विनती व प्रार्थना का सबसे बड़ा महत्व है।
विनती और प्रार्थना का महत्व – व्यक्ति के भावनात्मक, मानसिक, और आध्यात्मिक जीवन में गहरी भूमिका निभाता है। इसका महत्व विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:
1. आध्यात्मिक महत्व
- आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम होता है।
- ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है।
- नकारात्मक विचारों को दूर कर मन की शांति प्रदान करता है।
2. भावनात्मक और मानसिक महत्व
- मनोबल को बढ़ाने में सहायक होती है।
- चिंताओं और तनाव को कम करती है।
- आत्मविश्वास और धैर्य बढ़ता है।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
- सामूहिक प्रार्थनाएं सामाजिक एकता को बढ़ावा देती हैं।
- धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में प्रार्थना का विशेष स्थान होता है।
4. आत्मचिंतन और आत्मनियंत्रण का साधन
- व्यक्ति को आत्मविश्लेषण करने का अवसर मिलता है।
- मनोबल और अनुशासन को प्रोत्साहन मिलता है।
- दादा गुरु भक्तमलीजी के श्री मुख से विनती व प्रार्थना के महत्व पर विचार
रामायण भागवत में स्तुति प्रकरण ही अधिक है।स्तुति में भगवान के स्वरूप का दया,क्षमा,करुणा का वर्णन हैं तथा भक्त अपनी दयनीय अवस्था का वर्णन करता हैं तब भगवान और भक्त दोनों ही संतुष्ट हो जाते हैं।एक दूसरे के समीप पहुंच जाते हैं।माता कुंती ने कहा कि जीव के बिना इंद्रियां शक्तिहीन हो जाती है वैसे ही आप के बिना यादवों का और पांडवों का कोई भी अस्तित्व नहीं रह जाता है।आपके चरण स्पर्श से पृथ्वी हरी भरी हैं।लता,वृक्ष,वन,पर्वत बढ़ रहे है।आपके वियोग में सब श्रीहीन हो जाएंगे।मेरी ममता पांडवों में और यदुवंशियों में बढ़ गई है।इस पारिवारिक स्नेह बंधन को आप काट दीजिए।जैसे गंगा की अखंड धारा समुद्र से मिलती रहती है उसी तरह मेरी चित्तवृत्ति किसी दूसरी और न जाकर आप में ही निरंतर प्रेम करती रहें।आप चराचर के गुरु हैं।आपकी शक्ति अनंत हैं। गाय,विप्र,और देवताओं का दुख मिटाने के लिए आपने अवतार ग्रहण किया है।आपको बार बार सदा नमस्कार हैं।इस प्रकार भक्तों के द्वारा की गई स्तुतियों से तथा अपनी भाषा में अपने ह्रदय के भाव को अर्पण करते हुए नित्य स्तुति करनी चाहिए।
निष्कर्ष
विनती और प्रार्थना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह आत्मिक शक्ति और मानसिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यह जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक होती हैं।
जय श्री राधे।।
दादा गुरु श्री भक्तमाली जी के श्री मुख से