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शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2019

भजन सिमरन करने से क्या खास होता है?

            भजन सिमरन करने से क्या खास होता है?


अर्जुन श्री कृष्णजी से बोले :-"केशव, जब मृत्यु सभी की होनी है तो हम सत्संग भजन सेवा सिमरन क्यों करे, जो इंसान मौज मस्ती करता है मृत्यु तो उसकी भी होगी..!"

"श्री कृष्णजी ने अर्जुन से कहा:-"हे पार्थ, बिल्ली जब चूहे को पकड़ती है तो दांतो से पकड़कर उसे मार कर खा जाती है, लेकिन उन्ही दांतो से जब अपने बच्चे को पकड़ती है तो उसे मारती नहीं बहुत ही नाजुक तरीके से एक जगह से दूसरी जगह पंहुचा देती है..!दांत भी वही है मुह भी वही है पर परिणाम अलग अलग। ठीक उसी प्रकार मृत्यु भी सभी की होगी ,पर एक प्रभु के धाम में और दूसरा 84 के चक्कर में!
 तो यह आपको निर्णय लेना है कि प्रभु का नाम लेते हुए इस जीवन का बिताना है ,या सिर्फ मौज मस्ती करते हुए। मौज मस्ती भी करो, लेकिन प्रभु को कभी नहीं भूले।पूरे दिन में एक समय निश्चित कर लो कि दिन में एक बार अपने प्रभु को जरूर याद करना है और उस को धन्यवाद करना है कि उन्होंने आपको इतना सामर्थ्य वान बनाया कि आप मौज मस्ती कर रहे हैं ।😊
जय श्री राधे🙏🌹

साधना सफल कैसे होती है

                    साधना सफल कैसे होती ?

               
          साधनाऐं देवी-देवताओं की, मन्त्र, तंत्र की जो कर्मकांडों एवं अनुष्ठानों के साथ की जाती है, पर साधनाएँ साधक की आत्मिक स्थिति के अनुसार ही सफल होती हैं।
            श्रद्धा और विश्वास , साहस और धैर्य, एकाग्रता और स्थिरता, दृढ़ता और संकल्प ही वे तत्व हैं, जिनके आधार पर यह साधनाएँ सफल होती है।
            यदि साधक का संकल्प दुर्बल हो, श्रद्धा और विश्वास ढीलें हों, चित्त अस्थिर और अधीर रहे तो विधि-विधान सही होते हुए भी सही परिणाम नहीं मिलता।
         सच तो यह है कि आत्मा के अंतरंग प्रदेश में ही उन अदृश्य दैवी-शक्तियों का निवास होता है जो हमें कहीं बाहर रहती दिखती है।
जय श्री राधे

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2019

मुश्किलों में

मुश्किलों में



मुश्किलें बिन बुलाए मेहमान की तरह होती हैं, जो हमें बिना बताए परेशान करने चली आती हैं । और तब तक नहीं जाती हैं, जब तक कि हम उनका अपने विश्वास ,हौसला और परिश्रम से मुकाबला नहीं करते हैं ॥

लेकिन मुश्किलों की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि वो हमें पहले से ज्यादा सतर्क, पहले से ज्यादा मजबूत और पहले से ज्यादा होशियार बना देती हैं. और इनकी सबसे अच्छी बात ये होती है कि, जाते-जाते हमें कोई-न-कोई सबक जरुर सीखा देती हैं।
।।राधे राधे।।

प्रकृति के तीन कड़वें नियम



प्रकृति के तीन कड़वे नियम जो सत्य है

1-: प्रकृति  का पहला  नियम-
यदि खेत में  बीज न डालें जाएं  तो कुदरत  उसे *घास-फूस* से  भर देती हैं...!!
ठीक  उसी  तरह से  दिमाग  में *सकारात्मक* विचार  न भरे  जाएँ  तो *नकारात्मक*  विचार  अपनी  जगह  बना ही लेती है...!!

2-: प्रकृति  का दूसरा  नियम-
जिसके  पास  जो होता है...!!
  वह वही बांटता  है....!!*
सुखी *सुख* बांटता है...
दुःखी *दुःख* बांटता है..
ज्ञानी *ज्ञान* बांटता है..
भ्रमित *भ्रम* बांटता है..
भयभीत *भय* बांटता हैं......!!


 3-: प्रकृति  का तीसरा नियम-
आपको जीवन से जो कुछ भी मिलें उसे पचाना  सीखें क्योंकि भोजन* न पचने  पर रोग बढते है...!
पैसा न *पचने* पर दिखावा बढता है...!
बात  न *पचने* पर चुगली  बढती है...!
प्रशंसा  न *पचने* पर  अंहकार  बढता है....!
निंदा  न *पचने* पर  दुश्मनी  बढती है...!
राज न *पचने* पर  खतरा  बढता है...!
दुःख  न *पचने* पर  निराशा बढती है...!
और सुख न *पचने* पर  पाप बढता है...!
।।राधे राधे।।

आज का शुभ विचार




यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम्।
समदृष्टेस्तदा पुंस: सर्वा: सुखमया दिश:॥

अर्थात्:-- जो मनुष्य किसी भी जीव के प्रति अमंगल भावना नही रखता, जो मनुष्य सभी की ओर सम्यक् दॄष्टीसे देखता है, ऐसे मनुष्य को सब ओर सुख ही सुख है।
।।जय श्री राधे।।

बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

परिपक्वता यानि मैच्योरिटी किसे कहते हैं?

आदि शंकराचार्य जी से प्रश्न किया गया कि "परिपक्वता" का क्या अर्थ है?

आदि शंकराचार्य जी ने उत्तर दिया –

1. परिपक्वता वह है - जब आप दूसरों को बदलने का प्रयास करना बंद कर दे, इसके बजाय स्वयं को बदलने पर ध्यान केन्द्रित करें.
2. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों को, जैसे हैं, वैसा ही स्वीकार करें.
3. परिपक्वता वह है – जब आप यह समझे कि प्रत्येक व्यक्ति उसकी सोच अनुसार सही हैं.
4. परिपक्वता वह है – जब आप "जाने दो" वाले सिद्धांत को सीख लें.
5. परिपक्वता वह है – जब आप रिश्तों से लेने की उम्मीदों को अलग कर दें और केवल देने की सोच रखे.
6. परिपक्वता वह है – जब आप यह समझ लें कि आप जो भी करते हैं, वह आपकी स्वयं की शांति के लिए है.
7. परिपक्वता वह है – जब आप संसार को यह सिद्ध करना बंद कर दें कि आप कितने अधिक बुद्धिमान है.
8. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों से उनकी स्वीकृति लेना बंद कर दे.
9. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर दें.
10. परिपक्वता वह है – जब आप स्वयं में शांत है.
11. परिपक्वता वह है – जब आप जरूरतों और चाहतों के बीच का अंतर करने में सक्षम हो जाए और अपनी चाहतो को छोड़ने को तैयार हो.
12. आप तब परिपक्वता प्राप्त करते हैं – जब आप अपनी ख़ुशी को सांसारिक वस्तुओं से जोड़ना बंद कर दें.

नवरात्र क्या है?

नवरात्र या नवरात्रि →
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है।

नवरात्र क्या है →

 पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व
सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में
साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं।

इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं,
अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल
और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की
जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।

नौ दिन या रात →
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या
पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम
चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है।

 यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है।
रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य
द्वारों वाला कहा गया है।
इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी
शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है।

इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में,
शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू
रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों
की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है।
 इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए
 नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।

शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन,
सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं
 किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता  l

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