसमें थोड़ा सा भी छेद हो तो धीरे-धीरे सारा पानी निकल जाता है ,उसी प्रकार अगर हमारे अंदर थोड़ा कुसंग भी प्रवेश कर जाए तो हमने कितना ही जप किया हो ,कितनी साधना की हो, वह धीरे धीरे निष्फल हो कर खत्म हो जाते हैं इसलिए कुसंग से दूर रहो ,गलत खान-पान से दूर रहो ,नाम जप में तभी आनंद मिलेगा जब आप परहेज़ करोगे।
।।ऊँ।।

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गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भावार्थ के साथ

                    गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र   भावार्थ के साथ गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में आता है। इसमें एक ...