यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 5 अगस्त 2019

एक पल,एक क्षण,एक घडी़ का वास्तविक अर्थ-

               विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र


                            (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )               आप जिज्ञासुओं के व अपने आने वाली पीढ़ी के लिये ये बहुत काम का संकलन है,कृपया बच्चों को यह भी सिखाए-रमक झमक

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
" जय सियाराम"


क्या आप जानते हैं हमारे शब्द भी हमारे कर्म बन जाते हैं।

                  हमारी शब्द हमारे कर्म बन जाते हैं


18 दिन के युद्ध ने, 

द्रोपदी की उम्र को
80 वर्ष जैसा कर दिया था...

शारीरिक रूप से भी
और मानसिक रूप से भी

शहर में चारों तरफ़
विधवाओं का बाहुल्य था..

पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था

अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी
द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में
निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी ।

तभी,

*श्रीकृष्ण*
कक्ष में दाखिल होते हैं

द्रौपदी
कृष्ण को देखते ही
दौड़कर उनसे लिपट जाती है ...
कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं

थोड़ी देर में,
उसे खुद से अलग करके
समीप के पलंग पर बैठा देते हैं ।

*द्रोपदी* : यह क्या हो गया सखा ??

ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

*कृष्ण* : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !

वह हमारे कर्मों को
परिणामों में बदल देती है..

तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, तुम सफल हुई, द्रौपदी !

तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ... सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं,
सारे कौरव समाप्त हो गए

तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !

*द्रोपदी*: सखा,
तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए ?

*कृष्ण* : नहीं द्रौपदी,
मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूँ
हमारे कर्मों के परिणाम को
हम, दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं..
तो, हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता।

*द्रोपदी* : तो क्या,
इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ कृष्ण ?

*कृष्ण* : नहीं, द्रौपदी
तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो...

लेकिन,

तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखती तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

*द्रोपदी* : मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?

*तुम बहुत कुछ कर सकती थी*

*कृष्ण*:- जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ...
तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती
तो, शायद परिणाम
कुछ और होते !

इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया...
तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी, परिणाम कुछ और होते ।

और

उसके बाद
तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया...
कि अंधों के पुत्र अंधे होते हैं।

वह नहीं कहती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता...

तब भी शायद, परिस्थितियाँ कुछ और होती ।

हमारे  *शब्द* भी
हमारे *कर्म* होते हैं द्रोपदी...

और, हमें

अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत ज़रूरी होता है...
अन्यथा,
उसके *दुष्परिणाम* सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं... अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।

संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है...
 जिसका
"ज़हर"
उसके
"दाँतों" में नहीं,
"शब्दों " में है...

आरती " जय शिव ओंकारा का अर्थ "

                             *"त्रिगुणास्वामी"

*"ॐ जय शिव ओंकारा", यह वह प्रसिद्ध आरती है जो देश भर में शिव-भक्त नियमित गाते हैं..*
*लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि, इस आरती के पदों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो की स्तुति है..*
👇
*एकानन (एकमुखी, विष्णु) चतुरानन (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) पंचानन (पंचमुखी, शिव) राजे..*
*हंसासन(ब्रम्हा) गरुड़ासन(विष्णु ) वृषवाहन (शिव) साजे..*

*दो भुज (विष्णु) चार चतुर्भुज (ब्रम्हा) दसभुज (शिव) ते सोहे..*

*अक्षमाला (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी ) वनमाला (विष्णु ) रुण्डमाला (शिव) धारी..*
*चंदन (ब्रम्हा ) मृगमद (कस्तूरी , विष्णु ) चंदा (शिव) भाले शुभकारी (मस्तष्क पर शोभा पाते है)..*

*श्वेताम्बर (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) पीताम्बर (पीले वस्त्र, विष्णु) बाघाम्बर (बाघ चर्म ,शिव) अगें..*

*ब्रम्हादिक (ब्राम्हण, ब्रम्हा ) सनकादिक (सनक आदि, विष्णु ) भूतादिक (शिव ) सगें (साथ रहते है)..*

