> परमात्मा और जीवन"ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव

यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

प्रभु से प्रार्थना करने पर लाभ




श्री राधे, पाप का रास्ता छोड़ कर के हमें पुण्य के रास्ते पर चलना चाहिए और चलने का हमारा सामर्थ्य नहीं है। अगर हम कहें कि हम से नहीं चला जा सकता, हम से नहीं बन सकता। जाने अनजाने पाप होते रहते हैं। इसके लिए हमें भगवान से प्रार्थना करते रहने चाहिए। जो हमारे बस की नहीं रह जाती है उसके लिए हम क्या करते हैं? भगवान से प्रार्थना करते हैं। कोई काम है, हमारे करे से नहीं हो रहा है। हमारे बनाए से नहीं बन रहा है। तो हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ठाकुर जी कृपा करें ,हमारा काम बन जाए। इसी तरह से सच के रास्ते पर, पुण्य के रास्ते पर, चलते हम से नहीं बन रहा है। तो पाप के रास्ते से हम बच नहीं पा रहे हैं इसके वास्ते भगवान से हमें प्रार्थना करनी चाहिए ।हर समय हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए। ईश्वर हमें पाप के रास्ते से चलने पर बचाएगा। प्रार्थना में अहंकार नहीं होना चाहिए, प्रार्थना के समय दीनता होनी चाहिए। प्रार्थना की बहुत बड़ी महिमा है ।इतनी महिमा है कि पूजा पद्धति में अनंत उपचार हो जाते हैं।राजा लोग अनंत उपचार से पूजा करते हैं लेकिन साधारण इंसान पांच उपचारों से ही पूजा कर देता है। पाँच ही वस्तु रहती है- जल चढ़ा दिया, चंदन चढ़ा दिया, फूल चढ़ा दिया, आरती कर ली, भोग लगा दिया। इन पांच उपचारों के साथ या षोडशोपचारों के साथ या राज उपचार के साथ सब के साथ, अगर आप प्रार्थना नहीं करें, तो भगवान नहीं मानेंगे आप लोग सामने रख दें और कुछ नहीं बोले, ठाकुर जी नहीं खाएंगे। बिना प्रार्थना के भगवान किसी भी उपचार को चाहे भोग हो, जल हो, चंदन हो, बिना प्रार्थना के ईश्वर स्वीकार नहीं करता है। और मंत्र पढ़ने की जो विधि है वह प्रार्थना ही है। पूजा करते समय वैदिक, तांत्रिक, अलौकिक, सब प्रकार की पूजा मंत्र द्वारा की जाती है और इसे ईश्वर स्वीकार करता है। आपको पुराणों की भाषा में, मंत्रों की भाषा में नहीं आता है। तो अपनी भाषा में प्रार्थना करो, कि प्रभु यह जो भी मैं आपको दे रहा हूं। अर्पण कर रहा हूं यह आप ही की वस्तु है। आप इसे स्वीकार करो।भगवान को प्रणाम करते समय,भगवान से कहिए कि मैं आपका हूं।आप मुझे स्वीकार कर लीजिए। इस प्रकार कहने पर भगवान स्वीकार कर लेते हैं। जीव को जब भगवान स्वीकार करते हैं तो वह पवित्र हो जाता है। तो प्रार्थना करनी चाहिए ।अगर आपके पास फल, फूल ,भोग  चंदन कुछ नहीं है। केवल एक प्रार्थना है, तो भगवान से प्रार्थना कीजिए, तब भी भगवान प्रसन्न हो जाते हैं ।इसलिए प्रार्थना का बहुत बड़ा महत्व है।
(हमारे दादा गुरु भक्त माली जी महाराज मलूक पीठ वृंदावन के श्री मुख से)

मंगलवार, 5 मई 2020

दुर्गा कवच का पाठ हिदी में

                          दुर्गा कवच (हिंदी में )

