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मंगलवार, 25 मार्च 2025

ज्वाला देवी

                            ज्वाला देवी


ज्वाला देवी मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी नामक स्थान पर स्थित है और हिंदू धर्म में इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यहाँ प्रकट होने वाली अनन्त ज्वालाएँ हैं, जो बिना किसी ईंधन के निरंतर जलती रहती हैं।

मंदिर का पौराणिक महत्व

ज्वाला देवी मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष यज्ञ में आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव ने उनके शव को उठाकर तांडव नृत्य किया। इस दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया, और जहाँ-जहाँ ये अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए।

कहा जाता है कि सती की जिह्वा (जीभ) इस स्थान पर गिरी थी, जिसके कारण यहाँ माता ज्वाला देवी की उपासना होती है।

मंदिर की विशेषता

  1. अनन्त ज्वालाएँ
    मंदिर में सात मुख्य ज्वालाएँ जलती हैं, जिन्हें विभिन्न देवियों का रूप माना जाता है:

    • महाकाली
    • अन्नपूर्णा
    • चंडी
    • हिंगलाज
    • विंध्यवासिनी
    • महालक्ष्मी
    • सरस्वती
  2. बिना किसी ईंधन के जलती अग्नि
    मंदिर में जलने वाली ज्वालाएँ बिना किसी ज्ञात स्रोत के प्रकट होती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ज्वालाएँ भूमिगत प्राकृतिक गैस स्रोतों के कारण जलती हैं, लेकिन धार्मिक मान्यता इसे देवी का चमत्कार मानती है।

  3. कोई मूर्ति नहीं
    अन्य मंदिरों की तरह यहाँ कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि स्वयं प्रकट हुई ज्वालाओं को ही देवी का स्वरूप माना जाता है।

मंदिर का इतिहास

  • कहा जाता है कि पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • मुगल शासक अकबर ने इस मंदिर की परीक्षा लेने के लिए इसे बुझाने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा। बाद में उसने यहाँ सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन वह रहस्यमय रूप से गिरकर किसी अन्य धातु में बदल गया।
  • महाराजा रणजीत सिंह ने 19वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और यहाँ सोने की परत चढ़ाई।

मुख्य उत्सव और मेलों

  1. नवरात्रि महोत्सव – इस दौरान यहाँ विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और विशाल भंडारे का आयोजन होता है।
  2. श्रावण मास (सावन) – इस महीने में भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में माता के दर्शन करने आते हैं।

कैसे पहुँचे?

  • निकटतम रेलवे स्टेशन: कांगड़ा रेलवे स्टेशन (लगभग 30 किमी)
  • निकटतम हवाई अड्डा: कांगड़ा एयरपोर्ट (गग्गल)
  • सड़क मार्ग: यह मंदिर धर्मशाला, कांगड़ा, और पठानकोट से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

मंदिर दर्शन का समय

  • सुबह 5:00 बजे से रात 10:00 बजे तक
  • विशेष अवसरों और त्योहारों पर समय में बदलाव हो सकता है।

निष्कर्ष

ज्वाला देवी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी एक रहस्यमय स्थल है। यहाँ प्रकट होने वाली ज्वालाएँ माता के दिव्य चमत्कार का प्रतीक मानी जाती हैं, और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

शनिवार, 8 मार्च 2025

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल

                     श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल


स्थान: तिरुवनंतपुरम, केरल
समर्पित: भगवान विष्णु (श्री पद्मनाभस्वामी)
विशेषता: विश्व के सबसे धनी मंदिरों में से एक


मंदिर का इतिहास और महत्व

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के सबसे प्राचीन और रहस्यमयी मंदिरों में से एक है। यह मंदिर त्रावणकोर राजघराने द्वारा संरक्षित किया गया है और इसे दुनिया का सबसे अमीर हिंदू मंदिर माना जाता है।

  1. भगवान पद्मनाभस्वामी का स्वरूप

    • यहां भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा शेषनाग (अनंत) के ऊपर योगनिद्रा मुद्रा में विराजमान है।
    • यह मूर्ति 18 फुट लंबी है और इसे तीन द्वारों से देखा जाता है—सिर, मध्य भाग और पैर।
  2. अनंत पद्मनाभ संप्रदाय

