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मंगलवार, 6 जून 2023

श्रीमद् भागवत का सूक्ष्म रूप

                     श्रीमद् भागवत का सूक्ष्म रूप

                           मूल भागवत हिंदी में

                           ॐ श्री परमात्मने नमः

 श्री भगवान बोले– ब्रह्मा जी! मेरा जो अत्यंत गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान है, वह तथा रहस्य सहित उसके अंग मेरे द्वारा कहे गए हैं, उसको तुम ग्रहण करो, धारण करो।

 मैं जितना हूं, जिन जिन भाव वाला हूं, जिन जिन रूपों, गुणों और कर्मों वाला हूं, उस मेरे सभी रूप के तत्व का यथार्थ अनुभव तुम्हें मेरी कृपा से ज्यों का त्यों हो जाए।

सृष्टि से पहले भी मैं था, मेरे सिवा और कुछ भी नहीं था और सृष्टि उत्पन्न होने के बाद जो कुछ भी यह संसार दिखता है, वह भी मैं ही हूं। सत् (चेतन,अविनाशी), असत (नाशवान) तथा सत व असत से परे जो कुछ कल्पना की जा सकती है, वह भी मैं ही हूं।सृष्टि के सिवाय जो कुछ है वह मैं ही हूं और सृष्टि का नाश होने पर जो शेष है वह भी मैं ही हूं।

 जैसे कोई वस्तु बिना होते हुए भी अज्ञान रूपी अंधकार के कारण प्रतीत होती है, ऐसे ही संसार न होते हुए भी मेरे में प्रतीत होता है और ज्ञान प्रकाश होते हुए भी उधर दृष्टि ना रहने से प्रतीत नहीं होता, अनुभव में नहीं आता। ऐसे ही मैं होते हुए भी नहीं दिखता, यह दोनों संसार का विद्यमान ना होते हुए भी दिखना और मेरा विद्यमान होते हुए भी ना देखना, मेरी माया है, ऐसा समझना चाहिए।

जिस तरह पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश यह पांचों महाभूत प्राणियों के छोटे बड़े, अच्छे बुरे, सभी शरीरों में होते हुए भी वास्तव में नहीं है,अर्थात वे ही वे हैं उसी तरह मैं उन प्राणियों में होते हुए भी वास्तव में उनमें नहीं हूं। अर्थात मैं ही मैं हूं।

मुझ परमात्मा के तत्व को जानने की इच्छा वाले साधक को अनुभव और व्यतिरेक रीति से अर्थात संसार में मैं हूं और मेरे में संसार है, ऐसे रीति से तथा ना संसार में मैं हूं और ना मेरे में संसार है, बल्कि मैं ही मैं हूं। ऐसे तरीके से रीति से इतना ही जानना आवश्यक है कि सब जगह और सब समय में परमात्मा ही विद्यमान है अर्थात मेरी सिवाय कुछ भी नहीं है।

ब्रह्मा जी! तुम मेरे इस मत के अनुसार सर्वश्रेष्ठ समाधि में भलीभांति स्थित हो जाओ। फिर तुम कल्प कल्पांतर तक मोह  को प्राप्त नहीं होगे ।

श्रीमद्भागवत 2/9 (30 से 36 तक)

पंचामृत जीवन में एक बार इसको अपना लो फिर सुख ही सुख है

 पंचामृत जीवन में एक बार इसको अपना लो फिर जीवन में सुख ही सुख है।


1  हम भगवान के ही हैं

2  हम जहां भी रहते हैं भगवान के ही दरबार में रहते हैं।

3  हम जो भी शुभ काम करते हैं भगवान का ही काम करते हैं।

4  शुद्ध सात्विक जो भी पाते हैं भगवान का ही प्रसाद पाते हैं।

5  भगवान के दिए प्रसाद से, भगवान के ही जनों की सेवा करते हैं।

सोमवार, 5 जून 2023

महामृत्युंजय मंत्र की रचना

      महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?

   किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना?


शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.

मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए.

मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.

महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है.

ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है.

मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.

मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे, जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे.

मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.

              ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

             उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था।

यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए।

इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया।

यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं।

शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?

यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है।

भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते।

यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा।

महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उवके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है।

।।ॐ नमः शिवाय।।

गुरुवार, 18 मई 2023

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता के लिए बनाये थे - ब्रज में चार धाम

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता के लिए बनाये थे - ब्रज में चार धाम


भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माता यशोधा और पिता नंद बाबा के लिए ब्रज की धरती पर ही चार धाम का निर्माण किया था। वैसे ये चार धार - यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ भारत के राज्य उत्तराखंड में स्थित है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता को चार धाम की यात्रा पर जाते देख और चार धाम यात्रा कठनाईयों को देखते हुए ब्रज की धरती पर ही चार धाम का आह्वान करके बुलाया था। इसके बाद एक-एक करके सारे तीर्थ ब्रज में आ गए। ये भी माना जाता है कि इन चार धाम के दर्शन से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

नंद बाबा और यशोदा को आई चार धाम यात्रा की याद

नंद बाबा और यशोदा वृद्धा वस्था में भी कोई संतान ने होने पर यह संकल्प लिया था कि अगर उनको संतान की प्राप्ती होगी तो चार धाम की यात्रा करेगें।

श्रीकृष्ण की गौचरण लीला के बाद नंद बाबा और यशोदा को चारधाम की यात्रा का संकल्प याद आया। इसके बाद उन्होंने तीर्थ यात्रा पर जाने की तैयारी शुरू कर दी। श्रीकृष्ण जब गायों को चराकर घर लौटे तो देखा कि घर में तैयारियां हो रही हैं। बैलगाड़ी को सजाया जा रहा है। इस पर श्रीकृष्ण ने यशोदा से पूछा कि मैया, ये क्या हो रहा है। इस पर यशोदा ने कहा भगवान श्रीकृष्ण से अपने संकल्प के बारे में बताया और इसलिए नंद बाबा और यशोदा तीर्थ करने जा रहे हैं।

श्रीकृष्ण ने चारों धामों को ब्रज में बुला लिया

इस पर श्रीकृष्ण ने कहा, मैया, बुढ़ापे में तीर्थ जा रहे हो। मैं सब तीर्थ ब्रज में बुला देता हूं। इसके बाद श्री श्रीकृष्ण ने अपनी माया से चारों धामों का आह्वान कर उन्हें ब्रज में बुला लिया और एक-एक करके सारे तीर्थ ब्रज में आकर उपस्थित हो गए। सभी तीर्थ विद्यमान हैं जिनमें चारों धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री भी ब्रज 84 कोस में ही मौजूद हैं।

बद्रीनाथ धाम

ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा में आदिबद्रीनाथ के नाम से एक मंदिर है जो कि काम्यवन के अन्तर्गत आता है। भगवान श्रीकृष्ण के अनुरोध पर नंद बाबा और यशोदा मैया के साथ ब्रजवासियों को दर्शन देने भगवान बद्रीनारायण प्रकट हुए थे और इनका नाम बूढ़ा बद्री पड़ गया। डीग से कामां के रास्ते पर चलने पर बूढ़ा बद्री मंदिर के समीप ही अलकनंदा कुंड बना हुआ है जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं।

वहीं गोवर्धन से करीब 36 किलोमीटर की दूरी पर डीग क्षेत्र के पास आदिबद्री धाम है। भगवान बद्रीनाथ ने देवसरोवर का भी स्वयं निर्माण किया। नर-नारायण पर्वत भी यहीं आमने-सामने मौजूद है।

यमुनोत्री और गंगोत्री

आदिबद्री धाम से कुछ दुरी पर, एक पहाड़ी पर यमुनोत्री और गंगोत्री धाम है। ये दोनों मंदिरों एक साथ देखा जा सकता है।