*कर के मध्य कमंडल (ब्रम्हा) चक्र (विष्णु) त्रिशूल (शिव) धर्ता..*
*जगकर्ता (ब्रम्हा) जगहर्ता (शिव ) जग पालनकर्ता (विष्णु)..*

*ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते है)*

*प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनो एका (सृष्टि के निर्माण के मूल ओंकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है, आगे सृष्टि निर्माण, पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते है...)*

*ॐ नमः शिवाय "

बुधवार, 31 जुलाई 2019

(बिल्वाष्टकम्) शिव जी को बिल्वपत्र (बेल का पत्ता)अर्पण करते समय बोलने वाला मंत्र

                                 बिल्वाष्टकम्
 यह महीना सावन का है। इन दिनों भगवान शिव जी की पूजा का विशेष महत्व होता है और बिल्वपत्र यानी बेल का पत्ता भगवान शिव को बहुत प्रिय है ।बेलपत्र को अर्पण करते समय बिल्वाष्टकम् मंत्र को बोला जाता है।
   
त्रिदलं  त्रिगुणाकारं त्रिनेत्र ं च त्रयायुधम ।
 त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्र ं शिवार्पणम्।।
 तीन दलवाला ,सत्त्व,रज एवं तमःस्वरूप,सूर्य,चन्द्र तथा अग्नि-त्रिनेत्रस्वरूप और आयुधत्रय स्वरूप ,तथा तीनोजन्मो के पापो को नष्ट करने वाला बिल्वपत्र मै भगवान शिव के लिये समर्पित करता हूँ।।१।।

   त्रिशाखैर्बिल्वपत्र ेश्च ह्मच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः।
शिवपूजां करिष्यामि बिल्वपत्रेणं शिवार्पणम्।।
 छिद्र रहित ,सुकोमल, तीन पत्ते वाले ,मंगल प्रदान करने वाले बिल्वपत्र से मैं भगवान शिव की पूजा करूंगा। यह बेलपत्र शिव को समर्पित करता हूं।

अखंडबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे ।
शुद्धयन्ति सर्वपापेभ्यो बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।३।।
अखंड बिल्व पत्र से नंदीकेश्वर भगवान की पूजा करने पर मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाते हैं। मैं बिल्वपत्र शिव को समर्पित करता हूं।

शालग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु अर्पयेत्।
सोमयज्ञमहापुण्यं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।४।।
 मेरे द्वारा किया गया भगवान शिव को यह बिल्वपत्र का समर्पण ,कदाचित ब्राह्मणों को शालिग्राम की शिला के समान तथा सोम यज्ञ के अनुष्ठान के समान महान पुण्य शाली हो। अतः मैं बिल्वपत्र भगवान शिव को समर्पित करता हूं।

दन्तिकोटिसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।
कोटिकन्यामहादानं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।५।।
मेरे द्वारा किया गया भगवान शिव को यह बिल्वपत्र का समर्पण ,हजारों करोड़ गजदान, सैकड़ों वाजपेय यज्ञ के अनुष्ठान तथा करोड़ों कन्याओं के महादान के समान हो। अतः मैं बिल्वपत्र भगवान शिव को समर्पित करता हूं।

लक्ष्म्याः स्तन्त उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्।
बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।।६।।
विष्णु -प्रिया भगवती लक्ष्मी के वक्षः स्थल से प्रादुर्भूत तथा महादेव जी के अत्यंत प्रिय बिल्व को मैं समर्पित करता हूं। यह बिल्वपत्र भगवान शिव को समर्पित है।

दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।
अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।७।।
बिल्ववृक्ष का दर्शन और उसका स्पर्श समस्त पापों को नष्ट करने वाला तथा शिव अपराध का संहार करने वाला है। यह बिल्वपत्र भगवान शिव को समर्पित है।

मुलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।
अग्रतःशिवरूपाय बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।८।।
बिल्व पत्र का मूल भाग ब्रह्म रूप, मध्य भाग विष्णु रूप एवं अग्रभाग शिव रूप है ,ऐसा बिल्वपत्र भगवान शिव को समर्पित है।
बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवलोकमवाप्नुयात्।।९।।
जो भगवान शिव के समीप इस पुण्य प्रदान करने वाले बिलवाष्टक  का पाठ करता है वह समस्त पापों से मुक्त होकर अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है।
 ।।इस प्रकार बिलवाष्टक  संपूर्ण हुआ।।


श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्त्रोत हिंदी में

                 श्री कृष्णा कृपा कटाक्ष स्त्रोत हिंदी में

 भावार्थ - बृज मंडल के भूषण तथा समस्त पापों के नाश करने वाले सच्चे भक्तों के चित्त में बिहार करने वाले आनंद देने वाले नंद नंदन का मैं सर्वदा भजन करता हूं। जिनके मस्तक पर मनोहर मोर पंखों के गुच्छे हैं ,जिनके हाथों में सुरीली मुरली है तथा जो प्रेम तरंगों के समुद्र है उन नटनगर श्री कृष्ण भगवान को मैं नमस्कार करता हूं।

 भावार्थ - कामदेव का गर्व नष्ट करने वाले, बड़े-बड़े चंचल लोचनो वाले ,ग्वाल बालों का शोक नष्ट करने वाले, कमल लोचन को मेरा नमस्कार है ।कर कमल पर गोवर्धन पर्वत धारण करने वाले ,मुस्कान युक्त सुंदर चितवन वाले, इंद्र का मान मर्दन करने वाले ,गजराज के सदृश मत्त श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

 भावार्थ- कदंब पुष्पों के कुंडल धारण करने वाले ,अत्यंत सुंदर गोल कपोल वाले ,ब्रिजांगनाओ के लिए ऐसे परम दुर्लभ श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है। ग्वाल बाल और श्री नंद राय जी के सहित मोदमयी मैया यशोदा जी को आनंद देने वाले श्री गोप नायक को मेरा नमस्कार है ।

भावार्थ - मेंरे हृदय में सदा अपने चरण कमलों को स्थापन करने वाले, सुंदर घूंगराली अलको वाले ,नंदलाल को मैं नमस्कार करता हूं ।समस्त दोषों को भस्म कर देने वाले, समस्त लोकों का पालन करने वाले, समस्त गोप कुमारो के हृदय तथा श्री नंद राय जी की वात्सल्य लालसा के आधार श्री कृष्ण को मेरा नमस्कार है ।

भावार्थ - भूमि का भार उतारने वाले ,भवसागर से तारने वाले ,कर्णधार श्री यशोदा किशोर चितचोर को मेरा नमस्कार है। कमनीय कटाक्ष चलाने की कला में प्रवीण ,सर्वदा दिव्य सखियों से सेवित ,नित्य नए-नए प्रतीत होने वाले नंदलाल को मेरा नमस्कार है ।

भावार्थ - गुणों की खान और आनंद की निधान कृपा करने वाले तथा कृपा पर (अथार्त कृपा करने के लिए तत्पर )देवताओं के शत्रुओं का नाश करने वाले गोप नंदन को मेरा नमस्कार है। नवीन गोप सखा, नटवर, नवीन खेल खेलने के लिए लालायित, घनश्याम अंग वाले बिजली सदृश्य सुंदर पितांबर धारी कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

 भावार्थ- समस्त गोपों को आनंदित करने वाले हृदय कमल को प्रफुल्लित करने वाले निकुंज के बीच में विराजमान प्रसन्नमन सूर्य के समान प्रकाशमान श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है ।संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले, वाणों के समान चोट करने वाली चित्वन वाले, मधुर मुरली में गीत गाने वाले, निकुंज नायक को नमस्कार करता हूं ।