    • इस मंदिर को 'अनंत पद्मनाभसंप्रदाय' से जोड़कर देखा जाता है, जिसे आदि शंकराचार्य से संबंध बताया जाता है।
    • त्रावणकोर के शासकों ने स्वयं को भगवान पद्मनाभस्वामी का "दास" घोषित कर दिया था और राज्य को उनका निवास स्थान माना था।

मंदिर की विशेषताएँ

1. रहस्यमयी गुप्त तहखाने (Vault B का रहस्य)

  • मंदिर में छह तहखाने (Vaults) हैं, जिनमें से पाँच खोले जा चुके हैं।
  • इनमें सोना, चांदी, बहुमूल्य रत्न और ऐतिहासिक धरोहरें मिली हैं।
  • छठे तहखाने (Vault B) को खोलने की कोशिश कई बार की गई, लेकिन इसे खोलना अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इसके अंदर दिव्य शक्तियाँ विद्यमान हैं।

2. वास्तुकला और भव्यता

  • मंदिर का निर्माण द्रविड़ और केरल शैली की वास्तुकला में किया गया है।
  • इसमें भव्य गोपुरम (गेट टॉवर) है, जो 100 फीट ऊंचा है।
  • मंदिर के अंदर विशाल गलियारे और सुंदर नक्काशी हैं।

3. मंदिर के नियम और अनुशासन

  • केवल हिंदू भक्तों को ही प्रवेश की अनुमति है।
  • पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी या परंपरागत परिधान पहनना अनिवार्य है।
  • फोटोग्राफी और मोबाइल फोन ले जाना प्रतिबंधित है।

त्योहार और अनुष्ठान

  1. पंगुनी उत्सव: यह चैत्र महीने (मार्च-अप्रैल) में मनाया जाता है।
  2. अल्पासी उत्सव: अक्टूबर-नवंबर में मनाया जाने वाला बड़ा उत्सव।
  3. विष्णु सहस्रनाम पाठ: यहां नियमित रूप से विष्णु सहस्रनाम का पाठ होता है।
  4. श्री पद्मनाभस्वामी रथ यात्रा: मंदिर की भव्य रथ यात्रा भी प्रसिद्ध है।
  5. कैसे पहुँचे?
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: तिरुवनंतपुरम सेंट्रल (लगभग 1 किमी दूर)
  • निकटतम हवाई अड्डा: तिरुवनंतपुरम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (लगभग 5 किमी दूर)
  • सड़क मार्ग: केरल और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों से अच्छी बस सेवा उपलब्ध है।
  • निष्कर्ष:

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अपने रहस्यों, समृद्धि और भव्यता के कारण भी दुनिया भर के भक्तों को आकर्षित करता है। यदि आप अध्यात्म, इतिहास और रहस्य में रुचि रखते हैं, तो इस मंदिर की यात्रा अवश्य करें।

मेंहदीपुर बालाजी

                            मेंहदीपुर बालाजी 


मेंहदीपुर बालाजी मंदिर राजस्थान के दौसा जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो हनुमानजी के बालाजी रूप को समर्पित है। यह मंदिर विशेष रूप से भूत-प्रेत बाधा, नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों के निवारण के लिए प्रसिद्ध है।

मेंहदीपुर बालाजी मंदिर का महत्व

  1. हनुमानजी का चमत्कारी मंदिर – यहां हनुमानजी को 'बालाजी' के रूप में पूजा जाता है।
  2. भूत-प्रेत बाधा मुक्ति केंद्र – ऐसा माना जाता है कि यहां आने से व्यक्ति नकारात्मक शक्तियों से मुक्त हो सकता है।
  3. तीन मुख्य देवता – मंदिर में हनुमानजी (बालाजी), प्रेतराज सरकार और भैरव बाबा की पूजा होती है।
  4. विशेष नियम – भक्तों को प्रसाद वहीं खाना पड़ता है, इसे घर ले जाना वर्जित माना जाता है।