आजकल पूरे विश्व में करोना जैसी महामारी फैली हुई है और सभी परेशान है, हताश है अपने अपने तरीके से सभी पराक्रम कर रहे हैं, इस महामारी  से लड़ रहे हैं ।इसी के साथ ही हमें दुर्गा माता कवच का पाठ नित्य करना चाहिए क्योंकि वह हमारी मां है, अंबे मां, जगदंबे मां है, वह हमारी पुकार को जरूर सुनेगी और हमारी इस महामारी से हमारी रक्षा करेंगी।
ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है।
 मार्कंडेय जी ने कहा- पितामह, जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्य की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो ऐसा कोई साधन मुझे बताइए ।
ब्रह्माजी बोले- ब्राह्मण ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है ।जो गोपनीय से भी परम गोपनीय,पवित्र तथा संपूर्ण प्राणियों का उपकार करने वाला है।महामुने! उसे श्रवण करो।। देवी की नौ मूर्तियां हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहते हैं। उनके पृथक पृथक नाम बतलाए जाते हैं। प्रथम नाम 'शैलपुत्री' दूसरी मूर्ति का नाम 'ब्रह्मचारिणी' हैं . तीसरा स्वररुप 'चंद्रघंटा' के नाम से प्रसिद्ध है. । चौथी मूर्ति को 'कुष्मांडा' कहते हैं ,पांचवी दुर्गा का नाम 'स्कन्दमाता' है, देवी के छठे रूप को' कात्यायनी' कहते हैं सातंवा 'कालरात्रि' और आठवां स्वरूप 'महागौरी' के नाम से प्रसिद्ध है। नवीदुर्गा का नाम 'सिद्धिदात्री' है ।यह नाम वेदभगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं ।जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो। रणभूमि में शत्रु से घिर गया हो,तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हैं उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता। युद्ध के समय, संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई भी विपत्ति नहीं आती।उन्हें शोंक, दुख और भय की प्राप्ति नहीं होती। जिन्होंने भक्ति पूर्वक देवी का स्मरण किया है उनका निश्चय ही अभुदय होता है देवेश्वरी जो तुम्हारा चिंतन करते हैं, उनकी तुम निसंदेह रक्षा करती हो। चामुंडा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैसें  सवारी करती हैं। ऐंद्री का वाहन एरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरूड़ पर आती हैं ।माहेश्वरी वृषभ पर आसन जमाती हैं कुमारी का वाहन मयूर है। भगवान विष्णु की पत्नि लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं ,और हाथों में कमल धारण किए हैं।वृषभ पर सवार ईश्वरी देवी ने श्वेत रुप धारण कर रखा है । ब्राह्मणी देवी हंस पर बैठी हुई है और  विभिन्न प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं। इस प्रकार यह सभी माताएं सब प्रकार की योग शक्तियों से संपन्न है इनके सिवा और भी बहुत सी देवियां है जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं।यह संपूर्ण देवियां क्रोध में भरी हुई है और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती है।यह शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल  खेतक, और तोमर ,परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल उत्तम धनुष आदि अस्त्र शस्त्र अपने हाथों में धारण किए रहती हैं। देत्यो के शरीर का नाश करना,भक्तों को अभय दान देना और देवताओं का कल्याण करना।यही उनके अस्त्र- शस्त्र धारण करने का उद्देश्य है। कवच का पाठ आरंभ करने से पहले इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए (महान रूद्र रूप, अत्यंत गूढ़ पराक्रम,महान बल और महान उत्साह वाली देवी तुम महान भय का नाश करने वाली हो ,तुम्हें नमस्कार है। तुम्हारी और देखना भी कठिन है,शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदंबिके हमारी रक्षा करो)पूर्व दिशा में इंद्र शक्ति हमारी रक्षा करें। अग्निकोण में अग्णिशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही तथा नेऋत्य कोण  खड़गधारण मेरी रक्षा करें। पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्य कोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करें उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारनी देवी रक्षा करें। ब्राह्मणी ऊपर से, नीचे की ओर  वैष्णवी हमारी रक्षा करें। इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुंडा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे से और विजय पीछे की ओर से मेरी रक्षा करें। वाम भाग में अजीता और दक्षिण भाग में अपराजिता मेरी रक्षा करें, उधौतिनी शिखा की रक्षा करें ।उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करें। ललाट में माला धारी रक्षा करें और यशस्विनी देवी मेरे मन की रक्षा करें। दोनों भवों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करें । कानों में द्वारबासिनी रक्षा करें कालिका देवी कपोलो की तथा भगवती शांकरी कानों के मूल भाग की रक्षा करें, नासिका में सुगंधा और ऊपर के ओठ में चर्चिका देवी रक्षा करें, नीचे की ओठ में अमृत कला और जीव्हा में सरस्वती देवी रक्षा करें, कौमारी दांतो की और चंडिका देवी कंठ प्रदेश की रक्षा करें। चित्रघण्टा गले की घाँटी और महामाया तालु में रहकर रक्षा करे। कामाक्षी ठोड़ी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करें,भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धारी पृष्ठ वंश मे( मेरूदंड) में रहकर रक्षा करें,कंठ के बाहरी में भाग में नीलग्रीवी और कंठ की नली में नलकूबरी रक्षा करें, दोनों कंधों में खडि्गनी और मेरी दोनों भुजाओं की व्रजधारिणी रक्षा करें। दोनों हाथों में दण्डिनी और अंगुलियों की अंबिका देवी रक्षा करें, शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें कुलेश्वरी कुक्षी (पेट)में रहकर रक्षा करें। महादेवी दोनों स्तनों की और शोक विनाशनी देवी मन की रक्षा करें, ललिता देवी ह्रदय में और शूल धारिणी उदर में रहकर रक्षा करें, नाभि में कामिनी और  गुह्यभाग की वह गुह्येश्वरी रक्षा करें, पूतना और कामिका लिंग और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें।
भगवती कटिभाग में और विंध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें संपूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी दोनों पिंडलियों की रक्षा करें, नारसिंही दोनों घुटनों की और तेजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठ भाग की रक्षा करें, श्रीदेवी पैरों की अंगुलियों में और तलवासनी पैरों के तलवों में रहकर रक्षा करें, अपनी दाढो़ के कारण भयंकर दिखाई देने वाली दृंष्टा कराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशनी देवी केशो की रक्षा करें रोमावलियों के छिद्रों में कोबेरी और त्वचा की बागेश्वरी देवी रक्षा करें ,पार्वती देवी रक्त,मज्जा, वसा ,मांस  हड्डी और मेद की रक्षा करें ,आंतों की कालरात्रि और पित्त की मुक्तेश्वरी देवी रक्षा करें ,मूलाधार आदि कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणि देवी स्थित होकर रक्षा करें, नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करें, जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता वह अभेध्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करें।
ब्राह्मणी आप मेरे वीर्य की रक्षा करें, छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्म धारणी देवी मेरे अहंकार मन और बुद्धि की रक्षा करें, हाथ में व्रज धारण करने वाली व्रजहता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान,वायु की रक्षा करें। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करें, रस,रूप ,गंध ,शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें, तथा सत्व गुण रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करें ।वाराही आयु की रक्षा करें, वैष्णवी देवी धर्म की रक्षा करें, तथा  चक्रधारण करने वाली देवी यश ,कीर्ति, लक्ष्मी ,धन तथा विद्या की रक्षा करें, इंद्राणी आप मेरे गोत्र की रक्षा करें ।चण्डिके आप पशु और पक्षियों की रक्षा करें ,महालक्ष्मी पुत्र और पुत्री की रक्षा करें ,भैरवी पत्नी/ पति की रक्षा करें, मेरे पथ की सुपथा और मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करें ,राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करें। तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी संपूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें।
देवी ! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है, वह सब आपके द्वारा सुरक्षित हो, क्योंकि तुम विजय शालिनी और पाप नाशिनी हो। यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी ना जाए । कवच का पाठ करके ही यात्रा करें। कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहां जहां भी जाता है ,वहां-वहां उसे धन लाभ होता है तथा संपूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह जिस जिस अभीष्ट वस्तु का चिंतन करता है, उस उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलनारहित महान  ऐश्वर्य का भागी होता है। सब ओर से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथागत तीनो लोक में पूजनीय होता है। देविका यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियम पूर्वक तीनों संध्याओ के समय श्रद्धा के साथ का पाठ करता है ,उसे देवी कला प्राप्त होती है तथा तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता है।
इसलिए आप सब से विन्रम निवेदन है कि प्रतिदिन इस कवच का पाठ अवश्य करें।