भावार्थ- चतुर गोपीकाओं की मनोज्ञ पलकों पर शयन करने वाले, कुंज वन में बढीं हुई वह अग्नि को पान करने वाले तथा श्री वृषभानु किशोरी की अंग कांति से जिनके अंग झलक रहे हैं ,जिनके नेत्रों में अंजन शोभा दे रहा है। गजराज को मोक्ष देने वाले तथा श्री जी के साथ बिहार करने वाले श्री कृष्ण चंद्र भगवान को मेरा नमस्कार है।
 भावार्थ-  जहां कहीं भी जैसी परिस्थिति में मैं रहूं, सदा श्री कृष्ण चंद्र की सरस कथाओं का मेरे द्वारा सर्वदा गान होता रहे बस ऐसी कृपा रहे ।श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्त्रोत तथा श्री राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत इन दोनों सिद्ध स्त्रोतों को जो प्रात :काल उठकर भक्ति भाव में स्थित होकर नित्य पाठ करते हैं, उनको ही साक्षात श्री कृष्णचंद्र मिलते हैं।
।। जय श्री राधे।।

मंगलवार, 30 जुलाई 2019

श्री राधा कृपा कटाक्ष स्रोत हिंदी में

               श्री राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत हिंदी में

  भावार्थ- मुनींद्र वृंद जिनके चरणों की वंदना करते हैं तथा जो तीनों लोकों का शौक दूर करने वाली है मुस्कान युक्त प्रफुल्लित मुख कमल वाली निकुंज भवन में विलास करने वाली, राजा वृषभानु की राजकुमारी ,श्री बृज राजकुमार की हृदयेश्वरी श्री राधिके! कब मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र बनाओगी?
 भावार्थ -अशोक की वृक्ष लताओं से बने हुए 'लता मंदिर' में विराजमान और  मूँगे अग्नि तथा नवीन लाल पल्लवों के समान अरुण कांति युक्त कोमल चरणों वाली, भक्तों को अभीष्ट वर दान देने वाली तथा अभय दान देने के लिए उत्सुक रहने वाले कर- कमलो वाली अपार ऐश्वर्या की स्वामिनी श्री राधे मुझे कब अपने कृपा कटाक्ष का अधिकारी बनाओगी।

भावार्थ -प्रेम क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में बाँकी भृकुटी करके, आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहसा कटाक्ष रूपी बाणों की वर्षा से श्री नंद नंदन को निरंतर बस में करने वाली ,हे सर्वेश्वरी अपने कृपा कटाक्ष का पात्र मुझे कब बनाओगी ?

 भावार्थ- बिजली, स्वर्ण तथा चंपा के पुष्प के समान सुनहरी कांति से देदीप्यमान गोरे अंगो वाली अपने मुखारविंद की चांदनी से करोड़ों शरद चंद्र को जीतने वाली क्षण क्षण में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर के बच्चे के सदृश विलोचनो वाली, हे जग जननी! क्या कभी मुझे अपने कृपा कटाक्ष का अधिकारी बनाओगी।

भावार्थ- अपने अत्यंत रूप यौवन के मद से मत्त रहने वाली आनंद भरा मान ही जिनका सर्वोत्तम भूषण है, प्रीतम के अनुराग से रंगी हुई, विलास की प्रवीण अनन्य भक्त गोपीकाओं से धन्य हुए निकुंज राज्य की प्रेम कौतुक विद्या की विद्वान श्री राधिके! मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र कब बनाओगी?
भावार्थ- संपूर्ण हाव भावरुपी श्रृंगारों  तथा धीरता एवं हीरे की हारों से विभूषित अंगों वाली शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान गयनंदिनी के गण्ड स्थल के समान मनोहर पयोधरो वाली प्रशंसित मंद मुस्कान से परिपूर्णानंद सिंधु के सदृश श्री राधा! क्या मुझे अपनी कृपा से कृतार्थ करोगी?