अनुभव और विशेषताएँ:

  • मंदिर में आने वाले भक्तों में कई लोग असामान्य व्यवहार करते दिखते हैं, जिन्हें भूत-प्रेत बाधा से पीड़ित माना जाता है।
  • यहां तंत्र-मंत्र और झाड़-फूंक के बिना ही हनुमानजी के आशीर्वाद से लोग ठीक हो जाते हैं।
  • मंदिर में नवरात्रि और हनुमान जयंती के समय विशेष भीड़ होती है।

कैसे पहुंचें?

  • निकटतम रेलवे स्टेशन: बांदीकुई जंक्शन (लगभग 40 किमी दूर)
  • निकटतम हवाई अड्डा: जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (लगभग 110 किमी दूर)
  • सड़क मार्ग: जयपुर और आगरा से अच्छी सड़क संपर्क सुविधा उपलब्ध है।
  • मेंहदीपुर बालाजी से जुड़ी और रोचक बात

    1. विशेष पूजा और अनुष्ठान

      • आरती और दर्शन: मंदिर में दिनभर विशेष पूजा-अर्चना होती है, लेकिन सुबह और शाम की आरती का विशेष महत्व है।
      • संकट मोचन अनुष्ठान: जो लोग नकारात्मक शक्तियों से पीड़ित होते हैं, उनके लिए विशेष पूजा कराई जाती है।
      • तेल चढ़ाने की परंपरा: यहां भक्त बालाजी को सरसों का तेल चढ़ाते हैं, जिससे उनकी कृपा प्राप्त होती है।
    2. मंदिर में मना किए गए कार्य

      • यहां से कोई भी प्रसाद या भभूत घर ले जाना वर्जित माना जाता है।
      • मंदिर के परिसर में फोटोग्राफी और वीडियो बनाना सख्त मना है।
      • दर्शन के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखने की परंपरा है।
    3. मेंहदीपुर बालाजी के रहस्य

      • कई भक्तों ने यहां आने के बाद जीवन में बड़े बदलाव महसूस किए हैं।
      • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे मानसिक और आत्मिक उपचार का केंद्र माना जाता है।
      • मंदिर में कई ऐसे लोग आते हैं, जिन पर किसी नकारात्मक शक्ति का प्रभाव बताया जाता है, और यहां अनोखे तरीके से उनकी समस्या का समाधान होता है।
    4. विशेष पर्व और मेलों का आयोजन

      • हनुमान जयंती पर मंदिर में भव्य उत्सव होता है।
      • शनिवार और मंगलवार को विशेष भीड़ रहती है क्योंकि ये दिन हनुमानजी की पूजा के लिए विशेष माने जाते हैं।
      • नवरात्रि के दौरान यहां हजारों भक्त आते हैं और अनुष्ठान कराते हैं।

    यात्रा के दौरान ध्यान देने योग्य बातें

    • मंदिर में कोई बिचौलिया या दलालों से बचें।
    • किसी अज्ञात व्यक्ति से प्रसाद या अन्य वस्तुएं न लें।
    • मंदिर परिसर में अनुशासन बनाए रखें और मंदिर के नियमों का पालन करें।

    मेंहदीपुर बालाजी की यात्रा एक आध्यात्मिक और रहस्यमयी अनुभव हो सकता है। अगर आप किसी परेशानी से गुजर रहे हैं या हनुमानजी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो यहां एक बार अवश्य जाएं।

  • मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का प्राकट्य स्वयंभू रूप में हुआ था। यह स्थान प्राचीन समय से ही तपस्वियों और साधुओं की साधना स्थली रहा है।

  • मंदिर की स्थापना

अगर आप आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करना चाहते हैं या किसी बाधा से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो मेंहदीपुर बालाजी मंदिर की यात्रा आपके लिए लाभदायक हो सकती है।

शनिवार, 1 मार्च 2025

                            