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप

                   (  ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप, संभल ना कहीं तुम्हारे जीवन में रात ना हो जाए?


एक दंपत्ति दिवाली की खरीदारी करने की हड़बड़ी में थे। पति ने पत्नी से जल्दी करने को कहा और कमरे में बाहर निकल गया, तभी बाहर लॉन में बैठी 'मां' पर उसकी नजर पड़ी।
कुछ सोचते हुए पति वापस कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला 'शालू! तुमने मां से पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए? शालिनी बोली, नहीं पूछा। अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा, दो वक्त की रोटी और 2 जोड़ी कपड़े। इसमें पूछने वाली क्या बात है?
 वह बोला 'यह बात नहीं है शालू... मां पहली बार दिवाली पर हमारे घर रुकी हुई है, वरना तो हर बार गांव में ही रहती हैं, तो औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती ।
' अरे, इतना ही मां पर प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यों नहीं पूछ लेते',झल्लाकर चीखी थी शालू, और कंधे पर हैंड बैग लटकाकर हुए तेजी से बाहर निकल आई।
 सूरज मां के पास जाकर बोला,' मां हम लोग दिवाली की खरीदारी करने के लिए बाजार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो बताइए। माँ बीच में ही बोल पड़ी,' मुझे कुछ नहीं चाहिए ।बेटा- सोच लो कुछ चाहिए, तो बता दीजिए।
 सूरज के बहुत जोर देने पर मां बोली, ठीक है तुम रुको, मैं लिख कर देती हूं ।तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है कहीं भूल ना जाओ। कहकर सूरज की मां अपने कमरे में चली गई और कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्टसूरज को थमा दी। सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, 'देखा मां को भी कुछ चाहिए था ,पर बोल नहीं रही थी। मेरी जिद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक जिंदा रहता है रोटी और कपड़े के अलावा भी उसे बहुत कुछ चाहिए होता है।
 अच्छा बाबा ठीक है, पहले मैं अपनी जरूरत का सामान लूंगी, बाद में आप अपनी मां की लिस्ट देखते रहना। पूरी खरीदारी करने के बाद शालिनी बोली,' अब मैं बहुत थक गई हूं ,मैं कार में एसी चालू करके बैठी हूं। आप मांजी का समान देख लो। अरे चलते हैं ,अच्छा देखता हूं माँ ने इस दिवाली पर क्या मंगवाया है , कहकर मां की लिखी पर्ची जेब से निकालता है ,पता नहीं क्या-क्या मंगाया होगा। जरूर अपने गांव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मंगवाए होंगे। 'और बनो श्रवण कुमार,'के गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी, यह क्या सूरज की आंखों में आंसू और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते से काँप रहे थे ,पूरा शरीर कांप रहा था।
शालिनी बहुत घबरा गई,' क्या हुआ, ऐसा क्या मांग लिया है तुम्हारी मां ने?' कहकर हाथ से पर्ची झपट ली, हैरान थी शालिनी, की इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे। पर्ची में लिखा था... बेटा सूरज! मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम जिद कर रहे हो तो तुम्हारी शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ पल ले आना। ढलती हुई शाम हूं मैं, मुझे गहराते अंधेरे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है ,हर पल पर अपनी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर... जानती हूँ कि टाला नहीं जा सकता ,पूर्ण सत्य है, पर अकेलेपन में बहुत घबराहट होती है। सूरज! तो जब तक तुम्हारे घर पर हूं, कुछ पल बैठकर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही, मेरे बुढ़ापे का अकेलापन बांट लिया करो। बिन दीप जलाए ही रोशन हो जाएगी मेरे जीवन की सांझ। कितने साल हो गए हैं बेटा, तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हाथी तेरे सर को सहलाऊँ। एक बार फिर से इतराए हुए मेरा हृदय मेरे अपनों को करीब बहुत करीब पाकर।और  मुस्कुराए और फिर मैं मौत के गले मुस्कुराती हुई लगूँ। क्या पता अगली दिवाली तक रहूं या ना रहूं। पर्ची की आखिरी लाइन पढ़ते-पढ़ते शालीनी फफक कर रो पड़ी।
 ऐसी होती है माँ। हम लोग अपने घर के विशाल हृदय वाले लोग, जिनको हम बूढ़े और बुुद्या श्रेणी में रखते हैं, वे हमारी जीवन के कल्पतरु हैं। उनको यथोचित सम्मान आदर और देखभाल करें। यकीन मानिए हमारे भी बूढ़े होने के दिन नजदीक ही हैं। उनकी तैयारियां आज से ही कर ले। इसमें कोई शक नहीं है ,हमारे अच्छे बुरे कर्म देर सवेरे हमारे पास ही लौट कर आते हैं।
जय श्री राधे।।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