भावार्थ- जल की लहरों से हिलते हुए कमल के नवीन नाल के समान जिनकी कोमल भुजाएं हैं, पवन से जैसे लता का एक अग्र भाग नाचता है ऐसे चंचल लोचनों से नीलिमा झलकाते हुए जो अवलोकन करती हैं ।ललचाने वाले, लुभाकर पीछे पीछे फिरने वाले, मिलन में मन को हरने वाले, मुग्ध मनमोहन को आश्रय देने वाली, हे वृषभानु किशोरी! कब अपने कृपा अवलोकन द्वारा मुझे मायाजाल से छुड़ाओगी ।

भावार्थ- स्वर्ण की मालाओं से विभूषित तथा तीन रेखाओं वाले शंख की छटा सदृश सुंदर कंठ वाली तथा जिनके कंठ में मंगलमय सूत्र बंधा हुआ है जिसमें तीन रंगों के रत्नों का भूषण लटक रहा है रत्नों से देदीप्यान किरणे निकल रही हैं (यह मंगल त्रसुत्र नव वधु को गले में बनाया जा रहा है) यह बृज की प्राचीन प्रथा है, दक्षिण में अभी यह प्रथा प्रचलित है तथा दिव्य पुष्पों के गुच्छे से हुए काले घुंघराले लहराते केशों वाली हे सर्वेश्वरी श्री राधे! कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से देखकर अपने चरण कमलों के दर्शन का अधिकारी बनाओगी

 भावार्थ- कटिमण्डल में मणिमय किंकणी सुशोभित है जिसमें सोने के फूल रत्नों से जड़े हुए लटक रहे हैं तथा उसकी प्रशंसनीय झंकार अत्यंत मनोहर गजेंद्र की सूंड के समान जिनकी जंघाये अत्यंत सुंदर है। ऐसी श्री राधे महारानी मुझ पर कृपा करके सब संसार सागर से पार लगाओगी?

 भावार्थ- अनेकों वेद मंत्रों की सुमधुर झंकार करने वाले स्वर्ण मय नूपुर चरणों में ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो मनोहर हंसों की पंक्ति गूंज रही है, चलते समय अंगों की छवि ऐसे लगती है मानो, स्वर्ण लता लहरा रही हो। हे जगदीश्वरी श्री राधे !क्या कभी मैं आपके चरण कमलों का दास हो सकूंगा?

 भावार्थ -अनंत कोटी वैकुंठ की स्वामिनी श्री लक्ष्मी जी, आप की पूजा करती हैं तथा  श्री पार्वती जी, इंद्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी पूजा कर वरदान पाया है। आपके चरण कमलों की एक उंगली के नख का भी ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धियां का समूह बढ़ने लगता है। हे करुणामयी !आपकब मुझको वात्सल्य रस भरी दृष्टि से देखोगी?

भावार्थ- सब प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी है संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी, स्वधा देवी की स्वामिनी, सब देवताओं की स्वामिनी , तीनों वेदों की वाणी की स्वामिनी प्रमाण शासन शास्त्र की स्वामिनी, श्री रमा देवी की स्वामिनी ,श्री क्षमा देवी के स्वामिनी और( अयोध्या के )प्रमोद वन की स्वामिनी अथार्त श्री सीता जी आप ही हैं,हे राधिके !कब मुझे कृपा कर अपनी शरण में स्वीकार कर पराभक्ति प्रदान करोगी ? हे बृजेश्वरी! हे बृज की अधिष्ठात्री श्री राधिके! आप को मेरा बारंबार प्रणाम है।

 भावार्थ- हे वृषभानु नंदिनी !मेरी इस विचित्र स्तुति को सुनकर सर्वदा के लिए मुझ दास को अपनी दया दृष्टि का अधिकारी बना लो ,बस आपकी दया ही से तो मेरे प्रारब्ध, संचित और क्रिया मान इन तीनों प्रकार के कर्मों का नाश हो जाएगा और उसी क्षण श्री कृष्ण चंद्र के नित्य मंडल दिव्य धाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा।

 भावार्थ -पूर्णिमा के दिन शुक्ल पक्ष की अष्टमी या दशमी को तथा दोनों की एकादशी और त्रयोदशी को जो शुद्ध बुद्धि वाला भक्त स्त्रोत का पाठ करेगा, वह जो भावना करेगा वही प्राप्त होगा ,अन्यथा निष्काम भावना से पाठ करने पर श्री राधा जी की दया दृष्टि से परा भक्ति प्राप्त होगी।