केदारनाथ धाम

कामां से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर गांव विलोंद के समीप एक पर्वत पर भगवान केदारनाथ शेषनाग रूपी विशाल शिला के नीचे एक छोटी से गुफा में विराजमान हैं। जिस पर्वत पर केदारनाथ मंदिर है उसकी तलहटी में ही गौरीकुंड स्थित है। मंदिर करीब 500 फ़ीट की ऊंचाई पर है और करीब 450 सीढि़यां चढ़कर मंदिर तक पहुंचा जाता हैं। इस पहाड़ी पर नंदी, गणेश और शेषनाग की छवि दिखाई पड़ती है।


गुरुवार, 11 मई 2023

करूणा मयी श्री राधे

                            करूणा मयी श्री राधे 


एक  बार वृन्दावन में एक संत हुए कदम्खंडी जी महाराज। उनकी बड़ी बड़ी जटाएं थी। वो वृन्दावन के सघन वन में जाके भजन करते थे।

एक दिन जा रहे थे तो रास्ते में उनकी बड़ी बड़ी जटाए झाडियो में उलझ गई। उन्होंने खूब प्रयत्न किया किन्तु सफल नहीं हो पाए।

और थक के वही बैठ गए और बैठे बैठे गुनगुनाने लगे।

"हे मुरलीधर छलिया मोहन

हम भी तुमको दिल दे बैठे,

गम पहले से ही कम तो ना थे,

एक और मुसीबत ले बैठे "

बहोत से ब्रजवासी जन आये और बोले बाबा हम सुलझा देवे तेरी जटाए तो बाबा ने सबको डांट के भगा दिया और कहा की जिसने उलझाई वोही आएगा अब तो सुलझाने।

बहोत समय हो गया बाबा को बैठे बैठे......

"तुम आते नहीं मनमोहन क्यों

इतना हमको तडपाते हो क्यों ।

प्राण पखेरू लगे उड़ने,

तुम हाय अभी शर्माते हो क्यों।"

तभी सामने से 15-16 वर्ष का सुन्दर किशोर हाथ में लकुटी लिए आता हुआ दिखा। जिसकी मतवाली चाल देखकर करोडो काम लजा जाएँ। मुखमंडल करोडो सूर्यो के जितना चमक रहा था। और चेहरे पे प्रेमिओ के हिर्दय को चीर देने वाली मुस्कान थी।

आते ही बाबा से बोले बाबा हमहूँ सुलझा दें तेरी जटा।

बाबा बोले आप कोन हैं श्रीमान जी?

तो ठाकुर जी बोले हम है आपके कुञ्ज बिहारी।

तो बाबा बोले हम तो किसी कुञ्ज बिहारी को नहीं जानते।

तो भगवान् फिर आये थोड़ी देर में और बोले बाबा अब सुलझा दें।

तो बाबा बोले अब कोन है श्रीमान जी ।

तो ठाकुर बोले हम हैं निकुंज बिहारी।

तो बाबा बोले हम तो किसी निकुंज बिहारी को नहीं जानते।

तो ठाकुर जी बोले तो बाबा किसको जानते हो बताओ?

तो बाबा बोले हम तो निभृत निकुंज बिहारी को जानते हैं।

तो भगवान् ने तुरंत निभृत निकुंज बिहारी का स्वरुप बना लिया। ले बाबा अब सुलझा दूँ।

तब बाबा बोले च्यों रे लाला हमहूँ पागल बनावे लग्यो!

निभृत निकुंज बिहारी तो बिना श्री राधा जू के एक पल भी ना रह पावे और एक तू है अकेलो सोटा सो खड्यो है।

तभी पीछे से मधुर रसीली आवाज आई बाबा हम यही हैं। ये थी हमारी श्री जी।

और श्री जी बोली अब सुलझा देवे बाबा आपकी जटा।

तो बाबा मस्ती में आके बोले लाडली जू आपका दर्शन पा लिया अब ये जीवन ही सुलझ गया जटा की क्या बात है।