हम कैसी भक्ति से प्रभु को आकर्षित करें?

                 हम कैसी भक्ति से प्रभु को आकर्षित करें?



वृन्दावन में संत है -प्रेमानंदजी महाराज,कभी आपको समय मिलें तो उनका youtube chanle है।उनको जरूर सुनिएगा।आपके बहुत से सवालों के जवाब मिल जाऐंगें।उनकी एक video आपके समक्ष भेज़ रही हूँ। सुनिएगा जरुर,और अपने विचार जरूर बताइएगा।
https://youtu.be/-oX_xUsgEHwhttps://youtu.be/-oX_xUsgEHw

रविवार, 19 अप्रैल 2020

                           हरे कृष्णा श्री राधे



 हम औषधि के देवता भगवान धन्वंतरि के प्रति 1000 प्रार्थनाओं की एक कड़ी अर्पित कर रहे हैं । हमारा उनसे विनम्र निवेदन है कि वे कोरोना वायरस कोविड19 से हम सभी को सुरक्षित रखें।  कृपया यह प्रार्थना बोलकर इसे अन्य लोगों के पास भेज दें ताकि हम सभी मिलकर अपनी रक्षा के लिए उनसे निवेदन कर सकें।


ॐ नमो भगवते
महा सुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरये
अमृत कलश हस्ताय
सर्व भय विनाशाय
सर्व रोग निवारणाय
त्रैलोक्य पतये
त्रैलोक्य निधये
श्री महा विष्णु स्वरूप
श्री धन्वंतरि  स्वरुप
श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा


"अनुवाद"-


मैं उन भगवान धन्वंतरि को सादर नमन करता हूं जो भगवान विष्णु के अवतार हैं और जिन्हें *सुदर्शन वासुदेव धनवंतरी* के नाम से जाना जाता है । आपके हाथों में अमरता के अमृत से भरा कलश है । हे ईश्वर आप सभी रोगों और भय से मुक्ति देने वाले हैं। आप तीनों लोगों के रक्षक हैं और सभी जीवों के शुभचिंतक हैं। आप आयुर्वेद के अधिपति हैं और भगवान विष्णु के अवतार हैं ।आप सभी जीवो के लिए परम कल्याणकारी हैं ।हम सभी आपकी आराधना करते हुए सभी के कल्याण के लिए आपसे निवेदन  करते हैं।

शनिवार, 28 मार्च 2020

शिव तांडव कब और कैसे शुरू हुआ?