                            मां कामख्या मंदिर 




कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 8 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित एक प्रमुख शक्तिपीठ है। यह मंदिर देवी सती को समर्पित है और तांत्रिक साधना के लिए विशेष महत्व रखता है।माँ कामाख्या मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर में नीलाचल पर्वत पर स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है और तंत्र साधना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

कामाख्या मंदिर का धार्मिक महत्व

  • यह मंदिर माँ भगवती के "योनि" (जननांग) रूप की पूजा का प्रमुख केंद्र है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव, सती के शव को लेकर तांडव कर रहे थे, तब विष्णुजी ने उनके शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से खंड-खंड कर दिया। जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ बने। कामाख्या मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहां माता सती का योनि और गर्भाशय गिरा था।
  • मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहाँ एक प्राकृतिक गुफा में स्थित योनि कुंड की पूजा होती है, जिसे एक लाल रंग की कपड़े से ढका जाता है।

कामाख्या मंदिर की विशेषताएँ

  • गर्भगृह: अन्य मंदिरों के विपरीत, यहाँ देवी की मूर्ति नहीं है। गर्भगृह में एक प्राकृतिक चट्टान है, जिसे देवी की योनि के रूप में पूजा जाता है।

  1. अंबुवासी मेला

    • यह चार दिन तक चलने वाला एक विशेष पर्व है, जिसे माँ कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान मंदिर के गर्भगृह के जल में हल्का लाल रंग आ जाता है, जिसे दिव्य और चमत्कारी माना जाता है।
    • यह पर्व मुख्य रूप से तंत्र साधकों और संन्यासियों के लिए विशेष महत्व रखता है इस दौरान मंदिर के द्वार तीन दिनों तक बंद रहते है।
  2. तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र

    • कामाख्या मंदिर तांत्रिक साधना के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ कई तांत्रिक और साधु विशेष अनुष्ठान करते हैं।
    • माना जाता है कि यहाँ किए गए तंत्र-मंत्र साधना अत्यधिक प्रभावी होते हैं।
  3. स्थापत्य और वास्तुकला

    • यह मंदिर असमिया शैली में निर्मित है और इसका मुख्य गुंबद मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखता है।
    • मंदिर परिसर में माँ कामाख्या के अलावा, दस महाविद्याओं (काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला) के भी छोटे मंदिर हैं।

कैसे पहुँचे?

  • गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • लोकप्रिया गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है।
  • स्थानीय टैक्सी, ऑटो और बसों से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।

कामाख्या मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ

  • यहाँ माता की कृपा से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
  • संतान प्राप्ति, विवाह बाधा निवारण और शक्ति साधना के लिए विशेष रूप से इस मंदिर की पूजा की जाती है।
  • यहाँ माँ के दर्शन मात्र से भक्तों को आध्यात्मिक बल और ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • तांत्रिक साधना का केंद्र: कामाख्या मंदिर तांत्रिक साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहाँ विशेष अनुष्ठान और साधनाएँ की जाती हैं।

मंदिर का इतिहास

कामाख्या मंदिर का उल्लेख कालिका पुराण और योगिनी तंत्र में मिलता है। समय-समय पर इस मंदिर का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया गया है, जिससे इसकी वास्तुकला में विभिन्न शैलियों का समावेश देखा जा सकता है।

दर्शनीय स्थल

मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

भारत के ये चमत्कारी मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा और रहस्यमयी घटनाओं से भरे हुए हैं। क्या आप इनमें से किसी के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं?

 भारत के ये चमत्कारी मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा और रहस्यमयी घटनाओं से भरे हुए हैं। क्या आप इनमें से किसी के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं?