     लाडली जी की जय हो 

मंगलवार, 9 मई 2023

भगवान के होकर भगवान का नाम जप करो।

                                    ॥श्री हरिः॥

           भगवान के होकर भगवान का नाम जप करो।

                                    परम वचन

                       श्री रामसुखदासजी महाराज 

       जैसे आदमी दूर विदेशमें चला जाता है,  ऐसे आप खास भगवानके बेटे होते हुए भी दूर चले गये हैं। इसलिये सभी भाई-बहनोंसे मेरी प्रार्थना है कि आप कृपा करके स्वीकार कर ले कि हम भगवानके बेटा--बेटी है।  हम कपूत--सपूत, अच्छे--मन्दे, भले-- -बुरे जैसे भी हैं, भगवानके हैं। अब केवल भगवान की तरफ चलना ही हमारा काम है। भगवत्प्राप्तिके समान दूसरा कोई काम है ही नहीं। इसलिये भगवानके भजनमें लग जाओ। चलते--फिरते, 

 उठते--बैठते हर समय भगवानको याद रखो। भगवानका होकर भगवानके नामका जप करो ।

   बिगरी जनम अनेक की,  सुधरै अबहीं आजु   ।

   होहि राम को नाम जपु, तुलसी तजि कुसमाजु ।।

                                                 ( दोहावली 22 )

       इसमें तीन बातें बतायी है---कुसंग छोड़ दो, भगवानके हो जाओ, और भगवानके नामका जप करो। जैसे सत्संगसे महान लाभ होता है, ऐसे ही कुसंगसे महान हानि होती है। सांसारिक भोग और संग्रहको श्रेष्ठ माननेवाले और उनमें आसक्त पुरुषों का संग कुसंग है। भगवानकी चर्चा हो, भगवानका चिन्तन हो,  वह सत्संग है। आजकल कुसंग बहुत मिलता है, उससे सावधान रहो, अपनेको बचाओ।

( सीमा के भीतर असीम प्रकाश----205 )

सोमवार, 8 मई 2023

वैष्णव सदाचार का प्रतीक है तिलक

              वैष्णव सदाचार का प्रतीक है  तिलक


ऐसा कहा जाता है कि तिलक लगाते समय यदि भक्त दर्पण अथवा पानी मे अपना प्रतिबिम्ब ध्यानपूर्वक देखता है तो वह भगवान के धाम को जाता है

तिलक लगाना इस बात का प्रतिक है की आप सनातनी है और वैष्णव तिलक लगाना कृष्ण भक्ति का प्रतीक है।

जिस प्रकार स्त्री अपने स्वामी की प्रसन्नता के लिये श्रृँगार करती है उसी प्रकार वैष्णव अपने स्वामी(श्री कृष्ण)की प्रसन्नता के लिये श्रृँगार करते है जिसमे तिलक मुख्य है।

तिलक अनेक प्रकार के होते है 

चार मुख्य सम्प्रदायो के अपने अपने तिलक होते है जो जिस सम्प्रदाय से दीक्षित हो, वे उसका तिलक धारण करे अथवा जो दीक्षित ना हो वे श्री चैतन्य महाप्रभु को गुरू मान  कर उनका तिलक धारण करे। 

तिलक लगाने के लिये सिन्दूर,सफेद चन्दन,पीला चन्दन,लाल चन्दन,गोपी चन्दन और शिव भक्त सम्प्रदाय के भक्त भस्म का तिलक धारण करते है।कृष्ण भक्त वैष्णवो के लिये सबसे उत्तम तिलक है, गोपी चन्दन का इसलिये गोपी चन्दन का तिलक धारण करे।

-अपने हाथ मे गोपी चन्दन घिसते समय नीचे ना गिराएँ यदि वह नीचे गिर जाय तो तुरन्त साफ करे क्यूँकि गोपी चन्दन अत्यन्त मूल्यवान है यह साधारण चन्दन नही है कृष्ण भक्ति का आशिर्वाद है।

बाएँ हाथ मे तिलक बनाते हुए एवं मस्तक पर लगाते समय नामोच्चारण करेँ।

पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।। कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् । ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।

तिलक लगाने मे जो शर्म महसूस करे, वह कभी वैष्णव बनने योग्य नही हो सकता। तिलक लगा कर मन एवं आत्मा मे शान्ति और भक्ति और गर्व का अनुभव जो करे वही वैष्णव है।

।।जय श्री राधे।।

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