                  शिव तांडव  कैसे शुरू हुआ?
                     शिव तांडव नृत्य की कथा




दारूक नामक एक दैत्य असुरों में उत्पन्न हुआ। तपस्या से पराक्रम प्राप्त करके वह असुर देवताओं तथा सभी को पीड़ित करने लगा। उस समय वह दारुक, ब्रह्मा, ईशान, कुमार ,विष्णु, यम, इंद्र आदि के पास पहुंच कर उनको सताने लगा। इससे वह देवता बहुत पीड़ित हुए,वह असुर स्त्रीवध्य है, ऐसा सोचकर स्त्रीरूप धारी तथा युद्ध के लिए स्थित ब्रह्मा जी आदि के साथ में ,असुर युद्ध करने लगा। तब उसके द्वारा पीड़ित किए गए सभी देवता  ब्रह्मा जी के पास पहुंचकर उनसे सबकुछ निवेदन करके , उमापति  के पास जाकर ,पितामह को आगे करके (शिव) की स्तुति करने लगे।इसके बाद देवेश के निकट जाकर अत्यन्त विन्रम भाव से विनती करने लगे-" हे भगवन् ! दारुक महाभयंकर है; हम लोग उससे पहले ही पराजित हो चुके है।स्त्री के द्वारा वध्य उस दारुक का संहार करके आप हम लोगों की रक्षा कीजियें ।।"
बह्मा जी की प्रार्थना सुनकर महादेव ,देवी गिरिजा से हँसते हुए कहा-'हे शुभे ! मैं सभी लोगो के हित के लिए इस स्त्री वध्य दारुक के वध हेतु आज आपसे प्रार्थना करता हूँ।'
तब उनका वचन सुनकर संसार को उत्पन्न करने वाली उन देवेश्वरी ने जन्म के लिए तत्पर होकर शिव के शरीर में प्रवेश किया। वे ( पार्वती) देवताओं मे श्रेष्ठ देवेश्वर में अपने सोलहवें अंश से प्रविष्ट हुई, उस समय ब्रह्मा तथा  इंद्र आदि प्रधान देवता भी इसे नहीं समझ पाए। मंगलमय पार्वती जी को शंभू के समीप देखकर सब कुछ जानने वाले ब्रह्मा भी उनके माया से मोहित हो गए थे। उन महादेव के शरीर में पदस्थ हुए उन पार्वती ने उनके कंठ में स्थित विष से अपने शरीर को बनाया। इसके बाद उन पार्वती को विषभूता जानकर  शिव ने अपने तीसरे नेत्र से  कृष्ण वर्ण के  कंठ वाली काली का प्रादुर्भाव हुआ । उस समय विपुल विजयश्री भी उत्पन्न हुई । अब असिद्धि के कारण देत्यों की  पराजय निश्चित है, इससे भवानी तथा परमेश्वर शिव को प्रसंता हुई। विष से अलंकृत कृष्ण वर्ण के कंठ वाली तथा अग्नि के सदृश स्वरूप वाली  काली को देखकर सभी देवता  और विष्णु, ब्रह्मा, देवता भी उस समय भय के कारण भागने लगे।
 उनके ललाट में शिव की भांति तीसरा नैत्र था तथा मस्तक पर अति तीव्र चंद्र रेखा थी,कंठ में कालकूट विष था, एक हाथ में  विकराल त्रिशूल  था और वे सर्पों के हार आदि धारण किए हुए थी।
 काली के साथ दिव्य वस्त्र धारण किए हुए तथा आभूषणों से विभूषित देवियां, सिद्धों के स्वामी, सिद्धगण तथा पिशाच भीउत्पन्न हुए।
 तब उन पार्वती की आज्ञा से परमेश्वरी काली ने  असुर दारुक का वध कर दिया।।
 उनके अतिशय वेग तथा क्रोध की अग्नि से  संपूर्ण जगत व्याकुल हो उठा। तब ईश्वर भव भी माया से बाल रूप धारण कर उस काली की क्रोधाग्नि को पीने के लिए काशी में शमशान में जाकर रोने लगे।
 उन बालरुप ईशान को देखकर उनके माया से  मोहित उन काली ने  उन्हे उठाकर, मस्तक सुघँकर ,अपना दूध ग्रहण कराया।
 बाल रूप शिव दूध के साथ उनका क्रोध भी पी गये और इस प्रकार वे इस क्रोध से क्षेत्रों की रक्षा करने वाले हो गए। उन बुद्धिमान क्षेत्रपाल (भैरव) की भी आठ मूर्तियां हो गई। इस प्रकार काली उस बालक के द्वारा क्रोधमूर्छित अर्थात क्रोध से मुक्त कर दी गई।
 इसके बाद महादेव ने काली की प्रसन्नता के लिए संध्याकाल में श्रेष्ठ भूतों प्रेतों के साथ तांडव नृत्य किया।
 शंभू के नृत्यामृत का कण्ठ तक पान करके वे परमेश्वरी  श्मशान में नाचने लगी और योगनियाँ भी उनके साथ नाचने लगी ।
वहां पर ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवताओं ने सभी और से काली को तथा  पार्वती जी को प्रणाम किया और उनकी स्तुति की।
 इस प्रकार मैंने संक्षेप में शूल धारी प्रभु के तांडव नृत्य का वर्णन कर दिया; योग के आनंद के कारण शिव तांडव होता है '-ऐसा अन्य लोग कहते हैं।
।। इस प्रकार श्री लिंग महापुराण के अंतर्गत पूर्व भाग में "शिवतांडव कथन "नामक एक सौ छठा अध्याय पूर्ण हुआ