भारत में कई चमत्कारी और रहस्यमयी मंदिर हैं, जो अपनी अनोखी विशेषताओं और अद्भुत घटनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ कुछ प्रमुख चमत्कारी मंदिरों की सूची दी गई है:

1. कामाख्या मंदिर (असम)

यह मंदिर माँ कामाख्या को समर्पित है और इसे शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि यहाँ माँ सती की योनि गिरी थी, और विशेष बात यह है कि मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक चट्टान से हर साल जून में प्राकृतिक रूप से रक्तस्राव होता है।

2. मेहंदीपुर बालाजी (राजस्थान)

यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है और भूत-प्रेत बाधा को दूर करने के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आने वाले लोग भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति पाने के लिए विशेष अनुष्ठान करवाते हैं।

3. श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर (केरल)

इस मंदिर में सोने का अद्भुत खजाना छिपा हुआ है, जिसकी कीमत खरबों में आंकी गई है। इसके तहखानों में बंद दरवाजों के पीछे की रहस्यमयी दुनिया को अब तक पूरी तरह नहीं खोला गया है।

4. ज्वाला देवी मंदिर (हिमाचल प्रदेश)

इस मंदिर में देवी की प्रतिमा के स्थान पर धरती से स्वतः प्रकट हुई अग्नि की लपटें जलती रहती हैं, जो कभी बुझती नहीं हैं। इसे माँ ज्वालामुखी का चमत्कार माना जाता है।

5. कैलाश मानसरोवर और मणिमहेश मंदिर (हिमालय)

कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव साक्षात निवास करते हैं। मानसरोवर झील और मणिमहेश झील में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है।

6. चमत्कारी शिवलिंग – महाकालेश्वर मंदिर (उज्जैन)

यहाँ के शिवलिंग पर जल चढ़ाते ही जल अपने आप अदृश्य हो जाता है। यह रहस्य आज भी विज्ञान के लिए चुनौती बना हुआ है।

7. विश्व प्रसिद्ध ओंकारेश्वर मंदिर (मध्य प्रदेश)

यहाँ शिवलिंग अपने आप आकार बदलता रहता है और किसी न किसी रूप में दर्शन देता है।

8. शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र)

यहाँ स्थापित शनि देव की मूर्ति खुले आसमान के नीचे है, और इस गाँव के किसी भी घर में दरवाजे नहीं हैं, फिर भी आज तक यहाँ कोई चोरी नहीं हुई।

9. लेपाक्षी मंदिर (आंध्र प्रदेश)

इस मंदिर में एक रहस्यमयी खंभा है जो जमीन को नहीं छूता और हवा में लटका हुआ है।

10. कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर (केरल)

यह मंदिर माँ भगवती को समर्पित है, और यहाँ एक विशेष अनुष्ठान में भक्त देवी को लाल रंग के कपड़े अर्पित करते हैं।

भारत के ये चमत्कारी मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा और रहस्यमयी घटनाओं से भरे हुए हैं। क्या आप इनमें से किसी के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं?

शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

कुंभ स्नान क्या होता है,इसका महत्व क्या है?

                       कुंभ स्नान क्या होता है,इसका महत्व क्या है?


"कुंभ" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है घड़ा या कलश। यह शब्द विभिन्न संदर्भों में उपयोग किया जाता है:

1. कुंभ मेला

कुंभ मेला भारत का एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जो चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक) पर 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है।

2. ज्योतिष में कुंभ (राशि)

कुंभ भारतीय ज्योतिष में बारह राशियों में से एक राशि है। इसे अंग्रेज़ी में "Aquarius" कहते हैं। यह राशि शनि ग्रह द्वारा शासित मानी जाती है और इसका प्रतीक एक घड़ा लिए हुए व्यक्ति होता है।

3. संस्कृति और धार्मिक संदर्भ

धार्मिक अनुष्ठानों में कुंभ (कलश) का विशेष महत्व होता है। इसे शुभता, समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-पाठ में जल से भरे कुंभ का उपयोग किया जाता है।

कुंभ स्नान कुंभ मेले के दौरान गंगा, यमुना, सरस्वती और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में किया जाने वाला धार्मिक स्नान है। इसे हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यह स्नान आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।

महत्व:

  • ऐसा माना जाता है कि कुंभ स्नान पापों से मुक्ति दिलाता है।
  • यह आत्मिक और शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है।
  • धार्मिक मान्यता के अनुसार कुंभ स्नान के समय देवता और ऋषि भी इन नदियों में स्नान करने के लिए आते हैं।

कुंभ मेला स्थान और आयोजन:

कुंभ मेला भारत के चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है:

  1. हरिद्वार: गंगा नदी
  2. प्रयागराज: त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती)
  3. उज्जैन: शिप्रा नदी
  4. नासिक: गोदावरी नदी

स्नान तिथियों का महत्व:

कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान तिथियां विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती हैं। इनमें मुख्य स्नान जैसे मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, माघी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि होते हैं।

धार्मिक कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ था। उस समय अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक) पर गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र माने गए।

प्रयागराज में महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक आयोजित हो रहा है। इस दौरान कई प्रमुख शाही स्नान तिथियां हैं, जिनमें से कुछ पहले ही संपन्न हो चुकी हैं। आगामी शाही स्नान तिथियां निम्नलिखित हैं:

  • बसंत पंचमी: 3 फरवरी 2025 (सोमवार)
  • माघ पूर्णिमा: 13 फरवरी 2025 (गुरुवार)
  • महाशिवरात्रि: 26 फरवरी 2025 (बुधवार)

महाशिवरात्रि के दिन, 26 फरवरी 2025, महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान होगा, जिसके साथ मेले का समापन भी होगा।

हाल ही में, 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के अवसर पर आयोजित शाही स्नान के दौरान अत्यधिक भीड़ के कारण एक दुखद घटना घटी।

यदि आप महाकुंभ मेले में शामिल होने की योजना बना रहे हैं, तो कृपया सुरक्षा निर्देशों का पालन करें और स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी की गई सलाह का ध्यान रखें।

144 साल से क्या तात्पर्य है?

जब समुद्र मंथन हुआ था तो वह 12 दिन तक चला था देवताओं का एक दिन हमारे 12 साल के बराबर होता है। इसलिए 12 दिन को अगर हम 12 से गुना करेंगे तो 144 आएगा। इसलिए 144 साल बाद यह वही तिथि है जब समुद्र मंथन हुआ था यह तिथि 144 साल बाद आती है।

बुधवार, 29 जनवरी 2025

कोई भी टेंशन दिमाग से नहीं निकाल पाते हैं क्या करूं?/koi bhi tension dimag se nahin nikal paata hun kya karun

     कोई भी टेंशन दिमाग से नहीं निकाल पाते क्या करूं?


 हमें अपने दिमाग को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए। खाली दिमाग है तो गंदगी ही तो भरेगा,जितनी nagative विचार इकठ्ठा कर सकता है करेगा। अगर हम परमात्मा का चिंतन करेंगे तो सारी नकारात्मकता डिलीट हो जाएगी, अगर हमें कोई भी व्यक्ति ऐसा मिलता है जिसने कभी हमको गलत बोला हो तो, वह हमें जब भी मिलेगा तो हमें पुरानी सारी बातें फिर याद आ जाएगी। इसलिए सभी द्वेष को खत्म कर दो और भगवत चिंतन करो, आनंद पूर्वक भगवत चिंतन के बिना ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे आप अपने दिमाग की टेंशन को निकाल सको। अध्यात्म के बिना आप इन सब नेगेटिव बातों को खत्म नहीं कर सकते, कितनी भी भारी से भारी समस्याएं हो, भारी से भारी विपत्ति को हम नष्ट कर सकते है भगवान के चिंतन के द्वारा। चाहे राम जपो, कृष्ण जपों ,जो भी नाम प्रिय हो उसका जाप करो। अपने दिमाग को व्यस्त रखो, इसे खाली छोड़ोगे  तो यह हर समय टेंशन ही देगा।

बिना जाप के आपकी किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता

है। यह संसार शोक का धाम है, चारों ओर कामनाओं का जाल बिछा हुआ है। एक कामना खत्म होती हैं तो दूसरी खड़ी हो जाती है। बार-बार उसी कामनाओं व इच्छा को पूरी करते-करते हमारी आयु पूर्ण हो जाती है और हमें पता भी नहीं चलता । इसलिए समय रहते ईश्वर का जप करना शरू कर देना चाहिए,और अपने इस शरीर के जन्म को सार्थक कर लेना चाहिए।

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