 भावार्थ- इस स्रोत से श्री राधा कृष्ण का साक्षात्कार होता है। उसकी विधि इस प्रकार है कि गोवर्धन पर्वत के निकट श्री राधा कुंड के जल में जंघाओ तक या नाभि पर्यंत या छाती तक या कंठ तक ,जल में खड़े होकर स्त्रोत का 100 बार पाठ करें ।इस प्रकार कुछ दिन पाठ करने पर संपूर्ण मनोवांछित पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं। ईश्वर की प्राप्ति होती है। दर्शनाथी भक्तों की इन्हीं से साक्षत श्री राधा जी का दर्शन होता है। श्री राधा जी प्रकट होकर प्रसन्नता पूर्वक महान वरदान देती हैं अथवा अपने चरणों का महावर भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं ।वरदान में केवल "अपनी प्रिय वस्तु दो" यही मांगना चाहिए। तत्काल ही श्यामसुंदर प्रकट होकर दर्शन देते हैं ,प्रसन्न होकर श्री ब्रिज राजकुमार अपने नित्य लीलाओं  में प्रवेश प्रदान करते हैं । इससे बढ़कर वैष्णव के लिए कोई भी वस्तु नहीं है ।किसी किसी को  अपने घर में ही 100 पाठ नित्य प्रति करने से कुछ ही दिनों में इसकी प्राप्ति हो जाती है। ।।जय श्री राधे।।

सोमवार, 29 जुलाई 2019

श्री राधा कवच

                          श्री राधा कवच हिंदी में

          