सोमवार, 23 मार्च 2020

(आध्यात्मिक बोध कथा)श्रेष्ठतम का सहारा ही श्रेष्ठ होता है

 जो सब में श्रेष्ठ हो का सहारा लेना है श्रेष्ठ होता है


बहुत सी भेड़ बकरियां जंगल में चरने गई । उनमें से एक बकरी चरते चरते एक लता में उलझ गई ।उसको उस लता में निकलने में बहुत देर लगी ,तब तक अन्य सब भेड़ बकरियां अपने घर पहुंच गयें। अंधेरा भी हो रहा था वह बकरी घूमते घूमते एक सरोवर किनारे पहुंची। वहां किनारे की गीली जमीन पर सिंह का एक चरण चिन्ह अंकित था ,उस चरण चिन्ह के शरण होकर उसके पास बैठ गई। रात में जंगली सियार, भेड़िया ,बाघ आदि प्राणी बकरी को खाने के लिए पास में आए तो, उस बकरी ने बता दिया कि पहले देख लेना कि मैं किसके शरण में हूं,, तब मुझे खाना वह चिन्ह को देखकर कहने लगे अरे यह तो सिंह के चरण चिन्ह है। जल्दी भागो यहां से,आ जाएगा तो हम को मार डालेगा। इस प्रकार सभी प्राणी भयभीत होकर भाग गए। अंत में जिसका चरण चिन्ह था, वह  आया और बकरी से बोला तू जंगल में अकेले कैसे बैठी है ।बकरी ने कहा यह चरण चिन्ह देख लेना, फिर बात करना। जिसका यह चरण चिन्ह है उसी के में शरण हुए बैठी हूं। सिंह ने कहा कि वह तो मेरा ही चरण चिन्ह है ,यह बकरी तो मेरे शरण हुई ।सिंह ने बकरी को आश्वासन दिया कि अब तुम डरो मत अराम से रहो। रात में जब  जल पीने के लिए हाथी आया तो उसने हाथी से कहा - "इस बकरी को अपनी पीठ पर चढ़ा लो, इसको जंगल में चरा कर लाया कर, पर हरदम अपनी पीठ पर ही रखा कर, नहीं तो तू जानता  नहीं कि मैं कौन हूंँ? मार डालूंगा!" सिंह की बात सुनकर हाथी थर थर कांपने लगा। उसने अपने सूडं से ऊपर चढ़ा लिया अब  बकरी निर्भय होकर, हाथी की पीठ पर बैठे-बैठे ही वृक्षों की ऊपर की कोंपलें ऊपर खाया करती, मस्त रहती।
 ऐसे ही जब मनुष्य भगवान की शरण हो जाता है उनके चरणों का सहारा ले लेता है। संपूर्ण प्राणियों से,विघ्न बाधाओं से निर्भय हो जाता है। उसको कोई भी भयभीत नहीं कर सकता । उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
 जो जाजो जा को शरण रहे ताकहँ ताकि लाज।
 उल्टे जल मछली चले, ब्रह्माे जात गजराज।।

Featured Post

करवा चौथ पर चंद्रमा को जल क्यों चढ़ाया जाता है

🌕 करवा चौथ पर चंद्रमा को जल क्यों चढ़ाया जाता है? करवा चौथ   का पर्व भारतीय स्त्रियों की श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का सबसे पवित्र प्रतीक है ...