 पार्वती जी ने कहा- हे कैलाश वासिन! भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हे प्रभु । श्री राधिका जी का पवित्र कवच मुझको सुनाओ(1) हे त्रिशूल और धनुष धारण करने वाले नाथ! मैं आपकी शरण में हूं, यदि मुझ पर पूर्ण कृपा है तो दुख के भय से मेरी रक्षा कीजिए(2)
शिव उवाच
 श्री शिवजी  बोले- हे गिरिराज कुमारी सुनो! यह वह प्राचीन कवच तुमको सुना रहा हूं जो बड़ा पवित्र है। संपूर्ण पापों को हरने वाला है और सब प्रकार से रक्षा करने वाला है।(3) सुख भोग और मोक्ष का साधन एवं श्री श्याम सुंदर की भक्ति को देने वाला है । हे देवी यह कवच त्रिलोकी का आकर्षण कर सकता है और साधक को प्रभु की सन्नधि में पहुंचा देता है।(4)
 यह सभी शत्रु को डराने वाला, सर्वत्र विजय प्राप्त कराने वाला और सभी प्राणियों की मनोवृति यों को हराने वाला है। (5)इस कवच के पढ़ने से सदा ही आनंद रहता है। सालोंक्य  सृष्टि सामीप्य ,सायुज्य चारों ही प्रकार की मुक्ति प्राप्त हो जाती है एवं अनेकों राजसूय और अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।(6)
इस कवच के बिना यदि कोई केवल श्री राधा मंत्र को जपे तो उसे उसका फल नहीं मिलता, और पद- पद पर विघ्न बाधाएं उपस्थित होने लगती हैं ।(7) श्री राधा कवच का मैं( महादेव) ऋषि हूं ,अनुष्टुप छंद है, श्री राधा देवता है, रां बीज और रां ही कीलक है।(8)
धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन सब में ही इसका विनियोग किया जाता है।( कवच के मूल शब्दों का भावार्थ इस प्रकार जानना चाहिए )श्री राधा जी मेरे मस्तक और ललाट की रक्षा करें, श्रीमती दोनों नेत्रों की और गोपेंद्र नंदिनी दोनों कानों की रक्षा करें और श्री हरि प्रिया जी नासिका की और शशि शोभना जी दोनों भृकुटियों की रक्षा करें ।(10)
श्री कृपादेवि ऊपर के होठ की और गोपीका जी नीचे के होंठ की रक्षा करें, ऊपर के दांतो की श्री वृषभानु सुता और ठोड़ी की श्री गोप नंदिनी जी रक्षा करें ,कपोलो (गालों) की चंद्रावली जी रक्षा करें और श्री कृष्ण प्रिया जी जीभ की रक्षा करें ।श्री हरि प्रिया कंठ की और विजया जी हृदय की रक्षा करें।(12) चंद्र वदना दोनों भुजाओं की, सुवलस्वसा पेट की, योगान्वता कमर की और सौभद्रिका दोनों पैरों की रक्षा करें (13)चंद्रमुखी नखों की गोपा वल्लभा  टखनों की, जया घुटनों की और गोपी सभी ओर से मेरी रक्षा करें ।(14)सुभप्रदा पीठ की, कुक्षयों की, श्रीकांत वल्लभा जानू देश की ,जया और हरिणी मेरी सभी ओर से रक्षा करें।(16) वाणी, वचनों की रक्षा करें, धनेश्वरी खजाने की, कृष्ण रता पूर्व दिशा की, और कृष्ण प्राणा पश्चिमी दिशा की रक्षा करें।(16) उत्तर दिशा की हरिता ,दक्षिण दिशा के वृष भानुजा, रात्रि में चंद्रावली और क्षवेडित-मेखला  दिन में रक्षा करें ।(17) मध्यान्ह में सौभाग्यदा , सांय  में कामरुपणी, प्रातः काल में रुद्री तथा रात्रि  के अवसान होने पर गोपीनी हमारी रक्षा करें।(18) संगम में हेतु दा दिन वृद्धि के अवसर में केतु माला अपराह्न में हमें शेषा और संपूर्ण संधियों में शमिता रक्षा करें ।(19)उपभोग के समय योगिनी ,रती प्रदा रति के समय, योग के समय में रत्नावली और कामेशी एवं कोतुकी नित्य प्रति मेरी रक्षा करें।(20) कृष्ण मानसा श्री राधिका जी सदा सर्वदा सब कामों में मेरी रक्षा करें ।जिन स्थलों के नामों की चर्चा नहीं की गई है उन सब की श्री ललिता जी रक्षा करें। हे देवी! यह अद्भुत कवच हमने तुम्हें सुना दिया (21)इसका नाम है सर्व रक्षा कारक, यदि इसे कोई प्रातः मध्यान्ह और सायंकाल पढ़ता है, तो इससे बड़ी भारी रक्षा हो जाती है ।(22)श्री राधा कवच के पढ़ने से उस साधक के मन में जैसी कामना हो वैसे ही सिद्धि हो जाती है। राजद्वार, सभा संग्राम और शत्रुओं द्वारा पहुंचाए हुए संकट के समय, प्राण और धन विनिष्ट होने के समय, यदि मनुष्य यत्न से इसका पाठ करें ,तो हे देवी उनका कार्य सिद्ध हो जाता है और उसको कहीं भी भय नहीं रहता।(23,24) सचमुच उसने श्री राधिका जी की आराधना कर ली, गंगा स्नान और भगवान के नाम से जो फल प्राप्त होता है ,निसंदेह वह फल इस कवच के पढ़ने वाले को मिल जाता है। हल्दी ,गोरोचन ,चंदन से भोजपत्र पर इस कवच को लिखकर जो कोई मस्तक भुजा और कंठ में बांध ले हे देव वह हरि के समान हो जाता है।(25,26,27) ब्रह्मा जी इस कवच के प्रसाद से सृष्टि रचते हैं और विष्णु पालन करते हैं और मैं (शंकर )इसी कवच के प्रसाद से सृष्टि का संहार करता हूं ।यह कवच विशुद्ध वैष्णव को देना चाहिए जिनमें वैराग्य आदि गुण हो, जिसकी बुद्धि व्यग्र ना हो ,नहीं तो अधिकारी को देने वाला स्वयं नष्ट हो जाता है। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए।( श्री राधा कवच टीका का संपूर्ण हुई) जय श्री राधे

Featured Post

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भावार्थ के साथ

                    गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र   भावार्थ के साथ गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में आता है। इसमें एक ...